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धर्म, इतिहास और संस्कृति

धर्म, इतिहास और संस्कृति

धर्म, इतिहास और संस्कृति तीन अलग अलग शब्द हैं और इनके अर्थ भी अलग अलग हैं। इसलिए इनको लेकर लोगों का व्यवहार भी अलग अलग होना चाहिए। मगर सच्चाई यह है कि आम लोग इस फर्क़ को समझ नहीं पाते हैं और कुछ लोग अपने स्वार्थों के कारण ऐसा होने भी नहीं देते। इन दिनों भारत और अन्य देशों में इन तीनों शब्दों की खिचड़ी को ही लोग धर्म समझते हैं और इसके नतीजे में इतिहास और संस्कृति में मौजूद धर्म के साथ साथ जो अधर्म के तत्व हैं उनको भी धर्म ही समझ लिया जाता है।

धर्म ऐसे उसूलों का नाम है जो समय और स्थान - टाइम एण्ड स्पेस - से परे हों। जो किसी एक विशेष समुदाय की पहचान न हो, जिन्हें हर कोई अपना ले और जो सारी मानवता के लिए फायदेमंद हों। धर्म मनुष्य को एक अच्छे आचरण और व्यवहार से जोड़ता है चाहे वह दुनिया की किसी भी जगह का रहने वाला हो और किसी भी समुदाय से उसका संबंध हो। धर्म जीवन में शांति, सद्भावना और उचित आचरण के लिए इंसान को प्रेरित करता है। धर्म से जुड़ कर इंसान एक बेहतर इंसान बन सकता है।

इतिहास हमसे पहले हो चुकी घटनाओं का वर्णन और लेखा-जोखा है जो अच्छी भी होती हैं और बुरी भी। इतिहास इसे लिखने वाले की सोच और नियत पर टिका होता है। यह धर्म की तरह समय और स्थान से निरपेक्ष नहीं रह सकता। यह वह बयान करता है जो हो चुका है, न कि क्या होना चाहिए था। अगर इतिहासकार संतुलित है तो वह घटनाओं को एक अलग नज़र से लिखेगा और अगर वह किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित है तो वह इतिहास को एक दूसरे तरीक़े से लिखेगा। एक ब्राह्मण, एक दलित, एक मुसलमान और एक कम्युनिस्ट का भारत के इतिहास को देखने का नज़रिया अलग-अलग हो सकता है। एक साम्राज्यवादी और एक क्रांतिकारी व्यक्ति इसी इतिहास को परस्पर विरोधी नज़रियों से देखेंगे। इतिहास हर तरह की घटनाओं से भरा पड़ा है जिसमें कोई एक ही व्यक्ति या समुदाय नायक भी नज़र आता है और खलनायक भी। कई बार शक्तिशाली लोग इतिहास को इस तरह लिखवाते हैं कि मानवता के खलनायक होते हुए भी उन्हें नायक बना दिया जाता है। इसलिए इतिहास से फायदा उठाने के लिए ज़रूरी है कि उसमें से उन निष्कर्षों को समग्रता से समझा जाए जो मानवता के भविष्य के लिए ज़रूरी हों।

संस्कृति न धर्म की तरह मानवता के लिए उपयोगी सिद्धांतों का नाम है और न इतिहास की तरह मानवता के व्यवहारों का निष्कर्ष। यह सिर्फ एक स्थान विशेष में रहने वाले लोगों के वर्तमान जीवन में पाई जाने वाली कुछ विशेषताओं का नाम है जैसे भाषा, त्यौहार, संस्कार, कर्मकांड, मान्यताएं, एक समूह का दूसरे समूह से सामाजिक नाता, खानपान, पोषाक, मुहावरे, विवाह के तरीक़े, बच्चों के नाम रखने का तरीक़ा, आदि। संस्कृति के कुछ व्यवहार धर्मजनित भी हो सकते हैं और इतिहास जनित भी मगर यह ज़रूरी नहीं है कि वे धर्म के अनुसार हों या फिर इतिहास की वास्तविकता।

इन तीनों शब्दों को समझने के लिए एक मिसाल सामने रख सकते हैं - विवाह।

विवाह के बारे में धर्म सिर्फ यह बताता है कि एक अच्छे जीवन और एक अच्छे आचरण के लिए विवाह ज़रूरी है जिसमें एक महिला और एक पुरुष घोषित रूप से जीवन भर साथ रहने का फैसला लें। इतिहास हमें यह बताता है कि मानवता के इतिहास में अलग-अलग देशों और समुदायों में विवाह संस्था ने किस तरह से काम किया है। संस्कृति हमें विवाह की रस्मों की ओर ले जाती है। जब कोई पुरुष और महिला घोषित रूप से एक साथ रह कर इस वादे के साथ जीवन बिताना चाहते हों कि वे एक दूसरे का सम्मान करेंगे, एक दूसरे के सुख-दुःख के साथी होंगे और एक दूसरे के अधिकारों की रक्षा करेंगे तो धर्म का लक्ष्य पूरा हो जाता है। अब अगर कोई पुरुष एक से अधिक पत्नियां रखने के बारे में फैसला लेता है या एक महिला एक से अधिक पुरुषों से विवाह करने के बारे में सोचती है तो यह इतिहास का विषय हो जाता है कि पुराने ज़माने में लोगों ने किस किस तरह से विवाह किये और उनसे क्या फायदे या नुक़सान हुए और उनके अनुसार अब क्या करना ठीक रहेगा। संस्कृति यह बताती है कि क्या चलन में है और वर्तमान में एक समुदाय विशेष में क्या मान्य है। भारत में ही विवाह के कई तरीक़े चलन में हैं और जो भी समूह उनको अपनाए हुए है अच्छा या ज़रूरी समझ कर वही उस पर अमल करता है। विवाह की जितनी अलग-अलग रस्में भारत में प्रचलित हैं दुनिया में शायद ही कहीं हो। मगर ये रस्में न धर्म है और न इतिहास, बल्कि एक लोक व्यहार है।

धर्म, इतिहास और संस्कृति का यह फर्क़ हमें हर मामले में और हर सतह पर समझने की कोशिश करनी चाहिये ताकि क्या अनिवार्य है, क्या सूचना और ज्ञान का हिस्सा है और क्या लोक व्यहार है, यह स्पष्ट हो और अगर हम धर्म पर अमल करना चाहें तो इतिहास और संस्कृति उसमें कोई रुकावट और व्यवधान न पैदा कर सके और हम दूसरे के ऐतिहासिक निष्कर्षों और लोक मान्यताओं को एक विविधता के रूप में देख सकें। जब तक यह विविधता एक महिला और एक पुरुष को यह अधिकार देती है कि वे अपनी पसंद से शादी कर सकें और एक दूसरे के अधिकारों की रक्षा के लिए तैयार हों तो, इस विविधता को धार्मिक पूर्वाग्रह का विषय न बनाया जाए। ऐसा ही मामला हमें उन सभी मान्यताओं और व्यवहारों के बारे में करना चाहिए जो धर्म के नाम पर इतिहास और संस्कृति की विविधताओं के कारण चलन में हों और लोग उनको धर्म समझने की ग़लती कर रहे हों।

 

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