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क़ुरआन के वैज्ञानिक सत्य

क़ुरआन के वैज्ञानिक सत्य

क़ुरआन ईश्वर की रचना है और ईश्वर द्वारा अवतरित ग्रंथ है जो सभी इन्सानों के मार्गदर्शन के लिए भेजा गया है। इसकी अद्भुत शैली से यह बात स्वयं ही स्पष्ट हो जाती है कि यह एक ईश-ग्रंथ है और इसके लिए किसी अतिरिक्त प्रमाण की आवश्यकता नहीं पड़ती। वैसे तो क़ुरआन विज्ञान की पुस्तक नहीं है परन्तु इसमें कुछ ऐसे वैज्ञानिक तथ्य मौजूद हैं, जिन्हें अब से 14 सदी पूर्व ईश्वर के अतिरिक्त कोई नहीं जान सकता था और जिनका ज्ञान इन्सान को बीसवीं सदी में पहुंचकर अनेक उपकरणों का प्रयोग करने के बाद हुआ। यह इसके ईश-ग्रंथ होने का एक ठोस प्रमाण है। इन सभी अंशों को एकत्रित किया जाए तो एक लम्बी सूची बन जाएगी। इनमें से कुछ यहां संक्षेप में प्रस्तुत हैं।    -संपादक

क़ुरआन न हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) की रचना है, न किसी दूसरे इन्सान की। यह तो ईश्वर द्वारा अवतरित ग्रंथ है जो सभी इन्सानों के मार्गदर्शन के लिए भेजा गया है और मुसलमानों का इस पर कोई आधिपत्य नहीं है। इसकी अद्भुत शैली से यह बात स्वयं ही स्पष्ट हो जाती है कि यह एक ईश-ग्रंथ है और इसके लिए किसी अतिरिक्त प्रमाण की आवश्यकता नहीं पड़ती।
वैसे तो क़ुरआन विज्ञान की पुस्तक नहीं है परन्तु इसमें कुछ ऐसे वैज्ञानिक तथ्य मौजूद हैं, जिन्हें अब से 1400 वर्ष पूर्व ईश्वर के अतिरिक्त कोई नहीं जान सकता था और जिनका ज्ञान इन्सान को बीसवीं शताब्दी में पहुंचकर अनेक उपकरणों का प्रयोग करने के बाद हुआ। यह इसके ईश-ग्रंथ होने का एक ठोस प्रमाण है। इन सभी अंशों को एकत्रित किया जाए तो एक लम्बी सूची बन जाएगी और अगर विस्तार से इनका वर्णन किया जाए तो अनगिनत पुस्तकें तैयार हो जाएंगी। इनमें से कुछ यहां संक्षेप में प्रस्तुत हैं।

विश्व की रचना

आधुनिक खगोल-भौतिकी (Astro Physics) इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि सम्पूर्ण विश्व एक महाविस्फोट के नतीजे में अस्तित्व में आया। इससे पूर्व न तो कोई भौतिक तत्व था, न ही समय। इसी शून्य की स्थिति से इस विश्व की रचना हुई। सन् 1992 में नासा ने COBE अन्तरिक्ष-यान द्वारा लिए गए चित्रों के आधार पर भी यही निष्कर्ष निकाला कि महाविस्फोट से ही इस विश्व का आरंभ हुआ है उससे पूर्व शून्य के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था। क़ुरआन में ईश्वर ने इस सत्य को इस प्रकार व्यक्त किया है—
‘‘वह तो आकाशों और धरती का आविष्कारक है।’’ (क़ुरआन, 6:101)

संसार का विस्तार हो रहा है

इस विशाल संसार की सीमाएं स्थिर या स्थैतिक नहीं हैं बल्कि इनमें हर पल विस्तार हो रहा है। बीसवीं शताब्दी के आरंभ में रूस के भौतिक-शास्त्री अलेक्जेंडर फ्रीडमैन ने यह खोज की कि यह संसार स्थिर नहीं है और इसकी सीमाओं में निरंतर विस्तार हो रहा है। 1929 में ‘हबल’ दूरबीन से इसकी पुष्टि भी हो गई। इसके पहले हज़ारों वर्षों से यही धारणा थी कि यह विश्व एक स्थिर इकाई है।
अब से 1400 वर्ष पूर्व जबकि न तो भौतिक विज्ञान का कोई अस्तित्व था न दूरबीन का, क़ुरआन ने इस सत्य की घोषणा कर दी थी।
‘‘आसमान (अर्थात् ब्रह्माण्ड) को हमने अपने ज़ोर से बनाया और हम ही उसका विस्तार भी कर रहे हैं।’’ (क़ुरआन, 51:47)

सूर्य और अन्य सभी ग्रहों की अपने-अपने कक्ष में परिक्रमा

खगोलशास्त्र ने अब यह सत्य स्थापित कर दिया है कि सूर्य और अन्य सभी ग्रह जो कि आकाश में पाए जाते हैं, अपने-अपने कक्ष में परिक्रमा कर रहे हैं। सूर्य 72,000 किमी॰ प्रतिघंटे की रफ़्तार से प्रतिदिन 17,280,000 किमी॰ की दूरी तय करता है। इस सौरमंडल में स्थित सभी ग्रह एवं उपग्रह भी सूर्य के साथ ही चक्कर लगाते हैं। अनुमान है कि इस संसार में 200 अरब आकाशगंगा अपने-अपने सूर्य और अनगिनत ग्रह-उपग्रह के साथ अपने-अपने कक्ष में परिक्रमा कर रहे हैं।
कु़रआन ने इस सत्य को 1400 वर्ष पूर्व इस प्रकार व्यक्त किया है—
‘‘और वह अल्लाह ही है जिसने रात और दिन बनाए और सूरज और चांद की रचना की। सब एक-एक कक्ष में तैर रहे हैं।’’ (क़ुरआन, 21:33)

लोहे का स्रोत

आधुनिक युग में खगोलशास्त्रियों ने यह खोज की है कि पृथ्वी पर जितना भी लोहा पाया जाता है उसका उत्पादन पृथ्वी पर नहीं, बल्कि अंतरिक्ष में फैले हुए बड़े-बड़े सितारों पर हुआ था और उल्कापिंड के पृथ्वी से टकराने से यहां तक पहुंचा है।
क़ुरआन ने लोहे के पृथ्वी के बाहर से यहां आने की बात 1400 वर्ष पूर्व ही बता दी थी।
‘‘...और हमने लोहा उतारा जिसमें बड़ा ज़ोर है और लोगों के लिए लाभ है...।’’ (क़ुरआन, 57:25)
यहां ‘‘उतारा’’ शब्द इस ओर संकेत कर रहा है कि लोहा पृथ्वी पर उत्पन्न नहीं हुआ बल्कि बाहर से आया है।

संसार में हर चीज़ जोड़े के रूप में पाई जाती है

1933 में ब्रिटेन के वैज्ञानिक ‘पॉल डिराक’ ने यह खोज की कि संसार में हर चीज़ जोड़े के रूप में पाई जाती है। इस खोज के लिए उसे नॉबेल पुरस्कार भी दिया गया।
अब से 1400 वर्ष पूर्व ईश्वर इस सत्य की घोषणा क़ुरआन में इन शब्दों में कर चुका था—
‘‘पवित्र है वह सत्ता जिसने सब प्रकार के जोड़े पैदा किए चाहे वे ज़मीन की वनस्पतियों में से हों या ख़ुद उनकी अपनी जाति (अर्थात् मानवजाति) में से या उन चीज़ों में से जिनको ये जानते तक नहीं हैं।’’ (क़ुरआन, 36:36)
‘‘और हर चीज़ के हमने जोड़े बनाए हैं। शायद कि तुम उससे शिक्षा ग्रहण करो।’’ (क़ुरआन, 51:49)

समय की सापेक्षता

बीसवीं शताब्दी के आरंभ में ‘आइंसटाइन’ ने सबसे पहले ‘सापेक्षता के सिद्धांत’ के माध्यम से ‘समय की सापेक्षता’ को उजागर किया। इससे पूर्व लोगों को इसका कोई ज्ञान नहीं था और वह यह नहीं जानते थे कि समय पर अन्य तथ्यों का प्रभाव भी पड़ता है। उसने प्रमाणित किया कि भार और गति के परिवर्तन से समय भी परिवर्तित होता है। ईश्वर ने 1400 वर्ष पूर्व ही क़ुरआन में इस ओर संकेत कर दिया था।
‘‘ये लोग अज़ाब के लिए जल्दी मचा रहे हैं। अल्लाह हरगिज़ अपने वादे के ख़िलाफ़ नहीं करेगा, मगर तेरे रब के यहां का एक दिन तुम्हारी गणना के हज़ार वर्ष के बराबर हुआ करता है।’’ (क़ुरआन, 22:47)
‘‘वह आसमान से ज़मीन तक दुनिया के मामलों का संचालन करता है और इस संचालन का ब्योरा उसके पास जाता है एक ऐसे दिन में जिसकी माप तुम्हारी गणना से एक हज़ार वर्ष है।’’ (क़ुरआन, 32:5)

पृथ्वी के वातावरण की परतें

अब वैज्ञानिकों ने यह खोज कर ली है कि हमारी पृथ्वी के चारों ओर का पूरा वातावरण सात परतों में बना है। इन परतों के नाम इस प्रकार हैं—
क्षोभ-मंडल (Tropo-sphere), समताप-मंडल (Strato-sphere), मध्य-मंडल (Meso-sphere), ताप-मंडल (Thermo-sphere), आयन-मंडल (Iono-sphere), बाह्य-मंडल (Exosphere) और ओज़ोन-मंडल (Ozone-sphere)।
ईश्वर ने क़ुरआन के माध्यम से इन्सानों को इस सत्य से 1400 पूर्व ही अवगत करा दिया था। साथ ही उसने यह भी अवगत करा दिया था कि इनमें से हर परत की अलग भूमिका है जो उसके लिए निर्धारित कर दी गई है।
‘‘वही तो है जिसने तुम्हारे लिए धरती की सारी चीज़ें पैदा की, फिर ऊपर की ओर रुख़ किया और सात आसमान ठीक तौर पर बनाए। और वह हर चीज़ का ज्ञान रखने वाला है।’’ (क़ुरआन, 2:29)
‘‘फिर उसने आसमान की ओर रुख़ किया जो उस समय सिर्फ़ धुआं था। उसने आसमान और ज़मीन से कहा, ‘‘अस्तित्व ग्रहण करो, चाहे तुम चाहो या न चाहो।’’ दोनों ने कहा—‘‘हम आ गए आज्ञाकारियों की तरह।’’ तब उसने दो दिन के अन्दर सात आसमान बना दिए, और हर आसमान में उसके क़ानून की प्रकाशना कर दी।’’ (क़ुरआन, 41:11-12)

वर्षा उपक्रम

बीसवीं शताब्दी से पूर्व यह धारणा थी कि वर्षा में हवाओं की भूमिका मात्र बादलों को इधर-उधर उड़ाने की है। परन्तु आज मौसम विज्ञान का मानना है कि हवाएं बादलों को उड़ाने के अतिरिक्त समुद्र के पानी को बादल में परिवर्तित करने का काम भी करती हैं। यदि हवा में यह विशेषता न होती तो न बादल बनता और न वर्षा होती।
ईश्वर ने, जिसने इस सारे प्रक्रम की रचना की, 1400 वर्ष पूर्व क़ुरआन में इस सत्य को व्यक्त कर दिया था।
‘‘फलदायक हवाओं को हम ही भेजते हैं, फिर आसमान से पानी बरसाते हैं और उस पानी से तुम्हें सिंचित कर देते हैं।’’ (क़ुरआन, 15:22)
‘‘अल्लाह ही है जो हवाओं को भेजता है और वे बादल उठाती हैं, फिर वह उन बादलों को आसमान में फैलाता है जिस तरह चाहता है और उन्हें टुकड़ियों में बांटता है, फिर तू देखता है कि वर्षा की बूंदे बादल में से टपकी चली आती हैं। यह वर्षा जब वह अपने बन्दों में से जिन पर चाहता है बरसाता है तो अचानक वे ख़ुश और प्रसन्न हो जाते हैं, हालांकि इसके उतरने से पहले वे निराश हो रहे थे।’’ (क़ुरआन, 30:48-49)

दो प्रकार के समुद्र

समुद्र का पानी कहीं पर मीठा होता है और कहीं पर खारा। एक ही समुद्र होने के बाद भी यह पानी आपस में मिलते नहीं। इसका ज्ञान समुद्र वैज्ञानिकों को अब से कुछ ही वर्ष पूर्व हुआ है जब पृष्ठ-तनाव (Surface Tension) की खोज हो गई। क़ुरआन में ईश्वर ने इस अद्भुत तथ्य से मनुष्य को 1400 वर्ष पूर्व ही अवगत करा दिया था।
‘‘दोनों समुद्रों को उसने छोड़ दिया कि परस्पर मिल जाएं, फिर भी उनके बीच एक परदा पड़ा है जिसको वे पार नहीं करते।’’ (क़ुरआन, 55:19-20)
‘‘और वही है जिसने दो समुद्रों को मिला रखा है। एक स्वादिष्ट और मीठा, दूसरा कड़ुआ और खारा। और दोनों के बीच एक परदा पड़ा है। एक रुकावट है जो उन्हें गड्मड् होने से रोके हुए है।’’ (क़ुरआन, 25:53)

समुद्र की गहराई में लहरों और प्रकाश की स्थिति

उपकरणों की सहायता के बिना इन्सान समुद्र में 40 मीटर से अधिक गहराई तक प्रवेश नहीं कर सकता। परन्तु आधुनिक युग में ऐसे उपकरणों का आविष्कार हो गया है कि 200-300 मीटर की गहराई तक प्रवेश संभव हो गया है और वहां पर लहरों और प्रकाश की स्थिति के बारे में जानना बहुत सरल हो गया है। लंदन से प्रकाशित पुस्तक ‘समुद्र’ में इस विषय पर विस्तार से जानकारी उपलब्ध है। समुद्र-विज्ञान ने यह ज्ञात कर लिया है कि समुद्र की सतह के नीचे भी लहरें होती हैं और गहराई में धनत्व के साथ ही लहरों के स्वरूप में भी परिवर्तन हो जाता है। इन आन्तरिक लहरों को आंखों से नहीं देखा जा सकता। यह भी ज्ञात हुआ है कि समुद्र की सतह के नीचे गहराई के साथ अंधकार बढ़ता जाता है।
क़ुरआन के ईश-ग्रंथ होने का यह एक बड़ा प्रमाण है कि इसमें 1400 वर्ष पूर्व ही इन आन्तरिक लहरों और वहां पर व्याप्त अंधकार के बारे में चर्चा मिलती है।
‘‘या फिर (इन्कार करने वालों के कर्मों की) मिसाल ऐसी है जैसे एक गहरे समुद्र में अंधकार, कि ऊपर एक मौज छाई हुई है, उस पर एक और मौज और उसके ऊपर बादल, अंधकार पर अंधकार छाया हुआ है, आदमी अपना हाथ निकाले तो उसे भी न देखने पाए। जिसे अल्लाह प्रकाश न प्रदान करे उसके लिए फिर कोई प्रकाश नहीं।’’ (क़ुरआन, 24:40)

गर्भ में भ्रूण के विकास के विभिन्न चरण

भ्रूण-विज्ञान ने आज यह ज्ञात कर लिया है कि मां के गर्भ में भ्रूण किन-किन चरणों से गुज़रता हुआ एक जीवित शिशु की अवस्था को पहुंचता है। अब से 1400 वर्ष पूर्व इस विषय में किसी को कोई ज्ञान नहीं था। उस समय ईश्वर ने क़ुरआन में इस विषय पर जो बातें अवतरित की थीं उनके आधार पर निम्नलिखित सत्य की स्थापना हो गई थी—
(क) पुरुष के वीर्य के अति-सूक्ष्म अंश से ही मनुष्य के जीवन की नींव पड़ती है।
‘‘क्या इन्सान ने यह समझ रखा है कि वह यूं ही आज़ाद छोड़ दिया जाएगा? क्या वह एक तुच्छ पानी का वीर्य न था जो (मां के गर्भाशय में) टपकाया जाता है?’’  
(क़ुरआन, 75:36-37)
(ख) शिशु के लिंग का चयन पुरुष के शुक्राणु पर निर्भर करता है न कि स्त्री के।
‘‘और यह कि उसी ने नर और मादा का जोड़ा पैदा किया एक बूंद से जब वह टपकाई जाती है।’’ (क़ुरआन, 53:45-46)
(ग) भ्रूण आरंभिक अवस्था स्त्री के गर्भ में जोंक की तरह चिपका होता है।
‘‘जमे हुए ख़ून के एक लोथड़े से इन्सान की रचना की।’’ (क़ुरआन, 96:2)
(घ) भ्रूण को मां के गर्भ के अंधकार में तीन चरणों से गुज़रना पड़ता है।
‘‘...वह तुम्हारी मांओं के पेटों में तीन-तीन अंधकारमय परदों के भीतर तुम्हें एक के बाद एक रूप देता चला जाता है...।’’ (क़ुरआन, 39:6)
(ड़) मां के गर्भ में पहले हड्डी का निर्माण होता है फिर उस पर गोश्त की परत चढ़ाई जाती है।
‘‘फिर उस बूंद को लोथड़े का रूप दिया, फिर लोथड़े की बोटी बना दिया, फिर बोटी की हड्डियां बनाईं, फिर हड्डियों पर मांस चढ़ाया, फिर उसे एक दूसरी ही सृष्टि बना खड़ा किया।’’ (क़ुरआन, 23:14)

शिशु के लिए मां के दूध का महत्व

मां का दूध नवजात शिशु के शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए कितना आवश्यक है यह बात किसी से छिपी नहीं है। बाज़ार में बिकने वाला कृत्रिम दूध मां के दूध का बदल नहीं हो सकता। आहार विशेषज्ञों ने यह बात भी ज्ञात कर ली है कि जन्म के उपरांत दो वर्ष तक मां का दूध शिशु के लिए अति लाभदायक होता है।
यह जानकारी ईश्वर ने क़ुरआन में 1400 वर्ष पूर्व ही दे दी थी कि मां को दो वर्ष तक नवजात शिशु को अपना ही दूध पिलाना चाहिए।
‘‘और यह वास्तविकता है कि हमने इन्सान को अपने मां-बाप का हक़ पहचानने की स्वयं ताकीद की है। उसकी मां ने कमज़ोरी पर कमज़ोरी झेलकर उसे अपने पेट में रखा और दो वर्ष उसका दूध छूटने में लगे। (इसीलिए हमने इन्सान को नसीहत की कि) मेरे प्रति कृतज्ञता दिखाओ और अपने मां-बाप के प्रति कृतज्ञ हो, मेरी ही ओर तुझे पलटना है।’’ (क़ुरआन, 31:14)

स्रोत

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