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मोज़े पर मसह

मोज़े पर मसह

मोज़ा चमड़े या कपड़े से बनाए गए वस्त्र को कहते हैं जो पांव के साथ टखने को छुपाए। पुरूष तथा महिला के लिए मोज़े पर मसह करना जाइज़ है। चाहे गर्मी का समय हो या जाड़ा का समय हो, चाहे यात्री व्यक्ति हो या अपने घर में रहने वाला हो, चाहे रोगी व्यक्ति हो या स्वस्थ।

मोज़े पर मसह का अर्थ यह है कि वुज़ू में दोनों पांव को धोने के बजाए मोज़े पर भीगे हाथ से मसह कर लिया जाए।

मसह करना क़ुरआन और रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की हदीसों से प्रमाणित है जैसा कि अल्लाह तआला का फरमान है।

يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا إِذَا قُمْتُمْ إِلَى الصَّلَاةِ فَاغْسِلُوا وُجُوهَكُمْ وَأَيْدِيَكُمْ إِلَى الْمَرَافِقِ وَامْسَحُوا بِرُءُوسِكُمْ وَأَرْجُلَكُمْ إِلَى الْكَعْبَيْنِ ( 6- سورة المائدة : 6)

ऐ ईमान लेनेवालो, ! जब तुम नमाज़ के लिए उठो तो अपने चहरों को और हाथों को कुहनियों तक धो लिया करो और अपने सिरों पर हाथ फेर लो और अपने पैरों को भी टखनों तक हाथ फेर लो। (6- सूरह अलमाईदाः 6)

सऊदी अरब के मश्हूर अल्लामा मुहम्मद बिन सालिह अल ऊसैमिन रहमतुल्लाह ने मोजे पर मसह करने के संदर्भ में इसी आयत से दलील ली है।

मुग़ीरा बिन शोबा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) वुज़ू कर रहे थे तो मैं नबी की ओर लपका ताकि आप का दोनों मोज़े उतार दूँ तो नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः दोनों मोजे को छोड़ दो क्योंकि मैं ने इन्हें पाकी की हालत में पहना है और फिर दोनों मोज़े पर मसह किया। (सही बुखारीः203 , सही मुस्लिमः274)

अम्र बिन उमय्या अज़्ज़म्री (रज़ियल्लाहु अन्हु) से वर्णन है कि उन्हों ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को दोनों मोज़े पर मसह करते हुए देखा। (सही बुखारीः )

यह दोनों हदीसें दलालत करती हैं कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मोजे पर मसह किया और अल्लाह की दी हुई छुट से लाभ उठाया क्येंकि जब अल्लाह तआला किसी वस्तु में छुट देता है तो वह पसन्द करता है कि बन्दा उसकी दी हुई छुट का प्रयोग करे।

मोज़े पर मसह करने की शर्तेः
1. दोनों मोज़े को वुज़ू की स्थिति में पहना गया हो।

मुग़ीरा बिन शोबा (रज़ियल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि मैं एक यात्रा में रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के साथ था, वुज़ू के समय मैं तेज़ी से रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की ओर बढ़ा ताकि आप के मोज़े को निकाल दूँ, तो आप ने फ़रमायाः “ उसे छोड़ दो, मैं ने इसे पवित्रता की स्थिति में पहना है।” (सही बुखारीः203 , सही मुस्लिमः274)

2. वे दोनों मोजे पवित्र हों यदि अपवित्र होंगे तो उन पर मसह करना अवैध होगा और दोनों मोजे पर मसह वुज़ू करते समय सही होगा परन्तु गुस्ल के लिए मोजे निकाल दिया जाएगा।

3. मोज़े पांव के अनिवार्य ग़ुस्ल के स्थान को ढ़ापे हुए हो, क्योंकि मोज़ा उसी समय कहा जाऐगा जब वह पूरे पांव के अनिवार्य ग़ुस्ल के स्थान को ढ़ापे हुए हो।

4. दोनों मोजे पर एक सिमित समय तक मसह किया जाएगा जैसे कि यात्री व्यक्ति तीन दिन और तीन रात और गैर यात्री एक दिन एवं एक रात तक मसह कर सकता है।

5. मोजे पर मसह करने में महिला और पुरूष में कोइ अन्तर नहीं बल्कि दोनों के लिए एक ही जैसा आदेश और शर्तें हैं।

मोज़े पर मसह करने की अवधिः
निवासी व्यक्ति के लिए मोज़े पर मसह करने की अवधि एक दिन और एक रात है तथा यात्री व्यक्ति के मोज़े पर मसह करने की अवधि तीन दिन और तीन रात है।

जिस ने मसह का आरंभ गैर यात्रा से किया और फिर यात्रा के लिए निकला तो एक दिन और एक रात ही तक मसह करेगा।
जिसने ने मसह का आरंभ यात्रा से किया और फिर यात्रा से वापस आ गया तो एक दिन और एक रात ही तक मसह करेगा।
यदि कोई व्यक्ति थोड़ा फटा हुआ मोजा पहने हुआ है तो उस पर भी मसह किया जा सकता है जब तक कि उस से लाभ उठाता रहे।
मोज़े पर मसह करने का ढ़ंगः
मोज़े के ऊपर और निचे लाईन की तरह मसह करना ही सुन्नत तरीक़ा है। मतलब यह कि दांये हाथ की उंगलियो को दांये पांव के सामने की उंगलियो के ऊपर रखे और बांये हाथ की उंगलियों को बांये पांव के सामने की उंगलियो के ऊपर रखे फिर दोनों हाथों को दोनों पांव की पिंडली की ओर ले जाए।

मसह को तोड़ने वाले कार्यः
1. दोनों मोज़े का निकालनाः

दोनों में से किसी एक का निकालना, या दोनों मोज़े का निकालना या दोनों मोज़े का स्वयं निकल जाना या दोनों में से किसी एक का स्वयं निकल जाना।

2. मसह करने की अवधि का ख़त्म होनाः

यदि मसह करने की अवधि ख़त्म हो गया और वह वुज़ू से हो तो मोज़े निकाल कर दोनों पांव धोऐगा और फिर उसे पहन लेगा और यदि वुज़ू से नहीं है तो वुज़ू करेगा और चाहे तो उसे पहन ले।

3. उन वस्तु का होना जिस के कारण ग़ुस्ल अनिवार्य होता हैः

जब किसी व्यक्ति को स्नान करना अनिवार्य हो तो मोज़े को निकाल देगा और अपने शरीर के साथ दोनों पांव भी धुलेगा। क्योंकि मोज़े पर मसह वुज़ू में अनुमति दी गई है, स्नान में नहीं। जैसा कि सफ्वान बिन असाल से वर्णन है कि हम जब यात्रा में होते थे तो रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) हमें आदेश देते थे कि हम अपने मोज़े पर मसह करें और सिवाए जनाबत (नापाकी) के, तीन दिन तक मूत्र, शौच और निन्द के कारण हमें मोज़े निकालने से मना फ़रमाते थे। (सुनन तिर्मिज़ीः 96, सुनन नसाईः 83/1)

स्रोत

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