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इस्लाम में औरत का स्थान और मुस्लिम पर्सनल लॉ पर एतिराज़ात की हक़ीक़त

'मुस्लिम पर्सनल लॉ' एक ऐसा क़ानून है जो इस्लामी जीवन-व्यवस्था पर आधारित है। एक लम्बे समय से भारत में इसे विवादित मुद्दा बनाया जाता रहा है और माँग की जाती रही है कि इसे बदलकर देश में 'समान सिवल कोड' लागू कर दिया जाए। मुसलमान इस क़ानून को बदलने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि यह इस्लामी जीवन-व्यवस्था पर आधारित है। देश के बहुसंख्यक समुदाय के नेता सरकारी ज़िम्मेदारों की मदद से इसमें परिवर्तन की माँग करते रहते हैं। कभी-कभी कोई नेशनलिस्ट मुसलमान भी उसी सुर-में-सुर मिला बैठता है, और इस तरह यह मुद्दा दिन-प्रतिदिन महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है।इस पुस्तक में इसी समस्या पर वार्ता की गई है।

कॉरपोरेट मीडिया

प्रस्तुत पुस्तिका जमाअत इस्लामी हिन्द के साम्राज्यवाद विरोधी अभियान के दौरान लिखी गई थी। इसमें बताया गया है कि आज का कॉरपोरेट मीडिया किस तरह अपने दायित्व से विमुख होकर साम्राज्यवादी पूँजीवाद की कठपुतली बन गया है। इससे देश और देशवासियों को कितना नुक़सान उठाना पड़ रहा है। इसनें मीडिया का इस्लामी दृष्टिकोण, भी पेश किया गया है और सुधार के उपाय भी बताए गए हैं।

इस्लामी शरीअ़त

हम अल्लाह की इबादत किस तरह करें? कैसे रहें-सहें? लेन-देन कैसे करें? एक आदमी के दूसरे आदमी पर क्या हक़ हैं? क्या हराम (अवैध) है? क्या हलाल (वैध) है? किस चीज़ को हम किस हद तक बरत सकते हैं और किस तरह बरत सकते हैं? ये और इसी तरह की तमाम बातें हमें शरीअ़त से मालूम होती हैं। इस्लामी शरीअ़त की बुनियाद क़ुरआन और सुन्नत है। क़ुरआन अल्लाह का कलाम है और सुन्नत वह तरीक़ा है जो नबी (सल्ललाहु अलैहि व सल्लम) से हमको मिला है। नबी (सल्ललाहु अलैहि व सल्लम) का सारा जीवन क़ुरआन पेश करने, समझाने और उसपर अमल करने में बीता। नबी (सल्ललाहु अलैहि व सल्लम) का यही बताना, समझाना और अमल करना सुन्नत कहलाता है। हमारे बहुत-से बुज़ुर्गों और आलिमों ने क़ुरआन और सुन्नत से वे तमाम बातें चुन लीं जिनकी मदद से हम दीन की बातों पर अमल कर सकें।

रिसालत

एकेश्वरवाद और परलोकवाद के अतिरिक्त इस्लाम की एक मौलिक धारणा है रिसालत अथवा पैग़म्बरवाद या ईशदूतत्त्व। ईश्वर ने जगत् में मानव की भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति की पूर्ण व्यवस्था की है। वर्षा इसी लिए होती है और धरती में अनाज इसी लिए पैदा होता है कि मानव को खाद्य-पदार्थ प्राप्त हो सके। ठीक इसी तरह ईश्वर सदैव से इसकी व्यवस्था करता रहा है कि मानव की वे अपेक्षाएँ भी पूरी हों जो उसकी नैतिक और आध्यात्मिक अपेक्षाएँ हैं। दूसरे शब्दों में ईश्वर ने सदैव स्पष्ट रूप से मानव का मार्गदर्शन किया और उसे बताया कि जगत् में उसका स्थान क्या है? यहाँ (धरती पर) वास्तव में उसे किस कार्य के लिए भेजा गया है? उसके वर्तमान जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है? जीवन-यापन के लिए उसे किन-किन नियमों और सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए? इस सिलसिले में मानव के मार्गदर्शन के लिए नबियों या पैग़म्बरों (ईशदूतों) को दुनिया में भेजा जाता रहा है।

परदा (इस्लाम में परदा और औरत की हैसियत)

यह बीसवीं सदी के महान विद्वान और जमाअत-इस्लामी के संस्थापक मौलाना सय्यद अबुलआला मौदूदी की महान कृति 'पर्दा’ का हिन्दी अनुवाद है। इस में मौलाना मौदूदी ने समाज में महिला के सही स्थान को स्पष्ट किया है।लेखक ने तर्कों और प्रमाणों के आधार है यह बताने की कोशिश की है कि औरत के लिए पर्दा क्यों ज़रूरी है।इतिहास के उदाहरण से यह बात बताई गई है कि क़ौमों के विकास में महिलाओं की क्या भूमिका होती है।लेखक ने इस पर भी चर्चा की है कि इस्लाम में औरतों को कितना ऊंचा मक़ाम दिया गया है और पर्दा औरत की हिफ़ाज़त के लिए कितना अहम है

एकेश्वरवाद और न्याय की स्थापना

एकेश्वरवाद (तौहीद) का अक़ीदा इस्लाम के बुनियादी अक़ीदों में से है। इसका मतलब है एक ऐसी हस्ती को जानना और मानना जिसने तमाम इनसानों और इस दुनिया की तमाम चीज़ों और जानदारों को पैदा किया है और जो इस दुनिया के निज़ाम को चला रही है। और इस मामले (पैदा करने और चलाने) में किसी दूसरी हस्ती को उसके साथ साझी न ठहराना। यह सिर्फ़ एक बेजान अक़ीदा नहीं है, बल्कि इसके मानने या न मानने से इनसानी ज़िन्दगी पर गहरे असरात पड़ते हैं। इस अक़ीदे पर ईमान लाने से इनसानी ज़िन्दगी में व्यवस्था, संतुलन और बैलेंस पैदा होता है और इस पर ईमान न लाने से वह अव्यवस्था (बदनज़्मी), असन्तुलन तथा बिगाड़ का शिकार हो जाती है। यह है वह बुनियादी सोच जिस पर इस किताब में बात की गई है।

इस्लाम के बारे में शंकाएँ

हमारे देश भारत में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं। ऐसे में एक-दूसरे को जानने और समझने के लिए लोगों के मन में तरह-तरह के सवालों का उठना स्वभाविक है। इनका सही जवाब न मिलने के कारण ग़लतफ़हमियाँ पैदा होती हैं, जिससे शान्ति और सौहार्द प्रभावित होता है। इस्लाम के बारे में हमारे देश में बहुत सी ग़लतफ़हमियां फैली हुई हैं। लेखक द्वारा इस पुस्तक में कुछ आम ग़लतफडहमियों को दूर करने की कोशिश की गई है।

इंतिख़ाब रसाइल-मसाइल (भाग-1)

रसाइल-मसाइल सवालों और उनके जवाबों का संग्रह है। महान लेखक और विद्वान मौलाना सैयद अबुल-आला मौदूदी को पत्र लिखकर दुनिया भर से लोग सवाल पूछते रहते थे। मौलाना मौदूदी अपनी मासिक पत्रिका ‘तर्जमानुल-क़ुरआन’ में वे सवाल और उनके जवाब प्रकाशित कर देते थे। उन सवाल जवाब के महत्व को देखते हुए बाद में उन्हें पुस्तक के रूप में प्रकाशित कर दिया गया और फिर उनका उर्दू से हिन्दी में अनुवाद भी किया गया। वे सवाल-जवाब इतने उपयोगी और प्रसांगिक हैं कि हम उन्हें आन लाइन पढ़नेवालों के लिए भी उपलब्ध करा रहे हैं।

प्यारी माँ के नाम इस्लामी सन्देश

यह लेख वास्तव में एक पत्र है, जो जनाब नसीम ग़ाज़ी फ़लाही ने अपनी माँ के नाम लिखा है। इस पत्र के महत्व को देखते हुए ही इसे एक पुस्तिका के रूप में जीवंत कर दिया गया है। जनाब नसीम ग़ाज़ी का जन्म एक हिन्दू परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने अपने लड़कपन के दिनों में ही इस्लाम क़ुबूल कर लिया था। इस पत्र के माध्यम से उन्होंने अपनी माँ को यक़ीन दिलाया है कि उनका बेटा पराया नहीं हुआ है, बल्कि बेटे के रूप में उसका दायित्व और बढ़ गया है, इस्लाम ने उसे माँ के साथ सबसे बढ़कर सद्व्यवहार की शिक्षा दी है। साथ ही उन्होंने माँ को इस्लाम की दावत भी दी है, जो उन्होंने कुछ समय बाद क़ुबूल कर ली। [-संपादक]

इस्लाम की गोद में

यह एक यहूदी नवजवान का वृत्तांत है, जो शांति की तलाश में था। अपने धर्म में उसे शांति नहीं मिली तो उसने कई धर्मों का अध्ययन किया, लेकिन कोई उसकी व्याकुलता दूर न कर सका। इली दौरान उसे कई मुस्लिम देशों का दौरा करने का अवसर प्राप्त हुआ। वहां सबसे पहले उसे मुस्लिम कल्चर ने आकर्षित किया। मुसलमानों से मिलकर उसे एक तरह के संतोष का अनुभ होता। फिर उसने इस्लाम का अध्ययन किया तो उसे मानव स्वभाव के अनुकूल पाया। उसने बिना विलम्ब किए इस्लाम स्वीकार कर लिया।[-संपादक]

शान्ति-मार्ग

यह जानेमाने विद्वान और महान समाज सुधारक मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी का एक भाषण है, जिसे एक लेख का रूप दे दिया गया है। यह भाषण कपूरथला में आजादी से पहले हिन्दुओं, सिखों और मुसलमानों की एक सम्मिलित सभा में दिया गया था। इस में ईश्वर के अस्तित्व को तार्किक ढंग से समझाया गया है।

क़ुव्वत का अस्ल राज़

मनुष्य की असली ताकत वह है जो उसे भीतर से मजबूत करती है और यह ताकत ईमान से आती है। जब मनुष्य ईश्वर से जुड़ जाता है, तो दुनिया का डर उसके दिल से निकल जाता है, वह दुनिया से निसपृह हो जाता है। मौत का डर इंसान को कायर बना देता है। अल्लाह पर पूरा भरोसा रखने वाले इंसान के दिल से मौत का डर निकल जाता है। तब उसका व्यक्तित्व रोबदार हो जाता है।जीवन की सुख-सुविधाएं मनुष्य को अंदर से खोखला कर देती हैं। इस लेख में एक छोटी सी घटना के संदर्भ में यही कहा गया है। [-संपादक]

इस्लाम के पैग़म्बर, हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)

इस्लाम के पैग़म्बर, हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को सही अर्थों में विश्व-नेता कहा जा सकता है, इसलिए कि आपने किसी विशेष जाति, वंश या वर्ग की भलाई के लिए नहीं, बल्कि सारे संसार के मनुष्यों की भलाई के लिए काम किया। आप की दृष्टि में सब जातियां और सब मनुष्य समान हैं, आप सबके समान शुभ चिंतक हें। आप ने ऐसे सिद्धांत पेश किए हैं जो सारे संसार के मनुष्यों का पथ-प्रदर्शन करते हैं और उनमें मानव-जीवन की सारी समस्याओं का समाधान है। आपका पथ-प्रदर्शन किसी विशेष काल के लिए नहीं, बल्कि हर काल और हर स्थिति में समान रूप से लाभदायक और समान रूप से शुद्ध और समान रूप से अनुकरणीय है। । हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने केवल सिद्धांत ही पेश नहीं किये, बल्कि उन सिद्धांतों को जीवन में कार्यान्वित करके भी दिखा दिया और उनके आधार पर एक जीता-जागता समाज भी बना दिया। यही कारण है कि जो लोग इस्लाम के अनुयायी नहीं हैं वे भी निष्पक्ष होकर अध्ययन करें तो यही महसूस करते हैं कि यह किसी राष्ट्रवादी या देश-प्रेमी का जीवन नहीं है, बल्कि एक मानव-प्रेमी और विश्वव्यापी दृष्टिकोण रखने वाले मनुष्य का जीवन है। प्रस्तुत है हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के बारे में प्रोफ़ेसर के. एस. रामाकृष्णा राव के विचार। [-संपादक]

आदाबे ज़िन्दगी

ज़िन्दगी से भरपूर फ़ायदा उठाना, मज़ा लेना और असल कामयाब ज़िन्दगी गुज़ारना यक़ीनी तौर पर आपका हक़ है, लेकिन उसी वक़्त जब आप ज़िन्दगी का सलीक़ा जानते हों, कामयाब ज़िन्दगी के उसूल और आदाब की जानकारी रखते हों और न सिर्फ़ जानकारी रखते हों, बल्कि अमली तौर पर आप उन उसूलों और आदाब से अपनी ज़िन्दगी को सँवारने और बनाने की बराबर कोशिशें कर रहे हों। अदब व सलीक़ा, सफ़ाई-सुथराई, पाकी और पाकीज़गी, अच्छे अख़लाक़, नेक अमल, हमदर्दी, भाईचारा, नर्मी, मिठास, त्याग, क़ुरबानी, बेग़र्ज़ी, ख़ुलूस, मुस्तैदी, फ़र्ज़ निभाने का एहसास, ख़ुदा से डरना, परहेज़गारी, हिम्मत, बहादुरी वग़ैरह ये इस्लामी ज़िन्दगी की ऐसी सुन्दर पहचान हैं, जिनकी वजह से मोमिन की बनी-सँवरी ज़िन्दगी में वह ग़ैर मामूली कशिश और अथाह आकर्षण पैदा हो जाता है कि न सिर्फ़ मुसलमान, बल्कि इस्लाम को न समझनेवाले ख़ुदा के दूसरे बन्दे भी बेइख़तियार उसकी ओर खिंचने लगते हैं और आम ज़ेहन यह सोचने पर मजबूर होते हैं कि इनसानियत से भरी हुई जो तहज़ीब ज़िन्दगी को निखारने, सँवारने और ग़ैर मामूली आकर्षण पैदा करने के लिए इनसानियत को यह क़ीमती उसूल व आदाब देती है, वह यक़ीनन हवा और रोशनी की तरह सारे इनसानों की आम मीरास है और बेशक इस क़ाबिल है कि पूरी इनसानियत उसको क़बूल करके उसकी बुनियादों पर अपने निजी और सामूहिक जीवन का सफल निर्माण करे, ताकि दुनिया की ज़िन्दगी भी सुख-शान्ति से गुज़रे और दुनिया के बाद की ज़िन्दगी में भी वह सब कुछ मिले, जो एक कामयाब ज़िन्दगी के लिए ज़रूरी है।

तौहीद (एकेश्वरवाद) की वास्तविकता

प्रस्तुत पुस्तक, ‘एकेश्वरवाद की वास्तविकता’ लेखक की पिछली पुस्तक 'शिर्क की हक़ीक़त' (बहुदेववाद की वास्तविकता) की पूरक है। पहली किताब में शिर्क की हक़ीक़त को इतने विस्तार से बयान किया गया है कि तौहीद की हक़ीक़त (एकेश्वरवाद की वास्तविकता) उसमें स्वयं निखर कर सामने आ गई है। वस्तुएँ अपनी प्रतिकूल वस्तुओं से स्पष्ट होती हैं, अब तौहीद की व्याख्या के लिए किसी अलग पुस्तक की कोई ख़ास ज़रूरत तो नहीं थी, लेकिन एकेश्वरवाद के प्रमाणों को विस्तीरपूर्क अलग से समझाने के लिए यह पुस्तक तैयार की गई है। इसमें क़ुरआन मजीद की मदद से एकेश्वरवाद के बौद्धिक प्रमाणों का उल्लेख किया गया है साथ ही क़ुरआन मजीद में आए प्रमाणों को स्पष्ट करने की कोशिश की गई है, ताकि दीने इस्लाम के बुनियादी विषयों को अच्छी तरह समझा जा सके।