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शरीअत

Found 15 Posts

अहिंसा और इस्लाम
अहिंसा और इस्लाम
12 March 2020
Views: 97

वामन शिवराम आप्टे ने ‘संस्कृत-हिन्दी-कोश’ में ‘अहिंसा का अर्थ इस प्रकार किया है—अनिष्टकारिता का अभाव, किसी प्राणी को न मारना, मन-वचन-कर्म से किसी को पीड़ा न देना (पृष्ठ 134)। मनुस्मृति (10-63, 5-44, 6-75) और भागवत पुराण (10-5) में यही अर्थापन किया गया है । ‘अहिंसा परमो धर्मः’ का वाक्य इसी से संबंधित है । प्रसिद्ध जैन विद्वान श्री वल्लभ सूरी ने अपनी पुस्तक ‘जैनिज़्म’ (Jainism) में ‘अहिंसा’ की व्याख्या इन शब्दों में की है—

क़ुरआन में माता-पिता और सन्तान से संबंधित शिक्षाएं
क़ुरआन में माता-पिता और सन्तान से संबंधित शिक्षाएं
12 March 2020
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लेख तुम्हारे रब ने फै़सला कर दिया है कि तुम लोग किसी की बन्दगी न करो मगर सिर्फ़ उस (यानी अल्लाह) की, और माता-पिता के साथ अच्छे से अच्छा व्यवहार करो। अगर उनमें से कोई एक या दोनों तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुंच जाएं तो उन्हें (गु़स्सा या झुंझलाहट से) ‘ऊंह’ तक भी न कहो, न उन्हें झिड़को, बल्कि उनसे शिष्टतापूर्वक बात करो। और उनके आगे दयालुता व नम्रता की भुजाएं बिछाए रखो, और दुआ किया करो कि ‘‘मेरे रब जिस तरह से उन्होंने मुझे बचपने में (दयालुता व ममता के साथ) पाला-पोसा है, तू भी उन पर दया कर। (17:23,24)

इस्लाम में इबादत का अर्थ
इस्लाम में इबादत का अर्थ
14 March 2020
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‘इबादत’ का अर्थ वास्तव में बन्दगी और दासता है। आप अब्द (बन्दा, दास) हैं। ईश्वर आपका प्रभु और उपास्य है। दास अपने उपास्य और प्रभु के लिए जो कुछ करे वह इबादत है, जैसे आप लोगों से बातें करते हैं, इन बातों के दौरान यदि आप झूठ से, परनिन्दा से, अश्लीलता से इसलिए बचें कि ईश्वर ने इन चीज़ों से रोका है और सदा सच्चाई, न्याय, नेकी और पवित्राता की बातें करें, इसलिए कि ईश्वर इनको पसन्द करता है तो आपकी ये सब बातें ‘इबादत’ होंगी,

शरीयत क्या है
शरीयत क्या है
14 March 2020
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‘शरीअत’ की दृष्टि से हर इनसान पर चार प्रकार के हक़ होते हैं। एक ईश्वर का हक़; दूसरे: स्वयं उसकी अपनी इन्द्रियों और शरीर का हक़, तीसरेः लोगों का हक़, चैथे: उन चीज़ों का हक़ जिनको ईश्वर ने उसके अधिकार में दिया है ताकि वह उनसे काम ले और फ़ायदा उठाए। ‘शरीअत’ इन सब हक़ों को अलग-अलग बयान करती है और उनको अदा करने के लिए ऐसे तरीक़े निश्चित करती है कि एक साथ सब हक़ अदा हों और यथासंभव कोई हक़ मारा न जाए।

हिजाब (परदा) क्या है
हिजाब (परदा) क्या है
14 March 2020
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हिजाब (परदा) का विरोध करने से पहले इस्लाम की संपूर्ण जीवन-व्यवस्था, विशेष रूप से पर्दे के क़ानून का एक बार निष्पक्ष भाव से अध्ययन अवश्य कर लें। हिजाब के विरोध का आधार कितना कमज़ोर है इसकी सत्यता को इसी बात से समझा जा सकता है कि आज पूरे संसार में इस्लाम को स्वीकार करने वाले लोगों में महिलाओं का अनुपात सबसे अधिक है। वहीं महिलाएं जिन्हें पर्दे से भयभीत होकर इस्लाम से दूर भागना चाहिए था, वही आज हिजाब धारण करके अपने आपको सुरक्षित और स्वतंत्र महसूस करती हैं।

तलाक़: नारी का अपमान नहीं
तलाक़: नारी का अपमान नहीं
14 March 2020
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लेख इस्लाम में तलाक़ के प्रावधान को अन्तिम और अपरिहार्य (Inevitable) समाधान के रूप में ही उपयोग किया जा सकता है। यदि पति-पत्नी के बीच ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाए कि परिवार को चलाना मुश्किल हो रहा हो, तो इस्लाम तलाक़ की स्थिति आने से पहले पति-पत्नी के बीच सुलह-सफ़ाई कराने का भरपूर प्रयत्न करता है। और सारे प्रयत्नों के असफल हो जाने पर ही इस्लाम तलाक़ की अनुमति देता है। ‘‘अल्लाह के नज़दीक हलाल चीज़ों में सबसे ज़्यादा नापसन्दीदा चीज़ तलाक़ है।'' (हदीस)

इस्लाम: मानव-अधिकार
इस्लाम: मानव-अधिकार
14 March 2020
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आप (सल्ल॰) ने हज के दौरान ‘अरफ़ात’ के मैदान में 9 मार्च 632 ई॰ को एक भाषण दिया जो मानव-इतिहास के सफ़र में एक ‘मील का पत्थर’ (Milestone) बन गया। इसे निस्सन्देह ‘मानवाधिकार की आधारशिला’ का नाम दिया जा सकता है। उस समय इस्लाम के लगभग सवा लाख अनुगामी लोग वहाँ उपस्थित थे। थोड़ी-थोड़ी दूरी पर ऐसे लोगों को नियुक्त कर दिया गया था जो आपके वचन-वाक्यों को सुनकर ऊँची आवाज़ में शब्दतः दोहरा देते; इस प्रकार सारे श्रोताओं ने आपका पूरा भाषण सुना।

इस्लामी जिहाद की वास्तविकता
इस्लामी जिहाद की वास्तविकता
15 March 2020
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मानव-सभ्यता एवं नागरिकता की आधारशिला जिस क़ानून पर स्थित है उसकी सबसे पहली धारा यह है कि मानव का प्राण और उसका रक्त सम्माननीय है। मानव के नागरिक अधिकारों में सर्वप्रथम अधिकार जीवित रहने का अधिकार है और नागरिक कर्तव्यों में सर्वप्रथम कर्तव्य जीवित रहने देने का कर्तव्य है। संसार के जितने धर्म-विधान और सभ्य विधि-विधान हैं, उन सब में प्राण-सम्मान का यह नैतिक नियम अवश्य पाया जाता है। जिस क़ानून और धर्म में इसे स्वीकार न किया गया हो, वह न तो सभ्य मानवों का धर्म और क़ानून बन सकता है, न उसके अन्तर्गत कोई मानव-दल शान्तिमय जीवन व्यतीत कर सकता है और न ही उसे कोई उन्नति प्राप्त हो सकती है।

पैग़म्बर की शिक्षाएं
पैग़म्बर की शिक्षाएं
15 March 2020
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लेख अच्छा मनुष्य, अच्छा ख़ानदान, अच्छा समाज और अच्छी व्यवस्था-यह ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें हमेशा से, हर इन्सान पसन्द करता आया है क्योंकि अच्छाई को पसन्द करना मानव-प्रकृति की शाश्वत विशेषता है। पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) ने इन्सान, ख़ानदान, समाज और व्यवस्था को अच्छा और उत्तम बनाने के लिए जीवन भर घोर यत्न भी किए और इस काम में बाधा डालने वाले कारकों व तत्वों से संघर्ष भी।

दाम्पत्य व्यवस्था
दाम्पत्य व्यवस्था
15 March 2020
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इस्लाम का दृष्टिकोण यह है कि पति-पत्नी को बुनियादी और प्राथमिक स्तर पर एक-दूसरे से ‘सुकून’ प्राप्त करने के उद्देश्य से निकाह (विवाह) के वाद मिलन होते ही, एक-दूसरे के लिए प्रेम, सहानुभूति, शुभचिन्ता व सहयोग की भावनाएँ अल्लाह की ओर से वरदान-स्वरूप प्रदान कर दी जाती हैं (कु़रआन, 30:21) अतः ऐसा कोई कारक बीच में नहीं आना चाहिए जो अल्लाह की ओर से दिए गए इस प्राकृतिक देन को प्रभावित कर दे। इस्लाम कहता है कि पति-पत्नी आपस में एक-दूसरे का लिबास हैं (कु़रआन, 2:187)। अर्थात् वे लिबास ही की तरह एक-दूसरे की शोभा बढ़ाने, एक-दूसरे को शारीरिक सुख पहुँचाने और एक दूसरे के शील (Chastity) की रक्षा करने के लिए हैं।

इस्लाम में औरत का पसंदीदा किरदार
इस्लाम में औरत का पसंदीदा किरदार
28 March 2020
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पुस्तक: इस्लाम में औरत का पसंदीदा किरदार लेखक : सैयद असद गिलानी अनुवाद : डॉ रफीक अहमद

बच्चो की तरबियत और माँ बाप की जिम्मेदारिया
बच्चो की तरबियत और माँ बाप की जिम्मेदारिया
28 March 2020
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पुस्तिका: बच्चो की तरबियत और माँ बाप की जिम्मेदारिया

रोज़ा और उसका असली मक़सद
रोज़ा और उसका असली मक़सद
21 March 2020
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नमाज़ के बाद दूसरी इबादत जो अल्लाह तआला ने मुसलमानों पर फ़र्ज़ की है ‘‘रोज़ा'' है। रोज़ा से मुराद यह है कि सुबह से शाम तक आदमी खाने-पीने और औरत के पास जाने से परहेज़ करे। नमाज़ की तरह यह इबादत भी शुरू से तमाम पैग़म्बरों की शरीअत में फ़र्ज़ रही है। पिछली जितनी उम्मतें गुज़री हैं, सब इसी तरह रोज़ा रखती थीं, जिस तरह उम्मते मुहम्मदी रखती है, अलबत्ता रोज़े के हुक्मों और रोज़े की तादाद और रोज़े रखने की मुद्दत में शरीअतों के बीच फ़र्क़ रहा है।