शरीअत
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बच्चे और इस्लाम
मौलाना सैयद जलालुद्दीन उमरी इंसान का छोटा-सा बच्चा क़ुदरत का अजीब करिश्मा है। उसके भोले-भाले व्यक्तित्व में कितना सम्मोहन और आकर्षण होता है। उसकी मासूम अदाएँ, उसकी मुस्कराहट, उसकी दिलचस्प और टूटी-फूटी बातें, उसकी चंचलता और शरारतें, उसका खेल-कूद, मतलब यह कि उसकी कौन-सी अदा है जो दिल को लुभाती और सुरूर और खुशियों से न भर देती हो। फिर एक-दूसरे पहलू से देखिए। हमें नही मालूम कि क़ुदरत ने किस बच्चे में कितनी और किस प्रकार की सलाहियतें रखी हैं और वही आगे चलकर कौन-सी सेवा या कार्य करने वाला है।

उंच-नीच छूत-छात
"लोगो! हमने तुम को एक पुरुष और एक स्त्री से पैदा किया और फिर तुम्हें परिवारों और वंशों में विभाजित कर दिया, ताकि तुम एक-दूसरे को पहचानो। तुम में अधिक बड़ा वह है जो ख़ुदा का सर्वाधिक भय रखने वाला है और निसन्देह अल्लाह जानने वाला और ख़बर रखने वाला है।" (सूरः हुजुरात)

नशाबन्दी और इस्लाम
"लोग आप से शराब और जुए के विषय में पूछते हैं। कह दीजिए कि इन दोनों में बड़ा गुनाह है और यद्यपि इन में लोगों के लिए कुछ लाभ भी है, किन्तु इन का गुनाह इन के लाभ से कहीं अधिक है।" (2:219) शराब के सिलसिले में इस्लाम की सख़ती का यह हाल है कि एक व्यक्ति ने नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से पूछा कि: "क्या दवा के रूप में उसे प्रयोग में लाने की इजाज़त है ? तो आपने कहा, "शराब दवा नहीं बल्कि बीमारी है।"

नारी और इस्लाम
''ऐ लोगो! अपने रब से डरो, जिसने तुम्हे एक ज़ान से पैदा किया, और उससे उसका जोड़ा बनाया और उन दोनों से बहुत-से मर्द और औरतें फैंला दी, और अल्लाह से डरो जिसका वास्ता देकर तुम एक-दूसरे से अपने ह़क मांगते हो, और रिश्तों का सम्मान करो । निस्संदेह अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा है।‘‘ (क़रआन 4:1)

बंधुआ मजदूरी और इस्लाम
सुल्तान अहमद इस्लाही स्वतंत्रता एवं समानता के ध्वजावाहक वर्तमान भारत के लिए जिन समस्याओं को उसके माथे का कलंक घोषित किया जा सकता है उनमें से एक समस्या बंधुआ मज़दूरी की है। जिसके कारण न जाने कितने आज़ाद इंसानों के इरादे, क्षमता एवं जीने के अधिकार को कुछ स्वेच्छाचारियों और दौलत के पुजारियों की बलिदेवी पर भेंट चढ़ा दिया जाता है और एक बेसहारा इंसान जिसकी जीवन-निधि केवल उसकी मेहनत-मज़दूरी करने की योग्यता होती है, उसे कुछ साहूकारों के हाथों गिरवी रख कर उसे जीवन भर के लिए अभावग्रस्त और अर्ध-ग़ुलामों का जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

इस्लाम और मानव-अधिकार
“निश्चय ही हमने रसूलों को स्पष्ट प्रमाणों के साथ भेजा और उनपर हमने किताबें उतारीं और न्याय और इंसाफ़ क़ायम करने के लिए तराज़ू दिया, ताकि लोग न्याय और इंसाफ़ पर क़ायम हों।" (क़ुरआन, 57:25) हज़रत उमर (रज़ि.) कहते हैं, “ख़ुदा की क़सम, किसी शख़्स को क़ैद नहीं किया जाएगा जब तक कि न्यायप्रिय लोग उसके अपराधी होने की गवाही न दें।"

इस्लाम और मानव-एकता
“ऐ लोगो, अपने प्रभु से डरो जिसने तुमको एक जीव से पैदा किया और उसी से उसका जोड़ा बनाया और उन दोनों से बहुत से पुरुष और स्त्री संसार में फैला दिए। उस अल्लाह से डरो जिसको माध्यम बनाकर तुम एक-दूसरे से अपने हक़ माँगते हो, और नाते-रिश्तों के सम्बन्धों को बिगाड़ने से बचो। निश्चय ही अल्लाह तुम्हें देख रहा है।" (क़ुरआन–4:1)

अध्यात्म का महत्व और इस्लाम
मनुष्य शरीर ही नहीं आत्मा भी है। बल्कि वास्तव में वह आत्मा ही है, शरीर तो आत्मा का सहायक मात्र है, आत्मा और शरीर में कोई विरोध नहीं पाया जाता। किन्तु प्रधानता आत्मा ही को प्राप्त है। आत्मा की उपेक्षा और केवल भौतिकता ही को सब कुछ समझ लेना न केवल यह कि अपनी प्रतिष्ठा के विरुद्ध आचरण है बल्कि यह एक ऐसा नैतिक अपराध है जिसे अक्षम्य ही कहा जाएगा। आत्मा का स्वरूप क्या है और उसका गुण-धर्म क्या है। यह जानना हमारे लिए अत्यन्त आवश्यक है। आत्मा के अत्यन्त विमल, सुकुमार और सूक्ष्म होने के कारण साधारणतया उसका अनुभव और उसकी प्रतीति नहीं हो पाती और वह केवल विश्वास और एक धारणा का विषय बनकर रह जाती है।

सामूहिक बिगाड़ और उसका अंजाम
कुरआन मजीद में एक अहम बात यह बयान की गई है की अल्लाह ज़ालिम नहीं है की किसी क़ौम को खाह –म – खाह बर्बाद कर दे, जबकि वह नेक और भला काम करने वाली हो – ‘’और तेरा रब ऐसा नहीं है की बस्तियो को ज़ुल्म से तबाह कर दे, जबकि उस के बाशिंदे नेक अमल करने वालें हों |’’ (कुरआन, सूरा – 11 हूद, आयत – 117)

इस्लाम और बर्थ कन्ट्रोल
सैयद अबुल आला मौदूदी बर्थ कन्ट्रोल का आन्दोलन है क्या? कैसे आरम्भ हुआ? किन कारणों से उसे तरक्क़ी हुई? और जिन देशों में वह लोकप्रिय हुआ, वहाँ उसके क्या परिणाम निकले! जब तक ये बातें अच्छी तरह बुद्धिगम्य न हो जायेंगी, इस्लाम का फ़तवा ठीक-ठीक समझ में न आएगा, न मन ही को संतोष होगा, इसलिए सब से पहले हम इन्हीं प्रश्नों पर प्रकाश डालेंगे और अन्त में इस सम्बन्ध में इस्लामी दृटिकोण की व्याख्या करेंगे। यह पुस्तक इसी ग़लतफ़हमी को दूर करने के लिए लिखी जा रही है।

बन्दों के हक़
अनस और बिन मसऊद (रज़ि0) बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल (सल्ल0) ने फ़रमाया कि मख़लूक़ (प्राणी) अल्लाह की 'अयाल' (कुम्बा) हैं। इसलिए उसे अपनी मख़लूक़ (जानदार) में सबसे ज़्यादा प्यारा वह है जो उसके कुम्बे से अच्छा सुलूक करे। अल्लाह के रसूल (सल्ल0) ने फ़रमाया कि मेरी उम्मत में मुफ़लिस (निर्धन) वह है जो क़ियामत के दिन नमाज़, रोज़ा और ज़कात लेकर आएगा, मगर इस हालत में आएगा कि किसी को गाली दी होगी, किसी पर झूठा इलज़ाम लगाया होगा, किसी का (नाहक़) माल खाया होगा, किसी का ख़ून बहाया होगा और किसी को मारा होगा।

दरूद और सलाम
"अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर दुरूद भेजते हैं। ऐ लोगो! जो ईमान लाये हो, तुम भी उन पर दुरूद व सलाम भेजो।” क़ुरआन मजीद की इस आयत में एक बात यह बतलाई गयी कि अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर दुरूद भेजते हैं। अल्लाह की ओर से अपने नबी पर सलात (दुरूद) का मलतब यह है कि वह नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर बेहद मेहरबान है। आप की तारीफ़ फ़रमाता है, आप के काम में बरकत देता है, आप का नाम बुलन्द करता है और आप पर अपनी रहमत की बारिश करता है।

इबादतें बे-असर क्यों?
क़ुरआन मजीद को अगर सरसरी तौर से भी पढ़ा जाए तो यह बात पहली नज़र में वाज़ेह हो जाती है कि इस्लाम इनसान की पूरी ज़िन्दगी को ख़ुदा के हुक्मों के मुताबिक़ गुज़ारने का नाम है। इसी लिए अल्लाह के तमाम पैग़म्बरों ने अपनी क़ौम से अपनी पूरी ज़िन्दगी में अल्लाह की फ़रमाँबरदारी करने का मुतालबा किया। यही मामला अल्लाह के आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का था। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पर जो लोग ईमान लाए उनके दिमागों में यह बात बिलकुल वाज़ेह थी और उनकी अमली ज़िन्दगी इस हक़ीक़त की गवाह थी।

ईदुल-फ़ित्र किसके लिए?
ईद की मुबारकबाद के असली हक़दार वे लोग हैं, जिन्होंने रमज़ान के मुबारक महीने में रोज़े रखे, क़ुरआन मजीद की हिदायत से ज़्यादा-से ज़्यादा फ़ायदा उठाने की फ़िक्र की, उसको पढ़ा, समझा, उससे रहनुमाई हासिल करने की कोशिश की और तक़्वा (परहेज़गारी) की उस तर्बियत का फ़ायदा उठाया, जो रमज़ान का मुबारक महीना एक मोमिन को देता है। क़ुरआन मजीद में रमज़ान के रोज़े के दो ही मक़सद बयान किये गये हैं एक यह कि उनसे मुसलमानों में तक़्वा (परहेज़गारी) पैदा हो— “तुम पर रोज़े अनिवार्य किए गए, जिस तरह तुमसे पहले लोगों पर अनिवार्य किए गए थे, ताकि तुममें तक़्वा (परहेज़गारी) पैदा हो।" -2:183

अहम हिदायतें (तहरीके इस्लामी के कारकुनों के लिए)
सबसे पहली चीज़ जिसकी हिदायत हमेशा से नबियों और ख़ुलफ़ा-ए-राशिदीन और उम्मत के नेक लोग हर मौक़े पर अपने साथियों को देते रहे हैं, वह यह है कि वे अल्लाह से डरें, उसकी मुहब्बत दिल में बिठाएँ और उसके साथ ताल्लुक़ बढ़ाएँ। यह वह चीज़ है जिसको हर दूसरी चीज़ पर मुक़द्दम और सबसे ऊपर होना चाहिए। अक़ीदे (धारणाओं) में 'अल्लाह पर ईमान' मुक़द्दम और सबसे ऊपर है, इबादत में अल्लाह से दिल का लगाव मुक़द्दम है, अख़लाक़ में अल्लाह का डर मुक़द्दम है, मामलों (व्यवहारों) में अल्लाह की ख़ुशी की तलब मुक़द्दम