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मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा : समस्याएं और समाधान

लड़कियों की शिक्षा पर लिखे गए इस विस्तृत लेख को इन दो हदीसों की रौशनि में पढ़ा जाऱए “अपनी औलाद की बेहतरीन परवरिश करो और उन्हें अच्छे आदाब सिखाओ इसलिए कि तुम्हारे बच्चे अल्लाह की तरफ़ से तुम्हारे लिए एक उपहार हैं।” -हदीस

उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ (रह॰)

अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के बाद आप के पहले चार ख़लीफ़ा यानी हज़रत अबू बक्र (रज़ि०), हज़रत उमर (रज़ि.), हज़रत उसमान (रज़ि०) और हज़रत अली (रज़ि॰), जिन्हें खुलफ़ा-ए राशिदीन (मार्गदर्शन प्राप्त उत्तराधिकारी) कहा जाता है, के बाद हज़रत उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ (रह०) ही एकमात्र ऐसे खलीफ़ा हैं, जिन्होंने इस्लामी क़ानून के उसूलों को हर वक्त नजर के सामने रखा और समाज व राज्य के निर्माण के लिए उन्हीं उसूलों को मार्गदर्शक बनाया। आइए जानते हैं, उनके जीवन के बारे में।

सत्य धर्म की खोज

यह किताब सत्य की खोज में लगे हुए भाइयों और बहनों के लिए लिखी गई है। सत्य को पाना मानो ईश्वर को पाना है। सत्य ईश्वर की तरफ़ से होता है और सारे इनसानों के लिए होता है। ईश्वर ने इनसान को जितनी नेमतें भी प्रदान की हैं, उनमें सत्य सबसे ज़्यादा कीमती और महत्वपूर्ण है। सत्य धर्म की खोज हर इंसान का बुनियादी काम है।

समलैंगिकता का फ़ितना

समलैंगिकता मानवता से ही नहीं, पशुता से भी गिरा हुआ कर्म है। पशु भी समलैंगिक नहीं होते। यह प्रकृति से बग़ावत है और समाज को बर्बाद कर देनेवाला कर्म है। वास्तव में यह एक मानसिक रोग है, जिसका इलाज किया जाना चाहिए, लेकिन कुछ नासमझ लेग जो इस रोग से ग्रस्त हैं, दूसरों को भी इससे ग्रस्त करना चाहते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि इसकी बुराइयों से लोगों को तार्किक ढंग से अवगत किया जाए। यह पुस्तिका उसी की एक कोशिश है।

अल्लाह के रसूल मुहम्मद (सल०) की सहाबियात

तालिब हाशिमी साहब की किताब से सहाबियात (रज़ि०) की शख्सियत का हर पहलू रौशन हो जाता है। उनकी बहादुरी, उनके बुलन्द हौसले, उनके ईमान की मज़बूती, उनकी नबी (सल्ल०) से निहायत अक़ीदत व मुहब्बत, जाँनिसारी का जज़्बा जैसी तमाम ख़ासियतें सामने आ जाती हैं। 'तज़कारे सहाबियात' जैसी किताब का फ़ायदा हिन्दी जाननेवालों को मिल सके इसके लिए इसका हिन्दी तर्जमा करने का फ़ैसला लिया गया।

पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल.) का रवैया अपने दुश्मनों के साथ

धर्मप्रधान व्यक्तियों तथा जातियों का एक-दूसरे से भ्रातृत्व सम्बन्ध होना अत्यावश्यक है, मुख्य रूप से देश-हित में तो ऐसा होना अनिवार्य समझा जाता है। धर्मों के बारे में पाई जानेवाली ग़लतफ़हमियों का निवारण तो होना ही चाहिए। ज़रूरत इस बात की भी है कि धर्मों का निष्पक्ष भाव से अध्ययन-मनन किया जाए। यही भाव लेकर श्री नाथू राम जी ने कुछ लेख लिखे हैं। जिन्हें पहले लेखमाला के रूप में ‘फ़ारान' उर्दू मासिक, कराची में प्रकाशित किया गया। उसके बाद उन्हें पुस्तक रूप दिया गया।

प्यारे नबी (सल्ल.) कैसे थे?

अल्लाह के आखिरी नबी हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) की मिसाली ज़िन्दगी पर बहुत-सी किताबें लिखी गई हैं और लिखी जा रही हैं। मेरे दिल में भी यह आरजू बहुत दिनों से थी कि नबी (सल्ल.) की मिसाली ज़िन्दगी पर कोई ऐसी किताब लिखी जाए जिससे हर व्यक्ति फ़ायदा उठा सके। मेरे अल्लाह ने मेरी मदद की। ज़ेहन में एक खयाल उभरा-"क्यों न नबी (सल्ल.) की ज़िन्दगी के उन वाक़िआत को जमा कर दूँ जो हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से सीधा ताल्लुक़ रखते हों।" अल्लाह की मदद मुझ ग़रीब के साथ रही और यह छोटी सी किताब तैयार हो गई। इसकी ज़ुबान भी बड़ी आसान है।

हज़रत उमर (रज़ि०)

मदीना हिजरत से लेकर पैग़म्बरे इस्लाम की मौत तक शायद ही कोई घटना ऐसी हो, जिसमें हज़रत उमर (रज़ि०) का योगदान न हो। शासन-व्यवस्था की बात हो या राजनीतिक समस्या की, समाज-सुधार की बात हो या आर्थिक समस्या की, धर्म-प्रचार की बात हो या धर्म-विरोधियों से निबटने की, लड़ाई की बात हो या समझौते की, हर मौक़े पर हज़रत उमर (रज़ि०) की राय ज़रूर ली जाती थी। हज़रत उमर (रज़ि०) अपनी विशेषताओं, अपने गुणों और अपने कारनामों के कारण बहुत ही विशिष्ट स्थान रखते थे। हज़रत अबूबक्र (रज़ि०) के इंतिक़ाल के बाद हज़रत उमर (रज़ि०) इस्लामी राज्य के दूसरे ख़लीफ़ा बनाए गए। यह पुस्तिका उनके ही जीवन का वृत्तांत है।

हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) : एक संक्षिप्त परिचय

यह छोटी सी पुस्तिका अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का परिचय कराने की एक कोशिश है। इस में आप (सल्ल.) के जीवन और शिक्षा का सार पेश किया गया है। अल्लाह के रसूल (सल्ल.) की शिक्षाओं का उद्देश्य यह है कि इन्सान अपने एकमात्र स्रष्टा और पालनहार के बताये हुए मार्ग पर चलकर ही ज़िन्दगी गुज़ारे ताकि वह इस लोक और परलोक में सफलता प्राप्त कर सके।

हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) सब के लिए

मनुष्य को आदर्श जीवन बिताने के लिए मार्गदर्शन केवल दो ही साधनों से मिला है- एक अल्लाह की अवतरित किताबों से और दूसरे ईश-दूतों के जीवन-चरित्र से। ये दोनों चीज़ें आपस में इस प्रकार जुड़ी हुई हैं कि एक को दूसरे से अलग करके ईश्वरीय इच्छा को समझा ही नहीं जा सकता। जिन लोगों ने भी यह हरकत की वे पथ-भ्रष्ट होकर रह गए और अपने विभिन्न धर्म बना लिए। जबकि अल्लाह ने हमेशा एक ही दीन भेजा था। क़ुरआन मजीद और हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) इसी सत्य-मार्ग और ईश्वरीय मार्गदर्शन की अन्तिम कड़ी हैं, जो रहती दुनिया तक मानवजाति के लिए मार्ग-ज्योति हैं। ईश्वरीय मार्गदर्शन पर किसी का एकाधिकार नहीं होता। मुसलमान तो वास्तव में इस मार्गदर्शन के अमीन (अमानतदार) बनाए गए हैं। यह पुस्तक मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों में हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) और इस्लाम के परिचय के लिए सहायक हो सकती है।

प्यारे नबी (सल्ल॰) के चार यार -2: हज़रत उम्र फ़ारूक़  (रज़ि.)

नबी (सल्ल.) के चार साथी' का दूसरा भाग हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के दूसरे ख़लीफ़ा हज़रत उमर (रजि.) की मुबारक ज़िन्दगी के बारे में है। खुलफ़ाए-राशिदीन की ज़िन्दगी के हालात पढ़ने से हमें पता चलता है कि उन्होंने कितनी परेशानियाँ उठाकर और कितनी सादा ज़िन्दगी कर हुकूमत चलाई और अपनी हुकूमत में जनता को कितना आराम गुजार पहुँचाया। हक़ीक़त यह है कि उनकी जिन्दगी न सिर्फ दुनिया के सभी हाकिमों के लिए बल्कि सारे इनसानों के लिए एक नमूना है।

प्यारे नबी (सल्ल॰) के चार यार -3: उस्मान गनी (रज़ि.)

'प्यारे नबी (सल्ल.) के चार साथी' का यह तीसरा भाग है, तीसरे ख़लीफ़ा जुन्नूरैन हज़रत उस्मान ग़नी (रज़ि.) की मुबारक ज़िन्दगी के बारे में है। खुलफ़ाए-राशिदीन की ज़िन्दगी के हालात पढ़ने से हमें पता चलता है कि उन्होंने कितनी परेशानियाँ उठाकर और कितनी सादा ज़िन्दगी गुज़ार कर हुकूमत चलाई और अपनी हुकूमत में जनता को कितना आराम पहुँचाया। हक़ीक़त यह है कि उनकी जिन्दगी न सिर्फ दुनिया के सभी हाकिमों के लिए बल्कि सारे इनसानों के लिए एक नमूना है। [संपादक]

प्यारे नबी (सल्ल॰) के चार यार -4: हज़रत अली (रज़ि.)

नबी (सल्ल.) के चार साथी' का चौथा भाग हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के चौथे और आख़िरी ख़लीफ़ा हज़रत अली इब्ने-अबू- तालिब (रजि.) की मुबारक ज़िन्दगी के बारे में है। खुलफ़ाए-राशिदीन की ज़िन्दगी के हालात पढ़ने से हमें पता चलता है कि उन्होंने कितनी परेशानियाँ उठाकर और कितनी सादा ज़िन्दगी कर हुकूमत चलाई और अपनी हुकूमत में जनता को कितना आराम गुजार पहुँचाया। हक़ीक़त यह है कि उनकी जिन्दगी न सिर्फ दुनिया के सभी हाकिमों के लिए बल्कि सारे इनसानों के लिए एक नमूना है।

प्यारे रसूल (सल्ल॰) के प्यारे साथी (रज़ि॰)

अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्हु अलैहि वसल्लम के ऐसे बहुत से साथी थे, जो उन पर जान न्योछावर करते थे। अल्लाह के रसूल के एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहते थे। इस्लामी शब्दावलि में उन्हें सहाबी कहा जाता है। माइल ख़ैराबादी ने उन सहाबियों में से कुछ का उल्लेख यहां किया है।

प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की पाक बीवियाँ (उम्महातुल-मोमिनीन)

जैसा कि हम सब जानते हैं कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ख़ास तौर पर जहाँ मर्दों के लिए एक बेहतरीन नमूना हैं, वहीं आपकी पाक बीवियाँ भी ख़ास तौर पर औरतों के लिए बेहतरीन नमूना हैं। अल्लाह ने जहाँ आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अख़लाक और किरदार के बुलन्द मक़ाम पर पहुँचाया था वहीं आपकी बीवियों को भी अख़्लाक व किरदार का बुलन्दतरीन मक़ाम अता किया था। यही वजह है कि ईमानवाली हर औरत नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बीवियों के पदचिह्नों पर चलना अपनी सफलता और ख़ुशकिस्मती समझती है।