फ़िलिस्तीनी संघर्ष ने इसराईल के घिनौने चेहरे को बेनक़ाब कर दिया
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सामयिकी
- at 27 December 2023
सय्यद सआदतुल्लाह हुसैनी
(अमीरे जमाअत इस्लामी हिन्द)
अल्लाह ने वादा किया है कि वह ईमान वालों को ‘फुर्क़ान’ (अर्थात सत्य को असत्य से अलग कर देनेवाली कसौटी) देगा :
“ए ईमान लाने वालो, अगर तुम अल्लाह की अवज्ञा से बचकर जीवन बिताते रहे तो वह तुम्हारे लिए ‘फुर्क़ान’ को सामने कर देगा और तुमसे तुम्हारे गुनाह झाड़ देगा और तुम्हें माफ़ कर देगा और अल्लाह बड़ी कृपावाला है।”(अल-अनफ़ाल : 29) क़ुरआन के एक टीकाकार ने फुर्क़ान की बड़ी ईमान बढ़ाने और आंखें खोलनेवाली व्याख्या की है। लिखते हैं:
“फुर्क़ान एक कसौटी है। कसौटी का काम खरे और खोटे को अलग करके बताना है। ... (ईमानवालों) के सामूहिक फ़ैसले, सत्यविरोधी शक्तियों से उनका टकराव और बिगाड़ फैलानेवाली शक्तियों से उनकी लड़ाई, अपनेआप में फुर्क़ान बन जाती है। उनका अस्तित्व बाक़ी सनुदायों के लिए कसौटी होता है। उनके कारनामे इतिहास के लिए कसौटी बन जाते हैं। उनके युद्ध सत्य व असत्य में कसौटी होते हैं। इतिहास हमेशा उनके अस्तित्व और उनके कारनामों से प्रमाण लेता है। इस आयत से मालूम होता है कि यही कुछ कहा जा रहा है कि अगर तुमने अपने अंदर अल्लाह की अवज्ञा से बचकर जीवन बितातने की योग्यता पैदा करली तो हम तुम्हारे अंदर एक ऐसा प्रकाश उज्ज्वल कर देंगे जो कसौटी का काम देगा और तुम्हारी हैसियत दूसरी राष्ट्रों के लिए एक मिसाल बन जाएगी और तुम्हारे कारनामे सत्य व असत्य को अलग करने में लाइट हाउस बन जाएंगे।
अब इस बात में कोई शक नहीं रहा कि फ़िलिस्तीनी स्वतंत्रता की संघर्ष ने हमारे ज़माने के लिए एक 'फुर्क़ाने कबीर’ (विशाल कसौटी) का रूप ले लिया है। उसने इस धोखे से भरी दुनिया में सभ्यता के शक्तिवर दावेदारों को जिस तरह से बेनक़ाब किया है, उस की कोई मिसाल हाल के इतिहास में नहीं मिलती।
यह फ़िलिस्तीनी संधर्ष ही है जिसने नई पश्चिमी सत्ता के चेहरे से मानवाधिकार, स्वतंत्रता, समानता और लोकतंत्र का लुभावना और सुन्दर मुखौटा उतार फेंका है और अंदर से उसी वंशवादी, क्रूर और ख़ूँख़ार दानव को नंगा करके दुनिया के सामने ला खड़ा किया है जो सोलहवीं सदी से बीसवीं सदी तक इस दुनिया को अपने ख़ूनी पंजों से लहू-लुहान करता रहा, लाखों इन्सानों को ग़ुलाम बनाकर बेचता रहा और जिसने सारी दुनिया पर क़ब्ज़ा करके संसाधनों की लूट मचा रखी थी। फ़िलिस्तीनी संधर्ष ने दुनिया पर स्पष्ट कर दिया है कि नई पश्चिमी सत्ता नैतिक संवेदनशीलता से ख़ाली एक पाश्विक अस्तित्व है जिसका कोई मज़बूत सांस्कृतिक आधार नहीं है। स्वतंत्रता और लोकतंत्र के ऊंचे दावों के शोर में दबा हुआ उस के दिल का यह चोर फ़िलिस्तीनी संधर्ष ने पकड़ कर दुनिया के सामने पेश कर दिया है कि इस सत्ता के लिए एशियाई और अफ़्रीक़ी जनता आज भी उस की प्रजा और ग़ुलाम है और उनकी ज़मीनों और संसाधनों को वह अपना ऐसा स्वामित्व समझता है कि उसे वह जैसे चाहे इस्तेमाल कर सकता है। मौलाना अली मियां नदवी ने वर्षों पहले सचेत किया था:
“यह दुनिया शिकार का मैदान बनी हुई है। शिकारी निकलते हैं हथियार ले कर और राष्ट्रों का शिकार खेलते चले जाते हैं, देशों को रौंदते चले जाते हैं, आज जो बड़ी शक्तियां हैं उनके आगे पूरब के राष्ट्रों की क़ीमत इतनी है कि वहां से कच्चा माल raw material उनको मिले, पैट्रोल उनको पहुंचता रहे और अगर कोई युद्ध हो तो ये उनका उपयोग कर अपने दुश्मन का मुक़ाबला कर सकें उनको अपना सिपाही बना सकें, यह मानो ईंधन हैं उनके किचन का, बस इस के सिवा कोई क़ीमत नहीं... वे यह समझ रहे हैं कि राष्ट्रों की तक़दीर हमारे हाथ में आ गई है, उन्होंने इन्सानों के साथ जानवरों जैसा, बल्कि उससे भी बदतर व्यवहार कर रखा है और आज कोई शक्ति नहीं जो उन का मुक़ाबला कर सके, सब अपनी शक्ति और अपना मान खो चुके हैं, सब अपना पैग़ाम भूल चुके हैं सब अपना चरित्र छोड़ चुके हैं, सब मैदान से किनारे हो चुके हैं।”
ये हैं वे विध्वंसक हालात जिनमें फ़िलिस्तीनी अपने जौहर और अपने ‘किरदार के साथ’ मैदान में उठ खड़े हुए हैं और उन दरिंदों का ईंधन बनने से न केवल इनकार कर रहे हैं बल्कि तीसरी दुनिया को ईंधन बनाने की इस प्रक्रिया में रुकावट बन रहे हैं। वे न केवल ‘फुर्क़ाने कबीर’ (महान कसौटी) हैं बल्कि ‘सद्दे-अज़ीम’ (विशाल दीवार) भी हैं और पश्चिमी सत्ता के आक्रामक तूफान के आगे 'ज़ुलक़ुरनैन की दीवार’ (सायरस की बनाई दीवार) बन कर सारी दुनिया की रक्षा कर रहे हैं। वे न होते तो यह मुमकिन था कि इक्कीसवीं सदी का ख़ूँख़ार पूंजीवाद, तीसरी दुनिया में उपनिवेशवाद की एक और नई लहर शुरू कर देता। समस्त तीसरी दुनिया पर उनका उपकार है। दुनिया की सभी कमज़ोर राष्ट्रों के मुक्तिदाता हैं बल्कि समस्त मानव जगत उनका ऋणि है। यहां हम उन कुछ बड़ी-बड़ी मक्कारियों को बहस में लाएंगे जो हमारे समय के इस फुर्क़ाने कबीर के नतीजे में यानी फ़िलिस्तीनी संधर्ष के कारण बेनक़ाब हुई हैं और जिनके बिगाड़ों के सामने वे दीवार बन कर खड़े हैं।
ज़ायोनिज़्म हमारे समय का बदतरीन वंशवाद
पश्चिमी सत्ता इस बात की दावेदार है कि वह मानव समानता की ध्वजावाहक है और दुनिया-भर में वंशवाद को ख़त्म करना उस का मक़सद है। वह विभिन्न देशों और समाजों पर वंशवाद के आरोप लगाती रहती है। 1966 में संयुक्तराष्ट्र ने नस्ली भेदभाव के सभी रूपों को ख़त्म करने वाला अंतर्राष्ट्रीय क़ानून International Convention on the Elimination of All Forms of Racial Discrimination मंज़ूर किया था। उस के बाद से इस सत्ता ने, स्वनिर्मित नैतिक श्रेष्ठता के एहसास के साथ इस क़ानून को तीसरी दुनिया के विभिन्न देशों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया। लेकिन फ़िलिस्तीनी संधर्ष ने दुनिया पर यह सच्चाई बेनक़ाब की है कि इस ज़मीन पर सबसे बड़ा वंशपरस्त गिरोह ज़ायोनिज़्म और इस के समर्थक हैं।
वंशवाद, इसराईल के अस्तित्व की आधार है। वह इस समय ज़मीन पर अकेला देश है जिसके संविधान Basic Law में वंश को नागरिकता का आधार क़रार दिया गया है। इसराईल का वापसी क़ानून Law of Return उन क़ानूनों Basic Laws में शामिल है जिन्हें एक तरह के संविधान की हैसियत हासिल है। यह वह अकेला देश है जो वंश की आधार पर क़ानून बनाता है। वंश की आधार पर अपने नागरिकों में भेदभाव करता है और वंश की आधार पर उसने जगह-जगह भेदभाव की दीवारें apartheid खड़ी कर रखी हैं।
यह वंशवाद केवल यहूदी वंश या बनी-इसराईल के पक्ष में पक्षपात तक सीमित नहीं है। पश्चिम का इतिहास गोरे वंशवाद का इतिहास है और सच्चाई यह है कि इसराईल का अस्तित्व और उस की हिमायत उसी सफ़ेद वंशवाद का क्रम है। यह बात खुले आम कही जाती है कि इसराईल क्षेत्रीय आघार पर तो एशिया में हैं, लेकिन 'सभ्यता के आधार पर या नस्ली आधार पर यूरोप का हिस्सा है। बल्कि उसी आधार पर वह युरोपीय यूनियन की सदस्यता का दावेदार है और उस का यह दावा गंभीरता से निचाराधीन है । कई यूरोपीय संगठनों का वह पहले ही से सदस्य है।
यह बात दुनिया के लोग नहीं जानते कि जिन्हें इसराईल बनीइसराईल कहता है और जिन्हें नागरिकता देकर दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों से लाकर फ़िलिस्तीन की ज़मीन में बसाया गया है, उनमें विभिन्न रंग व वंश के लोग शामिल हैं। लगभग 32 फ़ीसद गोरे, नीली आँखों और सुनहरे बालों वाले अश्केनाज़ी Ashkenazi हैं जो यूरोपीय वंश से हैं ।(अमेरिकी यहूदियों में बड़ी संख्या उन्ही की है और दुनिया-भर के यहूदियों में वे लगभग 75 फ़ीसद हैं) लगभग 45 फ़ीसद मिज़्राही Mizrahi हैं । ये वे यहूदी हैं जो या तो पहले से फ़िलिस्तीन में या मध्यपूर्व और उत्तर अफ़्रीक़ा के इलाक़ों में बसे हुए थे और यहूदी राज्य की स्थापना के ऐलान के बाद यहां आ बसे। रंग और वंश के आधार पर ये दूसरे अरब निवासियों की तरह होते हैं। बेता इसराईल Beta Israel काले अफ़्रीक़ी वंश के लोग हैं जिनकी आबादी इसराईली यहूदियों में लगभग तीन फ़ीसद है। बेने इसराईल Bene Israel वे यहूदी हैं जो भारत के विभिन्न इलाक़ों (महाराष्ट्र, दक्षिण पूर्व आदि से वहां जाकर आबाद हुए हैं।
इसराईली राजनीति पर नज़र रखने वाले जानते हैं कि इसराईल की सारी मक्कारियों का असल निशाना, दरअसल गोरे अश्केनाज़ियों के हितों की रक्षा है। उन्ही गोरे सहवंशियों के हितों के लिए यूरोप व अमेरिका की सत्ता अपनी सभी नैतिकता को ख़ाक में मिलाने के लिए हर-दम तैयार रहती है। इस गोरे वंश के एक आदमी के रक्षा के लिए अरबों की आबादियों की आबादियां क़ुर्बान कर देना पश्चिमी सत्ता के नज़दीक कोई घाटे का सौदा नहीं होता। पश्चिमी लीडरों का यह तरीक़ा रहा है कि वे जनता की आँखों में धूल झोंकने के लिए समय-समय पर पिछले अपराधों की माफ़ी मांगते रहते हैं। इसराईली प्रधानमंत्री यहूद बारक, वंशवाद के लिए 'यहूदियों' से 'माफ़ी मांग चुके हैं। इसराईल के पूर्व राषट्रपति रियोवेन रिवलिन Reuven Rivlin 2014-2021) लेकोड पार्टी से जुड़े एक अतिवादी स्कॉलर लीडर समझे जाते हैं लेकिन उन्होंने भी पद सँभालने के बाद इसराईल में मौजूद वंशवाद का ज़िक्र करते हुए कहा कि "इसराईली समाज एक बीमार समाज है और यह हमारी ज़िम्मेदारी है कि इस बीमारी का इलाज करें।
पश्चिमी सत्ता ने नाज़ी जर्मनी की राजनीतिक और सैनिक नेतृत्व के ख़िलाफ़ उस की वंशवाद को आधार बनाकर कठोर सज़ाएं लागू कीं। और आज तक नाज़ीइज़्म को एक बड़ी बुराई बनाकर पेश करते रहते हैं। निकट अतीत में, मजबूरन ही सही, वह दक्षिण अफ़्रीक़ा की वंश परस्त पालिसियों का विरोध करते रहे हैं (हालांकि दक्षिण अफ़्रीक़ा के ख़िलाफ़ संयुक्तराष्ट्र और दूसरे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की ओर से किए जानेवाली कार्रवाइयों में रुकावटें पैदा करके इस वंशवाद की हिमायत के दाग़ भी उनके दामन पर लगे हुए हैं)।लेकिन अब इसराईल के ममले में तो वे पूरी तरह नंगे हो चुके हैं और खुल्लम खुल्ला उस की हिमायत की जा रही है।
नीचे दिए चार्ट से पता चलता है कि दक्षिण अफ़्रीक़ा से कहीं बढ़कर वंशवाद इस समय इसराईल में मौजूद है:
पालिसी |
दक्षिण अफ़्रीक़ा (1948-1994) |
इसराईल (1948 से आजतक) |
नस्ली आधारों पर आबादी का वर्गीकरण |
क़ानूनी तौर पर गोरा वंश सर्वश्रेष्ठ गिरोह था, फिर भीरतीय, फिर काले। इसी के आधार पर अधिकार निर्धारित थे |
ग़ज़्ज़ा और पश्चिमी किनारे में रहने वालों पर व्यवहारिक तौर पर इसराईल शासन करता है लेकिन उन्हें बहुत से क़ानूनी अधिकार से वंचित रखा गया है। व्यवहारिक तौर पर अश्केनाज़ी यहूदियों को वही हैसियत हासिल है जो दक्षिण अफ़्रीक़ा में गोरी आबादी को हासिल थी। इस के बाद दूसरे यहूदी, फिर इसराईल की सीमा में रहने वाले अरब और आख़िरी दर्जे में पश्चिमी किनारे और ग़ज़्ज़ा के मुसलमान हैं जिनकी हैसियत इस से कहीं ज़्यादा ख़राब है जो वंश परस्त दक्षिण अफ़्रीक़ा में काली आबादी की थी । |
सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव, चलत-फिरत पर प्रतिबंध |
बसों, रेस्तोरानों आदि में काले लोगों को अलग किया जाता था। काले लोगों की चलत-फिरत पर प्रतिबंध थे और उन्हें अपने 'होमलैंड मैं क़ैद हो कर रहना पड़ता था। |
ठीक इसी तरह सार्वजनिक स्थानों पर फ़िलिस्तीनियों को अलग किया जाता है। पश्चिमी किनारे के 'फ़िलिस्तीनी इलाक़ों को छोटे छोटे खंड़ों में बांट दिया गया है। एक गांव से दूसरे गांव जाना भी व्यवहारिक तौर पर मुश्किल है। क़दम-क़दम पर चेक प्वाइंट ने अधिकांश हिस्सों में उनकी चलत-फिरत को व्यवहारिक तौर पर असंभव बना दिया है। और वे अपने छोटे देहातों में क़ैद हैं। |
संसाधन से वंचित होना |
काले लोगों की ज़मीन, पानी और शिक्षा व स्वास्थ्य से जुड़ी सहूलतों तक पहुंच सीमित थी। |
यही मामला फ़िलिस्तीन में भी है। फ़िलिस्तीनीयों की कई नसलें सीमित ज़मीन, सीमित पानी, सीमित संसाधन के साथ पल-बढ़ रही हैं। इन सीमित संसाधन को भी दिन-ब-दिन कम किया जा रहा है। पश्चिमी किनारे में भी फ़िलिस्तीनियों को नई ज़मीनें ख़रीदने या लीज़ पर लेने पर प्रतिबंध हैं, जबकि यहूदी सेट्लमेंट हर जगह लगातार बढ़ रहे हैं। एमनेस्टी की रिपोर्ट के अनुसार इसराईल ने1967 की युद्ध के बाद से फ़िलिस्तीनीयों की एक लाख हेक्टेयर से ज़्यादा ज़मीन हथिया ली है। |
क़ानून में भेदभाव |
गोरे निवासियों के लिए क़ानून अलग थे जो उनको ज़्यादा से ज़्यादा आसानी और सहूलत देने वाले थे और कालों के लिए अलग थे जो उनकी ज़िंदगियां अजीरन करने वाले थे। |
ठीक यही मामला इसराईल में भी है। क़ानून अलग-अलग हैं। इसराईल का बुनियादी क़ानून Basic Law या संविधान जो इसराईल को 'यहूदी वंश के लोगों का क़ौमी वतन (होम लैंड) क़रार देता है, सभी पैमानों के अनुसार वंशवादी संविधान है। इस के अलावा वापसी के अधिकार का क़ानून right to return है । हज़ारों साल पहले इसराईलों के पलायन की कल्पना को आधार बनाकर दुनिया के हर यहूदी को इसराईल की अविलम्ब नागरिकता का क़ानूनी अधिकार दिया गया है और 1948 के बाद सभ्य दुनिया की निगाहों के सामने बेघर किये गये फ़िलिस्तीनियों की आधा आबादी को जो दुनिया के विभिन्न इलाक़ों में शरणार्थी की ज़िंदगी गुज़ार रही है, केवल वंश की आधार पर इस अधिकार से वंचित रखा गया है। |
भेदभाव की दीवारें
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काले लोगों को अलग-थलग करने और उनकी चलत-फिरत को गोरे लोगों से अलग करने के लिए शहरों में जगह-जगह दीवारें निर्माण की गई थीं।
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पश्चिमी किनारे में इसराईल द्वारा बनाई गई दीवार, जिसे इसराईल SECURITY FENCE कहता है, इसी तरह के नस्ली भेदभाव की दीवार Apartheid Wall है। यह 26 फुट ऊंची और 700 (सात सौ) किलोमीटर लम्बी दीवार है जो फ़िलिस्तीनी इलाक़ों को अलग करती है।
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।इतने स्पष्ट प्रमाणों के होते हुए इसराईल के वंशवाद को झुठलाना अब संभव ही नहीं रहा। कई अंतर्राष्ट्रीय संगठन उसे वंशवादी क़रार दे चुके हैं। दो साल पहले मानवाधिकार के अंतर्राष्ट्रीय संगठन हियूमन राइट्स वाच ने विशेष रिपोर्ट जारी करके ऐलान किया कि इसराईल ने सारी हदें पार कर दी हैं और वह स्पष्ट तौर पर वंशवाद Apartheid का अपराधी है। इसी तरह की रिपोर्ट एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी जारी की है । ख़ुद इसराईल के अंदर मौजूद दो प्रभावशाली संगठनों येशडिन Yesh Din और B’Tselem ने इसराईली शासकों को वंशवाद का अपराधी क़रार दे दिया है। पिछले साल संयुक्तराष्ट्र द्वारा स्थापित एक विशेष कमेटी ने इसराईल के मामलों का विस्तार से विश्लेषण करने के बाद अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर यह फ़ैसला दर्ज किया था (जिससे इसराईल में बड़ा हंगामा खड़ा हो गया था कि इसराईल का 55 साल का क़ब्ज़ा योजनाबद्ध तरीक़े से By Design विशेष वंश के लोगों के हितों की रक्षा और दूसरी नस्लों के साथ अन्याय पर आधारित है और यह नस्ली भेदभाव Apartheid है। कमेटी की एक और ताज़ा-तरीन रिपोर्ट आ गई है, जिस में भी इसराईल के कई वंशवादी आपराध गिनाए गए हैं।
अगर पश्चिमी सत्ता में वंशवाद के ख़िलाफ़ लेशमात्र भी ईमानदारी होती तो इसराईल के साथ उस का व्यवहार कम से कम वैसा होता जैसा 1990 से पहले दक्षिण अफ़्रीक़ा के साथ था। लेकिन हमारे समय की इस बदतरीन वंशवाद का विरोध तो दूर, अमेरिका व ब्रिटेन की सरकारें इसराईल की सबसे बड़ी समर्थक, हर मोर्चे पर उस की शक्तिशाली संरक्षक और उस की काली करतूतों की खुली हिमायती हैं। इसलिए उस के वंशवाद में बराबर के शरीक हैं।
ज़ायोनी सत्ता हमारे समय की सबसे बड़ी आतंकवादी शक्ति
अमेरिका, ब्रिटेन और पश्चिमी सत्ता के दूसरे सदस्य के पूरे नैतिक, वैचारिक, सैनिक और वित्तीय मदद के साथ, इसराईल लगातार मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है। इस के विस्तृत उल्लेख की इस समय ज़रूरत भी नहीं है इसलिए कि अक्तूबर 2023 से सारी दुनिया के लोग अपनी आँखों से ये सब देख रहे हैं। फ़िलिस्तीन और इसराईल के क़ब्ज़ेवाले इलाक़ों की सरहदों के अंदर भी अत्याचार की वे सारी क़िस्में रोज़ाना जारी हैं, जिनके एशियाई या अफ़्रीक़ी देशों में कभी-कभार होने पर भी बहुत शोर मचाया जाता है। जैसे :
1. अदालत से परे नरसंहार : सुरक्षाकर्मियों के हाथों नागरिकों का, औरतों का, यहां तक कि मासूम बच्चों की क्रूर हत्या।
2. बमबारी, आबादियों पर, बाज़ारों और रिहायशी इलाक़ों पर यहां तक कि स्कूलों और अस्पतालों पर हिस्ट्रियाई अंदाज़ में वहशियाना बमबारी, जिसकी कोई मिसाल विश्वयुद्ध में भी नहीं मिलती, बल्कि कुछ पहलूओं से जो हीरोशिमा और नागासाकी की बमबारी से ज़्यादा घातक है।
3. निर्दोष लोगों की बिना किसी मुक़द्दमे के महीनों और सालों गिरफ़्तार रखना। उन गिरफ़्तार लोगों में भी औरतें और बच्चे शामिल हैं।
4. टार्चर और क़ैद-ख़ानों में अत्याचार
5. बिना किसी सूचना घरों को बुलडोज़र से ध्वस्त कर देना, और बदले में कोई रिहाइश भी न देना। (यह बात दिलचस्पी से ख़ाली नहीं होगी कि इसराईल के पूर्व प्रधानमंत्री एरीयल शेरोन जो आठ साल कोमा में रहने के बाद 2014 में मर गए थे, बुलडोज़र शेरोन कहलाते थे।
6. फ़िलिस्तीनी नागरिकों का पानी रोक देना और आबादियों को पानी से वंचित कर देना।
इसराईल की स्थापना ही इतिहास के एक क्रूर नरसंहार से जुड़ी है । 1948 में कई फ़िलिस्तीनी देहातों और शहरों को नरसंहार के ज़रिये ख़ाली कराया गया। इस के नतीजे में देश की आधी आबादी पलायन करने और शरणार्थी बनने पर मजबूर हो गई। उसे 'नकबा' nakba कहते हैं। इस के बाद से नरसंहार के ये सिलसिले बराबर जारी हैं।1956 का क़ासिम और ख़ान यूनुस नरसंहार, 1982 में लेबनान में मौजूद फ़िलिस्तीनी शरणार्थी कैम्पों साबरा और शतीला का नरसंहार1994 का इबराहीमी मस्जिद (हेबरून) नरसंहार, 2000 के बाद से ग़ज़्ज़ा के कई नरसंहार। ये सब इसराईल के माथे पर आतंकवाद के कलंक थे, लेकिन 2023 के ग़ज़्ज़ा नरसंहार ने तो आतंकवाद के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। 11 सितंबर की घटना में मरने वालों की संख्या से चार गुना अधिक लोग अभी तक मर चुके हैं और जितनी बड़ी संख्या में मासूम बच्चे इस आतंकवाद में मारे गए हैं उस की कोई मिसाल आधुनिक इतिहास तो दूर, शायद मध्य युग और प्राचीन काल में भी मिलना मुश्किल है। यहां हीरोशिमा और नागासाकी से ज़्यादा बारूद बरस चुका है। कई शहर मलबे का ढेर बन चुके हैं। अस्पतालों, स्कूलों, संयुक्तराष्ट्र के रिलीफ़ सेंटरों की इमारतें तक टार्गेटेड बमबारी की शिकार हो चुकी हैं।
इसराईल पर युद्ध आपराध और इन्सानियत के ख़िलाफ़ आपराध crimes against humanity के आरोप लगाने वाले केवल फ़िलिस्तीनी या मुसलमान या वामपक्ष के कार्यकर्ता नहीं हैं, बल्कि कई अंतर्राष्ट्रीय संगठन उन आपराध में इसराईल को नामित कर चुके हैं। ख़ुद इसराईल में मौजूद संस्थाएं विस्तृत सबूतों के साथ इन आपराधों को साबित कर चुकी हैं । अंतर्राष्ट्रीय अदालत International criminal Court ICC में इसराईल की सेना और राजनीतिक नेतृत्व पर बाक़ायदा युद्ध आपराध के मुक़द्दमे क़ायम हो चुके हैं।
इन सब के बाद क्या इस बात में कोई शक रह जाता है कि ज़ायोनी सत्ता इस समय ज़मीन पर सबसे बड़ी आतंकवादी शक्ति है? पश्चिमी शक्तियों के आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई के दावे, इराक़ और अफ़्ग़ानिस्तान में बेनक़ाब होने के बाद अब फ़िलिस्तीनीयों के हाथों बुरी तरह से बेनक़ाब हो रहे हैं। अगर फ़िलिस्तीनी संधर्ष न होता तो शायद दुनिया इस बात से अनजान होती कि पश्चिमी सत्ता न क़ानून लागू करने की ईमानदार एजेंसी है और न क़ानून के शासन को लेकर गंभीर है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय क़ानून उस के लिए मात्र अपने हितों की पूर्ति का माध्यम है। जहां अंतर्राष्ट्रीय क़ानून उस के हितों की राह में रुकावट बनता है अमेरिका व ब्रिटेन के राष्ट्राध्यक्ष और उनकी पालिसी मेकर संसथाएं भी वही भूमिका निभाने लगती हैं जिसके लिए कुछ पिछड़े देशों के रिश्वतखोर अधिकारी बदनाम हैं।
साम्राज्यवाद, विस्तारवाद और उपनिवेशवाद
साम्राज्यवाद और विस्तारवाद का भयावह इतिहास नए पश्चिम के चेहरे पर सबसे बदनुमा दाग़ है। समय-समय पर उस इतिहास पर पछतावा जताकर और 'माफ़ी मांग कर उन दाग़ों को धोने की कोशिश की जाती है लेकिन इसराईल का विस्तारवाद और इस में पश्चिमी सत्ता का पूरा सहयोग, इस सच्चाई का मज़बूत प्रमाण है कि पश्चिमी सत्ता के घिनौने विस्तारवादी इरादे आज भी ज़िंदा हैं।
इस में कोई शक नहीं कि इसराईल का पूरा प्रोजेक्ट वह है जिसे settler colonialism कहा जाता है । इस का मतलब यह होता है कि बाहर से कुछ लोग आते हैं और ताक़त के बलबूते पर मक़ामी बाशिंदों का नरसंहार करके या उनको ज़बरदस्ती घरों से भगाकर, उनकी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर लेते हैं और उनके इलाक़ों को ख़ाली करके वहां अपनी क़ौम के लोगों को लाकर आबाद कर देते हैं। इस तरह के विस्तारवाद का पश्चिमी क़ौमों का पूरा इतिहास रहा है और उन्होंने उत्तर अमेरिका (रेड इंडियंस का नरसंहार), लैटिन अमेरिका, आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ़्रीक़ा की स्थानीय आबादियों पर यह अत्याचार ढाया है। विस्तारवाद के इस रूप को सबसे ज़्यादा क्रूर और भयावह रूप माना जाता है। (स्पष्ट रहे कि भारत और दूसरे एशियाई देशों में अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी में यूरोपीय देशों का उपनिवेशवाद settler colonialism नहीं था, इसलिए कि यहां आबादियां बेदख़ल नहीं की गई थीं, केवल देश की सत्ता और इस के संसाधनों पर क़बज़ा किया गया था ।) इक्कीसवीं सदी की सभ्य दुनिया के लिए यह अत्यधिक शर्म की बात है कि आज भी इसराईल पूरी ढिठाई से settler colonialism की पालिसी पर चल रहा है और उस के पश्चिमी आक़ा इस में उस की मदद कर रहे हैं।
उन्नीसवीं सदी के आख़िर से फ़िलिस्तीन के उपजाऊ और हरे-भरे इलाक़ों में दुनिया-भर के यहूदियों को लाकर आबाद किया जाने लगा। इन यहूदियों के सिलसिले में यह कहा गया कि ये हज़ारों साल पहले इसी इलाक़े में आबाद थे। वर्तमान इसराईली यहूदियों में वास्तविक बनी-इसराईल कितने हैं और यूरोप के गोरे आर्यन वंश के अन्य लोग, जिन्होंने इतिहास के विभिन्न दौर में अपने हितों के लिए यहूदियत अपना ली है, वे कितने हैं, यह अपने-आप में बहस का विषय है। ख़ुद यहूदी इतिहासकार अब यह स्वीकार करने लगे हैं कि वर्तमान यहूदियों में बनी-इसराईल बहुत कम हैं। इस बहस से फ़िलहाल नज़र हटाते हुए जहां तक वास्तविक बनी-इसराईल का सवाल है, उनके सिलसिले में भी इस ज़मीन पर उनका हक़ किसी भी पैमाने से साबित नहीं हो सकता। सय्यदना इबराहीम अलैहिस-सलाम (जिनकी औलाद में बनी-इसराईल और अरब सब हैं) इराक़ से फ़िलिस्तीन आए, जहां से उनके पोते याक़ूब अलैहिस-सलाम, अपने बेटे यूसुफ़ अलैहिस-सलाम के सत्ताकाल में अपने परिवार के साथ मिस्र आ गए। इन्हीं की औलाद बनी-इसराईल कहलाती है। बनी-इसराईल मिस्र में लम्बी गु़लामी के बाद, सय्यदना मूसा अलैहिस-सलाम के नेतृत्व में फ़िलिस्तीन वापसी के लिए रवाना हुए थे । चालीस साल रेगिस्तान में भटकने के बाद यह क़ाफ़िला जार्डन पहुंचा जहां हज़रत मूसा अलैहिस-सलाम का देहांत हो गया। मूसा अलैहिस-सलाम के उत्तराधिकारी ,योषा बिन नून के नेतृत्व में बनी-इसराईल पहली बार फ़िलिस्तीन में दाख़िल होने में कामयाब हुए। एक लंबा समय गुज़ार कर तालूत के नेतृत्व में युद्ध जीतने के बाद 1047 ई.पू. में पहली बार इस इलाक़े पर उन्हें क़ब्ज़ा हासिल हुआ और सय्यदना दाऊद अलैहिस-सलाम का शासन स्थापित हुआ जिसे सय्यदना सुलैमान अलैहिस-सलाम के समय में बड़ा विकास प्राप्त हुआ । सुलैमान अलैहिस-सलाम के बाद बनी-इसराईल के बीच गृहयुद्ध शुरू हो गया और फिर बाबिल के युद्ध में बुख़तनस्सर (Nebuchadnezzar II) ने 587 ई.पू. में यरूशलम को तहस-नहस करके यहूदियों को क़ैद कर लिया और उन्हें बाबिल भेज दिया जहां से वे दुनिया में तितर-बितर हो गए। दूसरी ओर, फ़िलिस्तीनी, एक क़ौम की हैसियत से अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान और विशेषताओं के साथ इन चार हज़ार वर्षों में लगातार फ़िलिस्तीन में आबाद रहे हैं।
इस तरह बनी-इसराईल बाहर से आकर फ़िलिस्तीन में आबाद हुए थे और तीन हज़ार साल पहले केवल चार सौ वर्षों तक वे फ़िलिस्तीन में आबाद रहे। इस बुनियाद पर अगर आज देश पर उनका हक़ मान लिया जाए तो वह दिन दूर नहीं जब क़रीबी ज़माने में और मालूम व मारूफ़ इतिहास में अपने क़ियाम और शासन के आधार पर अंग्रेज़ भारत पर अपना हक़ और वापसी जताने लगें या फ़्रांस, इटली, हॉलैंड, पुर्तगाल, स्पेन, रूस आदि सब अपने पहले उपनिवेशों पर दुबारा क़ब्ज़ा करने की चिंता शुरू कर दें।
है ख़ाके-फ़िलिस्तीं पर यहूदी का अगर हक़
स्पेन पर हक़ क्यों न हो फिर अहले-अरब का
इस तरह इतने कमज़ोर आधार पर, फ़िलिस्तीन में हज़ारों साल से आबाद फ़िलिस्तीनी बाशिंदों को बेदख़ल करके इसराईल का राज्य स्थापित किया गया । फ़िलिस्तीन की आधी आबादी को इसराईल की स्थापना के तुरंत बाद देश से बेदख़ल कर दिया गया, जो आज भी जार्डन, सीरिया, मिस्र, आदि देशों में शरण लिए हुए हैं।
इसराईल की स्थापना के बाद भी साम्राज्य विस्तार का सिलसिला ख़त्म नहीं हुआ। पिछले 75 वर्षों में, इसराईल लगातार अपने इलाक़े में विस्तार किए जा रहा है । किसी इंटरनेशनल क़ानून या संयुक्तराष्ट्र के किसी प्रस्ताव की न वह परवाह करता है और न पश्चिमी सत्ता को इस से कोई दिलचस्पी है कि उस से उन क़ानूनों की पाबंदी कराए। फ़िलिस्तीनियों की कुल आबादी यहूदी हमलावरों की आबादी के दो गुना से ज़्यादा है। जिसका लगभग आधा हिस्सा विदेशों में शरणार्थी हैं। जो आबादी फ़िलिस्तीन के सीमा में है वह भी यहूदी आबादी से ज़्यादा है। इस आबादी को दो छोटे और एक दूसरे से अलग क्षेत्रों (ग़ज़्ज़ा और पश्चिमी किनारा या west bank) मैं क़ैद करके रखा गया है। इस में भी एक क्षेत्र यानी पश्चिमी किनारे को छोटे छोटे एक-दूसरे से अलग इलाक़ों में विभाजित कर दिया गया है। एक फ़िलिस्तीनी देहात है तो उस के चारों ओर इसराईली सेट्लमेंट हैं। पश्चिमी किनारे के एक गांव से दूसरे गांव तक जाने के लिए इसराईली आबादियों से गुज़रना होता है जिसकी कठिनाइयां बयान से बाहर हैं। इस अत्याचारपूर्ण बटवारे को ओस्लो ने ज़ोन A, B, C बनाकर औचित्य दे दिया है। लेकिन इस अत्याचार पर भी इसराईल रुका नहीं है, बल्कि जो इलाक़े ओस्लो समझौते में फ़िलिस्तीनी इलाक़े क़रार दिए गए थे उनमें भी नए सेट्लमेंट बनाकर लगातार विस्तार किए जा रहा है। इस फैलाव का ख़ास निशाना पूर्वी यरूशलम है जहां बैतुल-मुक़द्दस मौजूद है।
इसराईल इस लगातार फैलाव से क्या चाहता है? उस का दावा क्या है? यह बात औपचारिक रूप से कभी स्पष्ट नहीं की गई है। लेकिन इसराईल की राजनीतिक पार्टियां, धार्मिक उच्च वर्ग और बौद्धिक समाज में ग्रेटर इसराईल Eretz Yisrael का ख़ाब और कल्पना हमेशा बहस का मुद्दा रहा है। ग्रेटर इसराईल का क्या मतलब है? उसे भी कभी स्पष्ट नहीं किया गया। इस की सबसे छोटी और कम से कम कल्पना, प्रशांत महासागर (Mediterranean Sea) से जार्डन नदी तक (From the River to the Sea)है। यह ऐतिहासिक फ़िलिस्तीन का पूरा क्षेत्र है यानी इसराईल का मान्यता प्राप्त इलाक़ा, पश्चिमी किनारा, यरूशलम और ग़ज़्ज़ा । यह बाइबल में दर्ज बनी-इसराईल की ज़मीन, From Dan to Be’er Sheva का इलाक़ा है । दान और बर शेवा वर्तमान इसराईल के आख़िरी उत्तर और दक्षिण शहर हैं। इस का मतलब यह है कि इसराईल फ़िलिस्तीनियों से उनकी रही सही मामूली ज़मीनें और उन पर उनके अत्यंत सीमित क़ब्ज़े को भी पूरे तौर पर ख़त्म करके इस पूरे इलाक़े को इसराईल में मिलाना चाहता है। दूसरी कल्पना यह है कि पुराने फ़िलिस्तीन के पूरे इलाक़े के अलावा, जार्डन के कुछ इलाक़े, सीना और सीरिया की गोलान पहाड़ियां भी ग्रेटर इसराईल का हिस्सा हैं । इसराईल इन इलाक़ों पर क़ब्ज़े की कोशिशें करता रहा है और उन पर क़ब्ज़ा भी करता रहा है। तीसरी कल्पना नील से फरात तक From Nile to Euphrates की कल्पना है और यह सबसे ज़्यादा मशहूर है। इस के सिलसिले में भी बाइबल का हवाला दिया जाता है। इस के अनुसार पूरे फ़िलिस्तीन के अलावा, पूरा जार्डन, पूरा लेबनान, सीरिया का ज़्यादातर इलाक़ा, सीना के अलावा प्रशांत महासागर के किनारे मिस्र का लम्बा पूर्वी साहिली इलाक़ा, इराक़ का आधा से ज़्यादा हिस्सा (बस्रा, नजफ़ और कर्बला सहित), तुर्की का कुछ हिस्सा और सऊदी अरब का बड़ा हिस्सा शामिल है। (जिसमें कुछ उल्लेखों के मुताबिक़ मदीना भी आता है) यह पूरा इलाक़ा ग्रेटर इसराईल की कल्पना में शामिल है। नक़्शा देखें, इसमें ग्रेटर इसराईल की काल्पनिक सरहदों को चिंहित किया गया है।
इस के प्रणाण मौजूद हैं कि ज़ायोनी आनदोलन के नेताओं के ज़हनों में शुरू में यही कल्पना थी। यासर अरफ़ात के मुताबिक़ इसराईल के झंडे में दो नीली पट्टियाँ, नील और फ़ुरात नदियों के दर्शाती हैं और यह कि इसराईल के100 शैक्ल के पुराने सिक्के में जो नक़्शे की शक्ल का