शरीअत
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इस्लामी शरीअत का भविष्य और मुस्लिम समाज का सभ्यता मूलक लक्ष्य (शरीअत : लेक्चर# 12)
इस्लामी शरीअत न तो केवल कोई क़ानूनी कोड है और न ही सिर्फ़ इबादत-ओ-रस्मों का संग्रह, बल्कि यह एक सम्पूर्ण सभ्यतागत पैराडाइम है जो मानव-जीवन के हर आयाम—व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और आध्यात्मिक—को प्रकाशित करता है। डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी अपने शरीअत लेक्चर नंबर-12 में इस बात को रेखांकित करते हैं कि इस्लामी शरीअत ने न केवल एक नई सभ्यता को जन्म दिया, बल्कि वह सभ्यता आज भी मानवता के लिए सबसे व्यापक, सन्तुलित और पूर्ण सभ्यता बनी हुई है।यह सभ्यता अपनी असाधारण समावेशी क्षमता (assimilative character) के कारण यूनानी, ईरानी, भारतीय और अन्य संस्कृतियों के सकारात्मक तत्त्वों को अपने में समोकर भी अपनी मूल पहचान और क़ुरआन-सुन्नत के केन्द्र को अटल बनाए रखने में कामयाब रही। लेखक इस्लामी सभ्यता के भविष्य, उसके पुनर्जागरण और मुस्लिम समाज के सभ्यता-मूलक लक्ष्य पर विस्तृत चर्चा करते हैं तथा बताते हैं कि आधुनिक युग में इस पैराडाइम का पुनः उदय ही मानवता का एकमात्र सन्तुलित और न्यायपूर्ण भविष्य हो सकता है।
इस्लामी शरीअत आधुनिक काल में (शरीअत : लेक्चर# 11)
डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी (رحمه الله) का यह ऐतिहासिक लेक्चर (शृंखला का ग्यारहवाँ हिस्सा) चौदहवीं हिजरी शताब्दी से अब तक के मुस्लिम जगत के सबसे कठिन दौर का गहरा विश्लेषण पेश करता है। पश्चिमी उपनिवेशवाद, वैचारिक ठहराव, तक़लीद का बोलबाला, तंज़ीमात की नाक़िस नकल, सेक्युलरिज़्म का हमला, नेशनलिज़्म का ज़हर और उलमा की ज़्यादातर नाकामी – इन सबने मिलकर इस्लामी शरीअत को हाशिए पर पहुँचा दिया। लेकिन लेक्चर सिर्फ़ पतन की कहानी नहीं; यह चौदहवीं शताब्दी के आख़िर में शुरू हुए पुनर्जागरण, फ़िक़्ह के नए संकलन, इस्लामी बैंकिंग, संवैधानिक फ़िक़्ह और सामूहिक इज्तिहाद की नई परम्परा की उम्मीद भी जगाता है। डॉ. ग़ाज़ी साफ़ कहते हैं: अभी भी बहुत कुछ बाक़ी है, लेकिन इस्लामी शरीअत का भविष्य उज्ज्वल है – बशर्ते हम जड़ तक़लीद छोड़ें, आधुनिक चुनौतियों से आँख न चुराएँ और क़ुरआन-सुन्नत के स्रोतों पर नया इज्तिहाद करें।
इल्मे-कलाम अक़ीदे और ईमानियात की ज्ञानपरक व्याख्या एक परिचय (शरीअत : लेक्चर# 10)
इस्लाम में अक़ीदा और ईमान शरीअत का सबसे बुनियादी और मजबूत आधार है। यह वह नींव है जिस पर पूरी इस्लामी इमारत खड़ी है और जिसकी जड़ें पवित्र कुरआन व हदीस में मौजूद हैं। जब इन अक़ाइद को बौद्धिक तर्कों, दलीलों और ज्ञानपरक शैली के साथ संकलित करके पेश किया गया तो इस विद्या को “इल्मे कलाम” का नाम मिला। यह न केवल इस्लामी विचारधारा का एक मौलिक हिस्सा है, बल्कि मुस्लिम बुद्धिजीवियों की मौलिकता और originality का सबसे चमकदार नमूना भी है। आइये जानते हैं कि इल्मे कलाम क्या है, यह कैसे पैदा हुआ और आज के दौर में इसकी ज़रूरत क्यों है।
अक़ीदा और ईमानियात - शरई व्यवस्था का पहला आधार (शरीअत : लेक्चर# 9)
डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी रह. की मशहूर किताब “महाज़रात-ए-शरीअत” के इस लेक्चर में इस्लाम के अक़ीदे को ग़ैर-मुस्लिम धर्मों के डोग्मा और मिथकों से तुलना करते हुए बयान किया गया है। इस्लाम का अक़ीदा बुद्धि और वह्य का संतुलित मेल है, न कि अंधविश्वास या काल्पनिक कहानियाँ। तौहीद, रिसालत और आख़िरत के मौलिक सवालों पर रोशनी डाली गई है। अनुवाद : गुलज़ार सहराई।
तज़किया और एहसान (शरीअत : लेक्चर# 8)
इस लेख में डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी 'तज़किया' (आत्म-शुद्धि) और 'एहसान' (इबादत में उत्कृष्टता) की इस्लामी शिक्षा का गहन विश्लेषण करते हैं। कुरआन और सुन्नत पर आधारित तसव्वुफ़ (सूफ़ीवाद) की ऐतिहासिक यात्रा, उसके मूल सिद्धांत, विचलन और प्रमुख सूफ़ी विद्वानों जैसे इमाम ग़ज़ाली, मुजद्दिद अल्फ़-सानी की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है। अनुवादक गुलज़ार सहराई के नोट्स विचलनों पर महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ जोड़ते हैं। यह लेक्चर शरीअत के आध्यात्मिक आयाम को समझने का एक मौलिक स्रोत है।
तदबीरे-मुदन - राज्य और शासन के सम्बन्ध में शरीअत के निर्देश (शरीअत : लेक्चर# 7)
यह लेख इस्लामी विचारधारा के एक महत्वपूर्ण व्याख्यान का सातवां भाग है, जो 'तदबीरे-मुदन' (राज्यों के प्रबंधन) पर केंद्रित है। डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी द्वारा रचित इस व्याख्यान में शरीअत के दृष्टिकोण से राज्य, शासन और प्रशासन के संबंधों की गहन चर्चा की गई है। लेख तदबीर की अवधारणा को परिभाषित करते हुए व्यावहारिक तत्त्वदर्शन, नैतिकता, परिवार, समाज और राज्य के प्रबंधन पर प्रकाश डालता है। यह इस्लामी चिंतकों की विभिन्न शैलियों (फ़िक़ही, कलामी, दार्शनिक, ऐतिहासिक और साहित्यिक) का विश्लेषण करता है, साथ ही शाह वलीउल्लाह देहलवी जैसे विद्वानों के विचारों को उद्धृत कर राज्य के उत्थान-पतन, इमामत, न्याय, लोकतंत्र और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर विस्तार से चर्चा करता है।
इस्लाम में परिवार की संस्था और उसका महत्त्व (शरीअत : लेक्चर# 6)
इस्लामी शरीअत ने व्यक्ति के बाद सबसे अधिक महत्व परिवार की संस्था को दिया है। यह लेख इस्लामी शरीअत के दृष्टिकोण से परिवार की मौलिक भूमिका, उसके गठन, अधिकारों, दायित्वों और समाजिक स्थिरता में योगदान पर प्रकाश डालता है। डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी द्वारा रचित यह लेक्चर (शरीअत लैक्चर सीरीज़ #6) परिवार को मानव विकास की पहली ईंट बताते हुए, कुरआन, हदीस और इस्लामी विचारकों के संदर्भों से उसके संरक्षण की आवश्यकता पर बल देता है। अनुवाद: गुलज़ार सहराई।
शरीअत का अभीष्ट व्यक्ति : इस्लामी शरीअत और व्यक्ति का सुधार एवं प्रशिक्षण (लेक्चर नम्बर-5)
यह लेख इस्लामी शरीअत के मूल उद्देश्य पर केंद्रित है, जो व्यक्ति के समग्र सुधार और प्रशिक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी द्वारा रचित इस व्याख्यान (लेक्चर नम्बर-5) में, शरीअत को व्यक्ति के नैतिक, आध्यात्मिक, बौद्धिक और शारीरिक विकास का आधार बताया गया है। पवित्र कुरआन की आयतों और इस्लामी विद्वानों के संदर्भों के माध्यम से, लेख व्यक्ति को आदर्श इंसान बनाने की प्रक्रिया, उसके कर्तव्य, कमजोरियां, और शरीअत की व्यापक योजना को विस्तार से समझाता है। अनुवादक गुलज़ार सहराई ने इसे सरल हिंदी में प्रस्तुत किया है, जो पाठकों को इस्लामी दर्शन की गहराई से परिचित कराता है।
नैतिकता और नैतिक संस्कृति (शरीअत : लेक्चर # 4)
इस्लामी शरीअत का हर विद्यार्थी इस वास्तविकता से पूरे तौर पर परिचित है कि शरीअत के आदेशों का आधार अक़ीदों (धार्मिक अवधारणाओं) और आध्यात्मिक मूल्यों पर है। शरीअत के तमाम सामूहिक नियम, क़ानूनी आदेश, व्यावहारिक निर्देश और सांस्कृतिक शिक्षाओं के हर-हर अंग का अक़ीदों और आध्यात्मिक पवित्रता से प्रत्यक्ष रूप से और गहरा सम्बन्ध है। एक पश्चिमी विद्वान ने इस सम्बन्ध को स्पष्ट करते हुए कहा है कि शरीअत ने नैतिक सिद्धान्तों और आध्यात्मिक निर्देशों को क़ानूनी रूप दे दिया है। इस्लामी शरीअत में क़ानून और नैतिकता एक ही वास्तविकता के दो पहलू या एक ही सिक्के के दो रुख़ हैं। इस्लाम का हर क़ानून किसी-न-किसी नैतिक उद्देश्य या आध्यात्मिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए है। इसी तरह इस्लाम की शिक्षा में कोई नैतिक निर्देश ऐसा नहीं दिया गया जिसपर कार्यान्वयन के लिए व्यावहारिक नियम उपलब्ध न किए गए हों। शरीअत के पूरे पुस्तक भंडार में कोई ऐसा इशारा नहीं मिलता जिसके अनुसार क़ानून और फ़िक्ह से असम्बद्ध रहकर आध्यात्मिक दर्जे प्राप्त किए जा सकते हों।
मुसलमान और मुस्लिम समाज (शरीअत : लेक्चर # 3)
आज की चर्चा का शीर्षक है “मुसलमान और मुस्लिम समाज”। मुस्लिम समाज को आसान भाषा में मुस्लिम समाज या मुस्लिम बिरादरी भी कहा जा सकता है। पवित्र क़ुरआन के अनुसार इस्लाम का सबसे बड़ा और सर्वप्रथम सामूहिक लक्ष्य मुस्लिम समाज का गठन है। पवित्र क़ुरआन में जगह-जगह मुसलमानों को मुस्लिम समाज से जुड़े रहने का, मुस्लिम समाज के उद्देश्यों और लक्ष्य को पूरा करने का उपदेश और निर्देश दिया गया है। पवित्र क़ुरआन से यह भी पता चलता है कि मुस्लिम समाज के स्थायित्व की दुआ और भविष्यवाणी हज़ारों वर्ष पहले हज़रत इबराहीम (अलैहिस्सलाम) और हज़रत इस्माईल (अलैहिस्सलाम) ने की थी। यह उस समय की बात है जब वह मुस्लिम समाज के लिए एक महसूस और आभासी आध्यात्मिक केन्द्र यानी बैतुल्लाह (काबा) का निर्माण कर रहे थे।
इस्लामी शरीअत : विशिष्टताएँ, उद्देश्य और तत्त्वदर्शिता (शरीअत: लेक्चर #2)
इस व्याख्यान में शरीअत के मूलभूत सिद्धांतों और उनके व्यावहारिक अनुप्रयोग पर विस्तार से चर्चा की गई है। इसमें बताया गया है कि इस्लामी शरीअत केवल इबादत और व्यक्तिगत जीवन तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन को भी व्यवस्थित करती है। शरीअत की आधारशिला कुरआन और सुन्नत हैं, जबकि इज्मा और क़ियास इसके सहायक स्रोत हैं। इसका मुख्य उद्देश्य मानव जीवन में न्याय स्थापित करना, संतुलन बनाए रखना और भलाई को बढ़ावा देना है।व्याख्यान में यह स्पष्ट किया गया है कि शरीअत को समझने और लागू करने के लिए विद्वानों की सही मार्गदर्शन आवश्यक है, ताकि लोग अतिरेक या कमी से बच सकें। मुसलमानों का दायित्व है कि वे अपनी व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन व्यवस्था को शरीअत के अनुरूप ढालें। इसमें यह भी बताया गया है कि शरीअत केवल मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि पूरी मानवता के कल्याण का संदेश देती है। सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता, नैतिकता और मानव सुधार सभी शरीअत के दायरे में आते हैं। यह व्याख्यान यह संदेश देता है कि शरीअत एक रहमत है, जो इंसान को अल्लाह की रज़ा और आख़िरत की सफलता तक ले जाती है।
इस्लामी शरीअत : एक परिचय (शरीअत: लेक्चर #1)
यह लेक्चर इस्लामी शरीअत का एक व्यापक परिचय है, जिसमें डॉ. महमूद अहमद ग़ाज़ी आधुनिक काल में इस्लाम की शब्दावलियों और शिक्षाओं के बारे में फैली ग़लतफ़हमियों पर चर्चा करते हैं। यह व्याख्यान शरीअत की उत्पत्ति, स्रोत, उद्देश्य, विशेषताएँ और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से उसके संबंध को स्पष्ट करता है, साथ ही ऐतिहासिक और राजनैतिक संदर्भों का विश्लेषण करता है। यह शरीअत को एक जीवन-शैली के रूप में प्रस्तुत करता है जो अल्लाह की वह्य और पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की शिक्षाओं पर आधारित है।
इस्लाम में औरत का स्थान और मुस्लिम पर्सनल लॉ पर एतिराज़ात की हक़ीक़त
'मुस्लिम पर्सनल लॉ' एक ऐसा क़ानून है जो इस्लामी जीवन-व्यवस्था पर आधारित है। एक लम्बे समय से भारत में इसे विवादित मुद्दा बनाया जाता रहा है और माँग की जाती रही है कि इसे बदलकर देश में 'समान सिवल कोड' लागू कर दिया जाए। मुसलमान इस क़ानून को बदलने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि यह इस्लामी जीवन-व्यवस्था पर आधारित है। देश के बहुसंख्यक समुदाय के नेता सरकारी ज़िम्मेदारों की मदद से इसमें परिवर्तन की माँग करते रहते हैं। कभी-कभी कोई नेशनलिस्ट मुसलमान भी उसी सुर-में-सुर मिला बैठता है, और इस तरह यह मुद्दा दिन-प्रतिदिन महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है।इस पुस्तक में इसी समस्या पर वार्ता की गई है।
इस्लामी शरीअ़त
हम अल्लाह की इबादत किस तरह करें? कैसे रहें-सहें? लेन-देन कैसे करें? एक आदमी के दूसरे आदमी पर क्या हक़ हैं? क्या हराम (अवैध) है? क्या हलाल (वैध) है? किस चीज़ को हम किस हद तक बरत सकते हैं और किस तरह बरत सकते हैं? ये और इसी तरह की तमाम बातें हमें शरीअ़त से मालूम होती हैं। इस्लामी शरीअ़त की बुनियाद क़ुरआन और सुन्नत है। क़ुरआन अल्लाह का कलाम है और सुन्नत वह तरीक़ा है जो नबी (सल्ललाहु अलैहि व सल्लम) से हमको मिला है। नबी (सल्ललाहु अलैहि व सल्लम) का सारा जीवन क़ुरआन पेश करने, समझाने और उसपर अमल करने में बीता। नबी (सल्ललाहु अलैहि व सल्लम) का यही बताना, समझाना और अमल करना सुन्नत कहलाता है। हमारे बहुत-से बुज़ुर्गों और आलिमों ने क़ुरआन और सुन्नत से वे तमाम बातें चुन लीं जिनकी मदद से हम दीन की बातों पर अमल कर सकें।
परदा (इस्लाम में परदा और औरत की हैसियत)
यह बीसवीं सदी के महान विद्वान और जमाअत-इस्लामी के संस्थापक मौलाना सय्यद अबुलआला मौदूदी की महान कृति 'पर्दा’ का हिन्दी अनुवाद है। इस में मौलाना मौदूदी ने समाज में महिला के सही स्थान को स्पष्ट किया है।लेखक ने तर्कों और प्रमाणों के आधार है यह बताने की कोशिश की है कि औरत के लिए पर्दा क्यों ज़रूरी है।इतिहास के उदाहरण से यह बात बताई गई है कि क़ौमों के विकास में महिलाओं की क्या भूमिका होती है।लेखक ने इस पर भी चर्चा की है कि इस्लाम में औरतों को कितना ऊंचा मक़ाम दिया गया है और पर्दा औरत की हिफ़ाज़त के लिए कितना अहम है

