ज़ैबुन निसा
आज बरसों बाद सूनी पड़ी हवेली में नदीम के आ जाने से चहल-पहल हुई थी ।
हवेली का कोना–कोना गूंज उठा था, उधर बगीचे में परिंदों ने एक अलग ही समा बांध रखा था, वो सब आपस में कह रहे थे अपना नन्हा दोस्त नदीम शहर से वापस लौट आया | अब बागीचे की दुगनी रौनक हो जाएगी। तभी मैना ने कहा, सुनो पर उस का दिल कैसे लगेगा यहाँ हवेली में सिर्फ़ उस की माँ ही रह गई हैं।
उस के अब्बा तो उस के कब के अल्लाह को प्यारे हो गए |
मैना की ये बात सुनकर पास की डाली पर बैठी नन्हीं चिडिया बोली, अरे नादान क्या इतना भी नहीं जानती जो आया है उसे एक दिन इस दुनिया से जाना भी होगा याद नहीं है ये नबी का फ़रमान, दुनिया एक मुसाफ़िरख़ाना है।
हां! तुमने ठीक कहा ।
मैंना ने ठंडी आह भरते हुए कहा, उन दोनों की बात चीत बंद देखा नदीम हवेली से बाहर जा रहा है उसे जाता देख कर मैंना बोली, अरे ये इस वक़्त कहाँ जा रहा है ? इस पर चिड़या ने मज़ाक में कहा, तुम्हारी आदत नहीं गई सब की टोह लेने की ?
कौन कब कहाँ जा रहा है क्यूँ जा रहा हैं ? ये कहती हुई वो उड़ गई, तो मैना दिल ही दिल में बोली, मुझे क्या करना कोई कहीं भी जाए |
अब तक नदीम घर से बहुत दूर नदी किनारे पहुँच चुका था, वहाँ ठंडी–ठंडी हवा चल रही थी नदीम ने सोचा कुछ देर यही कहीं आस-पास बैठा जाए । यही सोच कर वो वहीं नदी के किनारे बैठ गया के तभी अचानक वहाँ रेत पर उसे एक बहुत ही प्यारा सा मोती चमकता नज़र आया , उसने उस मोती को उठा लिया और घर ले आया, खाने पीने से फ़रिग होकर उस ने मोती को बड़ी हिफाज़त से एक छोटी सी डिबिया में रख दिया और फिर खुद सोंने चला गया।
क़रीब आधी रात के वक़्त उस की नींद टूटी । उस ने घबरा कर चारों तरफ़ देखा तो उसे वहाँ कोई भी नज़र ना आया ,वो सोचने लगा आखिर ये आवाज़ किसी हैं ? इसी सोच के साथ वो बिस्तर से उठा और गौर किया, तो हैरान रह गया आवाज़ उस कमरे से आ रही थी जहां उस ने मोती रखा था, वो कमरे की तरफ़ बढ़ा, तभी उस की नज़र अलमारी की तरफ़ गई जहां उस ने मोती रखा था देखा आवाज़ उस डिब्बी में से आ रही है पहले तो वो डरा फिर बड़ी हिम्मत कर के वहीं खड़े हो कर सुनंने लगा, मोती रो–रो कर अल्लाह से कह रहा था, या अल्लाह मुझे निजात दे दे इस अंधेरी कोठरी से जैसे तूने, हज़रत यूनुस को मछली के पेट से आज़ाद किया था ऐ अल्लाह मैँ दुआ करता हूँ ।
"तेरे सिवा कोई मआबूद नहीं तू पाक है, मैँ तो ज़ालिमों में से हो गया" । बस फिर क्या था इतना सुनना था नदीम ने उसी वक़्त मोती को डिब्बी से बाहर निकालते हुए कहा, मैंने सब सुनं लिया है, मुझे माफ़ कर दो मेरा यकीन करो सुबह मैँ तुम्हें तुम्हारी जगह छोड़ कर आऊँगा, ये कह कर नदीम सोने चला गया। और फिर अगली सुबह वो उस मोती को ले कर नदी किनारे पहुंचा और जैसे ही उस ने रेत पर उस मोती को रखा मोती बोल उठा।
"तुम कितने सच्चे हो और वादे के भी पक्के तुमने जो कहा वही किया तुम्हारा ये अमल देख कर अब मुझे याद आ रहे हैं प्यारे नबी जो बात के धनी थे, आप जो वादा कर लेते थे उसे पूरा कर के रहते थे।"
मोती की ये बात सुन कर नदीम मुस्कुरा दिया और अब वो अपने घर की तरफ़ चल दिया।
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