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शिक्षा

Found 10 Posts

इस्लाम में शिक्षा का उद्देश्य और लक्ष्य
इस्लाम में शिक्षा का उद्देश्य और लक्ष्य
16 August 2025
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जावेद अनवर  शिक्षा का उद्देश्य और लक्ष्य “हमारे रब, हमें इस दुनिया में अच्छाई दे और आख़िरत (परलोक) में भी अच्छाई दे, और हमें आग (जहन्नम) की सज़ा से बचा ले।” (क़ुरआन, सूरा-2 अल-बक़रा, आयत—201) क़ुरआन की इस दुआ से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इस्लाम के दृष्टकोण से केवल वही शिक्षा प्रणाली वैध है जो इस जीवन और आख़िरत दोनों में अच्छाई (हसनात) लाती है। यह मुस्लिम शिक्षा प्रणाली का मुख्य उद्देश्य और लक्ष्य होना चाहिए। दूसरी बात यह है कि "शिक्षा प्रणाली पूरी तरह हमारे जीवन के उद्देश्य के मुताबिक़ होनी चाहिए। जीवन का उद्देश्य क्या है? क़ुरआन इसे इस तरह स्पष्ट करता है— “मैंने तो जिन्नों और इनसानों को केवल इसलिए पैदा किया है कि वे मेरी इबादत (आज्ञाकारिता) करें।” (क़ुरआन, सूरा-51 अज़-ज़रियात, आयत—56)

Tafseer  Three Guide
Tafseer Three Guide
11 March 2024
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Tafseer Three Guide

Tafseer Finished
Tafseer Finished
05 March 2024
Views: 619

Tafseer Finished

Tafseer First Box Content
Tafseer First Box Content
05 March 2024
Views: 844

Tafseer First Box Content

Quran Finished Dua
Quran Finished Dua
05 March 2024
Views: 507

Quran Finished Dua

Quran Guide
Quran Guide
05 March 2024
Views: 584

अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है।

मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा : समस्याएं और समाधान
मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा : समस्याएं और समाधान
26 November 2021
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लड़कियों की शिक्षा पर लिखे गए इस विस्तृत लेख को इन दो हदीसों की रौशनि में पढ़ा जाऱए “अपनी औलाद की बेहतरीन परवरिश करो और उन्हें अच्छे आदाब सिखाओ इसलिए कि तुम्हारे बच्चे अल्लाह की तरफ़ से तुम्हारे लिए एक उपहार हैं।” -हदीस

बच्चों की तर्बियत और माँ-बाप की ज़िम्मेदारियाँ
बच्चों की तर्बियत और माँ-बाप की ज़िम्मेदारियाँ
28 March 2020
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पुस्तिका: बच्चों की तर्बियत और माँ-बाप की ज़िम्मेदारियाँ

इस्लाम की नैतिक व्यवस्था
इस्लाम की नैतिक व्यवस्था
15 March 2020
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मानव के अन्दर नैतिकता की भावना एक स्वाभाविक भावना है जो कुछ गुणों को पसन्द और कुछ दूसरे गुणों को नापसन्द करती है। यह भावना व्यक्तिगत रूप से लोगों में भले ही थोड़ी या अधिक हो किन्तु सामूहिक रूप से सदैव मानव-चेतना ने नैतिकता के कुछ मूल्यों को समान रूप से अच्छाई और कुछ को बुराई की संज्ञा दी है। सत्य, न्याय, वचन-पालन और अमानत को सदा ही मानवीय नैतिक सीमाओं में प्रशंसनीय माना गया है और कभी कोई ऐसा युग नहीं बीता जब झूठ, जु़ल्म, वचन-भंग और ख़ियानत को पसन्द किया गया हो। हमदर्दी, दयाभाव, दानशीलता और उदारता को सदैव सराहा गया तथा स्वार्थपरता, क्रूरता, कंजूसी और संकीर्णता को कभी आदर योग्य स्थान नहीं मिला। इससे मालूम हुआ कि मानवीय नैतिकताएं वास्तव में ऐसी सर्वमान्य वास्तविकताएँ हैं जिन्हें सभी लोग जानते हैं और सदैव जानते चले आ रहे हैं। अच्छाई और बुराई कोई ढकी-छिपी चीज़ें नहीं हैं कि उन्हें कहीं से ढूँढ़कर निकालने की आवश्यकता हो। वे तो मानवता की चिरपरिचित चीज़ें हैं जिनकी चेतना मानव की प्रकृति में समाहित कर दी गई है। यही कारण है कि क़ुरआन अपनी भाषा में नेकी और भलाई को ‘मारूफ़’ (जानी-पहचानी हुई चीज़) और बुराई को ‘मुनकर’ (मानव की प्रकृति जिसका इन्कार करे) के शब्दों से अभिहित करता है।

इस्लाम: शैक्षणिक व्यवस्था
इस्लाम: शैक्षणिक व्यवस्था
15 March 2020
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धर्म-विमुख, धर्म-विहीन या धर्म-विरोधी (सेक्युलर) विचारधारा में मात्र पंचेन्द्रियाँ (Five Senses) ही ज्ञान का मूल स्रोत हैं। ऐसे ज्ञान का अभीष्ट ‘मनुष्य के व्यक्तिगत व सामूहिक हित के भौतिक संसाधनों का विकास, उन्नति तथा उत्थान' है। इसमें नैतिकता व आध्यात्मिकता के लिए कोई जगह नहीं होती। जबकि मनुष्य एक भौतिक अस्तित्व होने के साथ-साथ...बल्कि इससे कहीं अधिक...एक आध्यात्मिक व नैतिक अस्तित्व भी है। उसके अस्तित्व का यही पहलू उसे पशुओं से भिन्न व श्रेष्ठ बनाता है। शिक्षा, ज्ञान अर्जित करने की पद्धति, प्रणाली, प्रयोजन का नाम है। इस्लाम का शैक्षणिक दृष्टिकोण, यह है कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो मनुष्य की व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक व सामूहिक आवश्यकताओं के भौतिक तक़ाज़ों को इस तरह पूरा करे कि उसके नैतिक व आध्यात्मिक तक़ाज़ों का हनन, और ह्रास एवं हानि न हो। इस्लाम की मान्यता है कि आध्यात्मिकता, नैतिकता एवं मानवीय मूल्यों को भौतिकता पर प्राथमिकता व वर्चस्व प्राप्त है। इस्लामी दृष्टिकोण के अनुसार यह तभी संभव है जब शिक्षा संबंधी विचारधारा में ईश्वरीय मार्गदर्शन, नियम व सिद्धांत की प्रमुख भूमिका तथा प्राथमिक व अनिवार्य योगदान हो। इस मार्गदर्शन का मूल स्रोत ‘ईशग्रंथ तथा ईशदूत (पैग़म्बर) का व्यावहारिक आदर्श' है।