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इसराईली राज्य अपनी आख़िरी सांसें ले रहा है

इसराईली राज्य अपनी आख़िरी सांसें ले रहा है

आरी शाबित

एक यहूदी स्कॉलर और राजनीतिक समीक्षक

ऐसा लगता है कि हमारा सामना इतिहास के सबसे ज़्यादा भड़के हुए लोगों से पड़ गया है और अब फ़िलिस्तीनियों की ज़मीन पर उनका ही हक़ माने बिना कोई चारा नहीं है। मेरा ख़याल है कि हम बंद गली में दाख़िल हो चुके हैं और अब इसराईलियों के लिए फ़िलिस्तीन की ज़मीन पर क़ब्ज़े को बनाए रखना, बाहर से आए यहूदियों को बसाना और अम्न बहाल करना मुम्किन नहीं रहा। इसी तरह ज़ायोनिज़्म में नयापन लाने का आंदोलन, लोकतंत्र का बचाव और राज्य में आबादी का फैलाव भी अब और नहीं चल पाएंगे। इन हालात में इस मुल्क में रहने का कोई मज़ा बाक़ी नहीं रहा और इसी तरह “डेली हारेट्ज़’’ में लिखना भी बदमज़ा हो गया है और “डेली हारेट्ज़’’ के पढ़ने में भी अब कोई आकर्षण बचा नहीं रहा। अब हमें वही करना पड़ेगा जो दो वर्ष पहले “रोगील अलफ़ार’’ ने किया था और वह यह देश छोड़कर बाहर चले गये थे ।

इसराईल ने हमें अपनी पहचान नहीं दी, क्योंकि हर इसराईली नागरिक और हर यहूदी के पास बाहर के किसी न किसी देश का पासपोर्ट भी उसकी जेब में मौजूद है। इसकी वजह कोई मजबूरी नहीं है, बल्कि इसराईल का हर नागरिक मानसिक रूप से इस प्रक्रिया से गुज़रने के लिए तैयार है। तब हमें समझ लेना चाहिए कि खेल ख़त्म हो चुका है और आपको चाहिए कि अपने दोस्तों को ख़ुदा हाफ़िज़ कहकर सनफ्रांसिस्को, बर्लिन या पेरिस के लिए निकल जाएं। इस तरह आप जर्मन क़ौमपरस्तों के बीच बैठकर या अमेरिका में अमेरिकी क़ौमपरस्तों के बीच बैठकर कम-से-कम आराम से, सुकून और इत्मीनान से देख सकेंगे कि इसराईली राज्य दम तोड़ रहा है और अपनी आख़िरी सांसें ले रहा है। हमें अनिवार्य रूप से तीन क़दम पीछे हट कर यहूदी लोकतांत्रिक राज्य के डूबने के दृश्य देखना होगा, क्योंकि समस्याएं अभी तक अपने समाधान से कोसों दूर हैं।

शायद अभी भी हम बंद गली से निकल सकते हैं, अभी भी फ़िलिस्तीन की ज़मीन पर क़ब्ज़ा ख़त्म किया जा सकता है, अभी भी मौक़े मौजूद हैं कि ज़ायोनिज़्म के आंदोलन में सुधार हो सकें, अभी भी लोकतंत्र की बहाली की संभावनाएं मौजूद हैं और अभी भी राज्य का विभाजन हो सकता है। मेरा दिल कहता है कि मैं बिनयामिन नेतन्याहू, लीबरमैन और न्यूनाज़ीस ((Netanyahu, Lieberman and the neo-Nazis) की आंखें खोलूं और उन्हें ज़ायोनिज़्म की तबाही व बर्बादी के दर्शन कराऊं। उन्हें यक़ीन दिलाऊं कि डोनाल्ड ट्रंप, कोशनर, बाइडन, बारक ओबामा और हिलरी क्लिंटन कभी फ़िलिस्तीन की ज़मीन पर यह क़ब्ज़ा ख़त्म नहीं होने देंगे। संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय यूनियन भी विदेशी यहूदियों की आबादकारी कभी भी नहीं रोकेंगे। बस पूरी दुनिया में अगर कोई इसराईली राज्य और इसराईली जनता को बचा सकता है तो वह ख़ुद इसराईली हैं, जिन्हें एक नवजात राजनीतिक समझौते के तहत हर हाल में स्वीकार करना होगा कि इस फ़िलिस्तीन के अस्ल मालिक फ़िलिस्तीनी ही हैं और यह उनका ही वतन है। मैं अपने इसी तीसरे रास्ते के पक्ष को ही ज़ोरदार तरीक़े से पेश करूंगा।

इसराईली जनता जब से फ़िलिस्तीन में आबाद हुई है तब से ज़ायोनिज़्म आंदोलन उन्हें ऐतिहासिक तौर पर झूठ बोल-बोलकर यह धोखा दिए चला आ रहा है और ज़ायोनी कारिंदे होलोकास्ट को ग़ैर-मामूली तौर पर बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के बाद से इसराईली समुदाय को बार-बार यह झूठ कहते चले आ रहे हैं कि ख़ुदावंद ख़ुदा ने तुम से फ़िलिस्तीन की ज़मीन का वादा कर रखा है और हैकले सुलैमानी (Temple of Solomon) भी, जो दरअस्ल मस्जिदे-अक़सा के नीचे मौजूद है। इस तरह टैक्स की भारी रक़में चूस-चूसकर भेड़िये एटमी शक्ति बन गए हैं।

अब तो तिलअबीब विश्वविद्यालय के शोधार्थी और बहुत से पश्चिमी विशेषज्ञ भी कह चुके हैं कि हज़ारों साल पहले हैकले-सुलैमानी का अस्तित्व ख़त्म हो चुका और कहीं भी उसका कोई नामो-निशान मौजूद नहीं है। आख़िरी बार 1968 ई. में ब्रिटिश स्कूल ऑफ़ आर्कियोलॉजी (British School of Archeology) यरुशलम की डायरेक्टर केथलीन कैबीनोस ने भी खोदाई करके हैकले-सुलैमानी के अवशेष तलाश करने की कोशिश की थी, लेकिन कुछ भी न मिला, जिसे इसराईली हैकले-सुलैमानी कहते हैं, उस तरह की इमारत के कई नक़्शे किताबों में मिलते हैं और फ़िलिस्तीन के कई स्थानों पर उसके निर्माण के साक्ष्य भी मौजूद हैं, लेकिन मस्जिदे-अक़्सा के नीचे ऐसी किसी इमारत की सोच एक कल्पना के सिवा कुछ नहीं। इससे पहले उन्नीसवीं सदी के मध्य में भी “कैथलीन कैबीनोस’’ फ़िलिस्तीन इसी लिए आई थीं कि ओल्ड टेस्टामेंट की किताब के अनुसार उस स्थान की निशानदेही की जा सके जहां यह इमारत स्थापित की गई थी।

क्या यह ईसराईलियों के लिए किसी लानत से कम है कि मुक़द्दसियों, ख़लीलियों और नाबलूसियों से रोज़ाना छुरियों और चाक़ुओं जैसे थप्पड़ अपने चेहरों पर खाएं या उनके ड्राईवर जफ़ा, हैफ़ा और ऐसर जाते हुए पत्थरों पर पत्थर खाते हुए वहां पहुंचें।

अब इसराईली जान चुके हैं कि फ़िलिस्तीन में उनका कोई भविष्य नहीं है, ऐसा नहीं है कि फ़िलिस्तीनी ज़मीन के कोई वारिस न हों। वामपंथी विचारधारा के एक यहूदी विद्वान और लेखक ‘गडोन लेवे’ ने बहुत पहले कह दिया था कि यहूदियों को न सिर्फ़ यह कि फ़िलिस्तीनियों के स्वामित्व के अधिकार को मानना पड़ेगा, बल्कि फ़िलिस्तीनी धरती पर उन्हें वरीयता भी देनी होगी, क्योंकि फ़िलिस्तीनी बाक़ी दुनिया से अलग स्वभाव के लोग हैं। हम उन्हें दुष्ट और अहंकारी कहते हैं और फिर हमने उनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा किया है और फिर भी हम चाहते हैं कि वे अपनी मातृभूमि को भूल जाएं। तभी वे 1987 से प्रोटेस्ट की हालत में हैं और हम उन्हें क़ैदख़ानों में भरते जा रहे हैं।

 वर्षों बाद जब हमने यह समझ लिया कि अब उन्हें सबक़ सिखाया जा चुका है, तो 2000 ई. में वे अपनी खोई गई ज़मीनें वापस लेने के लिए हथियारों से लैस होकर हमारे सामने आ गए। इसके बावजूद हमने उनका घेराव जारी रखा और उनके घरों को मलियामेट करते रहे। इसके बाद जब उन्होंने हमारे ऊपर मिज़ाइल दाग़ना शुरू कर दिए तो हमने उनके और अपने बीच ऊंची दीवारें और बाढ़ लगाने की योजना शुरू कर दी। इसकी प्रतिक्रिया में उन्होंने सुरंगें खोदीं और ज़मीन के नीचे से हम पर हमलावर हुए।

यहां तक कि हालिया युद्ध के शुरू में उन्होंने हमारी सीमा के अंदर घुस कर हमें क़त्ल करना और मारना शुरू कर दिया। हमने अपनी सोच के मुताबिक़ उनके साथ लड़ाई शुरू की, लेकिन उन्होंने हमारे सेटेलाइट “आमोस’’ को ही जाम कर दिया। वे लगातार हमें धमकियों पर धमकियां देते हैं और कहते हैं कि हमारे नौजवान इसराईली चैनलों को भी बंद करके जाम कर देंगे।

सच्चाई यह है कि हमें इतिहास के सबसे कठिन लोगों से पाला पड़ गया है और उन्हें माने बिना और फ़िलिस्तीन की ज़मीन पर अपना क़ब्ज़ा ख़त्म किए बिना इस समस्या का कोई हल मौजूद नहीं है।

(इसराईली अख़बार, “हारेट्ज़” 10 अक्तूबर 2023)

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