तयम्मुम करने का सही तरीका
तयम्मुम इस्लामी मान्यता के अनुसार पाकी हासिल करने का एक वैकल्पिक तरीक़ा है। नमाज़ इस्लाम का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। इस्लाम के माननेवालों के लिए हर हाल में नमाज़ अदा करना अनिवार्य है और नमाज़ अदा करने के लिए पाकी हासिल करना ज़रूरी है। लेकिन ऐसे हालात हो सकते हैं, जब ग़ुस्ल या वुज़ू के लिए पानी उपलब्ध न हो या किसी रोग आदि के कारण पानी छूना वर्जित हो, तो ऐसी हालत में अल्लाह ने आसानी पैदा करते हुए तयम्मुम करने की अनुमति दी है। अल्लाह के नबी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने तयम्मुम करके मुसलमानों के सामने उसका व्यवहारिक उदारणपेश कर दिया और उलका तरीक़ा भी बता दिया।
(1) तयम्मुम:
शब्द कोश के अनुसार तयम्मुम का अर्थ ” इच्छा करना ” और ” इरादा करना ” है।
इस्लाम के परिभाषा में ” पाकी (पवित्रता) की नियत से मिट्टी को चेहरा और हाथ पर विशेष ढंग से मसह करना ” तयम्मुम कहलाता है।
(2) तयम्मुम की अनुमति:
अल्लाह तआला ने फरमाया ” और अगर कभी ऐसा हो कि तुम बीमार हो ,या सफ़र में हो ,या तुम में से कोई शौच करके आऐ ,या तुम ने औरतों को हाथ लगाया हो और फिर पानी न मिले तो पाक मिट्टी से काम लो और उस से अपने चेहरों और हाथों पर मसह कर लो ” बेशक अल्लाह नर्मी से काम लेने वाला और बख्शने वाला है। (सुरः निसा 133)
(3) तयम्मुम की शर्तेः
(1) नमाज़ पढ़ने का समय हो जाने का ज्ञान हो।
(2) समय के दाख़िल होने के बाद पानी तलाशा जाए।
(3) पवित्र मिट्टी हो जिस पर धूल हो।
(4) प्रथम नजासत (गन्दगी) को दूर करे।
(4) निम्नलिखित कारणों में तयम्मुम करना उचित हैः
(1) जब पानी बिल्कुल न मिलता हो।
(2) पानी के प्रयोग से नुक़सान (हानि) का डर हो जैसे सख्त ठंडी, ज़ख्म आदि।
(3) पानी मोजूद हो परन्तु वे केवल खाने -पीने के प्रयोग के लिए हो , अधिक न हो।
(4) जब पानी और व्यक्ति के बीच दुश्मन का डर हो ,या खतरनाक पशु हो।
(5) मिट्टी की परिचयः
“वह हर पवित्र मिट्टी है ।”
(6) तयम्मुम की फ़र्ज़ बातेः
(1) तयम्मुम करने की दिल में नीयत करें
(2) चेहरे का मसह करें
(3) दोनों हाथों की हथैलियों का मसह करें
(4) अनुक्रम (एक के बाद दुसरा काम करना)
(7) तयम्मुम की सुन्नतेः
(1) ” बिस्मिल्लाहिर् रह़मानिर रह़ीम ” कहना
(2) दायें ओर से आरम्भ करना
(3) यदि अंगूठी पहने हो तो उसको निकाल कर तयम्मुम करना उचित है।
(4) यह दुआ कहना ” अश्हदो अल्लाइलाहा इल्लल्लाहो व अश्हदो अन्ना मुहम्मदन रसूलìल्लाह ”
(5) निरंतरता के साथ (तयम्मुम के अरकान बगैर वक्फे के करना)
(8) तयम्मुम करने का तरीका:
(1) नियत करना और उसकी जगह हृदय है।
(2) ” बिस्मिल्लाहिर् रह़मानिर रह़ीम ” कहना।
(3) दोनों हाथों को मिट्टी पर मारना और यदि अंगूठी पहने हो तो उसे निकाल देना।
(4) दोनों हाथों को फूँकना या मिट्टी कम करने के लिए धीरे से हाथ पर हाथ मारना
(5) पूरे चेहरे का मसह करना जैसे वुज़ू में करते हैं।
(6) दोनों हाथों की हथैलियों का मसह करना ( आरंभ करें तो अपने बायें हथैली की उंगुलियों से दायें हाथ के पुश्त की हथैली तक मसह करे और दायें हथैली के अंदरूनी भाग से बायें हथैली के पुश्त का मसह करें।
(7) यह दुआ पढ़ें ” अश्हदो अल्ला़इलाहा इल्लल्लाहो व अश्हदो अन्ना मोहम्मदन रसूलìल्लाह
यह तयम्मुम की सुन्नतें हैं जैसाकि स्नान और वुज़ू में सुन्नतें हैं जैसाकि धार्मिक विद्वानों ने कहा है।
(9) तयम्मुम की अवधिः
जब तक तयम्मुम करने का कारण उपस्थित होगा तो उस समय तक तयम्मुम करने की अनुमति होगी।
जैसा कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमायाः
إنَّ الصعيدَ الطيبَ طهورُ المسلمِ وإن لم يجدِ الماءَ عشرَ سنين فإذا وجد الماءَ فليمسَّه بشرتَه فإن ذلك خيرٌ. (سنن الترمذي صححه العلامة الألباني: 124)
” निःसंदेह अच्छी मिट्टी मुस्लिम को पवित्र करने वाली है और यघपि दस साल तक पानी न पाये, तो जब पानी उपलब्ध हो तो वे अपने चमड़े को धोए, बेशक इस में भलाई है।” (सुनन तिर्मिज़ीः 124)
(10) वे बातें जिन से तयम्मुम टूट जाता हैः
(1) प्रत्येक उन चीजों से जिन से वुजू टूटता है।
(2) पानी का उपलब्ध होना
(3) रोग या डर का कारण ख़त्म होना
स्रोत
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