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कुरआन पढ़ने के बाद की दुआ

  1. ऐ अल्लाह ! मेरी क़ब्र की घबराहट को लगाव से बदल दे | ऐ अल्लाह ! मुझ पर महान क़ुरआन के द्वारा दया कर और उसे मेरा नायक, प्रकाश, मार्गदर्शन एवं दयालुता बना | ऐ अल्लाह ! उसमें से जो मैं भूल गया हूँ मुझे याद दिला, जो नहीं जानता मुझे सिखा और रात और दिन की घड़ियों में मुझे उसके पढ़ने का सौभाग्ये प्रदान कर | ऐ अल्लाह ! सारे संसार के पालनकर्ता स्वामी, इसे मेरे लिए दलील बना |

 

  1. बारे इलाहा! तूने अपनी किताब के ख़त्म करने पर मेरी मदद फ़रमाई। वह किताब जिसे तूने नूर बनाकर उतारा और तमाम किताबे समाविया पर उसे गवाह बनाया और हर उस कलाम पर जिसे तूने बयान फ़रमाया उसे फ़ौक़ीयत बख़्शी और (हक़ व बातिल में) हद्दे फ़ासिल क़रार दिया जिसके ज़रिये हलाल व हराम अलग-अलग कर दिया। वह कुरआन  जिसके ज़रिये शरीयत के एहकाम वाज़ेह किये वह किताब जिसे तूने अपने बन्दों के लिये शरह व तफ़सील से बयान किया और वह वही (आसमानी) जिसे अपने पैग़म्बर सल्लल्लाहो अलैहे वालेहीवसल्लम पर नाज़िल फ़रमाया जिसे वह नूर बनाया जिसकी पैरवी से हम गुमराही व जेहालत की तारीकियों हिदायत हासिल करते हैं और उस शख़्स के लिये शिफ़ा क़रार दिया जो उस पर एतबार रखते हुए उसे समझना चाहते हैं और ख़ामोशी के साथ उसे सुने और वह अद्ल व इन्साफ़ का तराज़ू बनाया जिसका कांटा हक़ से इधर-उधर नहीं होता और वह नूरे हिदायत क़रार दिया जिसकी दलील व बुरहान की रोषनी (तौहीद व नबूवत की) गवाही देने वालों के लिये बुझती नहीं और वह निजात का निशान बनाया के जो उसके सीधे तरीक़े पर चलने का इरादा करे वह गुमराह नहीं होता और जो उसकी दीसमान के बन्धन से वाबस्ता हो वह (ख़ौफ़ व फ़क्र व अज़ाब की) हलाकतों की दस्तरसी से बाहर हो जाता है। बारे इलाहा! जबके तूने उसकी तिलावत के सिलसिले में हमें मदद पहुंचाई और उसके हुस्ने अदायगी के लिये हमारी ज़बान की गिरहें खोल दीं तो फिर हमें उन लोगों में से क़रार दे जो उसकी पूरी तरह हिफ़ाज़त व निगेहदाश्त करते हों और उसकी मोहकम आयतों के एतराफ़ व तस्लीम की पुख़्तगी के साथ तेरी इताअत करते हों और मुतशाबेह आयतों और रोशन व वाज़ेह दलीलों के इक़रार के साये में पनाह लेते हों।

ऐ अल्लाह! तूने उसे अपने पैग़म्बर मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह वआलेही वसल्लम पर इजमाल के तौर पर उतारा और उसके अजाएब व इसरार का पूरा-पूरा आलम उन्हें अलक़ा किया और उसके इल्मे तफ़सीली का हमें वारिस क़रार दिया, और जो इसका इल्म नहीं रखते उन पर हमें फ़ज़ीलत दी। और उसके मुक़तज़ीयात पर अमल करने की क़ूवत बख़्शी ताके जो उसके हक़ाएक़ के मुतहम्मिल नहीं हो सकते उन पर हमारी फ़ौक़ीयत व बरतरी साबित कर दे।

ऐ अल्लाह! जिस तरह तूने हमारे दिलों को कुरआन  का हामिल बनाया और अपनी रहमत से उसके फ़ज़्ल व शरफ़ से आगाह किया यूँ ही मोहम्मद (स0) पर जो कुरआन  के ख़ुत्बा ख़्वाँ, और उनकी आल (अ0) पर जो कुरआन  के ख़ज़ीनेदार हैं रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें उन लोगों में से क़रार दे जो यह इक़रार करते हैं के यह तेरी जानिब से है ताके इसकी तस्दीक़ में हमें शक व शुबह लाहक़ न हो और उसके सीधे रास्ते से रूगर्दानी का ख़याल भी न आने पाए। 

ऐ अल्लाह। मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमें उन लोगों में से क़रार दे जो उसकी रीसमान से वाबस्ता उमूर में उसकी मोहकम पनाहगाह का सहारा लेते और उसके परों के ज़ेरे साया मन्ज़िल करते, इसकी सुबह दरख़्शां की रोशनी से हिदायत पाते और उसके नूर की दरख़्शन्दगी पैरवी करते और उसके चिराग़ से चिराग़ जलाते हैं और उसके अलावा किसी से हिदायत के तालिब नहीं होते।


बारे इलाहा! जिस तरह तूने इस कुरआन  के ज़रिये मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैह वआलेही वसल्लम को अपनी रहनुमाई का निशान बनाया है और उनकी आल (अ0) के ज़रिये अपनी रज़ा व ख़ुशनूदी की राहें आशकार की हैं यूंही मोहम्मद (स0) और उनकी आल (अ0) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और हमारे लिये कुरआन  को इज़्ज़त व बुज़ुर्गी की बलन्दपाया मन्ज़िलों तक पहुंचने का वसीला और सलामती के मक़ाम तक बलन्द होने का ज़ीना और मैदाने हश्र में निजात को जज़ा में पाने का सबब और महल्ले क़याम (जन्नत) की नेमतों तक पहुंचने का ज़रिया क़रार दे।

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