सैयद अबुल आला मौदूदी बर्थ कन्ट्रोल का आन्दोलन है क्या? कैसे आरम्भ हुआ? किन कारणों से उसे तरक्क़ी हुई? और जिन देशों में वह लोकप्रिय हुआ, वहाँ उसके क्या परिणाम निकले! जब तक ये बातें अच्छी तरह बुद्धिगम्य न हो जायेंगी, इस्लाम का फ़तवा ठीक-ठीक समझ में न आएगा, न मन ही को संतोष होगा, इसलिए सब से पहले हम इन्हीं प्रश्नों पर प्रकाश डालेंगे और अन्त में इस सम्बन्ध में इस्लामी दृटिकोण की व्याख्या करेंगे। यह पुस्तक इसी ग़लतफ़हमी को दूर करने के लिए लिखी जा रही है।
कुरआन मजीद में एक अहम बात यह बयान की गई है की अल्लाह ज़ालिम नहीं है की किसी क़ौम को खाह –म – खाह बर्बाद कर दे, जबकि वह नेक और भला काम करने वाली हो – ‘’और तेरा रब ऐसा नहीं है की बस्तियो को ज़ुल्म से तबाह कर दे, जबकि उस के बाशिंदे नेक अमल करने वालें हों |’’ (कुरआन, सूरा – 11 हूद, आयत – 117)
मनुष्य शरीर ही नहीं आत्मा भी है। बल्कि वास्तव में वह आत्मा ही है, शरीर तो आत्मा का सहायक मात्र है, आत्मा और शरीर में कोई विरोध नहीं पाया जाता। किन्तु प्रधानता आत्मा ही को प्राप्त है। आत्मा की उपेक्षा और केवल भौतिकता ही को सब कुछ समझ लेना न केवल यह कि अपनी प्रतिष्ठा के विरुद्ध आचरण है बल्कि यह एक ऐसा नैतिक अपराध है जिसे अक्षम्य ही कहा जाएगा। आत्मा का स्वरूप क्या है और उसका गुण-धर्म क्या है। यह जानना हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक है। आत्मा के अत्यन्त विमल, सुकुमार और सूक्ष्म होने के कारण साधारणतया उसका अनुभव और उसकी प्रतीति नहीं हो पाती और वह केवल विश्वास और एक धारणा का विषय बनकर रह जाती है।
आज बरसों बाद सूनी पड़ी हवेली में नदीम के आ जानें से चहल- पहल हुई थी । हवेली का कोना – कोना गूंज उठा था ,उधर बगीचे में परिंदों ने एक अलग ही समा बांध रखा था ,वो सब आपस में कह रहे थे अपना नन्हा दोस्त नदीम शहर से वापस लौट आया | अब बागीचे की दुगनी रौनक हो जाएगी ,के तभी मैना ने कहा ,सुनों पर उस का दिल कैसे लगेगा यहाँ हवेली में सिर्फ़ उस की माँ ही रह गई हैं
पहले मकान कच्चे हुआ करते थे मगर उन में रहने वाले सच्चे हुआ करते थे आज मकान पक्के हैं मगर उन में रहने वालों के दिल कच्चे हैं उन में अपनापन प्यार की कमी सी है |
किसी बगीचे में रंग -बिरंगे फूलों के बहुत फूलों दरख्त थे उन में लाल और सफ़ेद गुलाब के पौधे भी थे लाल गुलाब का नाम मुन्नू था और सफ़ेद गुलाब का नाम चुन्नू था ,जानते हैं उनकी दोस्ती पूरे बगीचे में मशहूर थी | वहीं बगीचे के कोने में बरगद का एक बहुत बड़ा पेड़ था उस पर एक कोयल रहती थी उस के नीचे वाली डाली पर चिडिया रहती थी
किसी गाँव मे एक लड़का रहता था । जिस का नाम अमीन था । एक दिन अमीन का दिल हुआ के क्यूँ न नदी के किनारे घूमने चला जाए बस यही सोच कर वो नदी किनारे पहुंचा अचानक उस की निगाह नदी किनारे रेत पर पड़ी उस ने देखा के रेत पर पड़ी एक नन्ही मछली रो रही है |
यह कहानी एक ऐसे शहर की है जिस की प्राकृतिक छटा देखते ही बनती है इस शहर का सौंदर्य अत्यंत प्रशंसनीय है इसी शहर का रहने वाला है आकाश जी हां बड़ा भोला सा व्यक्ति मगर समय की धारा और जटिल परिस्थितियों के चलते उसकी शिक्षा अधूरी रह गई थी इसी के साथ दूसरी वजह यह भी रही अकस्मात उसके पिता के निधन ने उसके देखे सारे स्वप्न धूमिल से कर दिए थे।
रात का तीसरा पहर था मगर साहिल चाह कर भी सो नहीं पा रहा था बस बिस्तर पर करवटें बदलते हुए रह रहकर यही सोच रहा था क्या मैं भटक गया हूं? क्या मैं बदल गया हूं? आखिर मेरे अंदर यह परिवर्तन क्यों आया? किसने बदला मुझको? क्या क्या स्कूल ने क्या संगत ने या उन दोस्तों ने जो खुद अंधकार में लीन है किसने आखिर किसने? परंतु आप वापसी का रास्ता मेरे पास बचा मैं तो जीवन की प्रकाश में धारा में खोकर इतना दूर निकल चुका हूं अब वापस कैसे लौटे?
जब तक ग़लतफ़हमियाँ दूर नहीं होंगी, दंगों का सिलसिला शायद रुक नहीं सकता। मुसलमानों को यहाँ के हिन्दू भाइयों से जो संदेह और आशंकाएं हैं उन्हें उनका कोई प्रतिनिधि ही दूर कर सकता है। अलबत्ता मुसलमानों के बारे में जो ग़लतफ़हमियाँ हिन्दू भाइयों को हैं उनके सम्बन्ध में यहाँ कुछ बातें पेश की जा रही हैं। इसी के साथ उनकी कुछ शिकायतों का भी उल्लेख किया जा रहा है, ताकि गम्भीरता से उन पर ग़ौर किया जा सके।
यह किताब हज करनेवालों के लिए लिखी गई है। इसमें इस बात की पूरी कोशिश की गई है कि हज के सभी मक़सद और उसकी हक़ीक़त व रूह के तमाम पहलू, जो क़ुरआन और सुन्नत से साबित हैं, पढ़नेवालों के सामने आ जाएँ, साथ ही उन अमली तदबीरों की भी निशानदेही कर दी गई है जिनको अपनाकर उन मक़सदों को हासिल किया जा सकता है और ये सबकुछ ऐसे ढंग से लिखा गया है कि हज की हक़ीक़त और रूह खुलकर सामने आने के साथ दीन के बुनियादी तक़ाज़े भी पूरी तरह उभरकर सामने आ जाते हैं।
“बेशक मैंने इबराहीम के रास्ते पर रहते हुए यकसू होकर अपना रुख़ उस हस्ती की तरफ़ कर लिया जिसने ज़मीन और आसमानों को पैदा किया और मैं मुशरिक नहीं हूँ। बेशक मेरी नमाज़, मेरी क़ुरबानी, मेरा जीना और मेरा मरना अल्लाह ही के लिए है जो तमाम जहानों का रब है। उसका कोई शरीक नहीं है। मुझे उसी का हुक्म है और सबसे पहले हुक्म माननेवाला मैं हूँ। ऐ अल्लाह, ये तेरे लिए है और तेरा ही दिया हुआ है। "
“ऐ लोगो, अपने प्रभु से डरो जिसने तुमको एक जीव से पैदा किया और उसी से उसका जोड़ा बनाया और उन दोनों से बहुत से पुरुष और स्त्री संसार में फैला दिए। उस अल्लाह से डरो जिसको माध्यम बनाकर तुम एक-दूसरे से अपने हक़ माँगते हो, और नाते-रिश्तों के सम्बन्धों को बिगाड़ने से बचो। निश्चय ही अल्लाह तुम्हें देख रहा है।" (क़ुरआन–4:1)
सोरठा : साईं केरा नाँव, हिया पूर, काया भरी । मुहम्मद रहा न ठाँव, दूसर कोइ न समाइ अब ॥ अर्थ :- साईं (मुहम्मद (सल्ल०)) के नाम से तन एवं हृदय पूर्ण रूप से भर चुका है, मुहम्मद (सल्ल०) के बिना चैन नहीं है, अब हृदय में दूसरा कोई समा भी नहीं सकता ।
“निश्चय ही हमने रसूलों को स्पष्ट प्रमाणों के साथ भेजा और उनपर हमने किताबें उतारीं और न्याय और इंसाफ़ क़ायम करने के लिए तराज़ू दिया, ताकि लोग न्याय और इंसाफ़ पर क़ायम हों।" (क़ुरआन, 57:25) हज़रत उमर (रज़ि.) कहते हैं, “ख़ुदा की क़सम, किसी शख़्स को क़ैद नहीं किया जाएगा जब तक कि न्यायप्रिय लोग उसके अपराधी होने की गवाही न दें।"