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वर्तमान स्थिति की समीक्षा

वर्तमान स्थिति की समीक्षा

हसीब असग़र

7 अक्टूबर, 2023 को ग़ज़्ज़ा से इसराईल पर हुए ऐतिहासिक हमलों ने इसराईली सेना की प्रतिष्ठा और उसकी ख़ुफ़िया क्षमताओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसा झटका दिया है, जिसकी भरपाई शायद दशकों तक नहीं हो सकेगी। इसराईल का आतंक, उसकी परमाणु शक्ति, उसकी ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद की क्षमताएं और उसकी निरोधक क्षमता सब शून्य हो गई है। जिन टैंकों के बारे में मीडिया हथियार कंपनियों का दलाल बनकर यह दावा करता रहा है, कि इन्हें किसी भी तरह नुक़सान नहीं पहुंचाया जा सकता, उसे फ़िलिस्तीनी मुजाहिद इस तरह भस्म कर देते हैं मानो वह बच्चे का कोई खिलौना हो। इस स्थिति ने इसराईली बलों में हड़कंप मचा कर रख दी है।

इसराईल अपने इतिहास के सबसे नाजुक मोड़ पर खड़ा है। इस बाहरी युद्ध की शुरुआत से पहले इसराईल कई मोर्चों पर आंतरिक युद्ध से भी जूझ रहा है। इसराईली मीडिया की रिपोर्टों से साफ़ पता चलता है कि इसराईली सेना में सरकार की नीतियों को लेकर निराश पाई जा रही है और वे सैनिक सेवाओं के लिए तैयार नहीं है। दूसरी ओर इसराईली नागरिक अपनी सरकार के फैसलों को लेकर हतोत्साहित हैं और वे देश छोड़कर बाहर जा रहे हैं। इसराईली अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इसराईल अपनी स्थापना से ही युद्ध लड़ता आ रहा है, लेकिन ग़ज़्ज़ा में हमास के साथ हालिया लंबा युद्ध इसराईल को विनाश की ओर ले जाएगा। इसराईल आर्थिक या राजनीतिक रूप से कोई ऐसा युद्ध लड़ने में सक्षम नहीं है, जिसमें उसे आरक्षित बलों का लंबे समय तक उपयोग करना पड़े। आरक्षित बल इसराईली सेना का 65 प्रतिशत हिस्सा है। इस कार्रवाई से उसकी अर्थव्यवस्था को इतना नुक़सान होगा जिसका अनुमान लगाना फिलहाल मुश्किल है।

इसराईली मीडिया सूत्रों के अनुसार, पिछले एक साल से इसराईली प्रधान मंत्री नेतन्याहू और उनके चरमपंथी सहयोगी इसराईल में एक ऐसी सरकार स्थापित करने के लिए उत्सुक हैं जो किसी के प्रति जवाबदेह न हो। इस संबंध में नेतन्याहू और उनके कुछ सहयोगियों ने इसराईली सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को सीमित करने और सुप्रीम कोर्ट से अधिकार लेकर कनेसेट (Knesset : इसराईली संसद) को शक्तियां हस्तांतरित करने के लिए संसद में एक विधेयक पेश किया। बिल को पूरी तरह मंजूरी मिलने से पहले ही बड़ी संख्या में इसराईली नागरिकों ने इसराईली प्रधानमंत्री और बिल का मसौदा तैयार करने वालों के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया, और ये विरोध प्रदर्शन पिछले 10 महीनों से जारी हैं। इनमें इसराईली विपक्षी पार्टियां भी शामिल हैं। यहां अहम बात यह है कि जब इसराईली नागरिक इस बिल का विरोध कर रहे थे तो बड़ी संख्या में इसराईली सेना भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल थी।

रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, 19 जुलाई, 2023 को सैकड़ों इसराईली रिजर्व फ़ोर्स ने तेल अवीव में मार्च किया और सुप्रीम कोर्ट की शक्तियों को अवरुद्ध करने की सरकार की विवादास्पद योजना के ख़िलाफ़ इसराईली सेना ने स्वेच्छा से काम करने से इनकार कर दिया। इस इनकार के बाद इस्राइली सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल हरजी हलेवी ने विद्रोही रिजर्व सैनिकों से ड्यूटी पर लौटने की अपील करते हुए कहा कि असहमति का अधिकार है, लेकिन सेना और देश को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए।

16 अगस्त, 2023 को प्रमुख इसराईली समाचारपत्र इसराईल टाइम्स में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार इसराईली नौसेना के दो वरिष्ठ रिज़र्विस्ट, रियर एडमिरल ओफ़र डोरोन और इयाल सेगेव ने विभागीय कार्यवाही शुरू की गई। दोनों शीर्ष अधिकारियों ने अगस्त की शुरुआत में घोषणा की थी कि वे नेतन्याहू और उनकी सरकार की इसराईली न्याय प्रणाली में सुधार की विवादास्पद योजनाओं के विरोध में इसराईली नागरिकों के साथ शामिल होंगे, और इसराईली सेना के लिए कोई और सेवाएँ प्रदान करने के लिए तैयार नहीं हैं। दोनों अधिकारियों ने मौजूदा इसराईली सरकार को इसराईल के लिए कैंसर बताया और कहा कि वे अब उनके साथ काम नहीं कर सकते।

इसराईल के प्रमुख हिब्रू अखबार “येदिओथ अह्रोनोथ” ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि न्यायिक सुधार के नाम पर शक्तियां सीमित करने का विरोध करने वालों में न केवल इसराईली सेना के शीर्ष अधिकारी शामिल हैं, बल्कि देश की सबसे शक्तिशाली ख़ुफ़िया एजेंसी मोसाद भी इसके ख़िलाफ़ नजर आ रही है। इसराईली सेना, ख़ुफ़िया एजेंसियों और नागरिकों की ओर से सरकार के क़दम के ख़िलाफ़ कड़ी प्रतिक्रिया आई है और पिछले एक साल इसराईल से इस कानून के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन जारी हैं।

इसराईली सेना में आरक्षित बलों का अनुपात 65 प्रतिशत है। इसराईली सेना में तीन भाग होते हैं, पहला सक्रिय बल है, जिनकी संख्या 173,000 है, जबकि आरक्षित बलों की संख्या 465,000 है, जिसका अर्थ है कि यह इसराईल की सेना की रीढ़ है। सभी इसराईली नागरिक जो हथियार उठाने में सक्षम हैं, चाहे पुरुष हों या महिला, को सेना में सेवा करना और युद्ध की स्थिति में भाग लेना आवश्यक है। इसराईली सेना में सेवा करने के लिए 21 वर्ष की आयु आवश्यक है, जबकि आरक्षित बलों (रिजर्व सेना में अनिवार्य सेवा 51 वर्ष की आयु तक समाप्त नहीं होती।)

जेरूसलम सेंटर फॉर पॉलिटिकल स्टडीज के प्रमुख जेरी विकाइक का कहना है कि हमास द्वारा इसराईल पर ऐतिहासिक हमले के बाद इसराईल के इतिहास में पहली बार युद्ध की घोषणा की गई है। इस घोषणा के साथ, इसने लगभग 360,000 रिजर्विस्टों को बुलाया है। जेरी विकाइक के अनुसार, इसराईली सेना के रिजर्विस्ट वे नागरिक होते हैं जो विभिन्न औद्योगिक, कृषि और जीवन के अन्य क्षेत्रों में सेवा कर रहे होते हैं। आसान शब्दों में कहें तो ये वे लोग हैं जिनकी वजह से देश की अर्थव्यवस्था चल रही है। जब इसराईल उन्हें उनके कामों से विचलित कर युद्ध के लिए बुलाएगा तो इससे अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी और विकास का पहिया रुक जाएगा।

इसराईल के हाइफ़ा विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन कार्यक्रम के निदेशक गेब्रियल बेन-डोर का कहना है कि इस बार नेतन्याहू कुछ असामान्य करने का इरादा रखते हैं। उन्होंने कहा है कि सभी योग्य पुरुषों को वर्ष में एक बार सैन्य सेवा के हाज़िर होना आवश्यक है जो औसतन 26 दिन और अधिकारियों के लिए 24 दिन है। लेकिन नेतन्याहू ने इस बार लगभग सभी स्वयंसेवी सैनिकों को ड्यूटी में शामिल होने के लिए बुलाया है, और उनके कर्तव्यों के बारे में कोई विवरण नहीं दिया गया है, जिससे पता चलता है कि वह एक लंबे युद्ध के लिए इतनी बड़ी सेना जुटा रहे हैं। लेकिन अर्थव्यवस्था पर भारी असर डाले बिना लंबी लड़ाई लड़ने की क्षमता पर गंभीर सवाल हैं। यहां सवाल यह उठता है कि इसराईल इतनी कम संख्या और उपकरणों वाली सेना के ख़िलाफ़ इतने सारे सैनिक क्यों जुटा रहा है जो इसराईल को असंतुलित कर सकता है और उसकी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।

हमास के हमलों के बाद इसराईली रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और स्वयं प्रधान मंत्री ने घोषणा की कि हमास को ख़त्म करने के बाद ही वे युद्ध समाप्ति की घोषणा करेंगे। इसराईली अधिकारी एक ऐसे युद्ध की बात कर रहे हैं जो हफ्तों तक चल सकता है। इससे पुष्टि होती है कि वे अल-क़स्साम ब्रिगेड के लड़ाकों से ग़ज़्ज़ा के आसपास की बस्तियों को खाली कराने से संतुष्ट नहीं होंगे, बल्कि वे ग़ज़्ज़ा पर ज़मीनी हमला करने की कोशिश करेंगे। लेकिन जमीनी हकीकत पर नजर डालें तो ये इसराईल के लिए संभव नहीं है।

ग़ज़्ज़ा युद्ध, जो 7 अक्टूबर, 2023 को हमास के विनाशकारी हमलों के साथ शुरू हुआ, अपने पहले के किसी भी युद्ध से अलग है, क्योंकि आधी सदी में यह पहली बार है कि इसराईल ने "आधिकारिक तौर पर" युद्ध की घोषणा की है। इसके अलावा, एक इसराईली सैन्य प्रवक्ता ने ग़ज़्ज़ावासियों को सिनाई की ओर पलायन करके ग़ज़्ज़ा छोड़ने की सलाह दी, जो ग़ज़्ज़ा पर फिर से क़ब्ज़ा करने और हमास सहित सभी प्रतिरोध आंदोलनों को खत्म करने की इसराईल की इच्छा को दर्शाता है।

यह परिदृश्य ज़मीनी हमलों और गृहयुद्ध की मांग करता है क्योंकि इसराईल को एहसास हो गया है कि अकेले हवाई हमले हमास को पूरी तरह से खत्म करने में प्रभावी नहीं हैं। क्योंकि हमास ने भूमिगत सुरंगों का एक नेटवर्क बनाया हुआ है जो इसराईल के लिए एक समस्या है और इसराईल कई प्रयासों के बावजूद इन सुरंगों के नेटवर्क को नष्ट करने में विफल रहा है।

तस्वीर का दूसरा रुख़ देखा जाए तो, फ़िलिस्तीनी आंदोलन सामान्य रूप से नियमित सेनाओं की तुलना में गुरिल्ला युद्ध करने में अधिक सक्षम हैं, जिससे तेल अवीव को युद्ध के मैदान पर अपने प्रभुत्व के बावजूद ग़ज़्ज़ा में जमीनी युद्ध छेड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसका अंत 2008 और 2014 का युद्ध पर हुआ। जब इसराईल को अपने सैनिकों को रिहा करने के लिए एक इसराईली सैनिक की रिहाई के बदले में 1,400 फ़िलिस्तीनी कैदियों को रिहा करने के लिए हमास के साथ बातचीत करनी पड़ी।

युद्ध को लम्बा खींचने की इसराईल की इच्छा हमास को पूरी तरह से खत्म करने की है, लेकिन युद्ध कितना लंबा चलेगा, यह तेल अवीव की इच्छा से अधिक प्रतिरोधी शक्तियों की दृढ़ता और उसके गुरिल्ला ऑपरेशन पर निर्भर करता है।

इतिहास गवाह है कि इसराईल ने कभी भी फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के ख़िलाफ़ जमीनी युद्ध नहीं जीता है, इसलिए यदि इसराईली सेना ग़ज़्ज़ा में प्रवेश करती है, तो उसे हमास लड़ाकों द्वारा अपने नरसंहार को रोक पाना चुनौतीपूर्ण होगा। ऐसे में युद्ध को लेबनान तक ले जाने का प्रयास, जो उसके ग्रेटर इसराईल की योजना का हिस्सा है, संभव नज़र नहीं आता। यहां एक और महत्वपूर्ण बात है : ग़ज़्ज़ा में हमास के 50,000 से ज्यादा लड़ाके हैं, लेकिन अगर इसराईल युद्ध को लेबनान ले जाने की ग़लती करता है, तो 100,000 से ज्यादा हिजबुल्लाह लड़ाके उसका स्वागत करने के लिए बेचैन हैं। इसके अलावा सीरियाई सीमा भी इसराईल के लिए घातक बनी हुई है। इसराईली सेना सीरिया की सीमाओं पर भी ज़मीनी लड़ाई के बजाय बमबारी से अपने लक्ष्य हासिल करती है, ऐसे में इसराईल को तीन मोर्चों से असामान्य हमलों का सामना करना पड़ेगा, जबकि वेस्ट बैंक में अरीन अल-असवद ने सेना की नींद उड़ाई हुई हैं। अरीन अल-असवद लड़ाके इसराईली सेना पर एक दिन में 20 से 25 हमले करते हैं, जिससे रोजाना इसराईली सेना हताहत होती है और संपत्ति को नुकसान होता है। हैरानी की बात यह है कि नवीनतम हथियारों और तकनीक के बावजूद, इसराईली सेना अरीन अल-असवद लड़ाकों के अभियानों को रोकने में बुरी तरह असमर्थ है। ऐसे में मनोबल खो चुकी सेना इतने मोर्चों पर कैसे सफल हो सकती है?

इसराईल डेमोक्रेसी इंस्टीट्यूट में सेंटर फॉर सिक्योरिटी एंड डेमोक्रेसी और विटर्बी फैमिली सेंटर फॉर पब्लिक ओपिनियन एंड पॉलिसी रिसर्च द्वारा किए गए एक विशेष सर्वेक्षण में पाया गया कि यदि इसराईलियों को विकल्प दिया गया, तो अधिकांश रिजर्व इसराईली सेना में अपनी सेवा न देना पसंद करेंगे। 1974 में किए गए एक सर्वेक्षण में यह संख्या केवल 20 प्रतिशत थी, 1990 के दशक के अंत में किए गए एक अध्ययन से पता चला कि प्रत्येक 11 में से केवल दो इसराईली सेना में स्वेच्छा से अपनी सेवा देने के लिए उपलब्ध हैं।

यहां यह भी ध्यान देने योग्य है कि इसराईली सेना स्वयंसेवी सैनिकों के मनोबल और रुचि को बढ़ाने के लिए उन्हें सम्मान और पुरस्कार देती रहती है, फिर भी इसराईली जनता के एक बड़े हिस्से, यानी 47 प्रतिशत, का मानना ​​है कि इसराईली सेना को अपनी 'जनता की सेना' के मॉडल को छोड़ देना चाहिए और एक पेशेवर सेना में तब्दील कर देना चाहिए।

इसराईली समाज का एक ख़तरनाक पहलू वहां यहूदियों के दो समूहों की उपस्थिति है, जिन्हें फ़लाशा यहूदी और अशकेनाज़ी यहूदी के नाम से जाना जाता है। अशकेनाज़ी जर्मनी, फ्रांस और पूर्वी यूरोप और कुछ संयुक्त राज्य अमेरिका के यहूदी हैं, जबकि फलाशा इथियोपिया के यहूदी हैं जिन्हें 1984-85 और 1991 में इसराईल लाकर बसाया गया था, और जिसका मुख्य उद्देश्य फ़िलिस्तीन में यहूदियों की जनसंख्या को बढ़ाना था। इन यहूदियों का धर्म और आस्था तो एक ही हैं, लेकिन उनके बीच सांस्कृतिक अंतर हैं। हम सभी जानते हैं कि यहूदी एक नस्लवादी समुदाय है, इतने नस्लवादी कि उन्होंने फलाशा यहूदियों को उनके काले रंग के कारण आज तक मान्यता नहीं दी है। यही कारण है कि इसराईल में 2016 में फलाशा यहूदियों और अशकेनाज़ियों के बीच झड़पें उस समय शुरू हुईं जब एक अशकेनाज़ी यहूदी पुलिस अधिकारी ने एक फलाशा यहूदी युवक की गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद से इसराईल में गृह युद्ध का माहौल देखा गया। कई गाड़ियां, पेट्रोल पंप और दुकानें जला दी गईं। उन दंगों में कम से कम 16 यहूदी मारे गए और दर्जनों घायल हो गए और आख़िरकार नौबत यहां तक ​​आ पहुंची कि इसराईली प्रधानमंत्री नेतन्याहू को सरकारी टीवी पर आकर फलाशा यहूदियों को भरोसा दिलाना पड़ा कि उनके साथ न्याय किया जाएगा।

ये विवरण देने का उद्देश्य यह है कि इसराईल का अवैध ज़ायोनी राज्य न केवल सीमाओं से बल्कि आंतरिक रूप से भी बहुत खंडित है। इसराईल आर्थिक रूप से हमास और हिजबुल्लाह के साथ दीर्घकालिक युद्ध में शामिल होने की स्थिति में नहीं है। इस स्थिति में तो बिल्कुल भी नहीं जब ग़ज़्ज़ा की क्रूर नरसंहार के लिए पूरी दुनिया में निंदा हो रही है और दुनिया भर से मुजाहिदीन इसराईल से लड़ने के लिए फ़िलिस्तीन, लेबनान, सीरिया और जॉर्डन पहुंचने को उत्सुक हैं।

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