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अनुवाद अरबी से उर्दू: शेख़ मुहम्मद फारूक खान अनुवाद उर्दू से हिंदी: डा. मुहम्मद अहमद

कोरोना महामारी ने विश्व में एक क़हर बरपा कर रखा है। 200 से ऊपर देशों में इसका प्रभाव हुआ मगर कई बड़े देश और वहां के रहने वाले इसके ख़ास शिकार हुए हैं।

कोरोना वायरस संक्रमण के मामले में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर आ गया है। वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेडरोस अदनाम गै़बरियसस ने चेतावनी देते हुए कहा है

मनुष्यों के लिए किसी जीवन-पद्धति पर विश्वास, अनुसरण और व्यवहार बहुत महत्वपूर्ण हैं। यह उन्हें जीवन का लक्ष्य और उद्देश्य देती है और उनके जीवन को सकारात्मक तरीक़े से बदल देती है।

इस्लाम की शुरुआत उसी वक़्त से है, जब से इंसान की शुरुआत हुई है। इस्लाम के मायने हैं, ‘‘ख़ुदा के हुक्म का पालन''। और इस तरह यह इंसान का पैदाइशी धर्म है। क्योंकि ख़ुदा ही इंसान का पैदा करने वाला और पालने वाला है इंसान का अस्ल काम यही है कि वह अपने पैदा करने वाले के हुक्म का पालन करे। जिस दिन ख़ुदा ने सब से पहले इंसान यानी हज़रत आदम और उन की बीवी, हज़रत हव्वा को ज़मीन पर उतारा उसी दिन उसने उन्हें बता दिया कि देखो: ‘‘तुम मेरे बन्दे हो और मैं तुम्हारा मालिक हूँ। तुम्हारे लिए सही तरीक़ा यह है कि तुम मेरे बताये हुए रास्ते पर चलो।

जयपुर राज-महल में चल रहे एक विशेष कार्यक्रम में 11 जून 1971 ई0 की रात में इस्लाम का परिचय कराने हेतु यह निबन्ध प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में गणमान्य जनों के अतिरिक्त स्वंय राजमाता गायत्री देवी भी उपस्थित थीं।

आख़िरत की मुक्ति और कल्याण के सम्बन्ध में धर्मो का सामान्य मत यह है कि इस संसार से विमुख होकर पुर्णतः एकांत ग्रहण कर लिया जाए और दुनिया के समस्त आस्वादनों और कामनाओं से अपने आप को मुक्त करके जंगलों, पहाड़ों और गुफाओं में जीवन व्यतीत किया जाए। लेकिन इस्लाम दुनिया में रहने और उसकी नेमतों से लाभान्वित होने को पारलौकिक मोक्ष की प्राप्ति में कोई बाधा नहीं समझता, बल्कि इस्लाम तो आया ही इसीलिए है कि वह मानव को दुनिया में रहना सिखाए।

मानव जाति को ऐसे मार्गदर्शन और सिद्धांतों की आवश्यकता है, जिससे कि वह अपने व्यक्तिगत व सामूहिक जीनव का निर्माण कर सके और अपना जीवन सुखमय एवं शान्तिपूर्वक व्यतीत करें और साथ ही साथ उसका इस प्रकार सर्वांगीण विकास हो कि उसके भौतिक एवं आर्थिक जीवन और आध्यात्मिक एवं नैतिक पहलुओं के बीच आपसी टकराव न हो और न ही संतुलन बिगड़े।

वही अकेला और यह समस्त कार्य वह ‘अकेले' ही कर रहा है। इसका प्रमाण वह अति उत्तम समन्वय है जो प्रकृति में पाया जाता है। समुद्र के पानी का बादलों के रूप में उठना, इन बादलों का हवाओं द्वारा धरती के विभिन्न भागों तक पहुंचना, फिर वहाँ वर्षा होना और इसी प्रकार दूसरी अनेक प्रक्रियाएँ जिस समन्वित ढंग से संपन्न हो रही हैं वह ईश्वर के एक होने पर दलील हैं। कालेज के कई प्रधानचार्य, किसी फ़ैक्ट्री के कई मुख्य प्रबंधक यदि संभव नहीं हैं, तो इस सृष्टि के कई ईश्वर कैसे संभव हैं? ईश्वर के अस्तित्व में संदेह करना अथवा उसके अधिकारों में किसी दूसरे/दूसरों को साझी ठहराता न तो तर्कसंगत है और न ही न्यायसंगत।

सुल्तान अहमद इस्लाही स्वतंत्रता एवं समानता के ध्वजावाहक वर्तमान भारत के लिए जिन समस्याओं को उसके माथे का कलंक घोषित किया जा सकता है उनमें से एक समस्या बंधुआ मज़दूरी की है। जिसके कारण न जाने कितने आज़ाद इंसानों के इरादे, क्षमता एवं जीने के अधिकार को कुछ स्वेच्छाचारियों और दौलत के पुजारियों की बलिदेवी पर भेंट चढ़ा दिया जाता है और एक बेसहारा इंसान जिसकी जीवन-निधि केवल उसकी मेहनत-मज़दूरी करने की योग्यता होती है, उसे कुछ साहूकारों के हाथों गिरवी रख कर उसे जीवन भर के लिए अभावग्रस्त और अर्ध-ग़ुलामों का जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

आज बहुत-सी समस्याओं की असल वजह एक-दूसरे के बारे में सही जानकारी का न होना है। यह बड़े दुख की बात है कि जानकारी हासिल करने के इतने अधिक संसाधन मौजूद होते हुए भी हम सभ्य एवं शिक्षित कहे जानेवाले लोग परस्पर एक-दूसरे के बारे में अंधरे में रहते हैं। जानकारी न होने और द्वेष के कारण ऐसा भी होता है कि मुनष्य ऐसी बात का दुश्मन हो जाता है जो वास्तव में उसकी भलाई और कल्याण की है। ऐसा ही कुछ इस्लाम और उसकी शिक्षाओं के साथ हुआ है और बराबर हो रहा है।

बात हज़रत मुहम्मद (सल्लo) की है। हज़रत मुहम्मद जिन्हें दुनिया भर के मुसलमान ईश्वर का आख़िरी पैग़म्बर मानते हैं। दूसरे लोग उन्हें सिर्फ़ मुसलमानों का पैग़म्बर समझते हैं। क़ुरआन से और स्वयं हज़रत मुहम्मद (सल्लo) की बातों से यही पता चलता है कि वे सारे संसार के लिए भेजे गये थे। उनका जन्म अरब देश के नगर मक्का में हुआ था, उनकी बातें सर्व-प्रथम अरबों ने सुनीं परन्तु वे बातें केवल अरबों के लिए नहीं थीं। उनकी शिक्षा तो समस्त मानव-जाति के लिए है। उनका जन्म 571 ई0 में हुआ था, अब तक लगभग 1450 वर्ष बीत गये पर उनकी शिक्षा सुरक्षित है। पूरी मौजूद है। हमारी धरती का कोई भू-भाग भी मुहम्मद (सल्लo) के मानने वालों से ख़ाली नहीं है।

दुर्भाग्य से मध्यकाल और आधुनिक काल के भारतीय इतिहास की घटनाओं एवं चरित्रों को इस प्रकार तोड़-मरोड़ कर मनगढंत अंदाज़ में पेश किया जाता रहा है कि झूठ ही ईश्वरीय आदेश की सच्चाई की तरह स्वीकार किया जाने लगा, और उनको दोषी ठहराया जाने लगा जो तथ्य और मनगढ़ंत बातों में अन्तर करते हैं। आज भी साम्प्रदायिक एवं स्वार्थी तत्व इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने और उसे ग़लत रंग देने में लगे हुए है।

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