HindiIslam
हम हहिंदी भाषा को इस्लामी साहहत्य से समृद् ध कर रहे हैं
×

Type to start your search

सत्य की खोज

पुस्तिका: सत्य की खोज लेखक : मुहम्मद इक़बाल मुल्ला

बच्चो की तरबियत और माँ बाप की जिम्मेदारिया

पुस्तिका: बच्चो की तरबियत और माँ बाप की जिम्मेदारिया

धर्म का वास्तविक स्वरुप

“उसी ईश्वर ने दिन और रात को रचा। निमिष आदि से युक्त विश्व का वही अधिपति है। पूर्व के अनुसार ही उसने सूर्य, चद्र, स्वर्गलोक, पृथ्वी और अतरिक्ष को रचा।” “वह पूरब, पश्चिम, ऊपर और नीचे सब दिशाओं में है।” “वह एक है जो मनुष्यों का स्वामी होकर प्रकट हुआ है, और जो सब देखने वाला है, उसी का स्तवन (अर्थात् पूजा एवं प्रशांसा) करो।” “तुम किसी दूसरे देव की स्तुति मत करो। किसी दूसरे देव की स्तुति करके दुखी मत होओ।” “वह एक है, दयालु हविदाता (दानी) को धन देने में सामर्थ्य है। (अर्थात धर्म का देव वही है।)” -हिंदू शास्त्र में तौहीद और इस्लाम की शिक्छाएं

पवित्र क़ुरान एक नज़र में

मनुष्य अपने-आप में पूर्ण नहीं है। वह वास्तव में सृष्टि के समस्त रहस्यों को हल करने में सक्षम नहीं है। वह स्वयं अपने व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन की सभी समस्याओं की पूरी जानकारी प्राप्त नहीं कर सकता जिससे वह अपने विचारों, कर्मों और दूसरों के साथ व्यवहारों में शांति, सामंजस्य एवं संतुलन स्थापित कर सकें। मनुष्य ने ज्ञान के क्षेत्र में जितनी भी प्रगति की है, वह सत्य और परम मूल्यों को पाने में पर्याप्त नहीं है। जबकि इसको पाए बिना शांति एवं सामंजस्य को प्राप्त नहीं कर सकता। यही कारण है कि मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं को कुल मिलाकर हल करने में असफल है। ऐसे विश्वसनीय ज्ञान का स्रोत केवल ईश्वर ही है। वह सर्वज्ञ शक्ति जिसने मनुष्य एवं समस्त विश्व की रचना की। अतः वह इस रचना की जटिलताओं का ज्ञान रखता है। कृपाशील परमेश्वर ने मनुष्य को उसके अल्प सीमित ज्ञान एवं बुद्धि से जीवन का मार्ग निर्धारित करने और अंधकार में इधर-उधर भटकते रहने के लिए नहीं छोड़ा है। उसने मनुष्य को उसकी आवश्यकता अनुसार वास्तविकताओं का ज्ञान दे दिया एवं जीवन का मार्गदर्शन कर दिया है।

एकेश्वरवाद (तौहीद) मानव-प्रकृति के पूर्णतः अनुकूल है

एकेश्वरवाद (तौहीद) दिल की दुनिया बदल देने वाली एक क्रांतिकारी, कल्याणकारी, सार्वभौमिक, सर्वाधिक महत्वपूर्ण और मानव-प्रकृति के बिल्कुल अनुकूल अवधारणा है जो आदमी को सिर्फ़ और सिर्फ़ एक अल्लाह या ईश्वर की बन्दगी और दासता की शिक्षा देती है। एक अल्लाह के आगे सजदा करने या झुकने वाला आदमी बाक़ी सारे बनावटी और नक़ली खुदाओं के सजदे और दासता से छुटकारा पा जाता है। और अल्लाह की नज़र में सारे इंसान एक समान हो जाते हैं। अल्लाह की नज़र में किसी के बड़ा या छोटा होने का मानदंड उसका कर्म है।

इस्लाम का ही अनुपालन क्यों ?

मुर्शफ अली इस्लाम की ओर आकर्षित करने वाला पहला कारण यह है कि इस्लामी आस्था एवं अवधारणा बिल्कुल स्पष्ट और आसानी से समझ में आने वाली है। इनमें किसी तरह की कोई पेचीदगी या उलझाव नहीं है। इन्हें समझने के लिए वह ज्ञान काफ़ी है जो प्रत्येक मनुष्य को स्वाभाविक रूप से प्राप्त है। इस्लामी सिद्धांत और नियम मानव स्वभाव के अनुकूल भी है और यह बौद्धिक स्तर पर भी खरे उतरे हैं। आइए हम निष्पक्ष होकर देखें कि इस्लाम में क्या-क्या आकर्षण है!

जीवन, मृत्यु के पश्चात्

मौजूदा जगत्-व्यवस्था जो कि भौतिक क़ानूनों पर बनी है, एक वक़्त में तोड़ डाली जाएगी। उसके बाद एक दूसरी व्यवस्था का निर्माण होगा, जिसमें ज़मीन और आसमान और सारी चीज़ें एक दूसरे ढंग पर होंगी। फिर अल्लाह तआला तमाम इनसानों को जो शुरू दुनिया से क़ियामत तक पैदा हुए थे, दोबारा पैदा कर देगा और एक साथ उन सबको अपने सामने जमा करेगा। वहाँ एक-एक व्यक्ति का, एक-एक जाति का और पूरी इनसानियत का रिकार्ड किसी ग़लती और और कमी-बेशी के बग़ैर सुरक्षित होगा। हर व्यक्ति के एक-एक अमल का जितना असर दुनिया में हुआ है, उसकी पूरी तफ़सील मौजूद होगी। वे तमाम नस्लें गवाहों में खड़ी होंगी, जो उस असर से प्रभावित हुईं।

हदीस -संग्रह: पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बातें

संकलन - अब्दुर्रब करीमी प्रस्तुत पुस्तक ‘‘पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बातें'' को तैयार करने का उदे्दश्य भारत के लाखों-करोड़ों भाइयों और बहनों को यह बताना है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) किसी ख़ास देश और क़ौम के लिए नहीं, बल्कि सबके पैग़म्बर (ईशदूत) है। इसी को देखते हुए इस पुस्तक में कुछ ऐसी हदीसों को इकट्ठा किया गया है जिनमें मालूम होगा कि समाज में एक साथ रहते हुए बिना देश-धर्म और भेद-भाव के हमपर एक-दूसरे के क्या अधिकार मालूम होते हैं। इसमें शामिल विषयों को देखकर पढ़नेवाले ख़ुद महसूस करेंगे कि यह किताब वक़्त की एक अहम ज़रूरत है।

परलोक और उसके प्रमाण

मौलाना सय्यद हामिद अली ईश्वर ने अपनी सर्वोत्तम कृति-मानव को कर्म की स्वतंत्रता प्रदान कर रखी है। इसी कर्म-स्वतंत्रता के आधार पर मानव सुकर्म और कुकर्म दोनों में से या तो दोनों कर्म कर सकता है या कोई एक कर्म। तत्वदर्शी ईश्वर ने इन दोनों प्रकार के कर्मों के अलग-अलग फल निर्धारित कर रखे है। मनुष्य को उनके कर्मों का पूरा-पूरा बदला परलोक में मिलेगा और मिलकर रहेगा। सुकर्मियों को उनके कर्म के बदले स्वर्ग की प्राप्ति होगी और कुकर्मियों को नरक में डाला जाएगा।

इस्लाम सबके लिए रहमत 

हमारे आम देशबंधुओं का सामान्य विचार है कि इस्लाम ‘सिर्फ़ मुसलमानों' का धर्म है और ईश्वर की सारी रहमतें सिर्फ़ उन्हीं के लिए हैं। इसके प्रवर्तक हज़रत मुहम्मद साहब हैं जो ‘सिर्फ़ मुसलमानों' के पैग़म्बर और महापुरुष हैं। क़ुरआन ‘सिर्फ़ मुसलमानों' का धर्मग्रन्थ है और जिसकी शिक्षाओं का सम्बंध भी सिर्फ़ मुसलमानों से है। और वह सिर्फ़ मुसलमानों को ही सफलता का मार्ग दिखाता है। लेकिन सच्चाई इसके भिन्न है। स्वयं मुसलमानों के रवैये और आचार-व्यवहार की वजह से यह भ्रम उत्पन्न हो गया है। वरना अस्ल बात तो यह है कि इस्लाम पूरी मानव जाति के लिए रहमत है, हज़रत मुहम्मद (ईश्वर की कृपा और शान्ति हो उन पर) सारे इंसानों के पैग़म्बर, शुभचिन्तक, उद्धारक और मार्गदर्शक हैं और क़ुरआन पूरी मानवजाति के लिए अवतरित ईशग्रन्थ और मार्गदर्शक है।

परलोक की तैयारी आज से

धार्मिक पक्ष का मूलाधार "ईश्वर में विश्वास" है। यहां, ईश्वर को स्रष्टा, स्वामी, प्रभु, पालक-पोषक, निरीक्षक, संरक्षक और इंसाफ़ करने वाला, पूज्य व उपास्य माना गया है। इस मान्यता का लाज़िमी तक़ाज़ा (Implication) है कि मनुष्य ईश्वर का आज्ञाकारी, आज्ञापालक और ईशपरायण दास हो जैसा कि किसी भी स्वामी के दास को होना चाहिए। इस मान्यता का तक़ाज़ा यह भी है कि ईश्वर के आज्ञाकारी-उपासक दासों (बन्दों) का जीवन-परिणाम, अवज्ञाकारी, उद्दण्ड, पापी, उपद्रवी, सरकश, ज़ालिम, व्यभिचारी, अत्याचारी बन्दों से भिन्न, अच्छा, सुन्दर व उत्तम हो।

इस्लाम में पाकी और सफ़ाई

सफ़ाई-सुथराई और स्वच्छता व पवित्रता का प्रभाव इनसान के दिल और दिमाग़ पर तो पड़ता ही है, इनसान और इनसानी समाज की सेहत की बेहतरी का भी इससे बड़ा गहरा सम्बन्ध है। सफ़ाई-सुथराई को हर इनसान फ़ितरी तौर पर पसन्द करता है, यह और बात है कि इसका तरीक़ा, मेयार और पैमाना लोगों की नज़र में अलग-अलग होता है। इस किताब को पढ़ने के बाद पाठकों को न केवल यह कि सफ़ाई एवं स्वच्छता व पवित्रता के बारे में सही जानकारी हासिल होगी, बल्कि उन पर यह हक़ीक़त भी खुल जाएगी कि इस्लाम में इसका क्या महत्व है? सफ़ाई, स्वच्छता एवं पवित्रता को ईश-उपासना, नमाज़ आदि के लिए ज़रूरी ठहराया गया है और सफ़ाई-सुथराई से लापरवाह लोगों को आख़िरत के अज़ाब से सावधान किया गया है। इस बात से इसका महत्व अच्छी तरह समझा जा सकता है।

इस्लाम की जीवन व्यवस्था

मानव के अन्दर नैतिकता की भावना एक स्वाभाविक भावना है जो कुछ गुणों को पसन्द औरकुछ दूसरे गुणों को नापसन्द करती है। यह भावना व्यक्तिगत रूप से लोगो में भले ही थोड़ीया अधिक हो किन्तु सामूहिक रूप से सदैव मानव-चेतना ने नैतिकता के कुछ मूल्यों को समानरूप से अच्छाई और कुछ को बुराई की संज्ञा दी हैं। सत्य, न्याय, वचन पालन और अमानत को सदा ही मानवीयनैतिक सीमाओं में प्रशंसनीय माना गया हैं और कभी कोई ऐसा युग नही बीता जब झूठ, ज़ुल्म, वचन भंग और को पसन्द किया गया हो।हमदर्दी, दया भाव, दानशीलता और उदारता को सदैव सराहागया तथा स्वार्थपरता, क्रूरता, कंजूसी और संकीर्णता को कभी आदरयोग्य स्थान नहीं मिला। धैर्य, सहनशीलता, स्थैर्य, गंभीरता, दृढसंकल्पित व बहादुरी वे गुण हैंजो सदा से प्रशंसनीय रहे है।

इस्लाम मानवतापूर्ण ईश्वरीय धर्म

लाला काशीराम चावला तुम अपने घरों के अतिरिक्त किसी अन्य मकान में उस समय तक न प्रवेश करो, जब तक अनुमति न ले लो और उनमें रहनेवालो को सलाम न कर लो। यही तुम्हारे लिए उचित है और तुम झट विचार कर लिया करो। यदि उन घरों में कोई आदमी मालूम न हो तो उन घरो में न जाओं, जब तक कि तुमको अनुमति न दी जाए और यदि तुम से कह दिया जाए कि लौट जाओं तो तुम लौट आया करो। यही बात तुम्हारे लिए उचित हैं और ईश्वर को तुम्हारे सारे कार्यो का पता है। (कुरआन, 24:27-28)

एनपीआर से पहले कोरोना: कालक्रम बदल गया

सनातन प्रकाश ऐसा कहा जाता है कि एनपीआर / एनआरसी / सीएए (NPR/NRC/CAA ) के बाद, पूरे देश की आधी से अधिक आबादी, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति की हो, अपनी नागरिकता खो देगी।

Featured posts

  • हदीस लेक्चर 5: इल्मे-इस्नाद और इल्मे-रिजाल

    हदीस लेक्चर 5: इल्मे-इस्नाद और इल्मे-रिजाल

    (Views: 652 ) 12 July 2022
  • उम्मुल मोमिनीन: हज़रत आइशा सिद्दीक़ा (रज़ियल्लाहु अन्हा)

    उम्मुल मोमिनीन: हज़रत आइशा सिद्दीक़ा (रज़ियल्लाहु अन्हा)

    (Views: 235 ) 11 July 2022
  • हदीस लेक्चर 4: इल्मे-रिवायत और हदीस के प्रकार

    हदीस लेक्चर 4: इल्मे-रिवायत और हदीस के प्रकार

    (Views: 558 ) 02 July 2022
  • हमारे रसूले-पाक (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)

    हमारे रसूले-पाक (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)

    (Views: 456 ) 01 July 2022