“निश्चय ही हमने रसूलों को स्पष्ट प्रमाणों के साथ भेजा और उनपर हमने किताबें उतारीं और न्याय और इंसाफ़ क़ायम करने के लिए तराज़ू दिया, ताकि लोग न्याय और इंसाफ़ पर क़ायम हों।" (क़ुरआन, 57:25) हज़रत उमर (रज़ि.) कहते हैं, “ख़ुदा की क़सम, किसी शख़्स को क़ैद नहीं किया जाएगा जब तक कि न्यायप्रिय लोग उसके अपराधी होने की गवाही न दें।"
“और जब उनसे कहा जाता है कि अल्लाह ने जो उतारा है उसका अनुसरण करो, तो कहते हैं कि हमने अपने बाप-दादा को जिस तरीक़े पर पाया है, वही हमारे लिए काफ़ी है। क्या उनके बाप-दादा न कुछ जानते हों और न सीधे रास्ते पर हों तब भी वे उन्हीं का अनुसरण करेंगे?” (क़ुरआन - 2:170)
"नाप-तौल में कमी न करो, नाप कर दो तो पूरा-पूरा दो, वज़्न करो तो तराज़ू ठीक रखो (मामलों में) यह तरीक़ा उत्तम और परिणाम की दृष्टि से बहुत अच्छा है। जिस बात का तुम्हें ज्ञान नहीं है उसके पीछे न पड़ो, याद रखो कान, नाक, आंख, दिल हर एक के बारे में अल्लाह के यहाँ पूछा जाएगा। धरती में इतरा कर न चलो, तुम न धरती को फाड़ सकते हो, और न पहाड़ की ऊँचाई को पहुँच सकते हो। ये बातें अल्लाह की दृष्टि में अप्रिय हैं।” (क़ुरआन, 17:35-38)
“धरती पर चलनेवाला कोई जीव ऐसा नहीं है जिसकी आजीविका अल्लाह के ज़िम्मे न हो।” (क़ुरआन, सूरा-11 हूद, आयत-06) “यह तो हमारी कृपा है कि हमने आदम की सन्तान को श्रेष्ठता दी तथा थल व जल में सवारियाँ प्रदान कीं तथा उनको पवित्र वस्तुओं से आजीविका और अपनी रचनाओं पर स्पष्ट श्रेष्ठता प्रदान की।” (क़ुरआन, सूरा-17 बनी-इसराईल, आयत-70)
"जब जीवित गाड़ी हुई लड़की से पूछा जाएगा कि उसकी हत्या किस गुनाह के कारण की गई?" (क़ुरआन: सूरा अत-तकवीर: 8,9)। जगत-उद्धारक हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) ने फ़रमाया, "तुममें से जिसके तीन लड़कियाँ या तीन बहनें हों और वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करे, तो वह जन्नत में अनिवार्यतः प्रवेश पाएगा" (तिरमिज़ी)।
11 सितम्बर 2001 ई० का दिन अमेरिका के इतिहास में एक काले, अति दुखद और अविस्मरणीय दिन की हैसियत प्राप्त कर चुका है। कहा जा रहा है कि जिस प्रकार 72 वर्ष पूर्व, 1929 ई० में अमेरिकी शेयर बाज़ार के बताशे की तरह बैठ जाने (The Great Crash) से और फिर 60 वर्ष पूर्व 1941 ई० में पर्ल हार्बर पर अचानक जापानी हमले से, जिसमें लगभग ढाई हज़ार अमेरिकी हताहत हुए थे, अमेरिका की अर्थव्यवस्था, राजनीति, और अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका में मूलभूत परिवर्तन आया था, बिलकुल उसी तरह 11 सितम्बर 2001 ई० की इस त्रासदी ने
हाफिज़ शानुद्दीन किसान उस व्यक्तित्व का नाम है जो ज़मीन का सीना चीर कर दिन-रात खाद्य पदार्थों को उगाने के लिए कड़ी मेहनत करता है । इस मेहनत के दौरान न तो उन्हें सर्दी की कोई परवाह होती है, न गर्मी का कोई एहसास । न बिजली और बारिश उनके कदम रोकते हैं
आज के दौर में बढ़ता अपराध हर स्तर पर लोगों के लिए विचारणीय एवं चिन्ता का विषय बना हुआ है। चिन्तक और विचारक इसका इलाज ढूँढ निकालने में असफल नज़र आते हैं, बल्कि नौबत यहाँ तक पहुँच चुकी है कि 'मर्ज़ बढ़ता गया जूँ-जूँ दवा दी'। बहरहाल यह एक ऐसी ज्वलन्त समस्या है जिसके हल करने में प्रत्येक मनुष्य को अपनी भूमिका अदा करनी चाहिए। हम यह यक़ीन रखते हैं कि इस्लाम को नज़रअन्दाज़ करके इस समस्या को हल नहीं किया जा सकता। इसलिए इस्लाम के परिप्रेक्ष्य में इस समस्या के हल को लोगों के समक्ष लाना हम अपना कर्तव्य समझते हैं।
ग़ुलाम सरवर नदवी समस्त मानव जाति का रचयिता एक ही है, उसी ने तमाम इंसानों को एक समान पैदा किया, हम सब के माता और पिता एक ही हैं। हम सब के बाप पहले इंसान आदम और माँ हौव्वा हैं । जन्म के आधार पर कोई छोटा कोई बड़ा नहीं है । श्रेष्ठ वही है जिसके कर्म अच्छे हों, जो अल्लाह से सबसे ज्यादा डरने वाला और इंसानों से सब से अधिक प्रेम करने वाला हो । अल्लाह (ईश्वर) भी एक है, इंसान भी एक है, धरती भी एक है, और सारा ब्रह्मांड एक है । यह शिक्छा हमें इस धरती पर भेजे गए पहले ईशदूत आदम से लेकर अंतिम ईशदूत मुहम्मद ﷺ सब ने दी है।
इधर लगभग तीन-चार महीनों से गुरुग्राम और उसके अगल-बगल के क्षेत्रों मे खुले में जुमा (शुक्रवार) की नमाज़ पढ़ने पर काफी हंगामा बरपा है। हिंदूवादी संगठनों ने इस पर जबरदस्त आपत्ति जताई है । उनका कहना है कि मुसलमान सार्वजनिक स्थानों पर खुले में नमाज क्यों पढ़ते हैं? उन्हें नमाज पढ़ना है तो वे मस्जिद में पढ़ें । उनका यह भी आरोप है कि मुसलमान अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहते हैं और हमें चिढ़ाना चाहते हैं । प्रथम दृष्टया उनकी यह बात सत्य एवं तर्कसंगत लगती है । परंतु यहां पर थोड़ी देर रुक कर चिंतन किया जाए तो असल बात कुछ और सामने आएगी ।
“अपनी औलाद की बेहतरीन परवरिश करो और उन्हें अच्छे आदाब सिखाओ इसलिए कि तुम्हारे बच्चे अल्लाह की तरफ़ से तुम्हारे लिए एक उपहार हैं।” -हदीस “जब अपने बच्चों के बीच कोई चीज़ बाँटो तो सबको बराबर दो, अगर किसी को कुछ ज़्यादा ही देना हो तो फिर लड़कियों को ज़्यादा हिस्सा दे दो।" -हदीस
सत्य धर्म की खोज हर इंसान का बुनियादी काम है । मुहम्मद इक़बाल मुल्ला
तालिब हाशिमी साहब की किताब से सहाबियात (रज़ि०) की शख्सियत का हर पहलू रौशन हो जाता है। उनकी बहादुरी, उनके बुलन्द हौसले, उनके ईमान की मज़बूती, उनकी नबी (सल्ल०) से निहायत अक़ीदत व मुहब्बत, जाँनिसारी का जज़्बा जैसी तमाम ख़ासियतें सामने आ जाती हैं। 'तज़कारे सहाबियात' जैसी किताब का फ़ायदा हिन्दी जाननेवालों को मिल सके इसके लिए इसका हिन्दी तर्जमा करने का फ़ैसला लिया गया।