सहाबा
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हज़रत उमर (रज़ि०)
मदीना हिजरत से लेकर पैग़म्बरे इस्लाम की मौत तक शायद ही कोई घटना ऐसी हो, जिसमें हज़रत उमर (रज़ि०) का योगदान न हो। शासन-व्यवस्था की बात हो या राजनीतिक समस्या की, समाज-सुधार की बात हो या आर्थिक समस्या की, धर्म-प्रचार की बात हो या धर्म-विरोधियों से निबटने की, लड़ाई की बात हो या समझौते की, हर मौक़े पर हज़रत उमर (रज़ि०) की राय ज़रूर ली जाती थी। हज़रत उमर (रज़ि०) अपनी विशेषताओं, अपने गुणों और अपने कारनामों के कारण बहुत ही विशिष्ट स्थान रखते थे। हज़रत अबूबक्र (रज़ि०) के इंतिक़ाल के बाद हज़रत उमर (रज़ि०) इस्लामी राज्य के दूसरे ख़लीफ़ा बनाए गए। यह पुस्तिका उनके ही जीवन का वृत्तांत है।
प्यारे नबी (सल्ल॰) के चार यार -2: हज़रत उम्र फ़ारूक़ (रज़ि.)
नबी (सल्ल.) के चार साथी' का दूसरा भाग हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के दूसरे ख़लीफ़ा हज़रत उमर (रजि.) की मुबारक ज़िन्दगी के बारे में है। खुलफ़ाए-राशिदीन की ज़िन्दगी के हालात पढ़ने से हमें पता चलता है कि उन्होंने कितनी परेशानियाँ उठाकर और कितनी सादा ज़िन्दगी कर हुकूमत चलाई और अपनी हुकूमत में जनता को कितना आराम गुजार पहुँचाया। हक़ीक़त यह है कि उनकी जिन्दगी न सिर्फ दुनिया के सभी हाकिमों के लिए बल्कि सारे इनसानों के लिए एक नमूना है।
प्यारे नबी (सल्ल॰) के चार यार -3: उस्मान गनी (रज़ि.)
'प्यारे नबी (सल्ल.) के चार साथी' का यह तीसरा भाग है, तीसरे ख़लीफ़ा जुन्नूरैन हज़रत उस्मान ग़नी (रज़ि.) की मुबारक ज़िन्दगी के बारे में है। खुलफ़ाए-राशिदीन की ज़िन्दगी के हालात पढ़ने से हमें पता चलता है कि उन्होंने कितनी परेशानियाँ उठाकर और कितनी सादा ज़िन्दगी गुज़ार कर हुकूमत चलाई और अपनी हुकूमत में जनता को कितना आराम पहुँचाया। हक़ीक़त यह है कि उनकी जिन्दगी न सिर्फ दुनिया के सभी हाकिमों के लिए बल्कि सारे इनसानों के लिए एक नमूना है। [संपादक]
प्यारे नबी (सल्ल॰) के चार यार -4: हज़रत अली (रज़ि.)
नबी (सल्ल.) के चार साथी' का चौथा भाग हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) के चौथे और आख़िरी ख़लीफ़ा हज़रत अली इब्ने-अबू- तालिब (रजि.) की मुबारक ज़िन्दगी के बारे में है। खुलफ़ाए-राशिदीन की ज़िन्दगी के हालात पढ़ने से हमें पता चलता है कि उन्होंने कितनी परेशानियाँ उठाकर और कितनी सादा ज़िन्दगी कर हुकूमत चलाई और अपनी हुकूमत में जनता को कितना आराम गुजार पहुँचाया। हक़ीक़त यह है कि उनकी जिन्दगी न सिर्फ दुनिया के सभी हाकिमों के लिए बल्कि सारे इनसानों के लिए एक नमूना है।
प्यारे रसूल (सल्ल॰) के प्यारे साथी (रज़ि॰)
अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्हु अलैहि वसल्लम के ऐसे बहुत से साथी थे, जो उन पर जान न्योछावर करते थे। अल्लाह के रसूल के एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहते थे। इस्लामी शब्दावलि में उन्हें सहाबी कहा जाता है। माइल ख़ैराबादी ने उन सहाबियों में से कुछ का उल्लेख यहां किया है।