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इस्लाम में इबादत का अर्थ

‘इबादत’ वास्तव में बहुत विस्तृत अर्थ रखने वाला शब्द है। आम तौर से इसे पूजा और उपासना के अर्थ में बोला जाता है। जैसे नमाज़, रोज़ा, हज आदि, निसंदेह ये सब इबादत है, लेकिन ये ही कुल इबादत नहीं हैं, बल्कि इबादत का एक हिस्सा मात्र हैं। शब्द इबादत का मूल है ‘अ’, ‘ब’, ‘द’। इसी से बना शब्द है ‘अब्द’, यानी, ग़ुलाम, दास, बन्दा। बन्दे या दास की अपनी कोई मर्ज़ी नहीं होती, बल्कि उसे अपने स्वामी की मर्ज़ी के अनुसार ही चलना होता है। क़रआन में अल्लाह ने स्पष्ट कहा है कि “हमने इन्सानों और जिन्नों को केवल इसलिए पैदा किया कि वे हमारी इबादत करें।” दास अपने उपास्य और प्रभु के लिए जो कुछ करे वह इबादत है। उसका पूरा जीवन इबादत है, अगर वह ईश्वर के बताए नियमों के अनुसार जीवन बिताए। कोई भी काम करते हुए वह देखे कि इस विषय में ईश्वर का आदेश क्या है। ईश्वर ने जिन चीज़ों का आदेश दिया या आज्ञा दा है उनका पालन करे और जिन चीज़ों से रोका है, उन से दूर रहे तो उसका पूरा जीवन इबादत होगा, चाहे ये सब दुनिया के मामले ही क्यों न हों।

शरीयत क्या है ?

इस्लाम की शब्दावली में ‘शरीअत’ का अर्थ है, धर्मशास्त्र या धर्मविधान। क़ुरआन और हदीस की शिक्षाओं के आधार पर इस्लाम के माननेवालों के लिए जीवन बिताने के जो नियम और सिद्धांत तैयार किए गए हैं, उन्हें ही शरीअत कहते हैं। ‘इबादत’ के तरीक़े, सामाजिक सिद्धांत, आपस के मामलों और सम्बन्धों के क़ानून, हराम और हलाल (वर्जित व अवर्जित), वैध-अवैध की सीमाएँ इत्यादि। शरीअत की दृष्टि से हर इनसान पर चार प्रकार के हक़ होते हैं। एक ईश्वर का हक़; दूसरे: स्वयं उसकी अपनी इन्द्रियों और शरीर का हक़, तीसरेः लोगों का हक़, चैथे: उन चीज़ों का हक़ जिनको ईश्वर ने उसके अधिकार में दिया है ताकि वह उनसे काम ले और फ़ायदा उठाए। ‘शरीअत’ इन सब हक़ों को अलग-अलग बयान करती है और उनको अदा करने के लिए ऐसे तरीक़े निश्चित करती है कि सारे हक़ संतुलन के साथ अदा हों और यथासंभव कोई हक़ मारा न जाए।

इस्लाम का इतिहास

इस्लाम का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना पुराना स्वंय मानवजाति का इतिहास है। आमतौर पर यह समझा जाता है कि मनुष्य का जन्म इस दुनिया में अंधकार की हालत में हुआ और उसने कालांतर में धीरे-धीरे जीने की कला सीखी और ख़ुद को दूसरे जानवरों से अलग कर लिया। इस्लाम इस थ्योरी को नहीं मानता है। इस्लाम के अनुसार मनुष्य को पूरे प्रकाश में और जीवन जीने का मार्गदर्शन देकर दुनिया में भेजा गया है। सब से पहले अल्लाह ने अपने बन्दे और पैग़मबर आदम को शिक्षा और दिशा निर्देश देकर दुनिया में भेजा और साथ ही आदम की पत्नी हव्वा को भी भेजा। इन की संतान से ही दुनिया आबाद होती गई। इस तरह मानवजाति का इतिहास ही इस्लाम का इतिहास है। अज्ञानतावश लोग समझते हैं कि इस्लाम 1400 वर्ष पुराना धर्म है, और इसके ‘प्रवर्तक’ पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) इसके प्रवर्तक (Founder) नहीं, बल्कि इसके आह्वाहक और अंतिम पैग़म्बर हैं, दे उस सिलसिला की अंतिम कड़ी हैं, जो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से शुरू हुआ था। पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) का काम उसी चिरकालीन (सनातन) धर्म की ओर, जो सत्यधर्म के रूप में आदिकाल से ‘एक’ ही रहा है, लोगों को बुलाने, आमंत्रित करने और स्वीकार करने के आह्वान का था। आपका मिशन, इसी मौलिक मानव धर्म को इसकी पूर्णता के साथ स्थापित कर देना था ताकि मानवता के समक्ष इसका व्यावहारिक नमूना साक्षात् रूप में आ जाए।

हिजाब (परदा) क्या है

इस्लाम एक संपूर्ण जीवन व्यवस्था है। इसमें जन्म से लेकर मृत्यु तक पूरा जीवन गुज़ारने का तरीक़ा बताया गया है। इस्लाम ने जीवन के सभी क्षेत्रों में मार्गदर्शन किया है, इनमें इबादत, समाज, नैतिकता, अर्थशास्त्र आदि सभी शामिल हैं। इबादत के साथ-साथ हिजाब और पर्दा भी इस्लामी जीवन शैली का अभिन्न अंग है जो महिलाओं की गरिमा, सतीत्व और नारीत्व की सुरक्षा की गारंटी देता है। इस्लाम में पर्दा का विशेष महत्व है। इसमें महिलाओं और पुरुषों दोनों को पूरे वस्त्र पहनने के साथ-साथ शालीनता को भी प्राथमिकता देने का आदेश दिया गया है। यही कारण है कि किसी पुरुष के लिए किसी गैर-महरम महिला की ओर देखना जायज़ नहीं है। पर्दा पुरुषों और महिलाओं के दिलों को पवित्र रखने का सबसे प्रभावी साधन है, इसके साथ शील का अस्तित्व जुड़ा हुआ है, इसका उद्देश्य महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करना और समाज को अनैतिकता, अश्लीलता और दुराचार से बचाना है।

तलाक़: महिला का अपमान नहीं

पति और पत्नी का रिश्ता समाज की बुनियादी इकाई परिवार का आधार है। इस लिए पति-पत्नी के बीच मधुर संबंध का बने रहना बहुत ज़रूरी है। पति-पत्नी के बीच विवाद और मदभेद होना स्वभाविक है, लेकिन कभी-कभी ये विवाद गंभीर रूप धारण कर लेते हैं। यदि पति-पत्नी के बीच ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए कि परिवार को चलाना संभव न रह जाए, तो जीवन को नरक बनाने से बेहतर है कि पति-पत्नी अलग हो जाएं। इस्लाम तलाक़ की स्थिति आने से पहले पति-पत्नी के बीच सुलह-सफ़ाई कराने का भरपूर प्रयत्न करता है और सारे प्रयत्नों के असफल हो जाने पर ही तलाक़ की अनुमति देता है। इस्लाम में तलाक़ के प्रावधान को अन्तिम और अपरिहार्य (Inevitable) समाधान के रूप में ही उपयोग किया जा सकता है।

इस्लाम: मानव-अधिकार

अल्लाह के रसूल ने कहा, लोगो, सारे मनुष्य आदम की संतान हैं और आदम मिट्टी से बनाए गए। अब प्रतिष्ठा एवं उत्तमता के सारे दावे, ख़ून एवं माल की सारी मांगें और शत्रुता के सारे बदले मेरे पाँव तले रौंदे जा चुके हैं। किसी अरबी को किसी ग़ैर-अरबी पर, किसी ग़ैर-अरबी को किसी अरबी पर कोई वरीयता हासिल नहीं है। न काला गोरे से उत्तम है न गोरा काले से। हाँ आदर और प्रतिष्ठा का कोई मापदंड है तो वह ईशपरायणता है। अल्लाह कहता है कि, इन्सानो, हम ने तुम सब को एक ही पुरुष व स्त्री से पैदा किया है और तुम्हें गिरोहों और क़बीलों में बाँट दिया गया कि तुम अलग-अलग पहचाने जा सको। अल्लाह की दृष्टि में तुम में सबसे अच्छा और आदरवाला वह है जो अल्लाह से ज़्यादा डरने वाला है। लोगो, तुम्हारे ख़ून, माल व इज़्ज़त एक-दूसरे पर हराम कर दी गईं हमेशा के लिए। अगर किसी के पास धरोहर (अमानत) रखी जाए तो वह इस बात का पाबन्द है कि अमानत रखवाने वाले को अमानत पहुँचा दे। लोगो, सारे इंसान आपस में भाई-भाई है। अपने गु़लामों का ख़याल रखो, हां गु़लामों का ख़याल रखो। इन्हें वही खिलाओ जो ख़ुद खाते हो, वैसा ही पहनाओ जैसा तुम पहनते हो।

इस्लाम : एक सम्पूर्ण जीवन-व्यवस्था

इस्लाम की शिक्षाएं मानव-मित्र, व्यावहारिक और वैज्ञानिक हैं। इन शिक्षाओं ने दिन-प्रतिदिन के सांसारिक कामों को भी सम्मान और पवित्रता प्रदान की। क़ुरआन कहता है कि इन्सान को ख़ुदा की इबादत के लिए पैदा किया गया है, लेकिन ‘इबादत’ (उपासना) की क़ुरआनी परिभाषा बहुत विस्तृत है । ख़ुदा की इबादत केवल पूजा-पाठ आदि तक सीमित नहीं, बल्कि हर वह कार्य जो अल्लाह के आदेशानुसार उसकी प्रसन्नता प्राप्त करने तथा मानव-जाति की भलाई के लिए किया जाए इबादत के अन्तर्गत आता है। इस्लाम ने पूरे जीवन और उससे जुड़े सारे मामलों को पावन एवं पवित्र घोषित किया है, शर्त यह है कि उसे ईमानदारी, न्याय और नेकनीयती तथा सत्य-निष्ठा के साथ किया जाए।

मुहम्मद (सल्ल॰): विश्व नेता

आप हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के जीवन का अध्ययन करें तो एक ही दृष्टि में महसूस कर लेंगे कि यह किसी राष्ट्रवादी या देश-प्रेमी का जीवन नहीं है, बल्कि एक मानव-प्रेमी और विश्वव्यापी दृष्टिकोण रखने वाले मनुष्य का जीवन है। और यह कि उसके सिद्धांत भी किसी समय विशेष के लिए नहीं थे, बल्कि रहती दुनिया तक के लिए अनुकरणीय हैं। मुहम्मद (सल्ल॰) ने जो सिद्धांत पेश किए उनके आधार पर एक समाज का निर्माण कर के भी दिखाया।

मुहम्मद (सल्ल॰) : महानतम क्षमादाता

मुहम्मद (सल्ल.) के आने से पहले अरब के लोग अपनी बरबर्ता और पाश्विक प्रवृत्ति के लिए जाने जाते थे। छोटी-छोटी बात पर अरब क़बीलों में युद्ध छिड़ जाता, जो दशकों तक चलता रहता। दोनों पक्ष के हज़ारों लोग मारे जाते, लेकिन उनकी ख़ून की प्यास नहीं बुझती। ऐसी उग्र क्रोधातुर और लड़ाकू क़ौम को इस्लाम के पैग़म्बर ने आत्मसंयम एवं अनुशासन की ऐसी शिक्षा दी, ऐसा प्रशिक्षण दिया कि वे दया करुणा और प्रेम का आदर्श बन गए। दूसरों के प्रति त्याग, क्षमादान, आदर, प्रेम, सहिष्णुता और उदारता के गुणों से उनके चरित्र व व्यवहार में निखार आ गया। यह सब इस लिए हुआ कि अल्लाह ने मुहम्मद (सल्ल.) को समस्त जगत के लिए रहमत बनाकर भेजा था।

मुहम्मद (सल्ल॰) की शिक्षाओं के प्रभाव

हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) की शिक्षाओं के प्रभाव असीम और अनंत हैं, जो मानव व्यवहार, मानव स्वभाव, मानव-चरित्र, मानव समाज और मानव सभ्यता-संस्कृति पर पड़े। ये प्रभाव सार्वभौमिक और सार्वकालिक हैं। जैसे-जैसे दुनिया विकास और सभ्यता की भंचाइयां तय करती जा रही है, हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) की शिक्षाओं के प्रभाव बढ़ते जा रहे हैं।

मुहम्मद (सल्ल॰): जीवन, चरित्र, सन्देश, क्रान्ति

इस्लाम के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰), अत्यंत लम्बी ईशदूत-श्रृंखला में एकमात्र ईशदूत हैं जिनका पूरा जीवन इतिहास की पूरी रोशनी में बीता। इस पहलू से भी आप उत्कृष्ट हैं कि आपकी पूरी ज़िन्दगी का विवरण, विस्तार के साथ शुद्ध, विश्वसनीय व प्रामाणिक रूप से इतिहास के पन्नों पर सुरक्षित है। जन्म से देहावसान तक, एक-एक बात का ब्यौरा; छोटी से बड़ी हर गतिविधि, हर कथनी-करनी और पूरा जीवन-वृत्तांत रिकार्ड पर है। संसार में कोई भी व्यक्ति, जो आपकी जीवनी, आपका जीवन-चरित्र, आपका संदेश और मिशन जानना चाहे तथा आप द्वारा लाई हुई अद्भुत, अद्वितीय, समग्र व सम्पूर्ण क्रान्ति का अध्ययन करना चाहे, और यह समझना चाहे कि 1400 से अधिक वर्षों से अरबों-खरबों लोग, एवं आज लगभग डेढ़ अरब (एक सौ पचास करोड़) लोग दुनिया भर में आप से सबसे ज़्यादा (अपने माता-पिता, संतान व परिजनों से भी ज़्यादा) प्रेम क्यों करते हैं, आप पर जान निछावर क्यों करते हैं; आपकी श्रद्धा से उनका सारा व्यक्तित्व ओत-प्रोत क्यों रहता है और आपके अनादर व मानहानि की छोटी-बड़ी किसी भी घटना पर अत्यंत व्याकुल और दुखी क्यों हो जाते हैं; और आख़िर क्या बात है कि डेढ़ हज़ार वर्ष के अतीत में, और वर्तमान युग में भी, ऐसे असंख्य लोग रहे हैं जो आपके ईशदूत्व पर ईमान न रखने (अर्थात् मुस्लिम समुदाय में न होने) के बावजूद आपकी महानता के स्वीकारी रहे तथा आपके प्रति श्रद्धा, सम्मान की भावना रखते आए हैं; आख़िर क्या बात है कि एक पाश्चात्य मसीही शोधकर्ता (माइकल हार्ट) पिछली लगभग 2-3 शताब्दियों के मानव-इतिहास से चुने हुए 100 महान व्यक्तियों में से, महात्म्य की कसौटी पर परखते हुए हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) को प्रथम स्थान देता है; तो यह जानने के लिए उस व्यक्ति को विश्व के हर भाग में, संसार की लगभग तमाम प्रमुख भाषाओं में (और हमारे देश की सारी क्षेत्रीय भाषाओं में भी लिखित-प्रकाशित) सामग्री उपलब्ध है। (सल्ल॰=‘सल्ल-अल्लाहु अलैहि व सल्लम'-अर्थात-‘आप पर ईश्वर की अनुकंपा व सलामती हो'।)

इस्लाम की वास्तविकता

संसार में जितने भी धर्म हैं, उनमें से अधिकतर का नाम या तो किसी विशेष व्यक्ति के नाम पर रखा गया है या उस जाति के नाम पर जिसमें वह धर्म पैदा हुआ। परन्तु इस्लाम की विशेषता यह है कि वह किसी व्यक्ति या जाति से सम्बन्धित नहीं है, बल्कि उसका नाम एक विशेष गुण को प्रकट करता है जो ‘‘इस्लाम’’ शब्द के अर्थ में पाया जाता है। इस नाम से स्वयं विदित है कि यह किसी व्यक्ति के मस्तिष्क की उपज नहीं है और न ही किसी विशेष जाति तक सीमित है। इस्लाम एक ऐसी जीवन व्यवस्था है, जो रंग, नस्ल, भाषा और क्षेत्रीयता की सीमाओं से ऊपर उठकर समस्त मानव जाति को एकता के सूत्र में पिरोती है।

अहिंसा और इस्लाम

इस्लाम मनुष्य को शांति और सहिष्णुता का मार्ग दिखाता है। यह सत्य, अहिंसा, कुशलता का समर्थक है । इसका संदेश वास्तव में शांति का संदेश है। इसका लक्ष्य शांति, सुधार और निर्माण है । वह न तो उपद्रव और बिगाड़ को पसन्द करता है और न ही ज़ुल्म-ज़्यादती, क्रूरता, अन्याय, अनाचार, अत्याचार, असहिष्णुता, पक्षपात और संकीर्णता आदि विकारों व बुराइयों का समर्थक है। ईशदूत हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ने कहा कि जो व्यक्ति भी इस्लाम में आया, सलामत रहा ।

इस्लाम धर्म

‘इस्लाम’, अरबी वर्णमाला के मूल अक्षर स, ल, म, से बना शब्द है। इन अक्षरों से बनने वाले शब्दों के अर्थ होते हैं: शांति, सद्भाव और आत्मसमर्पण। इस्लामी परिभाषा में इस्लाम का अर्थ होता है: ईश्वर के आदेश-निर्देश और उसकी मर्ज़ी के सामने पूर्ण आत्मसमर्पण करके सम्पूर्ण व शाश्वत शान्ति प्राप्त करना। यहां शांति अपने वृहद अर्थ में है, यानी अपने व्यक्तित्व व अन्तरात्मा के प्रति शान्ति, दूसरे तमाम इन्सानों के प्रति शान्ति, अन्य जीवधारियों के प्रति शान्ति, ईश्वर की विशाल सृष्टि के प्रति शान्ति, ईश्वर के प्रति शान्ति, इस जीवन के बाद परलोक-जीवन में शान्ति।

मुस्लिम उम्मत - पहचान और विशेषताएं

संसार के रचयिता ईश्वर की मंशा है कि समस्त मानवजाति संतुलन का मार्ग अपना ले। हर कोई उसके बताए हुए तरीक़े पर जीवन बिताए और सांसारिक संसाधनों का पूरा आनंद ले। कोई किसी पर अत्याचार न करे, कोई किसी का अधिकार हनन न करे। इस तरह संसार सुख शांति का केंद्र बन जाए। परलोक में भी मनुष्य को इसका अच्छा बदला मिले और वह शाश्वत सुख के स्वर्ग में जगह पाए। इस लिए ईश्वर ने आरंभ से ही मनुष्य के मार्गदर्शन के लिए अपने पैग़म्बरों को खड़ा किया। फिर एक समय पर उसने अपनी तत्वदर्शिता से पैग़म्बरों का सिलसिला बंद कर दिया और यह ज़िम्मेदारी अंतिम पैग़म्बर के अनुयायियों पर डाल दी कि वे रहती दुनिया तक मनुष्यों का उसके बताए हुए तरीक़े पर मार्गदर्शन करते रहें।