Hindi Islam
Hindi Islam
×

Type to start your search

आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)

आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)

हमूदा अब्दुल आती

अनुवादक: मु.ह. क़ादिरी

प्रकाशक: मर्कज़ी मक्तबा इस्लामी (MMI) पब्लिशर्स

अल्लाह रहमान, रहीम के नाम से

इस्लाम के मानने वालों की आस्था है कि हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अल्लाह के अन्तिम रसूल हैं। इस से बहुत सारे लोगों को ग़लतफ़हमी है, अतः इसका स्पष्टीकरण ज़रूरी है। इस आस्था का किसी भी प्रकार यह अर्थ नहीं होता कि अल्लाह ने अपनी दया-कृपा का द्वार बन्द कर दिया है, या अब उसने अवकाश ग्रहण कर लिया है। यह आस्था किसी भी महान धार्मिक व्यक्तित्व के बनने-संवरने में रुकावट खड़ी नहीं करती और न महान आध्यात्मिक नेता के उभरने को रोकती है। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि सारी दुनिया को नज़रअंदाज़ करके अल्लाह ने अरब क़ौम में से हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को चुनकर अरब क़ौम पर महान और अन्तिम उपकार किया है। अल्लाह किसी क़ौम, नस्ल या युग से पक्षपात नहीं करता। उसका कृपा-द्वार हर दम खुला है और सदा के लिए उनकी पहुंच के भीतर है जो उसको प्राप्त करने की खोज में रहते हैं। वह तीन प्रकार से इन्सानों को संबोधित करता है:-

1.अन्तः प्रेरणा द्वारा जो अल्लाह धार्मिक व्यक्तियों के मन या मस्तिष्क में सुझाव या विचार के रूप में डाल देता है।

2.किसी पर्दे के पीछे से दृश्य या दर्शन के रूप में जब योग्यतम व्यक्ति नींद या आलमेजज़्ब (आत्मविस्मृति) में हो, और-

3. ईश्वरीय संदेशवाहक हज़रत जिब्रील द्वारा प्रत्यक्ष ईश्वरीय संदेश के साथ, जिन्हें ईश्वर के चुने दूत तक पहुँचाने के लिए अवतरित किया जाता है। (क़ुरआन 42 : 51)

यह आख़िरी रूप उच्च कोटि का है और इसी रूप में क़ुरआन हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर अवतरित हुआ। यह सीमित है केवल ईश-दूतों तक, जिनमें हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अन्तिम हैं और ईश दूतत्व की अन्तिम कड़ी हैं। लेकिन इससे पहले उपरोक्त प्रथम और द्वितीय रूपों के मौजूद होने का इन्कार नहीं होता, मगर यह कि जिसे अल्लाह संबोधित करना चाहे। हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर ईश दुतत्व का सिलसिला समाप्त कर के अल्लाह ने न तो मानव-जाति के साथ अपना सम्बन्ध विच्छेद किया है और न मानव-जाति के प्रति अपनी दिलचस्पी समाप्त की है। ऐसा भी नहीं है कि मानव-जाति को ख़ुदा की तलाश से रोक दिया गया हो या उसकी अन्तः प्रेरणा की राह में रुकावटें खड़ी कर दी गयी हैं, बल्कि इसके विपरीत हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को ईश दूतत्व की आख़िरी कड़ी और क़ुरआन को ईश वाणी का अन्तिम संस्करण क़रार देकर अल्लाह ने मानव-जाति के बीच संवाद-संचार का एक स्थायी माध्यम स्थापित किया है, मानो यह मार्ग दर्शन का सदा चमकने वाला प्रकाश स्तम्भ है जो स्थापित कर दिया गया है।

इन तर्कों के अलावा और दूसरे तर्क भी हैं जिनसे पता चलता है कि हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ख़ुदा के अन्तिम पैग़म्बर हैं। उनमें से कुछ का उल्लेख यहाँ असंगत न होगाः

1. क़ुरआन खुले शब्दों में एलान करता है कि हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ख़ुदा के पैग़म्बर के रूप में सम्पूर्ण मानव-जाति की ओर भेजे गये हैं, उस ख़ुदा के पैग़म्बर के रूप में जिस की बादशाही धरती और आसमानों पर है। (7: 158) वह यह भी ऐलान करता है कि हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तमाम जीवधारियों, मानव तथा जीव-जन्तु की ओर समान रूप से 'रहमत' बना कर भेजे गए हैं। (21 : 107) और यह कि ख़ुदा के पैग़म्बर और पैग़म्बरों की आख़िरी कड़ी हैं। (33:40) क़ुरआन ईश-वाणी है और जो कुछ भी वह कहता है ईश्वरीय सत्य है, जिस पर इस्लाम को मानने वाला हर एक व्यक्ति ईमान रखता है और जिस पर हर एक आदमी को चिन्तन करना ही चाहिए। हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का पैग़ाम मात्र राष्ट्रीय पुनरुत्थान या कोई सामूहिक इजारादारी या ग़ुलामी और अत्याचार से सामयिक रूप से मुक्ति दिलाने के समान नहीं है, और न यह 'ऐतिहासिक क्रम से असम्बद्ध' तथा 'आकस्मिक परिवर्तन' की बात ही है। हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का पैग़ाम एक सार्वभौम, पुनरुत्थान, एक सार्वजनिक 'रहमत' क्षेत्रीयता से उच्च और सदा सर्वदा के लिए बाक़ी रहने वाला आध्यात्मिक ज्ञान था और निस्संदेह अब भी है। यह पिछले ईश्वरीय संदेशों का विकसित रूप है तथा सभी पहले के ईश्वरीय ग्रन्थों का संतुलित समावेश है, यह रंग, नस्ल, युग तथा सारे क्षेत्रीय भेद-भाव की हदबंदियों को मटियामेट कर देता है। यह सभी युग और ज़माने के इंसानों को सम्बोधित करता है। यह तो बस वही कुछ है जो मानव की अपनी आवश्यकता है।

2. इस्लाम धर्मावलम्बियों का विश्वास कि हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ख़ुदा के आख़िरी नबी हैं, इसलिए है कि क़ुरआन इसका गवाह है। हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का संदेश अपने आप में एक सच्चे, सार्वभौम तथा निर्णायक आस्था की उच्चतम विशेषताएं रखता है।

3. हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने स्वयं ही कहा कि वह अल्लाह के आख़िरी पैग़म्बर थे। एक इस्लाम धर्मावलम्बी अथवा कोई भी अन्य धर्मावलम्बी, इस कथन की सत्यता पर शंका व्यक्त नहीं कर सकता, इसलिये कि हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का पूरा जीवन सच्चाई तथा ईमानदारी से परिपूर्ण था, न केवल इस्लाम धर्मावलंबियों की नज़र में, बल्कि उनके कट्टर से कट्टर शत्रुओं की दृष्टि में भी उनका चरित्र, उनकी आध्यात्मिक सम्पूर्णता और उनका दुनिया के सुधार का आन्दोलन मानव इतिहास में अद्वितीय है। इतिहास हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के समान किसी व्यक्ति को पेश नहीं करता और न भविष्य में ही इसकी आशा है। उन्होंने कहा कि वह ख़ुदा के आख़िरी पैग़म्बर हैं, क्योंकि यह ईश्वरीय सत्य था। इसलिए नहीं कि वह किसी व्यक्तिगत लाभ के इच्छुक थे। उनका विरोध भी हुआ, परन्तु वह विचलित न हुये, विरोधियों पर उन्हें विजय मिली, मगर विजय ने उन्हें बिगाड़ा नहीं, सफलताओं ने उनकी उच्चस्तरीय नैतिकता को कमज़ोर नहीं किया और न सत्ता पाकर ही वह पथ भ्रष्ट हुए। उनका व्यक्तित्व इन बातों से बहुत उच्च था। उनके शब्द ज्ञान व ईमान का प्रकाश स्तम्भ बन कर आज भी इंसानों का पथ-प्रदर्शन कर रहे हैं।

हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ही एक ऐसे पैग़म्बर हैं जो अपने जीवन काल में ही अपने मिशन में सफल हुये, तथा जिन्होंने अपने दायित्व को पूरा किया। आपके जीवन में ही क़ुरआन ने एलान कर दिया था कि इस्लाम धर्म पूरा हो गया, इस्लाम के मानने वालों पर ख़ुदा की नेमत (कृपा) पूरी हो चुकी है। तथा वह्य की सुरक्षा का प्रबन्ध कर दिया गया है। (क़ुरआन 5:3, 10:9)

जब आपकी मृत्यु हुई इस्लाम धर्म पूरा हो चुका था और इस्लाम पर ईमान लाने वालों की जमाअत सुदृढ़ हो चुकी थी। क़ुरआन का संग्रह उनके जीवन काल में ही पूरा हो चुका था और पूरा क़ुरआन अपने मूल रूप में ही सुरक्षित कर लिया गया था, तात्पर्य यह है कि हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) द्वारा ईश्वरीय धर्म, सैद्धान्तिक तथा व्याहारिक क्षेत्रों में सम्पूर्ण हो चुका था तथा ईश्वरीय राज्य धरती पर क़ायम किया जा चुका था।

हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के मिशन, उनके आदर्श तथा उनकी उपलब्धियों ने सिद्ध कर दिया है कि ईश्वरीय राज्य की स्थापना कल्पना मात्र नहीं है जो केवल परलोक से संबंधित हो, बल्कि इसका इस संसार से भी पूरा-पूरा संबंध है। हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के हाथों इस्लामी राज्य स्थापित हुआ और उन्नति के शिखर पर पहुंचा और जब कभी भी इसके सच्चे तथा निष्ठावान अनुयायी मौजूद होंगे, इस्लामी राज्य स्थापित किया जा सकता है। अतः यदि कोई व्यक्ति नुबूवत के कमाल को पहुंचा हो तो वह हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सिवा कौन हो सकता था? और यदि कोई पुस्तक वह्य के समापन के यथानुकूल हो तो वह क़ुरआन के सिवा कौन सा ग्रन्थ हो सकता है? हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के मिशन की सफलता तथा उनके जीवन काल में ही सम्पूर्ण क़ुरआन का प्रमाणिक संग्रह, इस बात का प्रमाण है कि हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ख़ुदा के आख़िरी पैग़म्बर थे। अतः इस विषय में किसी भी प्रकार का सन्देह न केवल असंगत है, बल्कि बेबुनियाद भी है।

4. अल्लाह का यह एलान कि हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ख़ुदा के आख़िरी पैग़म्बर हैं, क़ुरआन की प्रमाणिकता, आप की सम्पूर्ण तथा अद्वितीय सफलता, और इस्लाम की सार्वभौमिकता तथा क़ुरआन की शिक्षाओं का समान रूप से हर युग, हर परिस्थिति और हर व्यक्ति के लिये उपयुक्त होने से सिद्ध है। यही वह धर्म है जो रंग, नस्ल, युग, सम्पत्ति तथा प्रतिष्ठा की सारी हद-बंदियों को मलियामेट करता है। यही वह धर्म है जो सम्पूर्ण मानव-जाति में समता तथा भाई-चारा, आज़ादी तथा मान-मर्यादा, शान्ति तथा सम्मान, मार्गदर्शन तथा मुक्ति का आश्वासन देता है। यह ईश्वरीय धर्म का मूल रूप है तथा एक प्रकार की ईश्वरीय सहायता है जो ईश्वर इतिहास के आरंभ से ही मानव की हिदायत के लिये देता आया है। धर्म का विकास हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तथा क़ुरआन के अवतरण के बाद अपने चरम बिंदु को पहुंच चुका है। परन्तु इस कथन का मतलब यह कदापि नहीं है कि इतिहास का समापन हो चुका है या मानव को अब ईश्वरीय मार्गदर्शन की आवश्यकता बाक़ी नहीं रही। सच तो यह है कि यह केवल एक युग का आगमन है जिसमें मानव की आवश्यकता के अनुसार ईश्वरीय मार्गदर्शन की व्यावहारिक आदर्शों सहित पर्याप्त मात्रा में व्यवस्था है। यह ईश्वरीय मार्गदर्शन मूलतः क़ुरआन में मौजूद है और उसका व्यावहारिक आदर्श हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के व्यक्तित्व में मौजूद है। यदि मान भी लिया जाए कि किसी नये पैग़म्बर या किसी नयी ईश-वाणी का अवतरण होना है तो प्रश्न उठता है कि ईश-दुतत्व के गुण तथा क़ुरआन की सत्यता की जो मिसाल क़ायम हो चुकी है उसमें क्या वृद्धि होगी? यदि इसका उद्देश्य ईशवाणी की सत्यता को सुरक्षित रखना हो, तो क़ुरआन द्वारा सुरक्षित किया जा चुका है। या यदि इसका उद्देश्य यह हो कि ईश्वरीय विधि को संसार में कार्यान्वित किया जा सके, अथवा ईश्वरीय राज्य की स्थापना की जा सके, तो इस बात पर इतिहास गवाह है कि हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने पूरी तरह इस कार्य को कर दिखाया है और यदि इस का उद्देश्य इंसान को ख़ुदा की तरफ़ से परिचित कराना और जीवन बिताने का सीधा रास्ता दिखाना है तो इसका भी व्यावहारिक आदर्श हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तथा क़ुरआन पेश कर चुका है। मानव की आवश्यकता एक नये पैग़म्बर या नयी ईश-वाणी का अवतरण नहीं है, बल्कि धर्म के प्रति निष्क्रियता (बेहिसी) से जगाना है तथा उसकी सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि वह जागे, मस्तिष्क-पट खोले और मन की धड़कनें तेज़ करे। उसकी ज़रूरत इसी से पूरी हो सकती है कि जो ग्रन्थ उपलब्ध हैं उन्हीं पर मनन-चिन्तन करे, मौजूद साधनों का उपयोग करे और इस्लाम के ख़त्म न होने वाले ज्ञान-भंडारों से लाभ उठाए। जिसने पिछले तमाम ग्रन्थों की शुद्ध शिक्षाओं को अपने में जमा कर लिया है।

5. अल्लाह ने ऐलान किया कि हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अन्तिम ईश-दूत होंगे और इसलिये वह हुये। हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से पूर्व किसी भी ईश-दूत ने इतने कारनामे अंजाम नहीं दिये जितना कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने। उनके पश्चात जिस किसी ने भी ईश-दूतत्व का दावा किया, उसने आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की तुलना में कोई महत्वपूर्ण, उल्लेखनीय कार्य नहीं किया। फिर भी यह ईश्वरीय एलान उन महान ऐतिहासिक घटनाओं की पेशगोई था, जो बाद में घटित हुयीं। यह मानव के लिये एक शुभ सूचना थी कि वह अब बौद्धिक-प्रौढ़ता तथा आध्यात्मिक बुलंदियों की मंज़िल में दाख़िल हो गया है कि अब नये ईश-दूत तथा नयी ईश-वाणी के बिना ही अपने आप पर भरोसा करके तथा हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) और उनके पहले के ईश-दूतों और उन पर अवतरित ईश-वाणियों के अमूल्य भंडारों से सहायता लेकर ही उसे काम करना है। यह इस हक़ीक़त की पूर्व घोषणा थी कि संसार की सभी संस्कृतियाँ, जातियां तथा क्षेत्र एक दूसरे के बहुत निकट हो जायेंगे, जहाँ मानवता केवल एक ही सार्वभौम धर्म इस्लाम में भली-भांति जुड़ जायेगी, जहां अल्लाह को उसका उचित स्थान प्राप्त होगा और इंसान अपनी हैसियत पहचानेगा। यह इस बात की बहुत बड़ी गवाही है कि ज्ञान विकसित हो चुका है। मानसिक उपलब्धियां मानव को ईश्वर का सान्निध्य प्राप्त करा सकेंगी। यह एक सच्चाई है कि अगर इंसान अपने विकसित ज्ञान और अपनी पूर्ण मानसिक शक्ति को क़ुरआन की आध्यात्मिक तथा नैतिक शिक्षाओं से जोड़ता तो वह ईश्वर की मारफ़त प्राप्त करने में तथा अपने आप को ईश्वरीय नियमों के प्रति समर्पित करने में कभी नाकाम नहीं हो सकता।

हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर ख़त्म ईश-दूतत्व का ऐतिहासिक युग मानव को यह सीख देता है कि वह अपनी प्रेरणा से साइंस को इसका अवसर प्रदान करे कि वह सुचारू रूप से कार्य करे और ईश्वर के विशाल साम्राज्य में अपनी खोज जारी रखे और बुद्धि को गतिमान बनाये रखे। इस्लाम के स्वभाव में इतनी लचक और इतनी व्यावहारिकता है कि वह हर नयी स्थिति का मुक़ाबला कर सकता है। क़ुरआन का स्वभाव इतना सार्वभौमिक तथा सार्वकालिक है कि उससे पथ-प्रदर्शन प्राप्त करने में किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं है। हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के संदेश का स्वभाव भी कुछ ऐसा है कि उससे सभी लोग और सभी नस्लें लाभ उठा सकती हैं। हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) न जातीय लीडर थे, न राष्ट्रीय मुक्ति दाता, बल्कि वह एक ऐतिहासिक विभूति थे और हैं। साथ ही अल्लाह की मारफ़त का सर्वश्रेष्ठ आदर्श थे। उनके मार्ग दर्शन में प्रत्येक व्यक्ति बहुत कुछ सीख सकता है। नैतिक मूल्यों का पालन करने की बहुत सी मिसालें हासिल कर सकता है और सच तो यह है कि हर युग की हर नस्ल आपके आदर्शों में अपनी सोची हुई आशाओं को साकार कर सकती है।

(E-Mail: HindiIslamMail@gmail.com Facebook: Hindi Islam, Twitter: HindiIslam1, YouTube: HindiIslamTv)  

LEAVE A REPLY

Recent posts

  • इस्लाम के पैग़म्बर, हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)

    इस्लाम के पैग़म्बर, हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम)

    16 March 2024
  • प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) कैसे थे?

    प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) कैसे थे?

    01 July 2022
  • क्या पैग़म्बर की फ़रमाँबरदारी ज़रूरी नहीं?

    क्या पैग़म्बर की फ़रमाँबरदारी ज़रूरी नहीं?

    01 July 2022
  • हमारे रसूले-पाक (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)

    हमारे रसूले-पाक (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)

    01 July 2022
  • जीवनी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम

    जीवनी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम

    28 June 2022
  • जगत्-गुरु (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)

    जगत्-गुरु (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)

    16 June 2022