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सीएए और एनआरसी: न्याय क्या है?

सीएए और एनआरसी: न्याय क्या है?

 

 

ग़ुलाम सरवर नदवी

दुनिया के सारे इन्सान एक ही माँ-बाप की औलादें हैं, इनके बीच किसी भी आधार पर भेदभाव करना उचित नहीं है।

समस्त मानव जाति का रचयिता एक ही है, उसी ने तमाम इंसानों को एक समान पैदा किया, हम सब के माता और पिता एक ही हैं। हम सब के  बाप पहले इंसान आदम और माँ हौव्वा हैं । जन्म के आधार पर कोई छोटा कोई बड़ा नहीं है । श्रेष्ठ वही है जिसके कर्म अच्छे हों, जो अल्लाह से सबसे ज्यादा डरने वाला और इंसानों से सब से अधिक प्रेम करने वाला हो ।

अल्लाह (ईश्वर) भी एक है, इंसान भी एक है, धरती भी एक है, और सारा ब्रह्मांड एक है । यह शिक्षा हमें इस धरती पर भेजे गए पहले ईशदूत आदम से लेकर अंतिम ईशदूत हज़रत मुहम्मद (सल्ल.)  सब ने दी है। 

एक अल्लाह ने हम सब को एक इंसान बनाया है उसी अल्लाह ने एक ही धरती बनाई है जिसे हमने देशों और राष्ट्रों में विभाजित कर दिया है  नेशन स्टेट के निर्माण से पूर्व देश और क़बीले मौजूद थे, परंतु धरती के किसी भी व्यक्ति को इस बात का पूर्ण अधिकार एवं स्वतंत्रता थी कि जिसे जहां सुविधा हो जा कर रहे, व्यापार करे, जीवन यापन करे । देश की सीमा मानव के इस मौलिक अधिकार के लिए बाधक नहीं होती थी ,परंतु आज नेशनलिज्म की “कृपा” से मनुष्य के इस मौलिक अधिकार को भी छिन्न-भिन्न कर दिया गया ।

आज यह हक़ीक़त है की मनुष्य के द्वारा धरती पर खींची गई लकीरें, जिसे हम सीमा के नाम से जानते हैं, के अंदर रहने वालों को ही सरकार अपना नागरिक समझती है और उनके कल्याण के लिए कार्य करती है। लेकिन अब स्थिति यह आ गई है के अपने ही देश के अल्पसंखयक नागरिकों की नागरिकता भी असुरक्षित हो गई है। जिस समूदाय को यह महसूस हो तो ऐसा समूह मानसिक रूप से कितना असहज होगा यह समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है।

देश की दूसरी बहुसंख्यक आबादी यानी मुसलमान सीएए और एनआरसी क़ानूनों से अत्यंत चिंतित हैं। और उनकी चिंता अकारण नहीं है। यह कहा जा सकता है कि अभी एनआरसी की नियमावली और प्रावधान तैयार नहीं हुए है,परंतु असम में एनआरसी की जो प्रक्रिया चली और उसके परिणाम स्वरूप जो भयावह स्थिति सामने आई ,उसने पूरे देश के मुसलमानों को झकझोर कर दिया और उनमें में चिंता की लहर दौड़ा दी।

मुसलमान बड़ी संख्या में सरकारी दस्तावेजों और शैक्षणिक प्रमाणपत्रों में मौजूद अत्यंत साधारण त्रुटि के सुधार के लिए भी नियमानुसार समाचार आर्थिक स्थिति और विकास के सामाजिक मानकों पर बुरी तरह पिछड़ा हुआ है, उसे प्रगति के अवसर प्रदान करने के बजाए यदि इस प्रकार के पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित करा रहे थे। जिनके पास घर और जमीन के कागजात नहीं थे उनका हाल तो और भी बुरा था। वह समुदाय जो शिक्षा, आर्थिक स्थिति और विकास के सामाजिक मानकों पर बुरी तरह पिछड़ा हुआ है, उसे प्रगति के अवसर प्रदान करने के बजाए यदि इस प्रकार के मामलों में उलझाया जाएगा तो फिर उसकी क्या हालत होगी, इसे समझना कठिन नहीं है। इतनी बड़ी आबादी को मानसिक प्रताड़ना से गुजारना किसी भी सभ्य समाज और संवेदनशील सरकार के लिए उचित नहीं है।

मैं इतिहास के एक साधारण विद्यार्थी और अंतःकरण से अपने देश के हितेषी होने के नाते यह कहने का साहस कर रहा हूं कि राष्ट्रों और देशों का निर्माण और उनका विकास न्याय पर निर्भर होता है। अन्याय और असत्य पतन की ओर ही ले जाता है। “अवैध घुसपैठिए” की आड़ में ऐसे वातावरण का निर्माण कदापि शुभ नहीं होगा जिससे लगभग 20 करोड मुसलमान नागरिक अपने आप को असुरक्षित महसूस करें। सरकारें तो इसलिए होती हैं कि वह जनता के हितों का ध्यान रखें, उन्हें उनकी समस्याओं से मुक्ति दिलाएं, उनके विकास का प्रबंध करें। राज्य अर्थात स्टेट नागरिकों के लिए माता समान होता है । मां के गोदी में इंसान को सुख और राहत की अनुभूति नहीं हो तो फिर उसकी निराशा की क्या स्थिति होगी, यह सभी जानते हैं।

सरकार, राष्ट्र, जनता, और तमाम नागरिकों के हित में येही है कि ज़ुल्म से खुद भी बचा जाए और दूसरों को भी बचाया जाए। उपरोक्त दोनों अन्यायपूर्ण क़ानून अर्थात सीएए और एनआरसी कि वापसी ही सब के हित में है। तीन अन्यायपूर्ण कृषि क़ानूनों कि वापसी के बाद अब इन दो क़ानूनों को भी वापस ले लिया जाए । 

हम वर्तमान सरकार के साथ इस देश के उन करोड़ों हिंदू भाइयों से, जो अपने शरीर में हृदय के स्थान पर पत्थर का टुकड़ा नहीं ,बल्कि एक धड़कता हुआ दिल रखते हैं, सविनय निवेदन करते हैं  कि इस संवेदनशील मुद्दे पर मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए मुसलमानों का साथ दें। और सरकार पर दबाव बनाएं कि वे इन दोनों क़ानूनों को वापस ले ले।

ईश्वर हम सब को सुरक्छित रखे, हमें न्याय करने वाला और न्याय देने वाला बनाए, और एक दूसरे के दुख दर्द को समझने वाला बनाए । 

हे ईश्वर ऐसा ही हो। हे ईश्वर ऐसा ही हो । 

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