इतिहास
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मिल्लते इस्लामिया का संक्षिप्त इतिहास भाग-1
इतिहास की यह पुस्तक पाकिस्तान के सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं इतिहासकार सरवत सौलत साहब ने उस दृष्टिकोण को सामने रखकर लिखी है, जो उद्देश्यपूर्ण और सैद्धान्तिक है। इसमें किसी भी प्रकार के पक्षपात से ऊपर उठकर, मानव मात्र की प्रगति एवं विकास के उद्देश्य को सामने रखकर घटनाओं एवं परिस्थितियों का विश्लेषण किया जाता है और नतीजे निकाले जाते हैं। उस किताब का आसान हिन्दी अनुवाद पेश है। यह अनुवाद सहज एव सरल रखा गया है। और इसमें जिन ऐतिहासिक व्यक्तियों और स्थानों के नाम आए हैं उन्हें विशुद्ध रूप में ही स्वीकार किया गया है। इसके लिए बिरादरम ख़ालिद निज़ामी साहब ने जो सतर्कता दिखाई है और उन्होंने जो परिश्रम किया है वह अत्यन्त सराहनीय है। आशा है कि हम सब इस पुस्तक से लाभान्वित होंगे। अल्लाह हमें इसकी तौफ़ीक़ दे, आमीन!
क़ुव्वत का अस्ल राज़
मनुष्य की असली ताकत वह है जो उसे भीतर से मजबूत करती है और यह ताकत ईमान से आती है। जब मनुष्य ईश्वर से जुड़ जाता है, तो दुनिया का डर उसके दिल से निकल जाता है, वह दुनिया से निसपृह हो जाता है। मौत का डर इंसान को कायर बना देता है। अल्लाह पर पूरा भरोसा रखने वाले इंसान के दिल से मौत का डर निकल जाता है। तब उसका व्यक्तित्व रोबदार हो जाता है।जीवन की सुख-सुविधाएं मनुष्य को अंदर से खोखला कर देती हैं। इस लेख में एक छोटी सी घटना के संदर्भ में यही कहा गया है।
आदाबे ज़िन्दगी
ज़िन्दगी से भरपूर फ़ायदा उठाना, मज़ा लेना और असल कामयाब ज़िन्दगी गुज़ारना यक़ीनी तौर पर आपका हक़ है, लेकिन उसी वक़्त जब आप ज़िन्दगी का सलीक़ा जानते हों, कामयाब ज़िन्दगी के उसूल और आदाब की जानकारी रखते हों और न सिर्फ़ जानकारी रखते हों, बल्कि अमली तौर पर आप उन उसूलों और आदाब से अपनी ज़िन्दगी को सँवारने और बनाने की बराबर कोशिशें कर रहे हों। अदब व सलीक़ा, सफ़ाई-सुथराई, पाकी और पाकीज़गी, अच्छे अख़लाक़, नेक अमल, हमदर्दी, भाईचारा, नर्मी, मिठास, त्याग, क़ुरबानी, बेग़र्ज़ी, ख़ुलूस, मुस्तैदी, फ़र्ज़ निभाने का एहसास, ख़ुदा से डरना, परहेज़गारी, हिम्मत, बहादुरी वग़ैरह ये इस्लामी ज़िन्दगी की ऐसी सुन्दर पहचान हैं, जिनकी वजह से मोमिन की बनी-सँवरी ज़िन्दगी में वह ग़ैर मामूली कशिश और अथाह आकर्षण पैदा हो जाता है कि न सिर्फ़ मुसलमान, बल्कि इस्लाम को न समझनेवाले ख़ुदा के दूसरे बन्दे भी बेइख़तियार उसकी ओर खिंचने लगते हैं और आम ज़ेहन यह सोचने पर मजबूर होते हैं कि इनसानियत से भरी हुई जो तहज़ीब ज़िन्दगी को निखारने, सँवारने और ग़ैर मामूली आकर्षण पैदा करने के लिए इनसानियत को यह क़ीमती उसूल व आदाब देती है, वह यक़ीनन हवा और रोशनी की तरह सारे इनसानों की आम मीरास है और बेशक इस क़ाबिल है कि पूरी इनसानियत उसको क़बूल करके उसकी बुनियादों पर अपने निजी और सामूहिक जीवन का सफल निर्माण करे, ताकि दुनिया की ज़िन्दगी भी सुख-शान्ति से गुज़रे और दुनिया के बाद की ज़िन्दगी में भी वह सब कुछ मिले, जो एक कामयाब ज़िन्दगी के लिए ज़रूरी है।
इतिहास के साथ अन्याय
प्रस्तुत पुस्तिका में जानेमाने इतिहासकार प्रो.बी.एन.पांडेय चिंता व्यक्त कर रहे हैं कि दुर्भाग्य से मध्यकाल और आधुनिक काल के भारतीय इतिहास की घटनाओं एवं चरित्रों को इस प्रकार तोड़-मरोड़ कर मनगढंत अंदाज़ में पेश किया जाता रहा है कि झूठ ही ईश्वरीय आदेश की सच्चाई की तरह स्वीकार किया जाने लगा, और उनको दोषी ठहराया जाने लगा जो तथ्य और मनगढ़ंत बातों में अन्तर करते हैं। आज भी साम्प्रदायिक एवं स्वार्थी तत्व इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने और उसे ग़लत रंग देने में लगे हुए है।
इस्लाम का इतिहास
इस्लाम का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना पुराना स्वंय मानवजाति का इतिहास है। आमतौर पर यह समझा जाता है कि मनुष्य का जन्म इस दुनिया में अंधकार की हालत में हुआ और उसने कालांतर में धीरे-धीरे जीने की कला सीखी और ख़ुद को दूसरे जानवरों से अलग कर लिया। इस्लाम इस थ्योरी को नहीं मानता है। इस्लाम के अनुसार मनुष्य को पूरे प्रकाश में और जीवन जीने का मार्गदर्शन देकर दुनिया में भेजा गया है। सब से पहले अल्लाह ने अपने बन्दे और पैग़मबर आदम को शिक्षा और दिशा निर्देश देकर दुनिया में भेजा और साथ ही आदम की पत्नी हव्वा को भी भेजा। इन की संतान से ही दुनिया आबाद होती गई। इस तरह मानवजाति का इतिहास ही इस्लाम का इतिहास है। अज्ञानतावश लोग समझते हैं कि इस्लाम 1400 वर्ष पुराना धर्म है, और इसके ‘प्रवर्तक’ पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) इसके प्रवर्तक (Founder) नहीं, बल्कि इसके आह्वाहक और अंतिम पैग़म्बर हैं, दे उस सिलसिला की अंतिम कड़ी हैं, जो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से शुरू हुआ था। पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) का काम उसी चिरकालीन (सनातन) धर्म की ओर, जो सत्यधर्म के रूप में आदिकाल से ‘एक’ ही रहा है, लोगों को बुलाने, आमंत्रित करने और स्वीकार करने के आह्वान का था। आपका मिशन, इसी मौलिक मानव धर्म को इसकी पूर्णता के साथ स्थापित कर देना था ताकि मानवता के समक्ष इसका व्यावहारिक नमूना साक्षात् रूप में आ जाए।