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मुहम्मद (सल्ल॰) की शिक्षाओं के प्रभाव

मुहम्मद (सल्ल॰) की शिक्षाओं के प्रभाव

हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) की शिक्षाओं के प्रभाव अगण्य और अनंत हैं, जो मानव स्वभाव, मानव-चरित्र, मानव समाज और मानव सभ्यता-संस्कृति पर पड़े। ये प्रभाव सार्वकालिक हैं और अब तो सार्वभौमिक हो चुके एवं होते ही जा रहे हैं। 

● विशुद्ध एकेश्वरवादी धारणा ने अनगिनत अच्छाइयाँ और सद्गुण, सदाचार उत्पन्न किए, उनको उन्नति दी और बहुदेववाद से उपजी अनगिनत बुराइयों, अपभ्रष्टताओं, पापों आदि को मिटते हुए, दुनिया ने देखा और मानव-समाज इस परिस्थिति से लाभान्वित हुई। 
● मानव-बराबरी (Human Equality) का कहीं अता-पता न था। आज भी ‘नाबराबरी’ की लानत से दुनिया जूझ रही है। आपकी शिक्षाओं का ही प्रभाव है जो संसार इन्सानी बराबरी की पुण्य अवधारणा से अवगत हुआ, इसके पक्ष में मानसिकता बनी, बड़े-बड़े आन्दोलन चले, तरह-तरह के संवैधानिक क़ानून बनाए गए।
● ‘मानव-अधिकार’ की कोई सुनिश्चित रूप-रेखा न थी। अधिकार-हनन पूरे समाज, पूरी सामूहिक व्यवस्था में, पूरे विश्व में व्याप्त था। आपने मौलिक मानवीय अधिकारों, तथा व्यक्तिगत अधिकारों की रूप-रेखा भी निश्चित की तथा उनका स्थापन भी किया। यू॰एन॰ओ॰ (संयुक्त राष्ट्र संघ) का ‘यूनिवर्सल चार्टर ऑफ ह्यूमन राइट्स’ आपकी (और आपके माध्यम से क़ुरआन की) दी हुई शिक्षाओं से प्रेरणा पाकर, उन्हीं की रोशनी में तैयार किया गया।
● अरब के ग़ुलामों (दलितों) और काले हबशियों (Negros) की वही दुर्दशा थी जो भारत में अछूतों, दलितों की; और बाद की शताब्दियों में अमेरिका में कालों की। आपकी शिक्षाओं से अरब से ग़ुलामी-प्रथा का सर्वनाश हो गया। उसी शिक्षा का ही प्रभाव था जिससे भारत में, इस्लाम की गोद में आकर असंख्य अछूत-दलित लोगों का उद्धार व कल्याण हुआ। उन्हीं शिक्षाओं से रोशनी व प्रेरणा पाकर कालों-गोरों, सवर्णों-अछूतों के बीच भेदभाव मिटाने के क़ानून विभिन्न देशों में बने।
● आप (सल्ल॰) के समकालीन धर्मों, समाजों, सभ्यताओं में नारी की हैसियत दयनीय थी। इस दुर्दशा और अपमान व शोषण का विवरण तत्संबंधित समाजों के इतिहास और ग्रंथों में मौजूद है। आप (सल्ल॰) की शिक्षाओं से नारी को उसका उचित स्थान मिला, बराबरी मिली, अधिकार मिले, उसका खोया हुआ नारीत्व वापस मिला, उसके शील की रक्षा हुई, उसके आर्थिक अधिकार मिले, गौरव मिला, सम्मान मिला, प्रतिष्ठा मिली तथा हर प्रकार के शोषण से संरक्षण मिला। वर्तमान युग में नारी को जो कुछ ‘अच्छा’ मिल रहा है उसमें आपकी शिक्षओं का बड़ा योगदान है (और जो ‘सब कुछ’ उससे छिन गया या छीना जा रहा है, वह इस्लामी शिक्षाओं के प्रति अवहेलना, विद्वेष, नफ़रत और दूरी का परिणाम है)।
मुस्लिम समाज पर प्रभाव
मुस्लिम समाज, पूरी तरह आज आपकी शिक्षाओं का (दुर्भाग्यवश) पालन नहीं करता। विशेषतः भारत में ‘दूसरों की शिक्षाओं’ से तथा ‘धर्म-विमुख (सेक्युलर) सिद्धांतों’ व परम्पराओं से प्रभावित व प्रदूषित है। अतएव उसमें आपकी शिक्षाओं की चमक और शान, जैसी होनी चाहिए वैसी नज़र नहीं आती। फिर भी तुलनात्मक स्तर पर उसमें, आपकी शिक्षाओं का काफ़ी प्रभाव पाया जाता है, जैसे:
● मुस्लिम समाज में शराब और जुए का प्रचलन बहुत ही कम है।
● मुस्लिम समाज ब्याज (के शोषण तंत्र) से बड़ी हद तक सुरक्षित है।
● रिश्वत खाने वाले मुसलमानों की संख्या बहुत कम है।
● मुस्लिम बहुओं के जलाए जाने की घटनाएँ नगण्य हैं।
● कन्या-भ्रूण हत्या मुस्लिम समाज में नहीं होती।
● मुस्लिम समाज में बलात्कार, व्यभिचार, लड़कियों के अपहरण, यौन-अपराध का अनुपात बहुत ही कम है।
● मुस्लिम समाज में बूढ़ों व विधवाओं की समस्या बहुत कम है। वृद्धालय और विधवा-आश्रम स्थापित करने की आवश्यकता इस समाज को नहीं पड़ती।
● बच्ची पैदा होने पर माता-पिता व परिवारजन वुं$ठित नहीं होते बल्कि उसे ईश्वर का वरदान (और स्वर्ग-प्राप्ति का साधन) समझते हुए प्रसन्नचित होते हैं।
● मुस्लिम समाज, अनेक बाहरी अवरोधों और प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझते हुए भी, तथा अपने अन्दर मौजूद बहुत-सी कमज़ोरियों और त्रुटियों के बावजूद एकेश्वरवाद और अनेकानेक नैतिक मूल्यों की ज्योति जलाए हुए है।
● ग़रीबों, निर्धनों, जीवनयापन संसाधन से वंचित लोगों, असहायों, विधवाओं, निर्धन मरीज़ों, अनाथों, अबला व बेसहारा स्त्रियों, ज़रूरतमन्दों आदि की नानाप्रकार की सहायता व सहयोग में; तथा धर्म व नैतिकता के शिक्षण-प्रशिक्षण में मुस्लिम समाज बहुत तवज्जोह, समय, मानव संसाधन और आर्थिक संसाधन के साथ प्रयासरत है। इसके लिए परिश्रम और धन की क़ुरबानी दी जाती है। दान (Charity) का सिलसिला लगातार, जारी रहता है।
● मुस्लिम समाज के अन्दर से बेशुमार जनसेवा संस्थानों और संगठनों की उत्पत्ति हुई है जो बिना किसी बाहरी आर्थिक सहायता के, उन लोगों की सेवा व सहायता करते हैं जो बड़ी-बड़ी मुसीबतों (जैसे भूकंप, तूफ़ान, सैलाब, या दंगा-फ़साद आदि) के समय निःस्वार्थ भाव से हर प्रभावित व्यक्ति या ख़ानदान को राहत (Relief and Rehabilitation) पहुँचाते हैं, चाहे वह किसी भी धर्म व जाति से संबंध रखता हो।
ये सारे गुण, मुस्लिम समाज में, क़ुरआन और पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) की उन शिक्षाओं के प्रभावस्वरूप उत्पन्न हुए हैं जो क़ुरआन (ईशग्रंथ) और ‘हदीस’ (पैग़म्बर के वचनों के संग्रह) में बाहुल्य और विस्तार के साथ बयान हुए हैं। (इन संग्रहों का अध्ययन करने में आसानी के लिए, इनकी सूची, इसी वेबसाइट के अध्याय 5 (हदीस) में दी गई है।
इस्लाम के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) के जीवन, चरित्र, आचरण, सन्देश और मिशन तथा इसके सार्वकालिक, सार्वभौमिक उत्तम प्रभावों के बहुत ही कम पहलुओं पर, ऊपर बहुत संक्षेप में प्रकाश डाला गया है। इस व्यक्तित्व पर संसार की अनेक भाषाओं में करोड़ों पृष्ठ लिखे जा चुके हैं, लाखों पुस्तकें, आलेख, कविताएँ, आप (सल्ल॰) की प्रशंसा में लिखी जा चुकी हैं। यह क्रम 1400 वर्षों से निरंतर आज तक जारी है। यहाँ तक कि विरोधियों और शत्रुओं ने भी क़लम उठाया तो प्रशंसा करने, श्रद्धांजलि अर्पित करने से स्वयं को रोक न सके। ऐसी महान, मानवता-प्रेमी, मानवता-उपकारी, मानवता-उद्धारक हस्ती, जिसने अपने लिए, अपने स्वार्थ में, अपने सुख, भोगविलास के लिए; अपनी शान, वैभव के लिए, अपने आगे लोगों के सिर झुकवाने के लिए, अपनी जयजयकार कराने के लिए नहीं, बल्कि मनुष्य को ईश्वर—मात्रा ईश्वर—का सच्चा दास बनाने, बस उसी के आगे मनुष्य का मस्तक झुकवाने के लिए इतना संघर्ष किया, इतनी तपस्या की, इतने कष्ट, दुःख व जु़ल्म सहे। हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) केवल मुसलमानों की ही नहीं, समस्त मानवजाति की मूल्यवान विरासत हैं। आपका पैग़ाम, आपकी शिक्षाएँ, आपका आह्वान, आपका मिशन, आपकी पुकार, सबका सब पूरी मानवजाति के लिए है।

 स्रोत 

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