सैयद जावेद हसन
कोरोना वायरस संक्रमण के मामले में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर आ गया है। वहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टेडरोस अदनाम गै़बरियसस ने चेतावनी देते हुए कहा है कि पूरी दुनिया में कोविड-19 संक्रमण का सबसे ख़तरनाक दौर आना अभी बाक़ी है। इस बीच नई दिल्ली से एक बड़ी ख़बर आई है। ख़बर के मुताबिक़, दिल्ली की एक अदालत ने 21 देशों के नागरिकों को ज़मानत देदी है। तब्लीग़ी जमाअत से संबंध रखने वाले ये वो लोग हैं जिन्होंने निज़ामुद्दीन स्थित मरकज़ में इस साल मार्च में आयोजित एक सभा में हिस्सा लिया था और पुलिस ने उनके खि़लाफ़ वीज़ा नियमों का उल्लंघन करने की चार्जशीट दाखि़ल की थी। क़ाबिले ग़ौर बात है कि तब्लीग़ी जमाअत से जुड़े लोगों और निज़ामुद्दीन मरकज़ में सभा की वजह से भारत में कोरोना वायरस को साम्प्रदायिक बना दिया गया था।
इसकी शुरूआत आधिकारिक रूप से भारत सरकार के स्वास्थ्य सचिव लव अग्रवाल ने की थी। वे कथित रूप से तब्लीग़ियों से फैले कोरोना संक्रमण का रिकाॅर्ड अलग से पेश करते थे। मीडिया के एक विशेष वर्ग ने आगे बढ़ाया और पूरे देश में ऐसा प्रचारित किया कि कोरोना वायरस तब्लीग़ियों यानी मुसलमानों की वजह से फैल रहा है। परिणामस्वरूप, देश के कई हिस्सों से हिन्दू बहुल इलाक़ों में मुस्लिम वेंडरों के प्रवेश करने और फल सब्ज़ी बेचने पर रोक लगाने की ख़बरें आने लगीं। कुछ सियासी नेताओं ने भी इस तरह का ज़हर घोलने की कोशिश की जिसमें उत्तर बिहार की राजधानी कहे जाने वाले मुज़फ़्फ़रपुर से मेम्बर आॅफ़ पार्लियामेंट अजय निषाद भी हैं।
लेकिन इसी दौरान देशभर से हिन्दू-मुस्लिम रिश्तों के और मज़बूत होने की मिसालें भी देखने को मिलीं। शुरूआत मुसलमानों से, और बिहार से ही करते हैं। बेगूसराय की घटना है। उचकागांव प्रखंड के कैथवलिया गांव में उज्ज्वल सिंह की तीन वर्षीय बेटी निष्ठा की तबीयत अचानक बिगड़ गई। सदर अस्पताल में डाॅक्टरों ने बताया कि थैलीसिया से पीड़ित निष्ठा को खून चढ़ाने की सख़्त ज़रूरत है। उज्ज्वल सिंह ब्लड बैंक गए लेकिन निराश लौटे। तभी उनकी मुलाक़ात जंगलिया मुहल्ले के बाशिंदा और पेशे से इंजीनियर वक़ार अहमद से हो गई। वक़ार उस वक़्त रोज़े से थे। लेकिन बच्ची की ज़िन्दगी बचाने के लिए उन्होंने रोज़ा तोड़कर रक्त दान किया।
रक्त दान का एक और वाक़्या देखिये। झारखंड में हज़ारीबाग स्थित एक नर्सिंग होम में कुस-मरजा निवासी भिाखारी महतो के 8 वर्षीय बेटे निखिल कुमार का इलाज चल रहा था। डाॅक्टरों ने बताया कि बच्चे की जान बचाने के लिए ‘ए’ पाॅज़ीटिव ब्लड की सख़्त ज़रूरत है। इस गु्रप का ब्लड हज़ारीबाग़ के ब्लड बैंक में मौजूद नही ंथा। इसकी जानकारी मिलने पर गिरिडीह के रहने वाले सलीम अंसारी लाॅकडाउन के बावजूद हज़ारीबाग़ पहुंच गए। सलीम अंसारी उस वक़्त रोज़े से थे। डाॅक्टर के कहने पर उन्होंने पहले रोज़ा तोड़ा और फिर खून डोनेट किया।
इंसानियत की एक दूसरी मिसाल देखिए। बिहार के अररिया ज़िले में बागूआन गांव के नूर आलम और उनके साथ काम करने वाले 30 लोग जयपुर के रिकू एरिया में सिलाई का काम करते थे। लाॅकडाउन की वजह से काम बंद हो गया था और सबकी जमा पूूंजी ख़त्म हो गई थी। वे दाने-दाने को मुहताज हो चुके थे। ऐसी विकट स्थिति में एक आदमी ने नूर आलम को व्हाट्सएप पर गौरव राज सिंह राजपुरोहित का नंबर दिया। राजपुरोहित राजस्थान के सीमांत ज़िले बाड़मेर की तहसील गडरा रोड के पाकिस्तान सीमा के पास स्थित गांव जुड़िया के बाशिंदा हैं। वो जयपुर के मानसरोवर में रहते हैं। मोबाइल पर नूर आलम का हाल सुनकर राजपुरोहित से रहा न गया। अगले ही दिन राजपुरोहित राशन-पानी लेकर नूर आलम और उनके साथियों के पास पहुंच गए। फिर तो हर दो-तीन दिन पर खाने-पीने का सामान भिजवाने लगे। यहां तक कि गैस भरवाने के पैसे भी दिए। रमज़ान शुरू हुआ तो दूध और खजूर लाकर दिया।
राजस्थान की ही एक दूसरी कहानी सुनिये। हनुमानगढ़ ज़िले के भटनेर सिटी स्थित ज़िला अस्पताल में 18 मरीज़ भर्ती थे। इनका कोरोना सैम्पल लेकर जांच के लिए बीकानेर डिवीज़नल अस्पताल भेजा गया था और रिपोर्ट आनी बाक़ी थी। इन मरीज़ों में से ज़्यादातर मुसलमान थे और रोज़ा रख रहे थे। जब इस बात की जानकारी भटनेर किंग्स क्लब और ‘कोई भूखा न सोए’ की ज़िला कमिटी को हुई तो कार्यकत्र्ता फ़ौरन अस्पताल पहुंचे और रोज़ेदारों को इफ़्तार और सेहरी के लिए फल और दूसरी खाने-पीने की चीज़ें मुहैया कराईं।
कोरोना काल में हिन्दू मुस्लिम रिश्ते को मज़बूत करने वाली ऐसी ही ख़बर उत्तरप्रदेश में सहारनपुर के गांव छटमलपुर से आई। यहां लुधियाना से साइकिल पर भूखे-प्यासे आ रहे 21 हिन्दू प्रवासियों की मदद स्थानीय मुसलमानों ने की। साइकिल चलाते-चलाते इन मज़दूरों के पांव सूज गए थे। मुसलानों ने इनके लिए खाने-पीने का इंतेज़ाम किया और नहाने के लिए साबुन भी दिया। इनमें से एक प्रवासी महेन्द्र ने कहा, ‘मैं हिन्दू हूं लेकिन मैं मुसलमानों की मदद को कभी भूल नहीं सकता। मैॅं उनका बेहद आभारी हूं।’’
उधर, असम में धबरी ज़िला निवासी और पेशे से कुम्हरार देव कुमार ने 13 मुस्लिम खिलौना कारीगरों को अपने घर में लंबे समय तक पनाह दी। तालाबंदी होने और पैसा ख़त्म हो जाने के बाद से देव कुमार ने इन कारीगरों को अपने यहां ही रख लिया। देव कुमार बताते हैं, ‘मेरे पास दो अतिरिक्त कमरे हैं जहां मुस्लिम कारीगर रहते हैं। रमज़ान के महीना में मेरा कोई हिन्दू पड़ोसी फल तो कोई अन्य चीज़ेें लेकर आता रहा। हर शाम मेरा परिवार पूजा करता है और मुसलमान नमाज़ पढ़ते हैं।’’
मध्यप्रदेश के ज़िला शिवपुरी की घटना भी इसी सिलसिले की एक कड़ी है। 24 वर्षीय अमृत गुजरात के सूरत से यूपी के बस्ती ज़िला स्थित अपने घर एक ट्रक से आ रहा था। ट्रक जब मध्यप्रदेश के शिवपुरी-झांसी फ़ोरलेन से गुज़र रहा था, तभी अमृत को कई बार उलटी हो गई। उसे तेज़ बुख़ार भी था। ट्रक में साथ चल रहे अन्य लोगों को लगा कि अमृत कोरोना संक्रमित है। इसलिए उन्होंने ट्रक ड्राइवर से कहकर अमृत को उसी हालत में वहीं ट्रक से उतरवा दिया। लेकिन अमृत के 23 वर्षीय दोस्त याकूब मोहम्मद ने, जिसका असल नाम शोएब है, उसका साथ नहीं छोड़ा और वह भी उस सुनसान जगह पर उतर गया। तबीयत ज़्यादा बिगड़ने पर सड़क किनारे अमृत अपने दोस्त याकूब की गोद में कराहता रहा और याकूब आते-जाते लोगों से मदद की भीख मांगता रहा। आखि़रकार अस्पताल में अमृत की मौत हो गई। ये सब तब हुआ, जब सरकार और मीडिया पूरे देश में यह शोर मचा रहा था कि तबलीग़ी यानी मुसलमान कोरोना वायरस फैला रहे हैं। लेकिन धर्म से मुसलमान याकूब ने इस बात की ज़रा भी परवाह नहीं की कि उसका हिन्दू दोस्त अमृत अगर संक्रमित हुआ तो खुद उसकी जान भी ख़तरे में पड़ सकती है। याकूब को तो दरअसल अपनी दोस्ती और इंसानियत से मुहब्बत थी।
10 जुलाई को, जब ये तहरीर दर्ज की जा रही है, भारत में कोरोना वायरस से संक्रमितों की संख्या 7 लाख 94 हज़ार हो गई है जबकि कोविड-19 से मरने वालों की संख्या 21 हज़ार 600 से ज़्यादा हो गई है। लेकिन अच्छी बात ये है कि अब कोई यह नहीं कहता कि कोरोना वायरस मुसलमानों से फैला।
-- लेखक प्रिंट और टीवी पत्रकार हैं।