हदीस
Found 15 Posts
हदीस सौरभ भाग-5 (अनुवाद एवं व्याख्या सहित)
ऑनलाइन पुस्तकें पढ़नेवाले दोस्तों की सेवा में हदीस-सौरभ, भाग-5 को, जो हदीस-सौरभ का अंतिम भाग है, प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त ख़ुशी हो रही है। यह ख़ुदा की कृपा और उसकी विशिष्ट अनुकम्पा है कि उसने हमें यह सुअवसर प्रदान किया। इस भाग में धर्म-आमंत्रण और आह्वान करने के विभिन्न पक्षों से सम्बद्ध हदीसें और उनकी व्याख्या करने का प्रयास किया गया है। उन अध्यायों में हदीसों के प्रकाश में मानव के वैचारिक और व्यावहारिक जीवन पर एक गहरी दृष्टि डालते हुए यह दिखाने का प्रयास किया गया है कि मनुष्य की सफलता और असफलता की धारणा जो हदीसों में प्रस्तुत की गई है, वह हर प्रकार के दोषों और त्रुटियों से मुक्त है। मनुष्य की वास्तविक सफलता इसमें नहीं है कि दुनिया में उसे सुख-सुविधापूर्ण जीवन प्राप्त हो, बल्कि मनुष्य की वास्तविक सफलता इसमें है कि सांसारिक जीवन में वह एक उच्चतम चरित्र का प्रतिरूप हो और अपने विचार और कर्म द्वारा दुनिया को वह मार्ग दिखाए जो सत्य, सफलता और कल्याण का मार्ग है, इसी मार्ग को क़ुरआन ने सिराते-मुस्तक़ीम (सीधा मार्ग) कहा है। अल्लाह से प्रार्थना है कि वह इस सेवा को स्वीकृति प्रदान करे और अधिक-से-अधिक लोग इससे लाभ उठाएँ।
हदीस सौरभ भाग-4 (अनुवाद एवं व्याख्या सहित)
ऑनलाइन पुस्तकें पढ़नेवाले दोस्तों की सेवा में 'हदीस सौरभ, का भाग-4' प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त ख़ुशी हो रही है। यह ख़ुदा की कृपा और उसकी विशिष्ट अनुकम्पा है कि उसने हमें यह सुअवसर प्रदान किया। इस पुस्तक के भाग-1 से 3 तक में धारणा, उपासना, नैतिकता, और सामाजिक शिक्षाओं से सम्बन्धित हदीसों का संकलन प्रस्तुत किया गया है। चौथे भाग में इस्लामी अर्थव्यवस्था और इस्लामी राजनीति से सम्बन्धित हदीसों का संकलन प्रस्तुत किया जा रहा है। इसके अध्ययन से इसका भली-भाँति अनुमान किया जा सकता है कि वास्तव में इस्लाम एक पूर्ण धर्म और समस्त मानव-जीवन के लिए एक संग्राहक जीवन-व्यवस्था है। इस्लाम की अन्य शिक्षाओं की तरह अर्थ और राजनीति से सम्बन्धित इसकी शिक्षाएँ और आदेश भी न्याय पर आधारित हैं। इन शिक्षाओं से समस्त मानवजाति लाभान्वित हो सकती है।
हदीस सौरभ भाग-3 (अनुवाद एवं व्याख्या सहित)
ऑनलाइन पुस्तकें पढ़नेवाले दोस्तों की सेवा में 'हदीस सौरभ, का भाग-3' प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त ख़ुशी हो रही है। यह ख़ुदा की कृपा और उसकी विशिष्ट अनुकम्पा है कि उसने हमें यह सुअवसर प्रदान किया। हदीस सौरभ, भाग-1 में मौलिक धारणाओं और इबादतों तथा हदीस सौरभ, भाग-2 में नैतिकता से सम्बन्धित हदीसों और उनकी व्याख्याओं को प्रस्तुत करने की कोशिश की गई थी। हदीस सौरभ, भाग-3 का सम्बन्ध सामाजिकता से है। इसमें उन हदीसों का चयन और उनकी व्याख्या करने की कोशिश की गई है जिनका सम्बन्ध सामाजिकता के सिद्धान्तों एवं समस्याओं से है। अतएव इस भाग में सामाजिक संगठन, सामाजिक मूल्य, परिवार निर्माण, सम्बन्धों की व्यापक परिधि, सामूहिक हित-चेतना, सामाजिक जीवन के आचार और इस्लामी सभ्यता व संस्कृति से सम्बन्धित हदीसों को प्रस्तुत किया गया है और इस सम्बन्ध में चित्रकारी, संगीत, ज्योतिषविद्या और दवा-इलाज या वैद्यक इत्यादि के विवरण भी आए हैं। हमें उम्मीद है कि हदीस सौरभ के दूसरे भाग की तरह तीसरे भाग को भी हमारे पाठक पसन्द करेंगे और इसे उपयोगी पाएँगे। इन शिक्षाओं से समस्त मानवजाति लाभान्वित हो सकती है।
हदीस सौरभ भाग-2 (अनुवाद एवं व्याख्या सहित)
प्रस्तुत है, हदीस सौरभ भाग-2। इससे पूर्व इस पुस्तक का प्रथम भाग प्रस्तुत किया जा चुका है। प्रथम भाग में इस्लाम की मौलिक धारणाओं और इबादतों से सम्बन्धित हदीसों को संगृहीत किया गया है और हदीस सौरभ भाग-2 में पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की नैतिक शिक्षाओं का सविस्तार वर्णन किया गया है। इसी के साथ यह भी स्पष्ट किया गया है कि वे चीज़ें क्या हैं जो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की दृष्टि में अनैतिक हैं, जिनसे सावधान रहने की आवश्यकता है।
हदीस सौरभ भाग-1 (अनुवाद व व्याख्या सहित)
हदीस सौरभ के इस भाग में मौलिक धारणाओं और इबादतों से सम्बन्धी हदीसें प्रस्तुत की गई हैं। नैतिकता, समाज, शासन एवं राजनीति, अर्थनीति एवं अर्थव्यवस्था, सत्य का आह्वान और सत्य-प्रचार आदि से सम्बन्धित हदीसें पुस्तक के अन्य भागों में प्रस्तुत की जाएँगी।
हदीस प्रभा
इस्लाम को तफ़सील से समझने और सही मायनों में उसकी पैरवी का हक़ अदा करने के लिए अल्लाह के आख़िरी रसूल हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के काम और उनकी बातें (कथन) जिन्हें 'हदीस' कहा जाता है, से वाक़िफ़ होना बहुत ज़रूरी है। इसके बिना ख़ुद क़ुरआन मजीद को भी सही ढंग से नहीं समझा जा सकता। क़ुरआन की तरह हदीस की मूल भाषा भी चूंकि अरबी है, और अरबी जानने वाले बहुत थोड़े लोग हैं, अत: बाक़ी सभी लोगों को इस बड़ी नेमत का बोध कराने के लिए इसके सिवा और कोई रास्ता नहीं कि दूसरी ज़बानों में इसका तर्जुमा कराया जाए। यह किताब इसी प्रकार की एक मुबारक कोशिश का नतीजा है। इसमें सैकड़ों उनवानात (शीर्षकों) के तहत ऐसी चुनिंदा हदीसों को मुनासिब ढंग से जमा कर दिया गया है जो इंसान और इंसानी समाज के लगभग सभी पहलुओं को अपने अंदर समेट लेती हैं।
उलूमे-हदीस : आधुनिक काल में (हदीस लेक्चर 12)
इस चर्चा से दो चीज़ें पेश करना मेरा मक़सद है। एक तो इस ग़लतफ़हमी या कम-हिम्मती का खंडन कि इल्मे-हदीस पर जो काम होना था वह अतीत के वर्षों में हो चुका। और आज न इल्मे-हदीस पर किसी नए काम की ज़रूरत है और न कोई नया काम हो रहा है। मुहद्दिसीन के ये कारनामे सुनकर एक ख़याल यह ज़ेहन में आ सकता है कि जितना काम होना था वह हो चुका। जो शोध होना था वह हो चुका। अब और न किसी काम की ज़रूरत है और न किसी शोध की। यह ग़लतफ़हमी दूर हो सकती है अगर संक्षिप्त रूप से यह देख लिया जाए कि आजकल हदीस पर कितना काम हो रहा है और इसमें और किन-किन कामों के करने की संभावनाएँ हैं और क्या-क्या काम आगे हो सकते हैं।
भारतीय उपमहाद्वीप में इल्मे-हदीस (हदीस लेक्चर 11)
भारतीय उपमहाद्वीप में इल्मे-हदीस पर चर्चा की ज़रूरत दो कारणों से है। एक बड़ा कारण तो यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में एक ख़ास दौर में इल्मे-हदीस पर बहुत काम हुआ। यह काम इतने विस्तृत पैमाने पर और इतनी व्यापकता के साथ हुआ कि अरब दुनिया में बहुत-से लोगों ने इसको स्वीकार किया और इसके प्रभाव बड़े पैमाने पर अरब दुनिया में भी महसूस किए गए। मिस्र के एक प्रख्यात इस्लामी विद्वान और बुद्धिजीवी अल्लामा सय्यद रशीद रज़ा ने यह लिखा कि अगर हमारे भाई, भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमान न होते तो शायद इल्मे-हदीस दुनिया से उठ जाता। यह अट्ठारहवीं-उन्नीसवीं शताब्दी की स्थिति का उल्लेख है। भारतीय उपमहाद्वीप के उलमा किराम ने उस दौर में इल्मे-हदीस का पर्चम बुलंद किया जब मुस्लिम जगत् अपनी विभिन्न समस्याओं में उलझा हुआ था।
हदीस और उसकी व्याख्या की किताबें (हदीस लेक्चर 10)
आज की चर्चा में हदीस की कुछ प्रसिद्ध किताबों और उनकी व्याख्याओं का परिचय कराना अभीष्ट है। यह परिचय दो हिस्सों पर सम्मिलित होगा। हदीस की वे बुनियादी किताबें और उनकी वे व्याख्याएँ जो भारतीय उपमहाद्वीप से बाहर लिखी गईं। उनपर आज की बैठक में चर्चा होगी। वे हदीस और व्याख्या की किताबें थीं जिनकी रचना का काम भारतीय उपमहाद्वीप में हुआ उनमें से कुछ एक के बारे में कल बात होगी।
उलूमे-हदीस (हदीसों का ज्ञान)-हदीस लेक्चर 9
आज की वार्ता का शीर्षक है उलूमे-हदीस यानी हदीस के बारे में विस्तृत ज्ञान। आज तक जितनी बहस हुई है इस सब का संबंध एक तरह से उलूमे-हदीस ही से है। ये सब विषय उलूमे-हदीस ही के विषय थे, लेकिन उलूमे-हदीस पर अलग से चर्चा करने की ज़रूरत इस बात पर-ज़ोर देने के लिए पेश आई कि जिन विषयों को उलूमे-हदीस कहते हैं वे एक बहुत बड़ी, एक अनोखी और नई इल्मी रिवायत (ज्ञान संबंधी परम्परा) के विभिन्न हिस्से हैं। यह परम्परा मुसलमानों के अलावा किसी और क़ौम में नहीं पाई जाती। ज्ञान एवं कला के इस मिश्रण को अनगिनत विद्वानों ने अपनी ज़िंदगियाँ क़ुर्बान कर के संकलित किया। और उन तमाम विषयों से संबंधित सामग्री एकत्र की जिसका संबंध परोक्ष या अपरोक्ष रूप से अल्लाह के रसूल (सल्लाहु अलैहि वसल्लम) के हालात, कथनों और व्यक्तित्व से था। उन्होंने इस सामग्री की पड़ताल की और इसको संकलित ढंग से और नित-नई शैलियों में पेश किया।
रुहला और मुहद्दिसीन की सेवाएँ (हदीस लेक्चर-8)
आज की चर्चा का शीर्षक है ‘रेहलत फ़ी तलबिल-हदीस’ यानी “इल्मे-हदीस की प्राप्ति और तदवीन (संकलन) के उद्देश्य से सफ़र।” यों तो ज्ञान प्राप्ति के लिए दूर-दराज़ इलाक़ों का सफ़र करना मुसलमानों की परम्परा का हमेशा ही एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा, लेकिन इल्मे-हदीस की प्राप्ति की ख़ातिर सफ़र का अपना एक अलग स्थान है। मुहद्दिसीन (हदीस के संकलनकर्ताओं) ने इल्मे-हदीस की प्राप्ति, हदीसों की पड़ताल, रावियों की जिरह और तादील (जाँच) और रिजाल (रावियों) के बारे में मालूमात जमा करने की ख़ातिर जो लम्बे और कठिन सफ़र किए उन सबकी दास्तान न सिर्फ़ दिलचस्प और हैरत-अंगेज़ है, बल्कि इल्मे-हदीस के इतिहास का एक बड़ा नुमायाँ और अनोखा अध्याय है।
तदवीने-हदीस (हदीसों का संकलन)-हदीस लेक्चर 7
तदवीने-हदीस (हदीसों के संकलन) के विषय पर चर्चा का उद्देश्य उस प्रक्रिया का एक सारांश बयान करना है जिसके परिणामस्वरूप हदीसों को इकट्ठा किया गया और किताब के रूप में संकलित करके हम तक पहुँचाया गया। संभव है कि आप में से जिसके ज़ेहन में यह ख़याल पैदा हो कि तदवीने-हदीस का विषय तो चर्चा के आरंभ में होना चाहिए था और सबसे पहले यह बताना चाहिए था कि हदीसें कैसे मुदव्वन (संकलित) हुईं और उनकी तदवीन (संकलन) का इतिहास क्या था।
जिरह और तादील (हदीस लेक्चर -6 )
इससे पहले इल्मे-इस्नाद और उससे संबंधित कुछ ज़रूरी मामलों पर चर्चा हुई थी और उसमें कहा गया था कि ख़ुद पवित्र क़ुरआन और अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत के अनुसार यह बात ज़रूरी है कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से जो चीज़ जोड़ी जाए, वह हर तरह से निश्चित और यक़ीनी हो। उसमें किसी शक-सन्देह की गुंजाइश न हो और हर मुसलमान जो क़ियामत आने तक धरती पर आए उसको पूरे इत्मीनान और सन्तुष्ट दिल के साथ यह बात मालूम हो जाए कि अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इसके लिए क्या बात कही है। क्या चीज़ जायज़ क़रार दी है, क्या नाजायज़ ठहराई है। किन चीज़ों पर ईमान लाना उसके लिए अनिवार्य क़रार दिया गया है और किन चीज़ों के बारे में उसको आज़ादी दी गई है।
इल्मे-इस्नाद और इल्मे-रिजाल (हदीस लेक्चर-5)
इल्मे-इस्नाद और इल्मे-रिजाल आज की चर्चा का शीर्षक है। इल्मे-इस्नाद और इल्मे-रिजाल, इन दोनों का आपस में बड़ा गहरा संबंध है। ‘इस्नाद’ से मुराद है किसी हदीस की सनद (प्रमाण) बयान करना। जबकि सनद से मुराद है रावियों (उल्लेखकर्ताओं) का वह सिलसिला जो हदीस के आरंभिक रावी से लेकर अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तक पहुँचता है। रावी कौन लोग हों, उनका इल्मी (ज्ञान संबंधी) दर्जा क्या हो, उनकी दीनी (धार्मिक) और वैचारिक प्रतिभा क्या हो, उसकी जो शर्तें हैं उनपर इससे पहले विस्तार से चर्चा हो चुकी है। लेकिन अभी यह चर्चा बाक़ी है कि रावियों के हालात जमा करने का काम कब से शुरू हुआ, किस प्रकार ये हालात जमा किए गए, और किसी रावी के स्वीकार्य या अस्वीकार्य या ज़ाबित (हदीस ग्रहण करने योग्य) या उसमें असमर्थ होने का फ़ैसला किस आधार पर किया जाता है। यह वह इल्म (ज्ञान) है जिसको इल्मे-अस्माउर्रिजाल या इल्मे-रिजाल के नाम से याद किया जाता है।
इल्मे-रिवायत और हदीस के प्रकार (हदीस लेक्चर-4)
इल्मे-हदीस बुनियादी तौर पर दो हिस्सों में बंटा हुआ है। एक हिस्सा वह है जिसको ‘इल्मे-रिवायत’ कहते हैं और दूसरा हिस्सा वह है जिसको ‘इल्मे-दिरायत’ कहते हैं। इल्मे-रिवायत में उस ज़रिये या माध्यम से बहस होती है जिसके द्वारा कोई हदीस अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से लेकर हम तक पहुँची हो।