इस्लाम
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इस्लाम और सन्यास
इस्लाम में संन्यास या संसार त्याग की कोई जगह नहीं है, हालांकि दूसरे अधिकतर धर्मों में इसे परम धर्म और पारलौकिक मोक्ष की प्राप्ति का साधन समझा जाता है। इस्लाम दुनिया में रहते हुए और दुनिया की सारी ज़िम्मेदारियां अदा करते हुए ईशपरायणता की शिक्षा देता है। इस पुस्तिका में प्रमुख विद्वान मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी ने इसी तथ्य की व्याख्या की है।
इस्लाम क्या है ?
जयपुर राज-महल में चल रहे एक विशेष कार्यक्रम में 11 जून 1971 ई0 की रात में इस्लाम का परिचय कराने हेतु मुहम्मद फ़ारूक़ ख़ाँ द्वारा यह निबन्ध प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में गणमान्य जनों के अतिरिक्त स्वंय राजमाता गायत्री देवी भी उपस्थित थीं।
मानव जीवन और परलोक
मौत एक ऐसी सच्चाई है, जिसको झुठलाया नहीं जा सकता। इंसान अपने क़रीबी, अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को मौत के गाल में समाते हुए देखता रहता है, लेकिन उन्हें मौत से बचा नहीं सकता। उसे यह ख़याल भी आता है कि एक दिन उसे भी मरना है और हमेशा के लिए इन संसार से चले जाना है। इंसान के समाने कुछ प्रश्न ऐसे हैं, जिनका सही उत्तर मिलना अत्यंत आवश्यक है। जैसे-जीवन क्या है, यह कहां से मिला, इसका मक़सद क्या है। मौत क्या है, मौत के बाद क्या होगा, क्या मौत के बाद भी जीवन है, अगर जीवन है, तो कैसा है, उस जीवन में सफल होने के लिए इस सांसारिक जीवन में क्या करना होगा। अगर जीवन नहीं है, तो क्या मौत के बाद जीवन समाप्त हो जाता है। प्रस्तुत पुस्तक में इस विषय पर इस्लामी पक्ष रखा गया है।
नशाबन्दी और इस्लाम
नशा से होने वाले नुक़सानों को देखते हुए समाज का गंभीर वर्ग इससे छुटकारा पाना तो चाहता है, लेकिन उसे कोई तरकीब समझ में नहीं आ रही है। समाज में विभिन्न तरीक़ों को एक एक कर आज़माया गया लेकिन, वे सब नाकाम रहे। इस लेख में मौलाना अबुल लैस इस्लाही नदवी ने नशाबन्दी के इस्लामी तरीक़े का उल्लेख किया है।
शांति और सम्मान
जिस धर्म या संस्कृति की आधारशिला सत्य न हो उसकी कोई भी क़ीमत नहीं। जीवन को मात्र दुख और पीड़ा की संज्ञा देना जीवन और जगत् दोनों ही का तिरस्कार है। क्या आपने देखा नहीं कि संसार में काँटे ही नहीं होते, फूल भी खिलते हैं। जीवन में बुढ़ापा ही नहीं यौवन भी होता है। जीवन निराशा द्वारा नहीं, बल्कि आशाओं और मधुर कामनाओं द्वारा निर्मित हुआ है। हृदय की पवित्र एवं कोमल भावनाएँ निरर्थक नहीं हो सकतीं। क्या बाग़ के किसी सुन्दर महकते फूल को निरर्थक कह सकते हैं?
इस्लाम एक परिचय
इस्लाम किसी जाति या क्षेत्र विशेष का धर्म नहीं, बल्कि समस्त मानवजाति और पूरे संसार के लिए एक स्वाभाविक जीवन व्यवस्था है। यह जीवन व्यवस्था ख़ुद अल्लाह ने बनाई है, इसलिए इसे मानने में ही सबका भला है। आम तौर से मुसलमानों को भी एक जाति समझ लिया गया है और इस्लाम को केवल उन्हीं का धर्म, जिस तरह संसार में बहुत-सी जातियॉ और बहुत से धर्म हैं। लेकिन यह सही नहीं है भ्रम है। सच यह है कि मुसलमान इस अर्थ में एक जाति नहीं हैं, जिस अर्थ में वंश, वर्ण और देश के सम्बन्ध से जातियाँ बना करती हैं और इस अर्थ में इस्लाम भी किसी विशेष जाति का धर्म नहीं है।
इस्लाम में बलात् धर्म परिवर्तन नहीं
इस्लाम को लेकर आम लोगों में बहुत ग़लतफ़हमियां फैली हुई है। इसका बुनियादी कारण यह है कि इस्लाम के अनुयायियों ने उन लेगों के बीच इस्लाम का परिचय नहीं कराया, जो इस्लाम से अपरिचित थे, जबकि आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने उन्हें यह ज़िम्मेदारी सौंपी थी कि उन लोगों तक इस्लाम के पैग़ाम को पहुंचाएं, जिन तक यह नहीं पहुंचा है। इस के अलावा कुछ लोगों ने अपना हित साधने के लिए इस्लाम के विरुद्ध जो द्वेषपूर्ण तथा निराधार प्रचार कर के इस्लाम को बदनाम करने की कोशिश भी की है और इस्लाम के बिरुद्ध कई तरह की भ्रांतियों को हवा दी है। यह पुस्तिका ऐसी ही भ्रांतियों को दूर करने की कोशिश है। विशेष रूप से इस में जिहाद और जिज़्या की वास्तविकता पर बात की गई है। यह पुस्तिका पहली बार 1945 ई० में प्रकाशित हुई थी। आज भी इसकी प्रसांगिकता कम नहीं हुई है।
इस्लाम का परिचय
आर्य समाज स्युहारा, ज़िला बिजनौर ने अपने चौंसठ वर्षीय समारोह के अवसर पर नवम्बर सन् 1951 के अन्त में एक सप्ताह मनाया। इस मौक़े पर 21 नवम्बर को एक आम धार्मिक सभा भी हुई जिसमें विभिन्न धर्मों के विद्वानों ने शामिल होकर अपने विचार व्यक्त किये। यह लेख इसी अंतिम सभा में पढ़ा गया।
इस्लाम की सार्वभौमिक शिक्षाएं
धरती पर मनुष्य ही वह प्राणी है जिसे विचार तथा कर्म की स्वतंत्रता प्राप्त है, इसलिए उसे संसार में जीवन-यापन हेतु एक जीवन प्रणाली की आवश्यकता है। मनुष्य नदी नहीं है जिसका मार्ग पृथ्वी की ऊंचाई-नीचाई से स्वयं निश्चित हो जाता है। मनुष्य निरा पशु-पक्षी भी नहीं है कि पथ-प्रदर्शन के लिए प्राकृति ही प्रयाप्त हो। अपने जीवन के एक बड़े भाग में प्राकृतिक नियमों का दास होते हुए भी मनुष्य जीवन के ऐसे अनेक पहलू रखता है जहां कोई लगा-बंधा मार्ग नहीं मिलता, बल्कि उसे अपनी इच्छा से मार्ग का चयन करना पड़ता है। स्पष्ट है कि इसके लिए मनुष्य को एक जीवन पद्धति की आवश्यकता है। यह पद्धति कैसी होगी और उसे कौन निर्धारित करेगा ताकि यह हमेशा के लिए और संसार के हर क्षेत्र में रहनेवाले मनुष्य के लिए स्वीकार्य हो और हरेक के लिए उसका अनुसरण आसान हो। लेखक ने इसी विषय पर चर्चा की है।
बाबा साहब डा. अम्बेडकर और इस्लाम
आर एस आदिल एक जाने माने दलित स्कॉलर हैं, जिन्होंने इस्लाम का अध्ययन करने के बाद उसे स्वीकार कर लिया। प्रस्तुत पुस्तिका में उन्होंने इस्लाम के बारे में डॉ० अम्बेडकर के विचारों का जायज़ा लिया है। इस्लाम के बारे में सकारात्मक विचार रखने और इस्लाम अपनाने की प्रबल इच्छा के बावजूद, वे क्या परिस्थितियां थीं कि डॉ० अम्बेडकर को इस्लाम के बजाय बौद्ध धर्म अपनाना पड़ा, इन प्रश्नों का लेखक ने विस्तार से और हवालों के साथ जायज़ा लिया है।
इस्लाम का ही अनुपालन क्यों ?
इस्लाम मात्र एक धर्म नहीं है यह एक संपूर्ण जीवन व्यवस्था है, जो जीवन के प्रत्येक विभाग में मार्गदर्शन करती है। यह व्यवस्था स्वयं ईश्वर की बनाई हुई है, जो सर्वजगत का रचयिता स्वामी और पालनहार है, इसलिए इस व्यवस्था में किसी प्रकार की भी त्रुटी का आशंका भी नहीं की जा सकती। यही बात क़ुरआन ने बार-बार दोहराई है और विभिन्न दृष्टि से समझाने की कोशिश की है। प्रस्तुत पुस्तिका क़ुरआन की उन्हीं शिक्षाओं पर आघारित है। इसमें बड़े तार्किक और वैज्ञानिक ढंग से इस तथ्य को उजागर किया गया है कि इस्लाम ही का अनुपालन करना क्यों ज़रूरी है।
एकेश्वरवाद (तौहीद) मानव-प्रकृति के पूर्णतः अनुकूल है
एकेश्वरवाद (तौहीद) दिल की दुनिया बदल देने वाली एक क्रांतिकारी, कल्याणकारी, सार्वभौमिक, सर्वाधिक महत्वपूर्ण और मानव-स्वभाव के बिल्कुल अनुकूल अवधारणा है जो आदमी को सिर्फ़ और सिर्फ़ एक अल्लाह या ईश्वर की बन्दगी और दासता की शिक्षा देती है। एक अल्लाह के आगे सजदा करने या झुकने वाला आदमी बाक़ी सारे बनावटी और नक़ली ख़ुदाओं के सजदे और दासता से छुटकारा पा जाता है। और अल्लाह की नज़र में सारे इंसान एक समान हो जाते हैं। अल्लाह की नज़र में किसी के बड़ा या छोटा होने का मानदंड उसका कर्म है।जिसका कर्म जितना अच्छा होगा, वह उतना ही बड़ा और ऊंचा होगा और जिसका कर्म जितना बुरा होगा वह उतना ही छोटा या अधम और नीच होगा। आदमी का कर्म ही उसे लोक-परलोक में सफल या असफल बनाएगा और स्वर्ग या नरक में ले जाएगा। प्रस्तुत लेख में एकेश्वरवाद पर बड़े ही तार्किक ढंग से बात की गई है।
धर्म का वास्तविक स्वरुप
संसार में जितने भी धर्म ईश्वरीय धर्म होने का दावा करते है, वे सभी एक ही धर्म के अलग-अलग संस्करण हैं। ये ईश्वर के पैग़म्बरों द्वारा अलग अलग ज़मानों में अलग-अलग देशों में लाए गए। कालांतर में उनकी शिक्षाओं में फेर बदल कर के उनका रूप बिगाड़ दिया गया। यही कारण है कि ऐसे सभी धर्मों में एकेश्वरवाद, ईशदुतत्व और मरने के बाद के जीवन और स्वर्ग नरक की मान्यता मिलती है। प्रस्तुत लेख में हम देखेंगे कि भारतीय धर्मग्रंथों ऐसी शक्षाएं कहां-कहां मौजूद हैं
परलोक और उसके प्रमाण
ईश्वर ने अपनी सर्वोत्तम कृति-मानव को कर्म की स्वतंत्रता प्रदान कर रखी है। इसी कर्म-स्वतंत्रता के आधार पर मानव अच्छे काम भी कर सकता है और बुरे काम भी। तत्वदर्शी ईश्वर ने इन दोनों प्रकार के कर्मों के अलग-अलग फल निर्धारित कर रखे है। मनुष्य को उनके कर्मों का पूरा-पूरा बदला परलोक में मिलेगा और मिलकर रहेगा। सुकर्मियों को उनके कर्म के बदले स्वर्ग की प्राप्ति होगी और कुकर्मियों को नरक में डाला जाएगा। स्वर्ग ही वह स्थान है, जहाँ सुकर्मी मानव को परमानन्द की प्राप्ति होगी। वहाँ वह सब कुछ होगा, जो वे चाहेंगे, बल्कि उससे भी अधिक बहुत कुछ होगा। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि इस्लाम परलोकपरायणता के नाम पर लोकविभुखता और पलायनवाद का पाठ नहीं पढ़ाता, बल्कि यह तो लौकिक एवं पारलौकिक जीवन के सामंजस्य की शिक्षा देता है। इसी सामंजस्य से मानव-जीवन लोक परलोक में संवर सकता है, संवर जाता है और इसके अभाव में विनाशकारी बिगाड़ का शिकार हो जाता है। इस्लाम की दृष्टि में, यह लोक परीक्षा-स्थल है और परलोक परिणाम-स्थल, क्योंकि परलोक में ही पूर्ण प्रतिफल की प्राप्ति संभव है। इस लोक में जो जितना अच्छा कर्म करेगा, वह लोक और परलोक दोनों में उतना ही अच्छा फल प्राप्त करेगा और जो इसके विपरीत कर्म करेगा उसे उसके कर्मानुसार बुरे परिणामों का सामना करना पड़ेगा। परलोकपरायणता मानव-हृदय में ईशभय उत्पन्न करती है और ईशभय मानव को हर हाल में मानव-मूल्यों की रक्षा करने की शिक्षा देता है।
जीवन, मृत्यु के पश्चात्
मौजूदा जगत्-व्यवस्था जो कि भौतिक क़ानूनों पर बनी है, एक वक़्त में तोड़ डाली जाएगी। उसके बाद एक दूसरी व्यवस्था का निर्माण होगा, जिसमें ज़मीन और आसमान और सारी चीज़ें एक दूसरे ढंग पर होंगी। फिर अल्लाह तआला तमाम इनसानों को जो शुरू दुनिया से क़ियामत तक पैदा हुए थे, दोबारा पैदा कर देगा और एक साथ उन सबको अपने सामने जमा करेगा। वहाँ एक-एक व्यक्ति का, एक-एक समुदाय का और पूरी मानवजाति का रिकार्ड किसी ग़लती और और कमी-बेशी के बिना सुरक्षित होगा। हर व्यक्ति के एक-एक अमल का जितना असर दुनिया में हुआ है, उसकी पूरी तफ़सील मौजूद होगी। वे तमाम नस्लें गवाहों में खड़ी होंगी, जो उस असर से प्रभावित हुईं। ये सारा कच्चा चिट्ठा अल्लाह की अदालत में पेश होगा और उसी के आधार पर हरेक व्यक्ति के पक्ष में या उसके विरुद्ध फ़ैसला होगा, उसे या तो शाश्वत सुख के स्वर्ग में भेज दिया जाएगा, या शाश्वत यातना के नरक में धकेल दिया जाएगा। वहां किसी की सिफ़ारिश नहीं चलेगी और न ही कोई जुर्माना स्वीकार होगा। वहां अल्लाह की दया और कृपा के सिवा कोई सहारा नहीं होगा।