डा. अब्दुल रशीद अगवान
कोरोना महामारी ने विश्व में एक क़हर बरपा कर रखा है। 200 से ऊपर देशों में इसका प्रभाव हुआ मगर कई बड़े देश और वहां के रहने वाले इसके ख़ास शिकार हुए हैं। इस महामारी में अमेरिका, ब्राजील और भारत सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं। मगर सोचने की बात यह है कि इस महामारी के कारण को लेकर कहीं कोई संजीदा बहस नज़र नहीं आती है।
अगर महामारी का इतिहास देखा जाए तो उसने हमेशा ख़ुद इतिहास का रुख मोड़ा है। सातवीं सदी ईसा पूर्व के मिस्र, तीसरी सदी ईसा पूर्व के मिस्र और युनान और तीसरी सदी के रोम, युनान और मिस्र में फैली महामारियों ने उस वक़्त का इतिहास बदल दिया। पांचवीं सदी में रोम में जस्टीसियन प्लेग ने और सातवीं सदी में फारस के शिरोय प्लेग ने उस समय के सुपर पावर देशों की नींव हिला दी। इसके बाद लगभग हर सदी में महामारी आती रही और उसने कभी फैंक राजाओं को तंग किया तो कभी चीनी हुकमरानों की ताक़त को तहस नहस किया। इन महामारियों में लाखों करोड़ों लोग बेवक़्त मौत का शिकार हुए। 1920 के स्पेनिश फ्लू ने भी युरोप और एशिया के कई देशों को नुक़सान पहुंचाया। मगर इसका सबसे बड़ा नुक़सान ब्रिटिश साम्राज्य को हुआ और उसकी आर्थिक दशा गिरती चली गई और अमेरिका के रूप में एक नये सुपर पावर ने धरती पर पांव पसारे। अब शायद फिर एक बड़ा बदलाव होने वाला है।
महामारियों के इतिहास में एक ही तथ्य बार बार सामने आता है और वह यह कि यह प्रकृति का एक ज़बरदस्त हथियार है, अत्याचारी शासकों और उनके साम्राज्य को कमज़ोर करने का। इतिहास में कई बार ऐसा हुआ है कि कोई एक क़ौम या देश दूसरों पर इतना हावी हो गया कि उसके ज़ुल्म से बचने का कोई साधन कमज़ोर देश या क़ौमों के पास नहीं बचा और फिर एक महामारी ऐसी आई कि आगे का इतिहास ही बदल गया। 1346 ईस्वी में काफ्फा की लड़ाई में फैले प्लेग ने उस वक़्त के मंगोल ख़ानों और रोमन ताक़तों दोनों को नुक़सान पहुंचाया और मंगोल क्रीमिया से आगे नहीं बढ़ पाये। यही प्लेग बाद में युरोप में इस तरह फैला कि वहां 5 करोड़ लोगों की मौत हो गई और कई करोड़ बीमार हुए।
इस बारे में एक शंका यह सामने आती है कि महामारी तो ताक़तवर और कमज़ोर दोनों को तंग करती है फिर इसे किसी बीमारी के बजाय एक आसमानी मुसीबत क्यों मानी जाए। यह एक मान्य सिद्धांत और उसूल है कि ज़ालिम तो ज़ालिम है ही, जो ज़ुल्म सहता है वह भी ज़ालिम ही माना जाता है। इसलिये महामारी में आमतौर पर ज़्यादा तादाद में ऐसे लोग मरते हैं जो कि बस ज़ुल्म सहते रहते हैं।
इस संसार के बनाने वाले ने इसी संसार में शक्ति संतुलन का तरीक़ा भी रखा है। वही आपदाओं के रूप में कभी कभी हमारे सामने आता है।
इस महामारी का एक स्पष्ट पैग़ाम यह है कि इसने विकसित देशों और चमक दमक वाले बड़े शहरों को ख़ासतौर पर निशाना बनाया है। इसने यह साबित कर दिया है कि जो विकास रिवाज पा रहा है उसमें एक वायरस से लड़ने की भी ताक़त नहीं है। अमेरिका जहां तरक़्क़ी की ऊंचाईयां पाई जाती हैं और दुनिया की आर्थिक हलचल का केंद्र उसका न्यूयॉर्क शहर जिस तरह से इस महामारी से झूंझ रहे हैं वह बताता है कि वहां सेहत की पूरी व्यवस्था ही ग़लत पोलिसी पर टिकी हुई है। कोरोना महामारी हमें सेहत और तरक़्क़ी के मसलों पर गंभीर सोच-विचार की दावत देती है।
कोविड-19 वायरस की महामारी ने हमें बताया है कि विकास का जो नक़्शा हमने बनाया है वह इंसानों और क़ुदरत दोनों के साथ ज़ुल्म है। इसके अलावा विकास के नाम पर जो कुछ मानव समाज में जाना जाता है उसकी कमज़ोरी भी हमारे सामने है। विकास सिर्फ एक ख़ास वर्ग का हो रहा है और पूंजी कुछ हाथों में सिमट रही है। इस बेलगाम विकास ने क़ुदरत के सरमाये को भी तहस नहस कर दिया है। हमें याद रखना चाहिए कि इस दुनिया के बनाने वाले ने मानव समाज में और प्रकृति में जो संतुलन रखा है वह बाक़ी नहीं रहेगा तो दुनिया में इस तरह की आपदाएं आती रहेंगी।
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