ज़ैबुन निसा
रात का तीसरा पहर था मगर साहिल चाह कर भी सो नहीं पा रहा था बस बिस्तर पर करवटें बदलते हुए रह रहकर यही सोच रहा था क्या मैं भटक गया हूं? क्या मैं बदल गया हूं? आखिर मेरे अंदर यह परिवर्तन क्यों आया? किसने बदला मुझको? क्या स्कूल ने? क्या संगति ने? या उन दोस्तों ने जो खुद अंधकार में भटक रहे हैं? किसने? आखिर किसने? परंतु अब वापसी कैसे हो? मैं तो जीवन की धारा में खोकर इतना दूर निकल चुका हूं अब वापस कैसे लौटूं?
अगर वापस लौट भी गया तो कौन मुझे स्वीकार करेगा? शायद अब तक तो सबके मन से भी निकल चुका हूंगा मेरा अस्तित्व तो जैसे छिन्न-भिन्न होकर रह गया जीवन का स्वाद इतना भाया कि मैंने एक बार भी ना सोचा कि मेरी मां के मन पर क्या बीती होगी? जब कोई उनसे मेरे बारे में पूछता होगा या कहता होगा तब मेरी मां क्या उत्तर देती होगी? इसी व्याकुलता की अवस्था में वह बेड से उठा सामने टेबल पर रखे उस लिफाफे को देखकर एक बार फिर स्वयं की निंदा करते हुए कहा उठा रिश्ते कितने अर्थहीन हो गए मेरे लिए मां का पत्र आए दो दिन बीत चुके हैं मगर अभी तक मैंने पढ़ा ही नहीं यह सोचते हुए उसने कांपते हाथों से उसको पढ़ना शुरू किया। जहां कुछ लिखा था प्रिय बेटे सदा सुखी रहो मैं दुआ करती हूं तुम एक बार खुद को बदलने का सोचो क्योंकि अगर तुमने देर की तो समझ लेना फिर कभी तुम्हें वापसी का रास्ता नहीं मिलेगा तुमने एक बार भी न सोचा तुम्हारे कर्म पत्र में क्या क्या लिखा जा रहा है क्या तुम्हारा रास्ता सीधा है याद रखना अल्लाह किसी व्यक्ति को कदापि और समय नहीं देता जब तक उसके कर्म का समय पूरा होने का एक निश्चित वक्त नहीं आ जाता अंतिम ईश दूत हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने धिक्कार भेजी है स्त्री का रूप धारण करने वाले पुरुषों पर और पुरुषों का रूप अपनाने वाली स्त्रियों पर। यह महापाप है क़ुरआन कहता है जो व्यक्ति यह कर्म करता है उस पर अल्लाह की फिटकार आती है। इसलिए विनती करती हूं तुमसे अपने संसार के लिए इस तरह काम करो मानो कि तुम्हें हमेशा जीवित रहना है और अपने परलोक के लिए इस तरह तैयारी रखो मानो कि अगले क्षण तुम्हें मरना है। बेटा अच्छी और नसीहत भरी बातें बड़ी सच्ची हुआ करती हैं या यूं समझ लो यह जीवन की वह सच्चाई है जिसको कोई नहीं नकार सकता तभी तो हसन बसरी रहमतुल्लाह अलैहि ने कहा ए मनुष्य दो दिनों का संग्रह है जब एक दिन गुजर गया तो मानो कि जीवन का कोई अंश बीत गया प्रलय के दिन कोई भी व्यक्ति अपनी जगह से नहीं हिल सकेगा जब तक की चार प्रश्नों के उत्तर ना दे दे सारा जीवन कहां व्यतीत किया, यौवन किस काम में खपाया, धन कहां से कमाया और कहां खर्च किया, और अपने ज्ञान पर कहां तक अमल किया । तू मेरा पहले वाला साहिल क्यों नहीं रहा ।
पत्र का अंत तेरे मार्गदर्शन की दुआ के साथ ।
ओ मां ! यह कहते हुए सीधा-सीधा उस कमरे की ओर बढ़ा जहां उसका पार्टनर गहरी नींद में सो रहा था उसने आवाज दी सुनो जल्दी उठो मेरा दिल बहुत बेचैन है मगर उधर से बजाएं जवाब के पार्टनर ने करवट बदली तो वह और भी ज्यादा हताश हुआ तभी अचानक सामने दर्पण की तरफ उसकी नजर पड़ी उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वही उससे कह रहा हो मनुष्य सफल तब होता है जब वो संसार को नहीं बल्कि खुद को बदलना शुरू कर देता है पश्चाताप के आंसुओं से बदल जाता है भाग्य पछतावा आत्मा का स्नान है जो मौत की आख़री हिचकी तक खुला रहता है। हां यही सच है यह कहते हुए उसने अब अपना सामान बांधा और चल पड़ा अपने घर की तरफ। रास्ते भर यही सोचता रहा एक गलत निर्णय से इंसान को कहां से कहां तक पहुंचा देता है अब तक घर भी आ चुका था मगर उसमें इतनी हिम्मत नहीं थी दरवाजे पर दस्तक दे वहीं रुक गया चारों तरफ देखकर सोचने लगा कुछ भी तो नहीं बदला वही लान, वही झूला जिस पर बैठकर बचपन में मां से कहानियां सुना करता था सब कुछ वही रहा बचपन हां मासूम सा बचपन कितनी खुशियां देता है यह कहते हुए उसकी आंखें भीग गई और दिल से आवाज आई ए बचपन लौट के आजा मुझे खुल कर रोना है तभी उसकी तंद्रा भंग हुई नैना की आवाज से तुम लौट आए हो यही मेरी सफलता है मुझे विश्वास था तुम आओगे लोग लाख कहें यह मुमकिन नहीं मगर मैंने अल्लाह के आदेश तकदीर बदलती देखी हैं नैना अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी किस्सा हीर उसके गले लगकर सिसकते हुए बोला क्या मुझे क्षमादान मिलेगा मां क्यों नहीं नैना ने मुस्कुराते हुए कहा और उसके चेहरे पर बहते आंसुओं को अपने आंचल से पूछते हुए बोली सुबह का भूला शाम को लौट आए तो उसे भूला नहीं कहते?
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