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फ़िलिस्तीनी संघर्ष ने इसराईल के घिनौने चेहरे को बेनक़ाब कर दिया

फ़िलिस्तीनी संघर्ष ने इसराईल के घिनौने चेहरे को बेनक़ाब कर दिया

सय्यद सआदतुल्लाह हुसैनी

(अमीरे जमाअत इस्लामी हिन्द)
अल्लाह  ने वादा किया है कि वह ईमान वालों को ‘फुर्क़ान’ (अर्थात सत्य को असत्य से अलग कर देनेवाली कसौटी) देगा :

“ए ईमान लाने वालो, अगर तुम अल्लाह की अवज्ञा से बचकर जीवन बिताते रहे तो वह तुम्हारे लिए ‘फुर्क़ान’ को सामने कर देगा और तुमसे तुम्हारे गुनाह झाड़ देगा और तुम्हें माफ़ कर देगा और अल्लाह बड़ी कृपावाला है।”(अल-अनफ़ाल : 29) क़ुरआन के एक टीकाकार ने फुर्क़ान की बड़ी ईमान बढ़ाने और आंखें खोलनेवाली व्याख्या की है। लिखते हैं:
“फुर्क़ान एक कसौटी है। कसौटी का काम खरे और खोटे को अलग करके बताना है। ... (ईमानवालों) के सामूहिक फ़ैसले, सत्यविरोधी शक्तियों से उनका टकराव और बिगाड़ फैलानेवाली शक्तियों से उनकी लड़ाई, अपनेआप में फुर्क़ान बन जाती है। उनका अस्तित्व बाक़ी सनुदायों के लिए कसौटी होता है। उनके कारनामे इतिहास के लिए कसौटी बन जाते हैं। उनके युद्ध सत्य व असत्य में कसौटी होते हैं। इतिहास हमेशा उनके अस्तित्व और उनके कारनामों से प्रमाण लेता है। इस आयत से मालूम होता है कि यही कुछ कहा जा रहा है कि अगर तुमने अपने अंदर अल्लाह की अवज्ञा से बचकर जीवन बितातने की योग्यता पैदा करली तो हम तुम्हारे अंदर एक ऐसा प्रकाश उज्ज्वल कर देंगे जो कसौटी का काम देगा और तुम्हारी हैसियत दूसरी राष्ट्रों के लिए एक मिसाल बन जाएगी और तुम्हारे कारनामे सत्य व असत्य को अलग करने में लाइट हाउस बन जाएंगे।
अब इस बात में कोई शक नहीं रहा कि फ़िलिस्तीनी स्वतंत्रता की संघर्ष ने हमारे ज़माने के लिए एक 'फुर्क़ाने कबीर’ (विशाल कसौटी) का रूप ले लिया है। उसने इस धोखे से भरी दुनिया में सभ्यता के शक्तिवर दावेदारों को जिस तरह से बेनक़ाब किया है, उस की कोई मिसाल हाल के इतिहास में नहीं मिलती।
यह फ़िलिस्तीनी संधर्ष ही है जिसने नई पश्चिमी सत्ता के चेहरे से मानवाधिकार, स्वतंत्रता, समानता और लोकतंत्र का लुभावना और सुन्दर मुखौटा उतार फेंका है और अंदर से उसी वंशवादी, क्रूर और ख़ूँख़ार दानव को नंगा करके दुनिया के सामने ला खड़ा किया है जो सोलहवीं सदी से बीसवीं सदी तक इस दुनिया को अपने ख़ूनी पंजों से लहू-लुहान करता रहा, लाखों इन्सानों को ग़ुलाम बनाकर बेचता रहा और जिसने सारी दुनिया पर क़ब्ज़ा करके संसाधनों की लूट मचा रखी थी। फ़िलिस्तीनी संधर्ष ने दुनिया पर स्पष्ट कर दिया है कि नई पश्चिमी सत्ता नैतिक संवेदनशीलता से ख़ाली एक पाश्विक अस्तित्व है जिसका कोई मज़बूत सांस्कृतिक आधार नहीं है। स्वतंत्रता और लोकतंत्र के ऊंचे दावों के शोर में दबा हुआ उस के दिल का यह चोर फ़िलिस्तीनी संधर्ष ने पकड़ कर दुनिया के सामने पेश कर दिया है कि इस सत्ता के लिए एशियाई और अफ़्रीक़ी जनता आज भी उस की प्रजा और ग़ुलाम है और उनकी ज़मीनों और संसाधनों को वह अपना ऐसा स्वामित्व समझता है कि उसे वह जैसे चाहे इस्तेमाल कर सकता है। मौलाना अली मियां नदवी ने वर्षों पहले सचेत किया था:
“यह दुनिया शिकार का मैदान बनी हुई है। शिकारी निकलते हैं हथियार ले कर और राष्ट्रों का शिकार खेलते चले जाते हैं, देशों को रौंदते चले जाते हैं, आज जो बड़ी शक्तियां हैं उनके आगे पूरब के राष्ट्रों की क़ीमत इतनी है कि वहां से कच्चा माल raw material उनको मिले, पैट्रोल उनको पहुंचता रहे और अगर कोई युद्ध हो तो ये उनका उपयोग कर अपने दुश्मन का मुक़ाबला कर सकें उनको अपना सिपाही बना सकें, यह मानो ईंधन हैं उनके किचन का, बस इस के सिवा कोई क़ीमत नहीं...  वे यह समझ रहे हैं कि राष्ट्रों की तक़दीर हमारे हाथ में आ गई है, उन्होंने इन्सानों के साथ जानवरों जैसा, बल्कि उससे भी बदतर व्यवहार कर रखा है और आज कोई शक्ति नहीं जो उन का मुक़ाबला कर सके, सब अपनी शक्ति और अपना मान खो चुके हैं, सब अपना पैग़ाम भूल चुके हैं सब अपना चरित्र छोड़ चुके हैं, सब मैदान से किनारे हो चुके हैं।”
ये हैं वे विध्वंसक हालात जिनमें फ़िलिस्तीनी अपने जौहर और अपने ‘किरदार के साथ’ मैदान में उठ खड़े हुए हैं और उन दरिंदों का ईंधन बनने से न केवल इनकार कर रहे हैं बल्कि तीसरी दुनिया को ईंधन बनाने की इस प्रक्रिया में रुकावट बन रहे हैं। वे न केवल ‘फुर्क़ाने कबीर’ (महान कसौटी) हैं बल्कि ‘सद्दे-अज़ीम’ (विशाल दीवार) भी हैं और पश्चिमी सत्ता के आक्रामक तूफान के आगे 'ज़ुलक़ुरनैन की दीवार’ (सायरस की बनाई दीवार) बन कर सारी दुनिया की रक्षा कर रहे हैं। वे न होते तो यह मुमकिन था कि इक्कीसवीं सदी का ख़ूँख़ार पूंजीवाद, तीसरी दुनिया में उपनिवेशवाद की एक और नई लहर शुरू कर देता। समस्त तीसरी दुनिया पर उनका उपकार है। दुनिया की सभी कमज़ोर राष्ट्रों के मुक्तिदाता हैं बल्कि समस्त मानव जगत उनका ऋणि है। यहां हम उन कुछ बड़ी-बड़ी मक्कारियों को बहस में लाएंगे जो हमारे समय के इस फुर्क़ाने कबीर के नतीजे में यानी फ़िलिस्तीनी संधर्ष के कारण बेनक़ाब हुई हैं और जिनके बिगाड़ों के सामने वे दीवार बन कर खड़े हैं।
ज़ायोनिज़्म हमारे समय का बदतरीन वंशवाद
पश्चिमी सत्ता इस बात की दावेदार है कि वह मानव समानता की ध्वजावाहक है और दुनिया-भर में वंशवाद को ख़त्म करना उस का मक़सद है। वह विभिन्न देशों और समाजों पर वंशवाद के आरोप लगाती रहती है। 1966 में संयुक्तराष्ट्र ने नस्ली भेदभाव के सभी रूपों को ख़त्म करने वाला अंतर्राष्ट्रीय क़ानून International Convention on the Elimination of All Forms of Racial Discrimination मंज़ूर किया था। उस के बाद से इस सत्ता ने,  स्वनिर्मित नैतिक श्रेष्ठता के एहसास के साथ इस क़ानून को तीसरी दुनिया के विभिन्न देशों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया। लेकिन फ़िलिस्तीनी संधर्ष ने दुनिया पर यह सच्चाई बेनक़ाब की है कि इस ज़मीन पर सबसे बड़ा वंशपरस्त गिरोह ज़ायोनिज़्म और इस के समर्थक हैं।
वंशवाद, इसराईल के अस्तित्व की आधार है। वह इस समय ज़मीन पर अकेला देश है जिसके संविधान Basic Law में वंश को नागरिकता का आधार क़रार दिया गया है। इसराईल का वापसी क़ानून Law of Return उन क़ानूनों Basic Laws में शामिल है जिन्हें एक तरह के संविधान की हैसियत हासिल है। यह वह अकेला देश है जो वंश की आधार पर क़ानून बनाता है। वंश की आधार पर अपने नागरिकों में भेदभाव करता है और वंश की आधार पर उसने जगह-जगह भेदभाव की दीवारें apartheid खड़ी कर रखी हैं।

यह वंशवाद केवल यहूदी वंश या बनी-इसराईल के पक्ष में पक्षपात तक सीमित नहीं है। पश्चिम का इतिहास गोरे वंशवाद का इतिहास है और सच्चाई यह है कि इसराईल का अस्तित्व और उस की हिमायत उसी सफ़ेद वंशवाद का क्रम है। यह बात खुले आम कही जाती है कि इसराईल क्षेत्रीय आघार पर तो एशिया में हैं, लेकिन 'सभ्यता के आधार पर या नस्ली आधार पर यूरोप का हिस्सा है। बल्कि उसी आधार पर वह युरोपीय यूनियन की सदस्यता का दावेदार है और उस का यह दावा गंभीरता से निचाराधीन है । कई यूरोपीय संगठनों का वह पहले ही से सदस्य है।
यह बात दुनिया के लोग नहीं जानते कि जिन्हें इसराईल बनीइसराईल कहता है और जिन्हें नागरिकता देकर दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों से लाकर फ़िलिस्तीन की ज़मीन में बसाया गया है, उनमें विभिन्न रंग व वंश के लोग शामिल हैं। लगभग 32 फ़ीसद गोरे, नीली आँखों और सुनहरे बालों वाले अश्केनाज़ी Ashkenazi हैं जो यूरोपीय वंश से हैं ।(अमेरिकी यहूदियों में बड़ी संख्या उन्ही की है और दुनिया-भर के यहूदियों में वे लगभग 75 फ़ीसद हैं) लगभग 45 फ़ीसद मिज़्राही Mizrahi हैं । ये वे यहूदी हैं जो या तो पहले से फ़िलिस्तीन में या मध्यपूर्व और उत्तर अफ़्रीक़ा के इलाक़ों में बसे हुए थे और यहूदी राज्य की स्थापना के ऐलान के बाद यहां आ बसे। रंग और वंश के आधार पर ये दूसरे अरब निवासियों की तरह होते हैं। बेता इसराईल Beta Israel काले अफ़्रीक़ी वंश के लोग हैं जिनकी आबादी इसराईली यहूदियों में लगभग तीन फ़ीसद है। बेने इसराईल Bene Israel वे यहूदी हैं जो भारत के विभिन्न इलाक़ों (महाराष्ट्र, दक्षिण पूर्व आदि से वहां जाकर आबाद हुए हैं।
इसराईली राजनीति पर नज़र रखने वाले जानते हैं कि इसराईल की सारी मक्कारियों का असल निशाना, दरअसल गोरे अश्केनाज़ियों के हितों की रक्षा है। उन्ही गोरे सहवंशियों के हितों के लिए यूरोप व अमेरिका की सत्ता अपनी सभी नैतिकता को ख़ाक में मिलाने के लिए हर-दम तैयार रहती है। इस गोरे वंश के एक आदमी के रक्षा के लिए अरबों की आबादियों की आबादियां क़ुर्बान कर देना पश्चिमी सत्ता के नज़दीक कोई घाटे का सौदा नहीं होता। पश्चिमी लीडरों का यह तरीक़ा रहा है कि वे जनता की आँखों में धूल झोंकने के लिए समय-समय पर पिछले अपराधों की माफ़ी मांगते रहते हैं। इसराईली प्रधानमंत्री यहूद बारक, वंशवाद के लिए 'यहूदियों' से 'माफ़ी मांग चुके हैं। इसराईल के पूर्व राषट्रपति रियोवेन रिवलिन Reuven Rivlin 2014-2021) लेकोड पार्टी से जुड़े एक अतिवादी स्कॉलर लीडर समझे जाते हैं लेकिन उन्होंने भी पद सँभालने के बाद इसराईल में मौजूद वंशवाद का ज़िक्र करते हुए कहा कि "इसराईली समाज एक बीमार समाज है और यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि इस बीमारी का इलाज करें।
पश्चिमी सत्ता ने नाज़ी जर्मनी की राजनीतिक और सैनिक नेतृत्व के ख़िलाफ़ उस की वंशवाद को आधार बनाकर कठोर सज़ाएं लागू कीं। और आज तक नाज़ीइज़्म को एक बड़ी बुराई बनाकर पेश करते रहते हैं। निकट अतीत में, मजबूरन ही सही, वह दक्षिण अफ़्रीक़ा की वंश परस्त पालिसियों का विरोध करते रहे हैं (हालांकि दक्षिण अफ़्रीक़ा के ख़िलाफ़ संयुक्तराष्ट्र और दूसरे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की ओर से किए जानेवाली कार्रवाइयों में रुकावटें पैदा करके इस वंशवाद की हिमायत के दाग़ भी उनके दामन पर लगे हुए हैं)।लेकिन अब इसराईल के ममले में तो वे पूरी तरह नंगे हो चुके हैं और खुल्लम खुल्ला उस की हिमायत की जा रही है।

नीचे दिए चार्ट से पता चलता है कि दक्षिण अफ़्रीक़ा से कहीं बढ़कर वंशवाद इस समय इसराईल में मौजूद है:

पालिसी
 

दक्षिण अफ़्रीक़ा

(1948-1994)

इसराईल

(1948 से आजतक)
 

नस्ली आधारों पर आबादी का वर्गीकरण
 

क़ानूनी तौर पर गोरा वंश सर्वश्रेष्ठ गिरोह था, फिर भीरतीय, फिर काले। इसी के आधार पर अधिकार निर्धारित थे
 

ग़ज़्ज़ा और पश्चिमी किनारे में रहने वालों पर व्यवहारिक तौर पर इसराईल शासन करता है लेकिन उन्हें बहुत से क़ानूनी अधिकार से वंचित रखा गया है। व्यवहारिक तौर पर अश्केनाज़ी यहूदियों को वही हैसियत हासिल है जो दक्षिण अफ़्रीक़ा में गोरी आबादी को हासिल थी। इस के बाद दूसरे यहूदी, फिर इसराईल की सीमा में रहने वाले अरब और आख़िरी दर्जे में पश्चिमी किनारे और ग़ज़्ज़ा के मुसलमान हैं जिनकी हैसियत इस से कहीं ज़्यादा ख़राब है जो वंश परस्त दक्षिण अफ़्रीक़ा में काली आबादी की थी ।
 

सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव, चलत-फिरत पर प्रतिबंध
 

बसों, रेस्तोरानों आदि में काले लोगों को अलग किया जाता था। काले लोगों की चलत-फिरत पर प्रतिबंध थे और उन्हें अपने 'होमलैंड मैं क़ैद हो कर रहना पड़ता था।
 

ठीक इसी तरह सार्वजनिक स्थानों पर फ़िलिस्तीनियों को अलग किया जाता है। पश्चिमी किनारे के 'फ़िलिस्तीनी इलाक़ों को छोटे छोटे खंड़ों में बांट दिया गया है। एक गांव से दूसरे गांव जाना भी व्यवहारिक तौर पर मुश्किल है। क़दम-क़दम पर चेक प्वाइंट ने अधिकांश हिस्सों में उनकी चलत-फिरत को व्यवहारिक तौर पर असंभव बना दिया है। और वे अपने छोटे देहातों में क़ैद हैं।
 

संसाधन से वंचित होना

काले लोगों की ज़मीन, पानी और शिक्षा व स्वास्थ्य से जुड़ी सहूलतों तक पहुंच सीमित थी।

यही मामला फ़िलिस्तीन में भी है। फ़िलिस्तीनीयों की कई नसलें सीमित ज़मीन, सीमित पानी, सीमित संसाधन के साथ पल-बढ़ रही हैं। इन सीमित संसाधन को भी दिन-ब-दिन कम किया जा रहा है। पश्चिमी किनारे में भी फ़िलिस्तीनियों को नई ज़मीनें ख़रीदने या लीज़ पर लेने पर प्रतिबंध हैं, जबकि यहूदी सेट्लमेंट हर जगह लगातार बढ़ रहे हैं। एमनेस्टी की रिपोर्ट के अनुसार इसराईल ने1967 की युद्ध के बाद से फ़िलिस्तीनीयों की एक लाख हेक्टेयर से ज़्यादा ज़मीन हथिया ली है।
 

क़ानून में भेदभाव

गोरे निवासियों के लिए क़ानून अलग थे जो उनको ज़्यादा से ज़्यादा आसानी और सहूलत देने वाले थे और कालों के लिए अलग थे जो उनकी ज़िंदगियां अजीरन करने वाले थे।
 

ठीक यही मामला इसराईल में भी है। क़ानून अलग-अलग हैं। इसराईल का बुनियादी क़ानून Basic Law या संविधान जो इसराईल को 'यहूदी वंश के लोगों का क़ौमी वतन (होम लैंड) क़रार देता है, सभी पैमानों के अनुसार वंशवादी संविधान है। इस के अलावा वापसी के अधिकार का क़ानून right to return है । हज़ारों साल पहले इसराईलों के पलायन की कल्पना को आधार बनाकर दुनिया के हर यहूदी को इसराईल की अविलम्ब नागरिकता का क़ानूनी अधिकार दिया गया है और 1948 के बाद सभ्य दुनिया की निगाहों के सामने बेघर किये गये फ़िलिस्तीनियों की आधा आबादी को जो दुनिया के विभिन्न इलाक़ों में शरणार्थी की ज़िंदगी गुज़ार रही है, केवल वंश की आधार पर इस अधिकार से वंचित रखा गया है।
 

भेदभाव की दीवारें
Apartheid Wall

 

काले लोगों को अलग-थलग करने और उनकी चलत-फिरत को गोरे लोगों से अलग करने के लिए शहरों में जगह-जगह दीवारें निर्माण की गई थीं।

 

पश्चिमी किनारे में इसराईल द्वारा बनाई गई दीवार, जिसे इसराईल SECURITY FENCE कहता है, इसी तरह के नस्ली भेदभाव की दीवार Apartheid Wall है। यह 26 फुट ऊंची और 700 (सात सौ) किलोमीटर लम्बी दीवार है जो फ़िलिस्तीनी इलाक़ों को अलग करती है।

 

।इतने स्पष्ट प्रमाणों के होते हुए इसराईल के वंशवाद को झुठलाना अब संभव ही नहीं रहा।  कई अंतर्राष्ट्रीय संगठन उसे वंशवादी क़रार दे चुके हैं। दो साल पहले मानवाधिकार के अंतर्राष्ट्रीय संगठन हियूमन राइट्स वाच ने विशेष रिपोर्ट जारी करके ऐलान किया कि इसराईल ने सारी हदें पार कर दी हैं और वह स्पष्ट तौर पर वंशवाद Apartheid का अपराधी है। इसी तरह की रिपोर्ट एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी जारी की है । ख़ुद इसराईल के अंदर मौजूद दो प्रभावशाली संगठनों येशडिन Yesh Din और B’Tselem ने इसराईली शासकों को वंशवाद का अपराधी क़रार दे दिया है। पिछले साल संयुक्तराष्ट्र द्वारा स्थापित एक विशेष कमेटी ने इसराईल के मामलों का विस्तार से विश्लेषण करने के बाद अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर यह फ़ैसला दर्ज किया था (जिससे इसराईल में बड़ा हंगामा खड़ा हो गया था कि इसराईल का 55 साल का क़ब्ज़ा योजनाबद्ध तरीक़े से By Design विशेष वंश के लोगों के हितों की रक्षा और दूसरी नस्लों के साथ अन्याय पर आधारित है और यह नस्ली भेदभाव Apartheid है। कमेटी की एक और ताज़ा-तरीन रिपोर्ट आ गई है, जिस में भी इसराईल के कई वंशवादी आपराध गिनाए गए हैं।
अगर पश्चिमी सत्ता में वंशवाद के ख़िलाफ़ लेशमात्र भी ईमानदारी होती तो इसराईल के साथ उस का व्यवहार कम से कम वैसा होता जैसा 1990 से पहले दक्षिण अफ़्रीक़ा के साथ था। लेकिन हमारे समय की इस बदतरीन वंशवाद का विरोध तो दूर, अमेरिका व ब्रिटेन की सरकारें इसराईल की सबसे बड़ी समर्थक, हर मोर्चे पर उस की शक्तिशाली संरक्षक और उस की काली करतूतों की खुली हिमायती हैं। इसलिए उस के वंशवाद में बराबर के शरीक हैं।

ज़ायोनी सत्ता हमारे समय की सबसे बड़ी आतंकवादी शक्ति
अमेरिका, ब्रिटेन और पश्चिमी सत्ता के दूसरे सदस्य के पूरे नैतिक, वैचारिक, सैनिक और वित्तीय मदद के साथ, इसराईल लगातार मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है। इस के विस्तृत उल्लेख की इस समय ज़रूरत भी नहीं है इसलिए कि अक्तूबर 2023 से सारी दुनिया के लोग अपनी आँखों से ये सब देख रहे हैं। फ़िलिस्तीन और इसराईल के क़ब्ज़ेवाले इलाक़ों की सरहदों के अंदर भी अत्याचार की वे सारी क़िस्में रोज़ाना जारी हैं, जिनके एशियाई या अफ़्रीक़ी देशों में कभी-कभार होने पर भी बहुत शोर मचाया जाता है। जैसे :
1. अदालत से परे नरसंहार :  सुरक्षाकर्मियों के हाथों नागरिकों का, औरतों का, यहां तक कि मासूम बच्चों की क्रूर हत्या।
2. बमबारी, आबादियों पर, बाज़ारों और रिहायशी इलाक़ों पर यहां तक कि स्कूलों और अस्पतालों पर हिस्ट्रियाई अंदाज़ में वहशियाना बमबारी, जिसकी कोई मिसाल विश्वयुद्ध में भी नहीं मिलती, बल्कि कुछ पहलूओं से जो हीरोशिमा और नागासाकी की बमबारी से ज़्यादा घातक है।
3. निर्दोष लोगों की बिना किसी मुक़द्दमे के महीनों और सालों गिरफ़्तार रखना। उन गिरफ़्तार लोगों में भी औरतें और बच्चे शामिल हैं।
4. टार्चर और क़ैद-ख़ानों में अत्याचार
5. बिना किसी सूचना घरों को बुलडोज़र से ध्वस्त कर देना, और बदले में कोई रिहाइश भी न देना। (यह बात दिलचस्पी से ख़ाली नहीं होगी कि इसराईल के पूर्व प्रधानमंत्री एरीयल शेरोन जो आठ साल कोमा में रहने के बाद 2014 में मर गए थे, बुलडोज़र शेरोन कहलाते थे।
6. फ़िलिस्तीनी नागरिकों का पानी रोक देना और आबादियों को पानी से वंचित कर देना।
इसराईल की स्थापना ही इतिहास के एक क्रूर नरसंहार से जुड़ी है । 1948 में कई फ़िलिस्तीनी देहातों और शहरों को नरसंहार के ज़रिये ख़ाली कराया गया। इस के नतीजे में देश की आधी आबादी पलायन करने और शरणार्थी बनने पर मजबूर हो गई। उसे 'नकबा' nakba कहते हैं। इस के बाद से नरसंहार के ये सिलसिले बराबर जारी हैं।1956 का क़ासिम और ख़ान यूनुस नरसंहार, 1982 में लेबनान में मौजूद फ़िलिस्तीनी शरणार्थी कैम्पों साबरा और शतीला का नरसंहार1994 का इबराहीमी मस्जिद (हेबरून) नरसंहार, 2000 के बाद से ग़ज़्ज़ा के कई नरसंहार। ये सब इसराईल के माथे पर आतंकवाद के कलंक थे, लेकिन 2023 के ग़ज़्ज़ा नरसंहार ने तो आतंकवाद के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। 11 सितंबर की घटना में मरने वालों की संख्या से चार गुना अधिक लोग अभी तक मर चुके हैं और जितनी बड़ी संख्या में मासूम बच्चे इस आतंकवाद में मारे गए हैं उस की कोई मिसाल आधुनिक इतिहास तो दूर, शायद मध्य युग और प्राचीन काल में भी मिलना मुश्किल है। यहां हीरोशिमा और नागासाकी से ज़्यादा बारूद बरस चुका है। कई शहर मलबे का ढेर बन चुके हैं। अस्पतालों, स्कूलों, संयुक्तराष्ट्र के रिलीफ़ सेंटरों की इमारतें तक टार्गेटेड बमबारी की शिकार हो चुकी हैं।
इसराईल पर युद्ध आपराध और इन्सानियत के ख़िलाफ़ आपराध crimes against humanity के आरोप लगाने वाले केवल फ़िलिस्तीनी या मुसलमान या वामपक्ष के कार्यकर्ता नहीं हैं, बल्कि कई अंतर्राष्ट्रीय संगठन उन आपराध में इसराईल को नामित कर चुके हैं। ख़ुद इसराईल में मौजूद संस्थाएं विस्तृत सबूतों के साथ इन आपराधों को साबित कर चुकी हैं । अंतर्राष्ट्रीय अदालत International criminal Court ICC में इसराईल की सेना और राजनीतिक नेतृत्व पर बाक़ायदा युद्ध आपराध के मुक़द्दमे क़ायम हो चुके हैं।

इन सब के बाद क्या इस बात में कोई शक रह जाता है कि ज़ायोनी सत्ता इस समय ज़मीन पर सबसे बड़ी आतंकवादी शक्ति है? पश्चिमी शक्तियों के आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई के दावे, इराक़ और अफ़्ग़ानिस्तान में बेनक़ाब होने के बाद अब फ़िलिस्तीनीयों के हाथों बुरी तरह से बेनक़ाब हो रहे हैं। अगर फ़िलिस्तीनी संधर्ष न होता तो शायद दुनिया इस बात से अनजान होती कि पश्चिमी सत्ता न क़ानून लागू करने की ईमानदार एजेंसी है और न क़ानून के शासन को लेकर गंभीर है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय क़ानून उस के लिए मात्र अपने हितों की पूर्ति का माध्यम है। जहां अंतर्राष्ट्रीय क़ानून उस के हितों की राह में रुकावट बनता है अमेरिका व ब्रिटेन के राष्ट्राध्यक्ष और उनकी पालिसी मेकर संसथाएं भी वही भूमिका निभाने लगती हैं जिसके लिए कुछ पिछड़े देशों के रिश्वतखोर अधिकारी बदनाम हैं।

साम्राज्यवाद, विस्तारवाद और उपनिवेशवाद
साम्राज्यवाद और विस्तारवाद का भयावह इतिहास नए पश्चिम के चेहरे पर सबसे बदनुमा दाग़ है। समय-समय पर उस इतिहास पर पछतावा जताकर और 'माफ़ी मांग कर उन दाग़ों को धोने की कोशिश की जाती है लेकिन इसराईल का विस्तारवाद और इस में पश्चिमी सत्ता का पूरा सहयोग, इस सच्चाई का मज़बूत प्रमाण है कि पश्चिमी सत्ता के घिनौने विस्तारवादी इरादे आज भी ज़िंदा हैं।
इस में कोई शक नहीं कि इसराईल का पूरा प्रोजेक्ट वह है जिसे settler colonialism कहा जाता है । इस का मतलब यह होता है कि बाहर से कुछ लोग आते हैं और ताक़त के बलबूते पर मक़ामी बाशिंदों का नरसंहार करके या उनको ज़बरदस्ती घरों से भगाकर, उनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर लेते हैं और उनके इलाक़ों को ख़ाली करके वहां अपनी क़ौम के लोगों को लाकर आबाद कर देते हैं। इस तरह के विस्तारवाद का पश्चिमी क़ौमों का पूरा इतिहास रहा है और उन्होंने उत्तर अमेरिका (रेड इंडियंस का नरसंहार), लैटिन अमेरिका, आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ़्रीक़ा की स्थानीय आबादियों पर यह अत्याचार ढाया है। विस्तारवाद के इस रूप को सबसे ज़्यादा क्रूर और भयावह रूप माना जाता है। (स्पष्ट रहे कि भारत और दूसरे एशियाई देशों में अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में यूरोपीय देशों का उपनिवेशवाद settler colonialism नहीं था, इसलिए कि यहां आबादियां बेदख़ल नहीं की गई थीं, केवल देश की सत्ता और इस के संसाधनों पर क़बज़ा किया गया था ।) इक्कीसवीं सदी की सभ्य दुनिया के लिए यह अत्यधिक शर्म की बात है कि आज भी इसराईल पूरी ढिठाई से settler colonialism की पालिसी पर चल रहा है और उस के पश्चिमी आक़ा इस में उस की मदद कर रहे हैं।
उन्नीसवीं सदी के आख़िर से फ़िलिस्तीन के उपजाऊ और हरे-भरे इलाक़ों में दुनिया-भर के यहूदियों को लाकर आबाद किया जाने लगा। इन यहूदियों के सिलसिले में यह कहा गया कि ये हज़ारों साल पहले इसी इलाक़े में आबाद थे। वर्तमान इसराईली यहूदियों में वास्तविक बनी-इसराईल कितने हैं और यूरोप के गोरे आर्यन वंश के अन्य लोग, जिन्होंने इतिहास के विभिन्न दौर में अपने हितों के लिए यहूदियत अपना ली है, वे कितने हैं, यह अपने-आप में बहस का विषय है। ख़ुद यहूदी इतिहासकार अब यह स्वीकार करने लगे हैं कि वर्तमान यहूदियों में बनी-इसराईल बहुत कम हैं। इस बहस से फ़िलहाल नज़र हटाते हुए जहां तक वास्तविक बनी-इसराईल का सवाल है, उनके सिलसिले में भी इस ज़मीन पर उनका हक़ किसी भी पैमाने से साबित नहीं हो सकता। सय्यदना इबराहीम अलैहिस-सलाम (जिनकी औलाद में बनी-इसराईल और अरब सब हैं) इराक़ से फ़िलिस्तीन आए, जहां से उनके पोते याक़ूब अलैहिस-सलाम, अपने बेटे यूसुफ़ अलैहिस-सलाम के सत्ताकाल में अपने परिवार के साथ मिस्र आ गए। इन्हीं की औलाद बनी-इसराईल कहलाती है। बनी-इसराईल मिस्र में लम्बी गु़लामी के बाद, सय्यदना मूसा अलैहिस-सलाम के नेतृत्व में फ़िलिस्तीन वापसी के लिए रवाना हुए थे । चालीस साल रेगिस्तान में भटकने के बाद यह क़ाफ़िला जार्डन पहुंचा जहां हज़रत मूसा अलैहिस-सलाम का देहांत हो गया। मूसा अलैहिस-सलाम के उत्तराधिकारी ,योषा बिन नून के नेतृत्व में बनी-इसराईल पहली बार फ़िलिस्तीन में दाख़िल होने में कामयाब हुए। एक लंबा समय गुज़ार कर तालूत के नेतृत्व में युद्ध जीतने के बाद 1047 ई.पू. में पहली बार इस इलाक़े पर उन्हें क़ब्ज़ा हासिल हुआ और सय्यदना दाऊद अलैहिस-सलाम का शासन स्थापित हुआ जिसे सय्यदना सुलैमान अलैहिस-सलाम के समय में बड़ा विकास प्राप्त हुआ । सुलैमान अलैहिस-सलाम के बाद बनी-इसराईल के बीच गृहयुद्ध शुरू हो गया और फिर बाबिल के युद्ध में बुख़तनस्सर (Nebuchadnezzar II) ने 587 ई.पू. में यरूशलम को तहस-नहस करके यहूदियों को क़ैद कर लिया और उन्हें बाबिल भेज दिया जहां से वे दुनिया में तितर-बितर हो गए। दूसरी ओर, फ़िलिस्तीनी, एक क़ौम की हैसियत से अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान और विशेषताओं के साथ इन चार हज़ार वर्षों में लगातार फ़िलिस्तीन में आबाद रहे हैं।
इस तरह बनी-इसराईल बाहर से आकर फ़िलिस्तीन में आबाद हुए थे और तीन हज़ार साल पहले केवल चार सौ वर्षों तक वे फ़िलिस्तीन में आबाद रहे। इस बुनियाद पर अगर आज देश पर उनका हक़ मान लिया जाए तो वह दिन दूर नहीं जब क़रीबी ज़माने में और मालूम व मारूफ़ इतिहास में अपने क़ियाम और शासन के आधार पर अंग्रेज़ भारत पर अपना हक़ और वापसी जताने लगें या फ़्रांस, इटली, हॉलैंड, पुर्तगाल, स्पेन, रूस आदि सब अपने पहले उपनिवेशों पर दुबारा क़ब्ज़ा करने की चिंता शुरू कर दें।


है ख़ाके-फ़िलिस्तीं पर यहूदी का अगर हक़

स्पेन पर हक़ क्यों न हो फिर अहले-अरब का

इस तरह इतने कमज़ोर आधार पर, फ़िलिस्तीन में हज़ारों साल से आबाद फ़िलिस्तीनी बाशिंदों को बेदख़ल करके इसराईल का राज्य स्थापित किया गया । फ़िलिस्तीन की आधी आबादी को इसराईल की स्थापना के तुरंत बाद देश से बेदख़ल कर दिया गया, जो आज भी जार्डन, सीरिया, मिस्र, आदि देशों में शरण लिए हुए हैं।

इसराईल की स्थापना के बाद भी साम्राज्य विस्तार का सिलसिला ख़त्म नहीं हुआ। पिछले 75 वर्षों में, इसराईल लगातार अपने इलाक़े में विस्तार किए जा रहा है । किसी इंटरनेशनल क़ानून या संयुक्तराष्ट्र के किसी प्रस्ताव की न वह परवाह करता है और न पश्चिमी सत्ता को इस से कोई दिलचस्पी है कि उस से उन क़ानूनों की पाबंदी कराए। फ़िलिस्तीनियों की कुल आबादी यहूदी हमलावरों की आबादी के दो गुना से ज़्यादा है। जिसका लगभग आधा हिस्सा विदेशों में शरणार्थी हैं। जो आबादी फ़िलिस्तीन के सीमा में है वह भी यहूदी आबादी से ज़्यादा है। इस आबादी को दो छोटे और एक दूसरे से अलग क्षेत्रों (ग़ज़्ज़ा और पश्चिमी किनारा या west bank) मैं क़ैद करके रखा गया है। इस में भी एक क्षेत्र यानी पश्चिमी किनारे को छोटे छोटे एक-दूसरे से अलग इलाक़ों में विभाजित कर दिया गया है। एक फ़िलिस्तीनी देहात है तो उस के चारों ओर इसराईली सेट्लमेंट हैं। पश्चिमी किनारे के एक गांव से दूसरे गांव तक जाने के लिए इसराईली आबादियों से गुज़रना होता है जिसकी कठिनाइयां बयान से बाहर हैं। इस अत्याचारपूर्ण बटवारे को ओस्लो ने ज़ोन A, B, C बनाकर औचित्य दे दिया है। लेकिन इस अत्याचार पर भी इसराईल रुका नहीं है, बल्कि जो इलाक़े ओस्लो समझौते में फ़िलिस्तीनी इलाक़े क़रार दिए गए थे उनमें भी नए सेट्लमेंट बनाकर लगातार विस्तार किए जा रहा है। इस फैलाव का ख़ास निशाना पूर्वी यरूशलम है जहां बैतुल-मुक़द्दस मौजूद है।
इसराईल इस लगातार फैलाव से क्या चाहता है? उस का दावा क्या है? यह बात औपचारिक रूप से कभी स्पष्ट नहीं की गई है। लेकिन इसराईल की राजनीतिक पार्टियां, धार्मिक उच्च वर्ग और बौद्धिक समाज में ग्रेटर इसराईल Eretz Yisrael का ख़ाब और कल्पना हमेशा बहस का मुद्दा रहा है। ग्रेटर इसराईल का क्या मतलब है? उसे भी कभी स्पष्ट नहीं किया गया। इस की सबसे छोटी और कम से कम कल्पना, प्रशांत महासागर (Mediterranean Sea) से जार्डन नदी तक (From the River to the Sea)है। यह ऐतिहासिक फ़िलिस्तीन का पूरा क्षेत्र है यानी इसराईल का मान्यता प्राप्त इलाक़ा, पश्चिमी किनारा, यरूशलम और ग़ज़्ज़ा । यह बाइबल में दर्ज बनी-इसराईल की ज़मीन, From Dan to Be’er Sheva का इलाक़ा है । दान और बर शेवा वर्तमान इसराईल के आख़िरी उत्तर और दक्षिण शहर हैं। इस का मतलब यह है कि इसराईल फ़िलिस्तीनियों से उनकी रही सही मामूली ज़मीनें और उन पर उनके अत्यंत सीमित क़ब्ज़े को भी पूरे तौर पर ख़त्म करके इस पूरे इलाक़े को इसराईल में मिलाना चाहता है। दूसरी कल्पना यह है कि पुराने फ़िलिस्तीन के पूरे इलाक़े के अलावा, जार्डन के कुछ इलाक़े, सीना और सीरिया की गोलान पहाड़ियां भी ग्रेटर इसराईल का हिस्सा हैं । इसराईल इन इलाक़ों पर क़ब्ज़े की कोशिशें करता रहा है और उन पर क़ब्ज़ा भी करता रहा है। तीसरी कल्पना नील से फरात तक From Nile to Euphrates  की कल्पना है और यह सबसे ज़्यादा मशहूर है। इस के सिलसिले में भी बाइबल का हवाला दिया जाता है। इस के अनुसार पूरे फ़िलिस्तीन के अलावा, पूरा जार्डन, पूरा लेबनान, सीरिया का ज़्यादातर इलाक़ा, सीना के अलावा प्रशांत महासागर के किनारे मिस्र का लम्बा पूर्वी साहिली इलाक़ा, इराक़ का आधा से ज़्यादा हिस्सा (बस्रा, नजफ़ और कर्बला सहित), तुर्की का कुछ हिस्सा और सऊदी अरब का बड़ा हिस्सा शामिल है। (जिसमें कुछ उल्लेखों के मुताबिक़ मदीना भी आता है) यह पूरा इलाक़ा ग्रेटर इसराईल की कल्पना में शामिल है। नक़्शा देखें, इसमें ग्रेटर इसराईल की काल्पनिक सरहदों को चिंहित किया गया है।

 

 

इस के प्रणाण मौजूद हैं कि ज़ायोनी आनदोलन के नेताओं के ज़हनों में शुरू में यही कल्पना थी। यासर अरफ़ात के मुताबिक़ इसराईल के झंडे में दो नीली पट्टियाँ, नील और फ़ुरात नदियों के दर्शाती हैं और यह कि इसराईल के100 शैक्ल के पुराने सिक्के में जो नक़्शे की शक्ल का

स्केच है वह भी इसी विज़न को दिखाता है। इसराईल के रक्षामंत्री, मोशे दयान का यह बयान भी रिकार्ड पर मौजूद है कि हमने यरूशलम हासिल कर लिया है और अब हम मदीना और बाबिल की ओर बढ़ रहे हैं।
यह केवल जज़्बाती तक़रीरों या वैचारिक सोच का मामला नहीं है बल्कि अपनी स्थापना के बाद से इसराईल लगातार विस्ताकवादी मन्सूबों को पूरे अहंकार के साथ अमल में ला रहा है। हर साल उस के कंट्रोल वाले इलाक़ों और यहूदी सेट्लमेंट के एरिया में इज़ाफ़ा हो रहा है । इन विस्तारों के लिए इसराईल पूरी दुनिया की निंदा को क़बूल कर लेता है। बड़े बड़े युद्ध का ख़तरा मोल लेता है और अपनी आबादी को तरह तरह के ख़तरों और नुक़्सानों में डालना बर्दाश्त कर लेता है लेकिन फैलावों से बाज़ नहीं आता। इस रवैय्ये की वजह से भी ऊपर दर्ज सोच को दुनिया एक सीरियस खु़फ़िया मन्सूबा समझती है जिस पर इसराईल ख़ामोशी से अमल कर रहा है।

ताक़त का दिखावटी रोब और 'यहूदी साज़िश’ का ग़ुबारा
फ़िलिस्तीन के संघर्ष का एक बड़ा कारनामा यह है कि उसने इसराईल की शक्ति, उस के अजेय होने का भरम और शक्तिशाली और पूरा कंट्रोल रखनेवाली ‘यहूदी साज़िश’ का भरम बुरी तरह बे-नक़ाब कर दिया है। उनके बारे में यह कल्पना की जाती है कि वे एक ऐसी शक्ति के मालिक हैं कि उनकी मर्ज़ी और योजना से दुनिया की सारी घटनाएं घटित होती हैं। अल्युमीनाई, फ़्रीमैसन, ज़ायोनिज़्म आदि के सिलसिले में यह सोच मौजूद हैं कि हर छोटी बड़ी घटनाएं उन्ही की मर्ज़ी और प्लैनिंग से होती हैं। राजनीतिक व आर्थिक मामलों से लेकर प्राकृतिक आपदा तक और वैज्ञानिक अनुसंधान से लेकर, नैतिक व सांस्कृतिक सोच के चलन तक, मानव जीवन का कोई कोना ऐसा नहीं है जहां उन की मर्ज़ी के बिना कुछ हो रहा हो। वे कभी नाकाम नहीं होते और न कभी कोई पत्ता उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ हिल पाता है। वे योजना बनाते हैं और दुनिया का हर छोटा बड़ा मामला, उनकी योजना के मुताबिक़ हू-ब-हू पूरा होता है।

ये नज़रिये अत्यधिक निराशा का परिणाम होते हैं और निराशा को और बढ़ावा देते हैं। जब आदमी यह महसूस करे कि उस के मामले पूरे तौर पर एक ऐसे अनदेखे दुश्मन के कंट्रोल में हैं जो दुनिया के सभी मामलों पर कंट्रोल रखता है, तो वह किस लिए संघर्ष करेगा? आम तौर पर ये घटनाएं ही होती हैं जो शोध एवं अनुसंधान के लिए मज़बूत प्रेरक उपलब्ध कराते हैं। लेकिन अगर किसी के ज़ेहन पर साज़िशी विचार छाए हुए हों तो वह उसे एक साज़िश समझेगा और साज़िशियों को कोसने के सिवा कोई और काम उस के पास नहीं बचेगा।
फ़िलिस्तीनी संधर्ष का यह बहुत बड़ा कारनामा है कि इसने इन कायरतापूर्ण सोचों की जड़ काट दी है। और क़ुरआन की इस घोषणा के पक्ष में प्रमाण उपलब्ध करा दिया है कि : “यक़ीन जानो कि शैतान की चालें वास्तव में बहुत ही कमज़ोर हैं।” (अन्निसा-76)
लोग कहते हैं कि इसराईल एक छोटा सा देश हो कर भी सभी अरबों पर ग़ालिब है। बेशक अरबों की कोताही, कमज़ोरी और कायरता भी इस स्थिति का एक अहम कारण है, लेकिन इसराईल को बड़ी शक्ति और अजेय शक्ति समझना भी कमसमझी है। फ़िलिस्तीनियों से इसराईल अकेला नहीं लड़ रहा है। उस की पीठ पर सारी दुनिया की शक्तियां हैं।
अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सैनिक शक्ति है। इसराईल को अमेरिका की जो आर्थिक और सैनिक मदद हासिल है उस की कल्पना भी मुश्किल है। इस समय अमेरिका केवल सैनिक मक़सदों के लिए इसराईल को सालाना 3.8 बिलियन डालर की मदद देता है । यह बात स्पष्ट तौर पर लिखी हुई मौजूद है कि इस मदद का मक़सद पड़ोसियों के मुक़ाबले में इसराईल को 'सैनिक श्रेष्ठता Qualititative Military Edge उपलब्ध कराना है। उनके अलावा जर्मनी, इंगलैंड, फ़्रांस, स्पेन आदि कई देश हैं जो इसराईल की 75 वर्षों से लगातार वित्तीय मदद कर रहे हैं।
मदद केवल वित्तीय नहीं है। ये बड़ी शक्तियां इसराईल को अतिआधुनिक हथियार उपलब्ध कराते हैं। रक्षा टेक्नोलोजी उपलब्ध कराते हैं। उनकी फ़ौजों को ट्रेनिंग देते हैं।ज्वाइंट ऑप्रेशन करते हैं। उनकी मदद के लिए आस-पास सैनिक दस्ते तैनात रखते हैं। केवल इसराईल की मदद के लिए पश्चिमी एशिया में अमेरिका के कई सैनिक अड्डे हैं।अमेरिका और यूरोपीय देशों की मध्यपूर्व की पूरी विदेश और रक्षा पालिसी इसराईल को आधार बनाकर बनाई जाती है। इसराईल की मदद इन सब देशों का सबसे बड़ा रक्षा उद्देश्य है।
ये शक्तियां केवल आर्थिक और ऱक्षा के मोर्चों पर ही नहीं बल्कि राजनीतिक और डिप्लोमेसी के मोर्चों पर भी हर-दम इसराईल की मददगार बनी रहती हैं। इसराईल के अत्याचार पर रोक लगाने के लिए सारी दुनिया एकमत हो जाती है लेकिन बड़ी शक्तियां वीटो कर देती हैं। अब तक के इतिहास में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद  में अमेरिका ने कुल 82 बार वीटो के अधिकार का इस्तेमाल किया है, जिनमें 46 बार (आधा से ज़्यादा) इसराईल को बचाने के लिए किया गया है। ब्रिटेन ने 29 में से 13 और फ़्रांस ने18 में से11 बार इसराईल की निंदा और उस की सज़ाओं को रोकने के लिए वीटो का इस्तेमाल किया है। ऐसा महसूस होता है कि बड़ी शक्तियों को यह अलोकतांत्रिक, अत्याचारपूर्ण और असभ्य अधिकार केवल इसराईल की रक्षा के लिए दिया गया है।
इन सच्चाइयों की मौजूदगी में कौन यह कह सकता है कि फ़िलिस्तीन के निहत्थे मुजाहिद केवल इसराईल के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं? सच्चाई यह है कि वे सभी बड़ी अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों की आक्रामकता का मुक़ाबला कर रहे हैं। वे निहत्थे मुजाहिद मानव इतिहास के सबसे शक्तिशाली और असीम शक्ति व संसाधनों से लैस गठबंधन को रोके हुए हैं।
हमारे समय का यह बेमिसाल संधर्ष अब दुनिया को बदल रहा है। दुनिया की जनमत फ़िलिस्तीन के पक्ष में और इसराईल के ख़िलाफ़ जाग रहा है। हमने इस लेख में जान-बूझ कर अपराधियों के लिए 'पश्चिमी सत्ता’ का शब्द इस्तेमाल किया है। दुनिया की हर क़ौम में भलाई के एलीमेंट्स मौजूद होते हैं। पश्चिमी देशों की जनता को उनके शासकों और मीडिया ने झूठ और प्रोपगंडे के ज़रिये गुमराह रखा था। अब वे सच्चाई को जान रहे हैं तो सूरते-हाल यह है कि इस समय इसराईली अत्याचार के ख़िलाफ़ मुस्लिम देशों से कहीं ज़्यादा पश्चिमी देशों में प्रदर्शन हो रहे हैं। कनाडा, ब्रिटेन आदि के प्रधानमंत्रियों को जगह-जगह लोग घेर कर सवाल कर रहे हैं। बहुत से इसराईली जर्नलों और राजनीतिज्ञों के लिए ब्रिटेन का दौरा असंभव हो गया है क्योंकि वहां की अदालतें (शासकों की मर्ज़ी के ख़िलाफ़) ब्रिटेन के यूनीवर्सल ज्युरिसडिक्शन क़ानून के तहत उनके ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी के आदेश जारी कर रही हैं। सार्वजनिक राय का दबाव इतना तीव्र है कि फ़्रांस जैसे देश को इसराईली उपनिवेशों की निंदा करनी पड़ी और इसराईल के ख़िलाफ़ संयुक्तराष्ट्र में वोट देना पड़ा। जगह-जगह सार्वजनिक आक्रोश का सामना करने के बाद कनाडा के प्रधानमंत्री को कहना पड़ा:
“दुनिया सब कुछ देख रही है। टीवी पर, सोशल मीडिया पर। हम घटनाओं की गवाहियाँ सुन रहे हैं। डाक्टरों की, (मरनेवालों के) घरवालों की, बच जाने वालों की, मरने वालों के मासूम बच्चों की। औरतों, बच्चों और दूध पीते बच्चों की ये हत्याएं सारी दुनिया देख रही है। इस का तुरंत रुक जाना ज़रूरी है।”
इस बयान में सार्वजनिक राय का दबाव साफ़ महसूस किया जा सकता है। स्पेन के उप-प्रधानमंत्री ने इसराईल पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। यही मांग बेल्जियम की मंत्री ने भी कर दी। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के कई अधिकारियों की ओर से पेश किया गया सख़्त विवादित नोट भी मीडिया में बहस में रहा, जिसमें राषट्रपति बाइडन की इसराईल की हिमायत की पालिसी से न केवल विरोध किया गया बल्कि राष्ट्रपति पर झूठ और युद्ध आपराध में मदद के गंभीर आरोप भी लगाए गए हैं। इस संधर्ष ने सारी दुनिया में यह सूरते-हाल पैदा की है कि इंसाफ़ पसंद जनता अपने शासकों की अत्याचारपूर्ण, अमानवीय और अनैतिक पालिसियों के बारे में जागरूक हो रहे हैं।

यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि इस जागरूकता में दुनिया की मदद करें। सच्चाई को सामने लाएं। जनमत को सही दिशा दें। फ़िलिस्तीनियों की क़ुर्बानियों को व्यर्थ न जाने दें और वास्तविक न्याय का सुदृढ़ आधार तलाश करने में अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी की मदद करें।
हमारे देश का जनमत भी बड़ा महत्व रखता है। फ़िलिस्तीनी पीड़ितों के लिए हमारी वास्तविक मदद यही होगी कि यहां की जनता सही स्थिति से अवगत रहे और फ़िलिस्तीन की हिमायत में भारत का तारीख़ी किरदार बहाल रहे।

संदर्भ

  1. डॉ. मुहम्मद असलम सिद्दीकी; तफ़सीर रऊहुल कुरआन। सूरह अल-अनफाल की व्याख्या; आयत : 29
  2. सैयद अबुल हसन अली हस्नी नदवी (2003) दावते फ़िक्रो अमल; काउंसिल फॉर रिसर्च एंड ब्रॉडकास्टिंग ऑफ इस्लाम, लखनऊ पीपी 100-101
  3. वैश्विक समझौते का पूरा पाठ देखें: https://www.ohchr.org/sites/default/files/cerd.pdf  ; retrieved on 17-11-2023
  4. [1] Suzie Navot(2014) The Constitution of Israel: A Contextual Analysis; Hart Publishing; Oregon; pages 72-79
  5. देखिए इजरायली विदेश मंत्री का बयान : Interfax News Agency “Israel Foreign Minister Wants Israel to be EU Member,” Interfax News Agency, 3 November 2010.
  6. देखें यूरोपीय संसद में पूछा गया सवाल और उसका जवाब : https://www.europarl.europa.eu/doceo/document/E-6-2006-3701_EN.html
  7. उदाहरण के लिए देखिये : https://news.sky.com/story/why-does-israels-football-team-play-in-europe-10359083
  8.  Noah Lewin-Epstein & Yinon Cohen (2018): Ethnic origin and identity in the Jewish population of Israel, Journal of Ethnic and Migration Studies, DOI: 10.1080/1369183X.2018.1492370
  9.  ibid
  10. Teshome Wagaw (2018) For Our Soul: Ethiopian Jews in Israel. United States: Wayne State University Press.
  11. विवरण के लिए एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका का लेख देखें : https://www.britannica.com/topic/Bene-Israel
  12. अश्वेत यहूदियों के साथ कैसा व्यवहार किया जाता था, इसके विवरण के लिए देखें:

Ein-Gil, E., & Machover, M. (2009). Zionism and Oriental Jews: a dialectic of exploitation and co-optation. Race & Class, 50(3), 62-76.

Joseph Massad; Mizrahi Jews in Israel faced decades of injustice..;https://www.middleeasteye.net/opinion/israel-ashkenazi-mizrahi-divide-still-extreme-right

Hen Mazzig(2022) The Wrong Kind of Jew: A Mizrahi Manifesto;Wicked Son;

13. Dana Kachtan (2012)“The Construction of Ethnic Identity in the Military—From the Bottom Up,” Israel Studies, Indiana University Press, vol. 17, no. 3, Fall 2012, pp. 150–175.

14. S.Zalman Abramov (1976) Perpetual dilemma: Jewish religion in the Jewish State, Fairleigh Dickinson Univ Press, p. 277-278

15. David Shasha(2010) "Sephardim, Ashkenazim, and Ultra-Orthodox Racism in Israel"; https://www.huffpost.com/entry/sephardim-ashkenazim-and_b_615692; retrieved on 15-11-2023

16. Sheera Frenkel (2012) Violent Riots Target African Nationals Living in Israel; https://www.npr.org/2012/05/24/153634901/violent-riots-target-african-nationals-living-in-israel; retrieved on 15-11-2023

17. Adrija Roychowdhury(2023)The first Indian Jews in Israel and the racism they faced;https://indianexpress.com/article/research/israel-first-indian-jews-racism-8976190/; retrieved 15-11-2023

18. Zion Zohar(2005). Sephardic and Mizrahi Jewry: From the Golden Age of Spain to modern times. NYU Press. pp. 300–301

19. Ben Sales(2014)"New president seeks to cure ‘epidemic’ of racism"; https://www.timesofisrael.com/new-president-seeks-to-cure-disease-of-racism/; retrieved on 15-11-2023     

20. Uri Davis(2004) Apartheid Israel: Possibilities for the Struggle Within. Zed Books, London

21. बी. सलेम की इस रिपोर्ट में गांवों और चेक-पोस्टों का विस्तृत विवरण के साथ आवाजाही पर प्रतिबंध के संदर्भ में गंभीर स्थिति का विस्तृत विवरण शामिल है।

https://www.btselem.org/sites/default/files/publications/202101_this_is_apartheid_eng.pdf

22. https://www.amnesty.org/en/latest/campaigns/2017/06/israel-occupation-50-years-of-dispossession/

23. इस डेटाबेस में इज़राइल के 65 कानूनों का व्यापक अवलोकन शामिल है जो नस्ल के आधार पर भेदभाव करते हैं।

https://www.adalah.org/en/content/view/7771

24. UN Committee on Elimination of Racial Discrimination CERD (2020) Concluding observations on the combined seventeenth to nineteenth reports of Israel; (CERD/C/ISR/CO/17-19);para 14, page 3

25. Ben-Youssef, Nadia; Tamari, Sandra (1 November 2018). "Enshrining Discrimination: Israel's Nation-State Law"Journal of Palestine Studies48 (1): 73–87

26. Yehezkel Lein and Alon Cohen-Lifshitz (2005) UNDER THE GUISE OF SECURITY:Routing the Separation Barrier to Enable the Expansion of Israeli Settlements in the West Bank; B’TSELEM report

27.Human Rights Watch (2021) A Threshold Crossed: Israeli Authorities and the Crimes of Apartheid and Persecution; HRW, New York.

28. देखिये यश डिन की रिपोर्ट

Adv. Michael Sfard (2020)The Israeli Occupation  of the West Bank and  the Crime of Apartheid at s3-eu-west-1.amazonaws.com/files.yesh-din.org/Apartheid+2020/Apartheid+ENG.pdf; retrieved on 15-11-2023

29. बी. सलेम की रिपोर्ट इजरायली संगठन की वेबसाइट पर पाई जा सकती है।

https://www.btselem.org/publications/fulltext/202101_this_is_apartheid  ; retrieved on 15-11-2023

30. पूरी रिपोर्ट का लिंक

https://documents-dds-ny.un.org/doc/UNDOC/GEN/N22/610/71/pdf/N2261071.pdf?OpenElement

31. रिपोर्ट के असंपादित संस्करण की एमएसवर्ड फ़ाइल यहां से डाउनलोड की जा सकती है।

  https://www.ohchr.org/en/documents/thematic-reports/a78553-report-special-committee-investigate-israeli-practices-affecting

retrieved on 15-11-2023

32.    इज़राइल में मानवाधिकारों के ज़बरदस्त उल्लंघन पर, आँखें खोल देने वाली निम्नलिखित रिपोर्टें देखें

  • Amnesty International, The State of The World’s Human Rights: Amnesty International Report 2022-23; pages 206-211

33.ttps://www.btselem.org/firearms/20220310_extrajudicial_killing_of_3_nablus_residents_in_broad_daylight

34.   यूरोपीय मानवाधिकार संगठन की यह रिपोर्ट देखें

https://euromedmonitor.org/en/article/5908/Israel-hits-Gaza-Strip-with-the-equivalent-of-two-nuclear-bombs

35.   विवरण के लिए, इजरायली मानवाधिकार संगठन बीट सलेम की रिपोर्ट देखें

36. https://www.amnesty.org/en/latest/news/2023/11/israel-opt-horrifying-cases-of-torture-and-degrading-treatment-of-palestinian-detainees-amid-spike-in-arbitrary-arrests/#:~:text=Testimonies%20and%20video%20evidence%20also,Middle%20East%20and%20North%20Africa.

37. विवरण के लिए, इजरायली मानवाधिकार संगठन बीट सलेम का हाउस डिमोलिशन डेटाबेस देखें

https://statistics.btselem.org/en/demolitions/pretext-unlawful-construction?structureSensor=%5B%22residential%22,%22non-residential%22%5D&tab=overview&stateSensor=%22west-bank%22&demoScopeSensor=%22false%22

38. https://www.aljazeera.com/features/2014/1/11/the-legacy-of-ariel-the-bulldozer-sharon    39. देखिये 39. रोंगटे खड़े कर देने वाली रिपोर्ट

Parched Israel’s policy of water deprivation in the West Bank B’Tselem report, April 2023; https://www.btselem.org/sites/default/files/publications/202305_parched_eng.pdf retrieved on 15-11-2023

40. नकबा के वर्णन के लिए निम्नलिखित पुस्तकें बहुत उपयोगी हैं।

  • Salman Abu Sitta(2000) The Palestinian Nakba 1948: The Register of Depopulated Localities in Palestine. London: The Palestinian Return House
  • Ilna Pappe (2006) The Ethnic Cleansing of Palestine; OneWorld London

41. Samia Halaby (2016) Drawing the Kafr Qasem Massacre.Schilt; Amsterdam

42. Bayan Nuwayhed Al-Hout (2004) Sabra and Shatila: September 1982; Pluto Press; London

43. https://www.nytimes.com/1994/03/16/world/that-day-hebron-special-report-soldier-fired-crowd-survivors-massacre-say.html?pagewanted=all

44.    ग़ज़्ज़ा में अब (नवंबर 20) तक हुई तबाही पर विस्तृत रिपोर्ट देखें:

https://reliefweb.int/report/occupied-palestinian-territory/hostilities-gaza-strip-and-israel-flash-update-44

45. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में इजरायली युद्ध अपराधों और मानवता के खिलाफ अपराधों के मुकदमे के विवरण और युद्ध अपराधों और सबूतों की विस्तृत सूची के लिए, अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्याय श्रृंखला का खंड 21 देखें।

Saada Adem (2019)Palestine and the International Criminal Court; T.M.C. Asser Press; Germany

46. ऊपर बी. सलेम की विभिन्न रिपोर्टें देखें

47. गार्जियन की रिपोर्ट देखें

https://www.theguardian.com/law/2019/dec/20/icc-to-investigate-alleged-israeli-and-palestinian-war-crimes؛ retrieved on 17-11-2023

48. विवरण के लिए देखें :

Edward Cavanagh,, Lorenzo Veracini (2016). “Introduction”. The Routledge Handbook of the History of Settler Colonialism. Taylor & Francis. P. 29

49. इस तथ्य पर तेल अवीव विश्वविद्यालय के एक यहूदी प्रोफेसर द्वारा लिखित पुस्तक देखें :

  • Shlomo Sand(2020)The Invention of the Jewish People;Verso Books;London

50. Karel Van der Toorn(1993). “Saul and the rise of Israelite state religion”. Vetus Testamentum. XLIII (4): 519–542

51. बाइबिल 1 शमूएल 10:17-24 में यह उल्लेख देखें

    jOHN Allegro (2015)The chosen people: A study of Jewish history from the time of the exile until the revolt of Bar Kocheba;Andrews; London.

52. फ़िलिस्तीनियों का इतिहास, चार हज़ार वर्षों में उनकी ऐतिहासिक निरंतरता, उनका चार हज़ार वर्षों का इतिहास, सांस्कृतिक विशेषताएँ, आदि।

Nur Masalha(2018) Palestine: A Four Thousand Year History; Zed Books

53.   इज़राइल के खिलाफ पारित संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के विवरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र दस्तावेज़ देखें :

United Nation (2008) The Question of Palestine and United Nations; United Nations Organisation; New York

54. https://www.btselem.org/sites/default/files/publications/202101_this_is_apartheid_eng.pdf

55. ओस्लो समझौते के विवरण तथा उसके परिणामों एवं प्रभावों के विश्लेषण पर आधारित एक महत्वपूर्ण पुस्तक:

The Oslo Accords 1993–2013: A Critical Assessment (2013) (Edited Compilation); American University in Cairo Press; Cairo

56. संयुक्त राष्ट्र में इस विषय पर हुई बहस की शानदार रिपोर्ट :

57. Ilan Pappe(2017)TEN MYTHS ABOUT ISRAEL; Vreso; London pp 92-100

58. Bible; Judges 20:1, Samuel 3:20; 3:10. 17:11

59. https://www.frontiersin.org/articles/10.3389/fpos.2022.963682/full

60. Genesis 15:18, Deuteronomy 11:24

61. उदाहरण के लिए, ज़ायोनी आंदोलन के संस्थापक थियोर्ड हर्ज़ल की प्रकाशित डायरी देखें :

Raphael Patai The Complete Diaries of Theodor Herzl, Vol.II, Herzl Press, New York Page 711,

62.https://web.archive.org/web/20011015064546/http://www.geocities.com/Heartland/9766/arafat.htm

63. शेफ़ील्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रॉली के निम्नलिखित लेख ने इस संबंध में एक बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया। यासिर अराफात ने इस थीसिस पर संयुक्त राष्ट्र में भी चर्चा की

  • Gwyn Rowley(1989) "Developing Perspectives upon the Areal Extent of Israel: An Outline Evaluation; GeoJournal  1989-09: Vol 19 Iss 2

64. Sa`d al-Bazzaz (1989) Gulf War: The Israeli Connection, transl. Namir Abbas Mudhaffer;Dar al-Ma'mun; Baghdad

65. निपटान की पूरी जानकारी के लिए बी. सलेम के डेटाबेस पर जाएँ :

https://www.btselem.org/settlements

66. सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी; संपादकीय़ जिंदगी-ए नौ मासिक; जून 2020

67. https://www.bbc.com/news/57170576

68. अमेरिकी कांग्रेस की रिपोर्ट देखें :

Congressional Research Service (2023) US Foreign Aid to Israel: CRS Report; pp 5

69.   देखें वीटो के अब तक इस्तेमाल का पूरा रिकॉर्ड:

https://research.un.org/en/docs/sc/quick

70. ब्रिटेन की अदालतें किस तरह इजरायली अधिकारियों पर युद्ध अपराध का आरोप लगा रही हैं, गिरफ्तारी वारंट जारी कर रही हैं और ब्रिटेन में प्रवेश कैसे कठिन होता जा रहा है, इसकी जानकारी के लिए निम्नलिखित समाचार देखें:

  • https://www.theguardian.com/uk/2010/jan/05/israeli-military-uk-arrest-fears
  • https://www.theguardian.com/uk/2005/sep/12/israelandthepalestinians.warcrimes
  • http://news.bbc.co.uk/2/hi/uk_news/7251954.stm
  • https://www.ynetnews.com/articles/0,7340,L-3221339,00.html
  • https://www.ynetnews.com/articles/0,7340,L-3883985,00.html

71. https://www.jpost.com/breaking-news/article-773533

72. https://onu.delegfrance.org/france-voted-in-favor-of-the-resolution-presented-on-behalf-of-the-arab-group

73. https://www.thehindu.com/news/international/canadian-pm-tells-israel-killing-of-babies-must-stop/article67537556.ece

74. https://www.middleeastmonitor.com/20231116-spanish-deputy-pm-calls-for-sanctions-and-arms-embargo-against-israel/

75. https://www.euronews.com/2023/11/09/crimes-are-being-committed-belgium-deputy-pm-petra-de-sutter-calls-for-sanctions-against-i

76. https://www.middleeastmonitor.com/20231113-internal-us-state-department-memo-biden-spreading-misinformation-israel-committing-war-crimes-in-gaza/

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