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बेगर्ज़ मोहबत

बेगर्ज़ मोहबत

ज़ैबुन निसा

रमाकांत हां यही नाम था उनका बड़ा ही सब्रदार और हौसला रखने वाला ना किसी से शिकवा ना  कोई शिकायत बस जो मिल गया उसी को अपना नसीब मान लेना अकसर उन के दोस्त दीनानाथ उन से मज़ाक में कहते, अरे रमा तुम ऐसे क्यूँ हो? तो जानते हैं वो इस का क्या जवाब देते, बड़े हंस कर कहते, अल्लाह का कहना हैं, सब्र करने वालों को तो उनका बदला बेहिसाब दिया जाएगा, और इसी आदत ने आज उन्हें एक बार फिर उसी मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था जब बहू ने उन्हें नज़र अंदाज किया तब वो बिना कुछ कहें वहीं अपनी पुरानी पसंदीदा जगह पार्क में जाकर बैठ गए वहाँ बिखरी हरियाली और चारों तरफ़ खेलते बच्चों को देख कर सोचने लगे, कहाँ कमी रह गई थी राज की परवरिश और तरबियत में जो वो वक़्त के साथ अपने अखलाक़ को भुला बैठा जब तक रूपाली थी तब वो फिर भी कुछ मान रख लेता था मेरी बात का, लेकिन जब से वो इस दुनिया से गई वो सब कुछ मुझे किस बात से दुख पहुंचता है और किस बात से खुशी इस से उसे कोई सरोकार नहीं। मैँ सब के होते हुए भी तंनहाई के जंगल में भटक रहा हूँ।

अभी वो सोच में ही डूबे थे देखा सामने से नवीन अपना भेल पूरी का ठेला लिए आता नज़र आया उसे देखते ही उन्होंने उसे आवाज़ दी और कहा, एक प्लेट मेरे लिए भी बना दो बेटा, नवीन ने जब ये सुना तो बोला , आप तो कभी भेल पूरी नहीं खाते थे आज कैसे ये इच्छा जागी? नवीन के इस सवाल पर उन्होंने ठंडी आह भरते हुए कहा तेरी बात का जवाब ये अनबूझ पहेली है, पहले मकान कच्चे हुआ करते थे मगर उन में रहने वाले सच्चे हुआ करते थे आज मकान पक्के हैं मगर उन में रहने वालों के दिल कच्चे हैं उन में अपनापन प्यार की कमी सी है।

यह कह कर वो मुस्कुरा दिए और फिर घर की तरफ़ चल दिए इस एहसास के साथ; ( ईशदूत, नबी करीम (सल्ल॰ ) का कहना है : खुशियां और संमपन्नता धन की अधिकता से प्राप्त नहीं होती बल्कि खुशहाली तो मन की होनी चाहिए) हां यही सच है, ये कहते हुए  उन्होंने दहलीज़ पर क़दम रखा देखा घर के सभी छोटे–बड़े व्यस्त हैं अपनी –अपनी दुनिया में कोई मोबाईल में  तो कोई टीवी में किसी को यह एहसास नहीं था घर का बड़ा दाखिल हो चुका है। हां उन की खाँसी की आवाज़ से सब ज़रूर चौके, बहू ने पूछा, खाना  लगा दूँ क्या, उन्होंने जवाब दिया हां, और फिर आधा–अधूरा खाया उस के बाद अपने कमरें में जाकर कुछ देर किताबों की दुनिया में खोए रहे और कब नींद की आगोश में डूबे इस का पता सुबह कोयल की आवाज़ से हुआ कोयल उन्होंने पाल रखी थी या यूं समझ लें उन की तनहाई का साथी, बिस्तर से उठ कर कमरे से बाहर आए तो देखा राज ऑफिस जानें की तैयारी कर रहा है उन्होंने उस से कहा ,बेटा अबीर बहुत खेल कूद में रहता है उसे पढ़ने के लिए कहा करो ,इतना सुनना था राज ने झुझलाते हुए कहा ,पापा अभी नहीं खेलेगा तो कब खेलेगा, ये कह कर वो सीधा बाहर की तरफ़ चल दिया | टका सा जवाब सुनं कर  एक बार फिर रमाकांत को लगा जैसे उन की बात की कोई अहमियत नहीं मगर एक बार वो फिर मुस्कुरा दिए ये सोच कर खामोश रहना ही बेहतर है नई पीड़ी को ज़माने की हवा लग चुकी है |

समय पंख लगा कर उड़ रहा था राज को कोई परवाह नहीं थी अपने बूढ़े बाप की वो तो बस अपने ज़िंदगी के कामों में इतना खो चुका था उसे ये भी नहीं महसूस होता थोड़ा सा समय अपने बाप के लिए भी निकाल लिया करे ,उन के साथ बैठे बात करे ,हां जब कभी बात होती भी किसी मसले पर तो अंत होता उन की बात नीचे रख कर अपनी बात को ऊपर रखना | यहाँ भी रमाकांत बेटे के आगे खुद को हारा इस लिए मान लेते आज नहीं तो कल जान ही लेगा वो कहाँ गलत था |इसी बात ने रमाकांत को हार जाना सीखा दिया था ,फिर एक खामोशी हज़ार बात से बेहतर हुआ करती है | लेकिन अकसर तनहाई में बेटे की नाफ़रमानी का सोच कर उन के मन में एक काटा सा चुभता उन के मन में ,हां दिल भी टूटता,पर फिर ये सोच कर खुद को समझा लेते क्या पता कब अल्लाह हिदायत दे दे (मार्गदर्शन)

एक शाम बहुत तेज़ बारिश हो रही थी उन का दिल किया कुछ देर इस सुहावने मौसम का आनंद लिया जाए सब के साथ ,इसी लिए उन्होंने अपने पोते अबीर को आवाज़ दी ,वो दौड़ा चला आया ,तो उन्होंने कहा बेटा अपने पापा  माँ से जाकर कहो वो भी आए मेरे साथ यहाँ कुछ देर बैठे ,मैँ उन्हें एक कविता सुनाऊँगा ,हां कह देना साथ में चाय भी ले आए ,अच्छा दादा जी ,ये कह कर अबीर अंदर दौड़ा ,कुछ देर बाद क्या देखा ,घर की काम वाली चाय की ट्रे हाथ में लिए चली आ रही है ,ये नज़ारा काफ़ी था इस बात को समझने के लिए ,हमारे पास समय नहीं , एक प्याली चाय रिमझिम बरसती बूदें और रमाकांत की तंनहाई अब यही काफ़ी था उन के लिए ,उस पल समय जैसे थम सा गया था कपकपाते हाथों से उन्होंने कप उठाई और आसमान की तरफ़ देख कर कहा , मुझे इश्क़ के पंख लगा कर उड़ा , मेरी राख को जुगनू बना के उड़ा ) चाय खत्म हुई बारिश थमी और तनहाई का अहसास भी गहमा  गायब हुआ इस कविता के साथ।

अगले दिन फिर वही ज़िंदगी की  गहमा –गहमी ,जीवन इसी का नाम है । कहते हैं ना कुछ बातें कही नहीं जाती उनको सिर्फ़ महसूस किया जाता है ,प्यार अपनापन और आदर ये सब उसी के पहलू हैं समझो तो कामयाबी ना समझो तो बदकिसमती , तभी तो है ये नबी , का फ़रमान , ( पिता जनंत का दरमियानी दरवाज़ा है पस चाहे तो उस दरवाज़े को ज़ाया कर दो या उसकी हिफाज़त कर दो) आज की सुबह एक अजीब सी बैचनी रमाकांत के लिए लेकर आई थी , वो बहुत उलझे – उलझे से थे इसी वजह से राज से उनकी थोड़ी बहुत बहस भी हो गई थी राज ने पलट कर जवाब भी दे दिया था बस यही वजह रही वो बिना किसी से कुछ कहे जा पहुंचे उस जगह जिसे ज़माना ओल्ड – होम के नाम से जानता है ,यहा आकर वो वहाँ सब अजनबी लोगों के बीच रह कर ये देखना चाहते थे क्या इंसान अपनों के बिना जी सकता है ?

कुछ ही दिन गुज़रे थे उन्हें यहाँ आए एक रोज़ अचानक खबर मिली के अबीर का एक्सीडेंट हो गया है चोट इतनी गहरी थी उसे दो दिन तक होश ना आया इस दुख की घड़ी में राज बेहाल था उसका एकलौता बेटा मौत और ज़िंदगी के बीच झूल रहा था ,उस के दिल की हालत ऐसी थी जैसे साँसे होते हुए भी बेजान हो उस समय उसे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे रमाकांत उस के सामने खड़े हो जिन की आँखों में आँसू हैं वो रोना चाह रहें हैं मगर रो नहीं पा रहे | बस आज उसे अपनी हर गलती काका जवाब मिल गया था उनकी आँखों में छुपे आँसू को महसूस कर के वो जान चुका था माँ – बाप का दिल दुखाना उन का कहना ना मानना ,उनका आदर ना करना कितना बड़ा पाप है ,और उस की सज़ा अल्लाह दुनिया में ही किसी ना किसी रूप में दे ही देता है , ये सोचते हुए उस ने बेहोश अबीर की तरफ़ देखा ,और बिना किसी से कुछ कहे चल पड़ा (ओल्ड – होम ) की तरफ़ वहाँ पहुंचा तो मालूम हुआ रमाकांत थोड़ी देर पहले निकल चुके हैं हास्पिटल की तरफ़   ,वो वापस पलटा देखा रमाकांत अबीर के सिरहाने बैठे उस के सिर पर हाथ फेर रहे हैं उन्हें देख कर राज उनके गले से लग कर फूट पड़ा , बोला , पापा मैँ आप को लेने गया था आप को ढूंढ रहा था , राज अपनी बात पूरी भी ना कर पाया था रमाकांत ने उस के आँसू पोंछते हुए कहा ,बेटा ढूडा उसे जाता है जो खो गया हो मैँ तो सदा तुम्हारे पास हूँ बस महसूस करने वाली नज़र चाहिए ,दूसरी बात तुम मुझे कहाँ लेने गए थे।

मैँ गया कब था तुम्हारे बीच से बस मेरा वजूद वहाँ था पर मेरी रूह (आत्मा) तुम सब के बीच थी | 

यह कहते हुए उन्होंने राज के चेहरे पर से बहते हुए आँसुओ को पोंछा, तो राज ने उन का हाथ पकड़ कर कहा, मुझे माफ़ कर दें और घर लौट चलें, राज की ये बात सुन कर रमाकांत मुस्कुराते हुए बोले, याद रखना बच्चे कितनी भी गलतियाँ करें मगर माँ बाप के दिल से वो कभी नहीं निकलते क्यूंकी उनकी मुहबत (प्रेम) बेगर्ज़ हुआ करती है |

ये कहते हुए अब रमाकांत राज के साथ चल दिए अपने घर की तरफ़। 

 

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