
इस्लाम में पाकी और सफ़ाई
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फ़िक़्ह
- at 22 March 2020
नसीम गाज़ी फलाही
इनसान वास्तव में एक रूह (आत्मा) है, जिसे एक भौतिक शरीर प्रदान किया गया है। यानी इनसान शरीर का नाम नहीं बल्कि वास्तव में उस रूह का नाम है जो शरीर में डाली गई है। इसलिए जब किसी इनसान की रूह निकल जाती है तो कहा जाता है कि वह मर गया है। हालांकि उसका शरीर सामने मौजूद होता है।
इनसान को इस दुनिया में भेजे जाने का मक़सद वास्तव में यह है कि वह अपने पैदा करने वाले ख़ुदा के मार्गदर्शन के तहत अपनी आत्मा को शुद्ध और विकसित करे। उसके अन्दर वे गुण पैदा करे जो ख़ुदा को पसन्द हैं और जिनको पैदा करने और परवान चढ़ाने का उसने आदेश दिया है। जैसे कि वह अपने स्रष्टा (ख़ुदा) को जाने, उससे उसका सम्बन्ध किस प्रकार का हो इसको समझे। अपने आपको उसके हवाले कर दे और उसका भक्त बने। सभी जानवरों के प्रति दयाभाव, हमदर्दी, क्षमाशीलता, सेवाभाव, प्रेमभाव आदि का मामला करे। वह ख़ुदा के साथ किसी को शरीक न करे, ख़ुदा की नाफ़रमानी से बचे। धोखा-फ़रेब, झूठ, कंजूसी, ज़ुल्म व ज़्यादती और इसी प्रकार के अन्य गन्दे कामों से दूर रहे।
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम।
इस किताब को पढ़ने के बाद पाठकों को न केवल यह कि सफ़ाई एवं स्वच्छता व पवित्रता के बारे में सही जानकारी हासिल होगी, बल्कि उन पर यह हक़ीक़त भी खुल जाएगी कि इस्लाम में इसका क्या महत्व है? सफ़ाई, स्वच्छता एवं पवित्रता को ईश-उपासना, नमाज़ आदि के लिए ज़रूरी ठहराया गया है और सफ़ाई-सुथराई से लापरवाह लोगों को आख़िरत के अज़ाब से सावधान किया गया है। इस बात से इसका महत्व अच्छी तरह समझा जा सकता है।
मैं डॉ0 रज़ियुल-इस्लाम नदवी साहब और प्रिय मुहम्मद ज़ाहिद फ़लाही का शुक्रगुज़ार हूँ कि उन्होंने इस किताब को बेहतर और प्रामाणिक बनाने में ख़ास तौर से हदीसों के सिलसिलें में मदद की। ख़ुदा उनको इसका अच्छा बदला दे।
नसीम ग़ाज़ी फ़लाही
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इस्लाम में सफ़ाई-सुथराई की अहमियत
सफ़ाई-सुथराई और स्वच्छता व पवित्रता का प्रभाव इनसान के दिल और दिमाग़ पर तो पड़ता ही है, इनसान और इनसानी समाज की सेहत की बेहतरी का भी इससे बड़ा गहरा सम्बन्ध है। सफ़ाई-सुथराई को हर इनसान फ़ितरी तौर पर पसन्द करता है, यह और बात है कि इसका तरीक़ा, मेयार और पैमाना लोगों की नज़र में अलग-अलग होता है।
इस्लाम में सफ़ाई-सुथराई और पवित्रता की कितनी ज़्यादा अहमियत है, इसका अन्दाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस्लाम ने अपनी ज़्यादातर इबादतों और धार्मिक कामों को अदा करने के लिए सफ़ाई-सुथराई को लाज़िम कर दिया है, यानी पाक-साफ़ हुए बग़ैर ये इबादतें अदा ही नहीं की जा सकतीं। अगर कोई व्यक्ति पाकी और पवित्रता के बग़ैर इन्हें अंजाम देता है तो इस्लाम के अनुसार वे ख़ुदा के यहाँ क़बूल ही नहीं होंगी, बल्कि ऐसा आदमी उसका नाफ़रमान साबित होगा और गुनाहगार माना जाएगा और इस गुनाह की सज़ा उसे मरने के बाद की ज़िन्दगी (आख़िरत) में मिलेगी। सफ़ाई और पवित्रता के सम्बन्ध में इस्लाम की यह विशेषता है।
इस्लाम की एक विशेषता यह भी है कि उसने केवल ऊपरी सफ़ाई-सुथराई पर ही ज़ोर नहीं दिया, बल्कि वास्तविक पवित्रता की अवधारणा (तसव्वुर) भी पेश की। यह कहना ज़्यादा सही होगा कि इस्लाम ने सफ़ाई-सुथराई को पवित्रता प्रदान की है और हमें वास्तविक पवित्रता और उसकी रूह से अवगत कराया है।
क़ुरआन मजीद की हिदायतें
इस्लाम में सफ़ाई-सुथराई और पाकी की जो अहमियत है उसका अन्दाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को ख़ुदा की ओर से जब लोगों की रहनुमाई के अहम काम पर लगाया गया, उस समय ख़ुदा ने उन्हें जो आदेश दिए उनमें एक आदेश सफ़ाई और पवित्रता का भी था। अतः फ़रमाया-
‘‘ऐ ओढ़ने-लपेटने वाले! [पैग़म्बर मुहम्मद! (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)] उठो और (लोगों को) सावधान करने में लग जाओ। और अपने पालनहार ख़ुदा की बड़ाई बयान करो। अपने दामन को पवित्र रखो और गन्दगी से दूर रहो।''(क़ुरआन सूरा-74 मुद्दस्सिर, आयत 1-5)
क़ुरआन मजीद में पाक-साफ़ रहनेवालों के बारे में कहा गया-
‘‘बेशक ख़ुदा तौबा करनेवालों को और पाक-साफ़ रहनेवालों को पसंद करता है।'' (क़ुरआन सूरा-2 बक़रा, आयत-222)
तौबा (ख़ुदा से माफ़ी माँगने) और पाकी व सफ़ाई में परस्पर बड़ा गहरा सम्बन्ध है। तौबा इनसान को अन्दर से पाक-साफ़ करती है और सफ़ाई बाहर से। यानी तौबा मन को पाक करती है और सफ़ाई तन को।
नमाज़ के वक़्त ज़ीनत इख़्तियार करने का मतलब यह है कि तुम्हारा लिबास और वेश-भूषा शरीफ़ाना होनी चाहिए, जिससे मालूम हो कि तुम ख़ुदा के दरबार में हो।
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की हिदायतें
ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने पाकी और सफ़ाई के बारे में अपने अनुयायियों को बड़े विस्तार से निर्देश दिए हैं और अपने अमल व व्यवहार से रहती दुनिया तक के लिए एक बेहतरीन नमूना पेश फ़रमाया है।
एक अहम बात:- पहले यहाँ बात को अच्छी तरह-समझ लेना ज़रूरी है कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के आदेशों और निर्देशों की हैसियत मुसलमानों के लिए उपदेश और सलाह मशवरे की नहीं, बल्कि आदेश और हुक्म की है, जिन पर चलना हर मुसलमान के लिए ज़रूरी है। क़ुरआन में ख़ुदा कहता है -
‘‘रसूल (पैग़म्बर) जो आदेश तुम्हें दे उस पर चलो और जिस बात से तुम्हें रोके उससे रूक जाओ।'' (क़ुरआन, सूरा-59 हश्र, आयत-7)
पैग़म्बर जो कुछ करता है और जो कुछ कहता है वह ख़ुदा के हुक्म और उसकी मरज़ी के मुताबिक़ करता और कहता है, इसलिए पैग़म्बर की बात ख़ुदा की बात होती है। इसी लिए पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया -
‘‘जिसने मेरी बात मानी उसने ख़ुदा की बात मानी और जिसने मेरी नाफ़रमानी की उसने ख़ुदा की नाफ़रमानी की।'' (हदीस: बुख़ारी- 2957, मुस्लिम-1835)
यहाँ पैग़म्बर की इस हैसियत और मक़ाम को बयान करने से हमारा मक़सद यह बताना है कि पैग़म्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने सफ़ाई-सुथराई के बारे में जो आदेश दिए है उनकी हैसियत क़ानूनी है, जिनको मानना और उन पर अमल करना हर उस व्यक्ति के लिए ज़रूरी है जो इस्लाम का मानने वाला है। सफ़ाई और पाकी के बारे में पैग़म्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की जो शिक्षाएं है उनका उल्लेख आगे आ रहा है।
सफाईः ईमान का तक़ाज़ा
यानी नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का फ़रमान है कि नापाक और गंदा रहने वाला व्यक्ति ईमानवाला हो ही नहीं सकता। अगर वह कभी नापाक हो जाता है या कोई गन्दगी उसको लग जाती है तो वह इस हालत में देर तक नहीं रहता, बल्कि जल्द-से-जल्द पाक-साफ़ होने की कोशिश करता है। क्योंकि ईमानवाला तो साफ़-सुथरा और हमेशा पवित्र रहता है। इसी प्रकार एक जगह और फ़रमाया -
ईमान को दो भागों मे बाँटा जा सकता है। आधा ईमान तो यह है कि इनसान अपनी आत्मा और रूह को गन्दगी और अस्वच्छ न होने दे। अपने दिल और दिमाग़ को ग़लत विचारों, अधर्म और शिर्क, गुमराही और अन्धकार से बचाए रखे। वह कोई अनैतिक (ग़ैर-अख़लाक़ी) और अश्लील काम न करे। वह उन विचारों, आस्थाओं और धारणाओं (अक़ीदों) को अपनाए जो सत्य के अनुकूल और बरहक़ हों और अपने विचारों और ख़यालों को शुद्ध रखे। अपने किरदार को अच्छा बनाए।
सबसे पहला काम: सफ़ाई
ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया -
‘‘तुम में से जब कोई सोकर उठे तो अपने हाथ को बर्तन में न डाले, बल्कि पहले उसे तीन बार धो ले। क्योंकि उसे नहीं मालूम कि उसके हाथ ने रात कहाँ गुज़ारी है।'' (हदीसः मुस्लिम-278)
यह हदीस हमें बताती है कि सोकर उठने बाद सबसे पहले हाथों को धोना चाहिए, बिना हाथ धोए किसी बर्तन में हाथ नहीं डालना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति बिना हाथ धोए पानी के बर्तन में हाथ डालता है तो वह पूरे पानी ही को गन्दा कर डालता है।
एक दूसरे मौक़े पर पैग़म्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया -
‘‘‘जब तुम में से कोई सोकर उठें और हाथ-मुँह धोए तो नाक को तीन बार अच्छी तरह साफ़ करे........।'' हदीसः बुख़ारी-3295, मुस्लिम-238
इसी तरह ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम )ने रात को सोने से पहले भी वुज़ू करने की हिदायत की है। फ़रमाया-
‘‘जब तुम अपने बिस्तर पर जाने लगो तो वुज़ू करो, जैसे नमाज़ के लिए वुज़ू करते हैं।'' (हदीस: बुख़ारी बुखारी-6311, मुस्लिम-2710)
अगर सोने से पहले वुज़ू कर लिया जाए तो इसे पाकी और सफ़ाई तो हासिल हती ही है, साथ ही इनसान की मानसिक व शारीरिक स्थिति पर भी इसका बहुत अच्छा असर पड़ता है। आजकल डॉक्टर और हकीम भी अच्छी नींद और मानसिक सुकून के लिए मुँह और हाथ-पांव धोकर सोने का मशवरा देते हैं।
ग़ुस्लख़ाने में पेशाब न करना
ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ग़ुस्लख़ाने मे पेशाब करने से मना किया है क्योंकि यह काम सफ़ाई के पहलू से ठीक नहीं है। फ़रमाया -
‘‘तुममें से कोई व्यक्ति अपने ग़ुस्लख़ाने में पेशाब न करे।'' (हदीस: अबू-दाउद-27, इब्ने-माजा, 304, नसई-36)
आजकल ऐसे आधुनिक ग़ुस्लख़ाने बनने लगे हैं जिनके अन्दर पाख़ाना-पेशाब की जगह अलग बनी होती है और नहाने की जगह अलग होती है। ऐसे ग़ुस्लख़ाने उक्त आदेश के अन्तर्गत नहीं आते।
आम रास्तो को साफ़ रखना
‘‘ईमान की शाख़ें सत्तर से कुछ ऊपर हैं। उनमें सबसे ऊपर इस बात का इक़रार है कि ख़ुदा के सिवा कोई पूज्य (इबादत के लायक़) नहीं, और सबसे कमतर दरजे की शाख़ कष्ट और तकलीफ़ देनेवाली चीज़ को रास्ते से हटा देना है। और शर्म व हया भी ईमान की एक शाखा है।'' (हदीस: मुस्लिम-35)
आम जगहों ख़ासतौर से रास्तों और सड़कों को साफ़-सुथरा रखने की ज़िम्मेदारी शासन की बताई गई है, क्योंकि इतना बड़ा काम पाबन्दी के साथ बग़ैर शासन की मदद के पूरा किया जाना आसान नहीं है। इस्लामी दौर के शासक रास्तों और सड़कों आदि की सफ़ाई को अपनी ज़िम्मेदारी समझते थे, जैसा कि निम्न वाक़िए से मालूम होता है -
आम रास्तों और सड़कों की सफ़ाई उसी वक़्त मुमकिन है कि जब आम लोग सफ़ाई के सिलसिले में जागरूक हों और अपनी ज़िम्मेदारियों का एहसास रखते हों। इसी एहसास को पैदा करने के लिए ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया -
‘‘ख़ुदा पाक और पवित्र है और पाकी व पवित्रता को पसन्द करता है। स्वच्छता वाला है स्वच्छता को पसन्द करता है। वह मेहरबान है और मेहरबानी करने को पसन्द करता है। वह दाता है और देने को पसन्द करता है। अतः तुम भी (पाक-साफ़ रहो और) अपने घरों के आंगन को पाक-साफ़ रखो............।'' (हदीस: तिरमिज़ी-2799)
पेशाब की छींटों से बचना
‘‘जब तुममें से कोई पेशाब करना चाहे तो ऐसी जगह जाए जहाँ पेशाब की छीटें न पड़ें।'' (हदीस: अबू-दाऊद-3)
हज़रत इब्ने-अब्बास (रज़िअल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि ‘‘पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) दो क़ब्रों के पास से गुज़रे और फ़रमाया कि इन दोनों क़ब्रवालों को अज़ाब दिया जा रहा है। और अज़ाब किसी बहुत बड़ी ग़लती पर नहीं दिया जा रहा, बल्कि इसलिए दिया जा रहा है कि इनमें से एक पेशाद से अपनी हिफ़ाज़त नहीं करता था और दूसरा लोगों की बुराई बयान करता फिरता था।'' (हदीसःबुख़ारी-218)
पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के इस कथन से जहाँ यह बात मालूम होती है कि पेशाब की छीटों से इनसान का शरीर गन्दा हो जाता है, वहीं यह इशारा भी मिलता है किसी की बुराई करते फिरना अपने आप में एक गन्दी हरकत है जिससे आदमी दूसरे के नुक़सान से ज़्यादा अपना नुक़सान करता है और अपनी आत्मा (रूह) को गन्दा कर देता है। इस हदीस में भी तन और मन दोनों की सफ़ाई की अहमियत बताई गई है।
पेशाब की बूँदें अगर शरीर पर या कपड़े पर लगी हुई हों तो आदमी नमाज़ भी नहीं पढ़ सकता, इसलिए पेशाब करने के बाद मुख्य अंग (मूत्रेंद्रिय) को पानी से धोने का आदेश दिया गया है ताकि पेशाब की बूँदों से कपड़े नापाक (अपवित्र) न हों। पानी न मिलने की सूरत में मिट्टी या टिशू पेपर आदि से यह मक़सद हासिल किया जा सकता है।
छोटे बच्चों का पेशाब
बच्चा अगर किसी के कपड़े पर पेशाब कर दे तो ज़रूरी है कि पानी से धोकर उसे साफ़ किया जाए।अगर किसी आदमी के कपड़े पर पेशाब की छीटें पड़ी हो तो ऐसा आदमी उस वक़्त तक नमाज़ नहीं पढ़ सकता, जब तक कि वह कपड़ों को धोकर पाक न कर ले।
‘जिस जगह या जिस कपड़े पर नमाज़ पढ़नी हो, अगर उस जगह बच्चे ने पेशाब कर दिया है तो ज़रूरी है कि नमाज़ पढ़ने से पहले उस जगह और कपड़े को भी पानी से धोकर साफ़ कर लिया जाए।
पानी, साबुन आदि से सफ़ाई करना
पाख़ाने (शौच) के बाद पानी से पाकी हासिल करनी चाहिए तथा हाथ मिट्टी या साबुन से धोने चाहिएं, क्योंकि पाख़ाना करने के बाद बदबू हाथ में बाक़ी रह सकती है और यदि सिर्फ़ पानी से हाथ धोया गया तो इससे इस बात की अधिक संभावना रहती है कि हाथ गन्दगी के असर से पूरी तरह साफ़ न हो पाएं। ऐसा न करने से आदमी के अन्दर घृणा और नफ़रत का एहसास भी बना रहता है, साथ ही बीमारी फैलने का डर हर वक़्त मौजूद रहता है। इसलिए पाख़ाने (शौच) के बाद साबुन या पाक मिट्टी से हाथों को ज़रूर धो लेना चाहिए। ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) इस बात का बड़ा ख़याल रखते थे, जैसा कि नीचे लिखे इस वाक़िए से पता चलता है -
पैग़म्बर के साथी हज़रत अबू-हुरैरा (रज़िअल्लाहु अन्हु) कहते हैं कि ‘‘जब पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) पाख़ाने जाते तो मैं बर्तन या छागल में पानी पहुंचाता । वे पाकी हासिल करते। फिर हाथ को ज़मीन पर रगड़ते (और धोते)। फिर मैं पानी का दूसरा बर्तन लाता, तब पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) वुज़ू करते।''(हदीसःअबू-दाउद-45)
इनसान को अपने हाथों से गन्दगी साफ़ करनी पड़ती है और इन्हीं हाथों से वह खाना भी खाता है। आम तौर से लोग दोनों हाथों को दोनों प्रकार के कामों के लिए इस्तेमाल करते हैं। उनके पास इस बारे में कोई रहनुमाई नहीं है। लेकिन इस्लाम ने इसके बारे में भी रहनुमाई की है कि नाक या पाख़ाना-पेशाब साफ़ करने के लिए हमेशा बायाँ हाथ इस्तेमाल करना चाहिए और खाने के लिए दायाँ हाथ! पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया -
‘‘पैग़म्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) खाने-पीने के काम और दूसरे पाक काम दाहिने हाथ से करते थे तथा गन्दगी आदि साफ़ करने और पाकी हासिल करने के लिए बायाँ हाथ इस्तेमाल करते थे।''(हदीस: अबू-दाउद-33)
मुँह और दाँतों की सफ़ाई
‘‘पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बीवी हज़रत आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) कहती हैं कि पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) घर में आने के बाद सबसे पहले मिसवाक किया करते थे।'' (हदीसःमुस्लिम-253)
‘‘मैने तुम्हें ख़ूब मिसवाक करने की नसीहत की है।'' (हदीसः नसई-6)
‘‘जिस नमाज़ के लिए मिसवाक (दातुन) की जाए वह उस नमाज़ से सत्तर गुना बेहतर है जिस नमाज़ के लिए मिसवाक न की जाए।'' (हदीसः बैहिकी-162)
यानी मुँह और दाँतों को साफ़ रखना केवल एक सफ़ाई-सुथराई ही नहीं है, बल्कि वह एक इबादत भी है, जैसा कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने मिसवाक करके पढ़ी जानेवाली नमाज़ को बग़ैर मिसवाक किए पढ़ी जानेवाली नमाज़ से सत्तर गुना अधिक बेहतर कहा है।
खाने-पीने के बाद कुल्ली करना:
इनसान जब भी कुछ खाए या दूध, शर्बत आदि पिए तो चाहिए कि खाने-पीने के बाद मुँह को अच्छी तरह साफ़ कर ले। इससे दाँतों की हिफाजत तो होगी ही सेहत पर भी इसका अच्छा असर पड़ेगा। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इस बात का बड़ा एहतिमाम फ़रमाया है -
हज़रत अब्दुल्लाह-इब्ने अब्बास (रज़िअल्लाहु अन्हु) रिवायत करते है कि-
‘‘ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने दूध पिया, उसके बाद आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कुल्ली की और फ़रमाया कि इसमें चिकनाई होती है।'' (हदीसः बुख़ारी-211, मुस्लिम-358)
एक दूसरी हदीस में है कि -
‘‘एक सफ़र में पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने और आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के साथियों ने सत्तू खाया, फिर सबने कुल्ली की, फिर नमाज़ पढ़ी।'' (हदीसः बुख़ारी-209)
सोकर उठने के बाद दाँतों की सफ़ाई करना:
पैग़म्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) दिन मे कई-कई बार मिस्वाक किया करते थे। जब सोकर उठते तो मिसवाक ज़रूर करते -
सोने से पहले भी मुँह और दाँतो को साफ़ करना बहुत ज़रूरी है। अगर सोते वक़्त आदमी के दाँत साफ़ नहीं हैं तो सोने के बाद मुँह में एक ख़ास तरह का तत्व पैदा हो जाता है, जो दाँतो और पेट के लिए बड़ा ही नुक़सानदेह होता है। अगर वह तत्व आदमी के पेट में चला जाता है तो उससे मेदे को भी बड़ा नुक़सान पहुँचता है। इस लिए सोने से पहले दाँतों को मिसवाक या ब्रश से ज़रूर साफ़ करना चाहिए। पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ज़िन्दगी भर इस बात पर अमल किया है और लोगों के लिए नमूना छोड़ा है। आजकल डॉक्टर और हकीम सोने से पहले नमक के गुनगुने पानी से कुल्ली करने का मशवरा देते हैं।
एक दूसरी जगह फ़रमाया -
‘‘जिस आदमी के हाथ में रात को सोते वक़्त गोश्त (आदि) की बू मौजूद हो और फिर उसे कोई तकलीफ़ पहुँचे तो वह अपने आप ही को बुरा भला कहे।'' (हदीसः अबू-दाउद-3852)
सलीक़े और ढंग से रहना
कुछ लोग मैले-कुचैले कपड़े पहनने और अपनी बेढंगी शक्ल व सूरत और हुलिया बनाने को दीनदारी और धार्मिकता समझते हैं। इस्लाम की नज़र में यह कोई दीनदारी नहीं है और न ही यह ख़ुदा को ख़ुश करनेवाला काम है। ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ऐसा करने से मना फ़रमाया है। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के एक साथी हज़रत जाबिर (रज़िअल्लाहु अन्हु) कहते हैं -
‘‘पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हमारे यहाँ आए, वहाँ उन्होंने एक आदमी को देखा जो धूल-मिट्टी में अटा हुआ था और उसके बाल बिखरे हुए थे। पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा, ‘‘ क्या इस आदमी के पास कोई कंघा नहीं है जिससे यह अपने बालों को संवार लेता ?'' फिर आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने दूसरे आदमी को देखा जिसने मैले-कुचैले कपड़े पहन रखे थे। उसे देखकर पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा, ‘‘क्या इस आदमी के पास कोई चीज़ (साबुन वग़ैरा) नहीं है, जिससे यह अपने कपड़े धो लेता ? (हदीसः अबू-दाउद-4062)
हज़रत अता-बिन-यसार एक वाक़िआ बयान करते है। एक बार की बात है कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मस्जिद में बैठे हुए थे कि एक आदमी आया जिसके सिर और दाढ़ी के बाल बिखरे हुए थे। उसे देखकर पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हाथ से उसकी ओर इशारा किया। इसका मक़सद यह था कि जाकर अपने सिर और दाढ़ी के बाल ठीक करो! वह आदमी गया और बालों को ठीक-ठाक करने के बाद वापस आया। तब पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया,
‘‘क्या यह अच्छा नहीं है इस बात से कि आदमी के बाल उलझे हुए हों और वह ऐसा मालूम होता हो जैसे शैतान है।'' (हदीसः मालिक-4019)
अबू-अहवस (रज़िअल्लाहु अन्हु) अपने बाप से रिवायत करते हैं कि उनके बाप ने कहा कि मैं पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ख़िदमत में हाज़िर हुआ। उस वक़्त मेरे जिस्म के कपड़े घटिया थे। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने पूछा,‘‘ क्या तुम्हारे पास माल है?'' उन्होंने कहा, ‘‘हाँ'' । नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने पूछा कि किस तरह का माल है? उन्होंने जवाब दिया,‘‘हर तरह का माल ख़ुदा ने मुझे दिया है, ऊॅंट भी हैं, गायें भी हैं, बकरियाँ भी हैं, घोड़े भी हैं। '' पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया ‘‘जब ख़ुदा ने माल दे रखा है तो उसकी कृपाओं और मेहरबानियों का असर तुम्हारे जिस्म से भी ज़ाहिर होना चाहिए।'' (हदीसः नसई-5224, अहमद-4063)
अगर आदमी को ख़ुदा ने माल दे रखा हो तो उसे उससे फ़ायदा उठाना चाहिए, ऐसा न हो कि वह गन्दे और फटे-पुराने कपड़े पहनकर मुहताजों की-सी हालत बनाए रहे। यह ख़ुदा की नाशुक्री है। हाँ आदमी को माल का घमंड कभी नहीं करना चाहिए और न ऐसे कपड़े पहनने चाहिएं जिनसे घमंड और अहंकार ज़ाहिर होता हो।
लिबास ख़ुदा की नेमत है। इससे इनसान को फ़ायदा उठाना चाहिए। ख़ुदा ने क़ुरआन में फ़रमाया -
‘‘ऐ इनसानो! हमने तुम्हारे लिए लिबास (वस्त्र) उतारा ताकि वह तुम्हारे क़ाबिले-शर्म हिस्सों को ढांके और तुम्हारे लिए हिफ़ाज़त और ख़ूबसूरती का ज़रिआ बने।'' (क़ुरआन, सूरा-7, आराफ़, आयत-26)
ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया -
‘‘जिस व्यक्ति के मन में तनिक भी घमण्ड होगा, वह जन्नत में न जा सकेगा''
इस पर एक व्यक्ति ने पूछा, ‘‘ आदमी चाहता है कि उसके कपड़े और जूते अच्छे हों (तो क्या वह जन्नत में न जा सकेगा?) ''
पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने कहा, ‘‘नहीं यह घमण्ड नहीं है। ख़ुदा तो जमील और ख़ूबसूरत है और जमाल व ख़ूबसूरती को पसन्द करता है। घमण्ड यह है कि ख़ुदा का हक़ अदा न किया जाए, उसकी नाफ़रमानी की जाए और उसके बन्दों को तुच्छ (हक़ीर) और नीच समझा जाए।'' (हदीसः मुस्लिम-91)
मस्जिद में सफ़ाई
ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया -
‘‘मस्जिद में थूकना ग़लती है, और वह तभी माफ़ हो सकती है जब उसे साफ़ कर दिया जाए।'' (हदीसः बुखारीः415, मुस्लिम-552)
इधर-उधर थूकना एक नापसन्दीदा काम है और सफ़ाई-सुथराई और पाकी के ख़िलाफ़ है, इसे कोई भी व्यक्ति पसन्द नहीं करता, बल्कि ऐसा करने वाले व्यक्ति को नफ़रत की निगाह से देखा जाता है। अनुचित जगह थूकना एक बुरी बात है, और मस्जिद तथा इबादतगाहों में थूकना तो और भी बुरा है। क्योंकि मस्जिद तो नमाज़ पढ़ने, ख़ुदा को याद करने और ख़ुदा से दुआएँ करने का पवित्र स्थान है। किसी को ऐसी जगह हरगिज़ नहीं थूकना चाहिए, बल्कि अगर कहीं थूक या कोई दूसरी गन्दी चीज़ नज़र आए तो उसे साफ़ कर देना चाहिए।
पैग़म्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बीवी हज़रत आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) से रिवायत है -
‘‘पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने काबा की दीवार पर थूक या बलग़म लगा हुआ देखा तो उन्होंने रगड़कर उसे साफ़ कर दिया।''(हदीसः बुख़ारी-407, मुस्लिम-549)
एक बार ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया -
‘‘ये मस्जिदें पेशाब और दूसरी गन्दगियों के लिए उचित नहीं, क्योंकि ये तो ख़ुदा को याद करने, नमाज़ पढ़ने और पवित्र क़ुरआन पढ़ने के लिए हैं।'' (हदीसः मुस्लिम-258)
मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने के लिए चटायाँ और दरियाँ बिछाई जाती हैं, उनको धूल-मिट्टी से बराबर साफ़ करते रहना चाहिए। इसी तरह मस्जिद की अलमारियों और ताक़ों और उनमें रखे हुए क़ुरआन मजीद के नुस्ख़ों वग़ैरा की सफ़ाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
आजकल मस्जिदों में वुज़ूख़ाने बने होते हैं, उनकी सफ़ाई का भी पूरा-पूरा इन्तिज़ाम होना चाहिए। इसी तरह मस्जिदों के बाहर या उनसे सटे हुए पेशाबख़ाने बनाए जाते हैं, उनकी सफ़ाई का भी पूरा ध्यान रखना ज़रूरी है।
बू वाली चीज़ों से बचना
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ऐसी चीज़ों को खाने से मना किया है जिनको खाने के बाद उनकी बू बाक़ी रहती है और दूसरे लोगों को इससे नफ़रत या तकलीफ़ होती है। जैसे कच्चा लहसुन, प्याज़ आदि।
ख़ास तौर से मस्जिद या ऐसी जगह जाने से पहले जहाँ बहुत से लोग इकटटा होते है, ऐसी चीज़ों को खाने से परहेज करना चाहिए। अगर किसी से मुलाक़ात करने जा रहे हों तब भी इस तरह की चीज़ों को खाकर नहीं जाना चाहिए। इस्लाम की यही शिक्षा है।
हज़रत अनस (रज़िअल्लाहु अन्हु) बयान करते हैं कि ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया -
‘‘जो व्यक्ति इस तरकारी (यानी कच्ची प्याज़, लहसुन, मूली आदि) को खाकर आए, तो वह हमारे क़रीब न आए और न वह हमारे साथ नमाज़ पढ़ें।'' (हदीसः बुख़ारी-856, मुस्लिम-562)
हज़रत मुआविया-बिन-क़ुर्रा अपने बाप से रिवायत करते हैं -
‘‘ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इन दो तरकारियों लहसुन और प्याज़ से मना किया है और कहा है कि जो शख़्स उनको खाए वह हमारी मस्जिद के क़रीब न आए। और आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया, अगर इनको खाना ज़रूरी हो तो पकाकर इनकी बू को ख़त्म कर देना चाहिए।'' (हदीसः अबू-दाउद-3827)
लहसुन-प्याज़ पकाकर खाई जा सकती है, क्योंकि पकाने से इनकी बू ख़त्म हो जाती है। ये कोई हराम चीज़ें नहीं हैं। इन्हें तेज़ बू वाली होने की वजह से केवल कच्ची खाने से मना किया गया है।
बू वाली चीज़ों में तम्बाकू, बीड़ी और सिगरेट वग़ैरा भी आती हैं। इन चीज़ों के इस्तेमाल से बचना चाहिए और इनके इस्तेमाल के फ़ौरन बाद मस्जिद में नहीं जाना चाहिए। क्योंकि इनकी बू काफ़ी देर तक बाक़ी रहती है और इससे दूसरे लोगों को तकलीफ़ होती है।
इबादत (उपासना) के लिए पाकी (पवित्रता)
नमाज़ इस्लाम की एक बड़ी अहम इबादत है। इसके बिना कोई इनसान ख़ुदा की नज़र में मुसलमान कैसे हो सकता है ? मुसलमान होने के लिए ज़रूरी है कि नमाज़ पाबन्दी से अदा की जाए। यानी दिन में कम-से-कम पाँच बार नमाज़ ज़रूर पढ़ी जाए। इस बड़ी और अहम इबादत के लिए ज़रूरी है कि नमाज़ पढ़ने वाला पाक और साफ़ हो, उसके कपड़े भी पाक-साफ़ हों और जिस जगह नमाज़ पढ़ी जाए वह जगह भी पाक-साफ़ हो।
कुरनआन मजीद में नमाज़ के लिए वुज़ू करने का हुक्म दिया गया है -
‘‘ऐ ईमानवालो! जब तुम नमाज़ के लिए उठो तो तुम्हें चाहिए कि अपने मुँह और हाथों को कोहनियों तक धो लो। सिर पर मसह कर लो (यानी हाथ गीले करके सिर पर फेर लो) और पाँव टख़नों तक धो लो।'' (क़ुरआन, सूरा-5 माइदा, आयत-6)
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया -
‘‘बग़ैर वुज़ू के नमाज़ क़बूल नहीं होती।'' (हदीसःमुस्लिम-224)
नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने एक मौक़े पर फ़रमाया -
‘‘जन्नत की कुंजी नमाज़ है, और नमाज़ की कुंजी पाकी व सफ़ाई (वुज़ू) है।'' (हदीसः मुसनद अहमद-3330)
हज़रत इब्ने उमर (रज़िअल्लाहु अन्हु) रिवायत करते हैं कि पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया -
‘‘स्वच्छता और पवित्रता (पाकी) के बिना नमाज़ क़बूल नहीं होती, और हराम (अवैध) माल का दान (ख़ुदा के यहाँ) स्वीकार नहीं होता।''(हदीसः मुस्लिम-224)
इस हदीस में ख़ुदा के पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने तन के साथ-साथ मन की सफ़ाई पर भी ज़ोर दिया है। दान (सदक़ा) करने से इनसान का मन स्वच्छ होता है और उसको दिली सुकून हासिल होता है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति हराम और अवैध माल का सदक़ै (दान) करता है तो उससे यह फ़ायदा हासिल नहीं हो सकता। हराम माल से दान करना ऐसा ही है जैसे कोई गन्दे और अपवित्र पानी से सफ़ाई और पाकी हासिल करे। गन्दे पानी से कभी पाकी हासिल नहीं हो सकती।
इस मौक़े पर एक हदीस का जिक्र करना ज़रूरी महसूस होता है, जिसमें पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने नमाज़ को इनसान की अन्दरूनी और ज़ाहिरी दोनों पाकी का बेहतरीन ज़रिआ क़रार दिया है। फ़रमाया -
‘‘तुम्हारा क्या ख़याल है, अगर तुमें से किसी के दरवाज़े पर कोई नहर हो जिसमें वह रोजाना पांच बार नहाता हो, तो क्या उसके जिस्म पर कुछ भी मैल-कुचैल बाक़ी रहेगा ? ''
लोगों ने कहा,‘‘कुछ भी मैल-कुचैल बाक़ी नहीं रहेगा।''
तब पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया, ‘‘यही मिसाल पाँचों वक़्तों की नमाज़ की है। ख़ुदा उनके ज़रिए से ग़लतियों को माफ़ फ़रमाता रहता है।'' (हदीसः अबू-दाउद-2868)
‘‘जब कोई इनसान दिन-भर में पांच वक़्त की नमाज़ पढ़ेगा और उसके लिए अच्छी तरह वुज़ू करेगा तो इससे उसकी ज़ाहिरी गन्दगी दूर होगी। जब वह नमाज़ में ख़ुदा को याद करेगा उससे अपनी ग़लतियों की माफी मांगेगा, आइन्दा गुनाह न करने और नेकी व भलाई का काम करने का वादा और अहद करेगा तो इससे उसके अन्दर की गन्दगी दूर होगी और वह हर तरह से पाक-साफ़ इनसान बन जाएगा।
‘‘हर नमाज़ के वक़्त अपनी ज़ीनत (बनाव-संवार) इख़्तियार किए रहो''
क़ुरआन में साफ़-सुथरे होकर और सलीक़े के कपड़े पहनकर नमाज़ पढ़ने का हुक्म दिया गया है। इससे भी सफ़ाई-सुथराई और सलीक़ामन्दी की अहमियत वाज़ेह होती है।
गन्दगी की क़िस्में और दूर करने के तरीक़े
‘‘...तुममें से कोई पेशाब-पाख़ाना करके आए तो वुज़ू करे।'' (क़ुरआन सूरा-5 माइदा, आयत-6)
‘‘वुज़ू करना उसके लिए ज़रूरी है जो टेक लगाकर सो जाए, क्योंकि टेक लगाकर सोने से उसके जोड़ ढीले पड़ जाते हैं।''(और इससे अधो-वायु निकल जाने की सम्भावना होती है।) (हदीसःअबू-दाउद-202, तिरमिज़ी-77)
4-जिस्म से ख़ून निकलने पर
अगर जिस्म में कहीं से ख़ून निकल जाए तब भी वुज़ू करना होगा। जैसा कि पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया -
‘‘हर बहने वाले ख़ून के बाद वुज़ू ज़रूरी हो जाता है।'' (हदीसःदार-क़ुतनी-590)
5-सोहबत (रतिक्रिया) करने पर
अगर मियाँ-बीवी सम्भोग करें तो दोनों को ग़ुस्ल करना ज़रूरी है। हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया -
‘‘अगर व्यक्ति अपनी बीवी से सम्भोग करे तो ग़ुस्ल करना (दोनों के लिए) ज़रूरी है, चाहे वीर्य न निकले।'' (हदीसः बुख़ारी-291, मुस्लिम-348)
6-रज या वीर्य के गुप्तांग से बाहर निकल जाने पर
मतलब यह है कि ग़ुस्ल उस वक़्त भी ज़रूरी हो जाता है जब किसी को स्वप्नदोष हो जाए। ऊपर लिखी दोनों बातें मर्द और औरत दोनों ही के लिए हैं। अगर किसी को इन दोनों बातों में से कोई पेश आ जाए तो ग़ुस्ल करना उसके लिए ज़रूरी होगा। इसके बिना वह न तो नमाज़ पढ़ सकता है, न क़ुरआन पढ़ सकता है और न ही मस्जिद में जा सकता है।
जिन लोगों को ऊपर लिखी हालत पेश आ जाए उनके बारे में क़ुरआन मजीद में फ़रमाया गया है -
‘‘अगर तुम जुनुबी (वह व्यक्ति जिसे स्वप्नदोष हो गया हो या जिसने सम्भोग किया हो) हो तो ग़ुस्ल करके पाक हो जाओ।'' (क़ुरआन सूरा-5 माइदा, आयत-6)
7-माहवारी आने पर
हज़रत आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) से रिवायत है कि ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया -
‘‘इन घरों के दरवाज़े मस्जिद से फेर दो, क्योंकि मैं मस्जिद को उस औरत के लिए जाइज़ नहीं करता जिसे माहवारी आ रही हो और न ही ‘जुनुबी' के लिए जाइज़ करता हूँ। (हदीसः अबू-दाउद-232)
यहाँ इस बात का उल्लेख भी ज़रूरी मालूम होता है कि अगर किसी औरत के बच्चा जनने की वजह से या गर्भपात होने की वजह से ख़ून आ रहा हो तो वह भी नापाकी की हालत में होती है। उसके लिए ज़रूरी होगा कि जब तक ख़ून आना बन्द न हो वह नमाज़ और क़ुरआन न पढ़े। जब ख़ूब बन्द हो जाए तो नहा-धोकर पाक-साफ़ हो जाए। इसके बाद नमाज़ भी पढ़े और क़ुरआन भी । इस्लामी शरीअत में इस तरह के ख़ून की मुददत ज़्यादा-से ज़्यादा चालीस दिन मुक़र्रर की गई है। यानी अगर यह ख़ून चालीस दिन के बाद भी जारी रहता है तो इस हालत में वह वुज़ू करके नमाज़ और क़ुरआन पढ़ सकती है।
वुज़ू और ग़ुसल का तरीक़ा
अब हम यहाँ संक्षेप मे वुज़ू और ग़ुस्ल का तरीक़ा बयान करेंगे जो इस्लाम ने बताया है। पहले हम वुज़ू का तरीक़ा बयान करते हैं -
वुज़ू कैसे किया जाता है? इस बारे में कई हदीसें हैं। एक हदीस यह है -
इसके बाद हज़रत उसमान (रज़िअल्लाहु अन्हु) ने कहा -
‘‘मैं ने पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को इसी प्रकार वुज़ू करते देखा है।'' (हदीसः बुख़ारी-164, मुस्लिम-226)
वुज़ू करते वक़्त दाढ़ी के अन्दर उंगलियाँ डालकर अच्छी तरह साफ़ करना चाहिए। हज़रत उसमान (रज़िअल्लाहु अन्हु) कहते हैं -
इसी प्रकार हाथों और पैरो की उंगलियों के बीच में भी अच्छी तरह सफ़ाई करनी चाहिए, ताकि उनमें मैल-कुचैल बाक़ी न रहे।
यह है वुज़ू, इसके करने से हुक्मी गन्दगी का असर जाता रहता है। इसके बाद ही मुसलमान नमाज़ पढ़ सकता है।
1-कुल्ली करना 2- नाक में पानी डालना 3- पूरे जिस्म पर पानी डालकर नहाना कि जिस्म का कोई अंग तनिक भी सूखा न रह जाए।
ग़ुस्ल करते समय सिर के बालों और जिस्म को ख़ूब अच्छी तरह साफ़ करना चाहिए। हज़रत अबू-हुरैरा (रज़िअल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया -
‘‘हर बाल के नीचे नापाकी (गन्दगी) होती है; इसलिए बालों को और जिस्म को ख़ूब अच्छी तरह साफ़ किया करो।''(हदीसःतिरमिज़ी-106)
कुछ अन्य अवसरों पर ग़ुस्ल के आदेश
ऊपर बताई गई हालतों मे तो ग़ुस्ल करना फ़र्ज़ (ज़रूरी) हो जाता है, इसलिए कि इन हालातों का सम्बन्ध किसी न किसी प्रकार की गन्दगी से होता है। इनमें से किसी भी हालत से गुज़रने के बाद आदमी गन्दगी में लिप्त हो जाता है, जिसके कारण आदमी न नमाज़ पढ़ सकता है और न क़ुरआन और न ही वह मस्जिद में जा सकता है, जब तक कि वह नहा-धोकर पाक-साफ़ न हो जाए। लेकिन इस्लाम ने इन हालातों के अलावा भी ग़ुस्ल करने की ताकीद की है, चाहे आदमी नापाक न हो तब भी। ग़ुस्ल करने के ऐसे कुछ अवसरों को यहाँ बयान किया जा रहा है।
जुमा के दिन ग़ुस्ल
इसी तरह आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने यह भी फ़रमाया -
‘‘जुमा के दिन हर बालिग़ (व्यस्क) पर ग़ुस्ल करना ज़रूरी (वाजिब) है, और उसे मिसवाक (दातून) करनी चाहिए, और ख़ुशबू मिले तो वह भी लगानी चाहिए।'' (हदीसः बुख़ारी-880)
ईद के दिन ग़ुस्ल
हज या उमरे के लिए एहराम बांधने से पहले ग़ुस्ल कर लेना चाहिए। हज़रत ज़ैद-बिन-साबित (रज़िअल्लाहु अन्हु) अपने बाप से रिवायत करते हैं कि उन्होंने पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को देखा कि आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने एहराम बांधने के लिए कपड़े उतारे और ग़ुस्ल किया। (हदीसः तिरमिज़ी-830)
एहराम उन ख़ास कपड़ों को कहते हैं जिनका पहनना उमरा या हज करने वालों के लिए ज़रूरी है।
मक्का मुअज़्ज़मा में दाख़िल होते वक़्त का ग़ुस्ल
(हदीसः बुख़ारी-491, मुस्लिम-1257)
मय्यत (मुर्दे) को ग़ुस्ल देना ज़रूरी है।
मय्यत को ग़ुस्ल देने वाले व्यक्ति को चाहिए कि वह उसे ग़ुस्ल देने के बाद ख़ुद भी नहा ले।
पछना लगवाने के बाद नहाना चाहिए। पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बीवी हज़रत आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) कहती हैं -
‘‘पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इन चार वजहों से ज़रूर ग़ुस्ल करते थे, जब वे ‘जुनुबी' होते, जुमा के दिन, जब वे पछना लगवाते और जब किसी मय्यत (शव) को नहलाते।'' (हदीसः अबू-दाउद-348)
नहाने में साबुन का इस्तेमाल
नहाना जिस्म पर सिर्फ़ पानी बहा देने का नाम नहीं है बल्कि इस मौक़े पर साबुन वग़ैरा भी इस्तेमाल करना चाहिए ताकि जिस्म अच्छी तरह साफ़ हो जाए। जैसा कि हज़रत क़ैस-बिन-आसिम (रज़िअल्लाहु अन्हु) को पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हुक्म दिया था कि वे पानी और बेरी से ग़ुस्ल किया करे।
(हदीसः तिरमिज़ी-605)
शर्म व हया इनसान और इनसानी समाज की वह ख़ूबी है जो उसे हैवानों से अलग करती है और उसके सर्वश्रेष्ठ प्राणी (अशरफ़ुल-मख़लूक़ात) होने की एक बड़ी पहचान है। लेकिन अपनी ज़िन्दगी के मक़सद को न समझने के कारण इनसान अपनी इस हैसियत को भूल जाता है और वह अपने वक़्ती मज़े और आनन्द के लिए शर्म व हया को त्यागकर जानवरों जैसी हरकतें करने लगता है।
इसी वक़्ती आनन्द और मज़े के लिए आज बेहयाई और बेशर्मी इस हद तक पहुंच चुकी है कि स्वीमिंग पूल्स में मर्द और औरतें एक साथ नहाते हैं और इसे आधुनिकता और सभ्यता की पहचान समझा जाता है। इसी तरह कुछ अवसरों पर नदी या नहर पर मर्द और औरतों को एक साथ नहाते देखा जा सकता है।
औरतों की बात तो छोड़िए इस्लाम तो मर्दों के लिए भी यह बात पसन्द नहीं करता कि वे बग़ैर पर्दे के खुले में नहाएं और शर्म व हया का ख़याल न रखें। इसी लिए ख़ुदा के पैग़म्बर ने जब एक व्यक्ति को खुले मैदान में बग़ैर परदे के नहाते देखा तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इस बात को गंभीरता से लिया और लोगों को मस्जिद में जमा करके अल्लाह का वास्ता दिया और उन्हें ऐसा करने से रोका।
इस्लाम कैसा हयादार और पाक-साफ़ समाज बनाना चाहता है, इसका अन्दाजा इस शिक्षा से अच्छी तरह लगाया जा सकता है।
ग़ुस्ल के बारे मे एक ग़लतफ़हमी
मुसलमानों के बारे में बहुत-सी ग़लतफ़हमियों के साथ एक ग़लतफ़हमी यह पाई और फलाई जाती है कि वे हफ़्ते में सिर्फ़ एक दिन (जुमा के दिन) ही नहाते हैं और वे ऐसा इसलिए करते हैं कि उनके धर्म इस्लाम ने उन्हें ऐसा ही करने का हुक्म दिया है। ऊपर ग़ुस्ल के बारे में इस्लाम की जिन शिक्षाओं को बयान किया गया है, उनसे यह ग़लतफ़हमी पूरे तौर पर दूर हो जाती है।
हक़ीक़त यह है कि ‘‘हफ़्ते में सिर्फ़ एक दिन नहाना चाहिए,'' इस तरह की सिरे से कोई बात इस्लामी तालीमात में मौजूद ही नहीं है। आदमी रोज़ाना नहाए, इससे किसी को रोका नहीं गया है। जुमा के दिन के बारे में जो बात कही गई है वह यह है कि आदमी जुमा की नमाज़ पढ़ने जाए तो उसके लिए ज़रूरी है कि वह नहा-धोकर, साफ़-सुथरे कपड़े पहनकर और ख़ुशबू लगाकर जाए, क्योंकि जुमा की नमाज़ में बड़ी तादाद में लोग मस्जिद में जमा होते है। नीचे लिखे वाक़िए से यह बात बच्छी तरह वाज़ेह हो जाती है।
एक बार जुमा के दिन अल्लह के पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) मस्जिद में आए। मस्जिद तंग थी। काम-काज करनेवाले लोग बग़ैर नहाए और मैले कपड़ों ही में जुमा की नमाज़ के लिए चले आए थे। गर्मी का मौसम था, लोगों के पसीने की बू पूरी मस्जिद में फैल गई। पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इसे नापसन्द किया और फ़रमाया कि लोग अगर नहा-धोकर आते तो बेहतर था। उसी दिन से जुमा के दिन नहाने की अहमियत और ज़रूरत शरीअत में ज़रूरी क़रार पाई। (हदीसः बुख़ारी, मुस्लिम)
यहाँ यह बात सामने रहनी ज़रूरी है कि अल्लाह ने हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को अरब देश मे पैग़म्बर बनाकर भेजा था और उनके ज़रिए से अपनी हिदायत सारे इनसानों के लिए भेजने की व्यवस्था की थी। अरब में रेगिस्तान होने की वजह से पानी की बड़ी कमी थी। वहाँ न नदियाँ थीं, न-नहरें, न बहुत ज़्यादा कूएँ थे और न पानी हासिल करने का कोई दूसरा मुनासिब साधन। इसके बावजूद पाकी और सफ़ाई की अहमियत और ज़रूरत को देखते हुए अल्लाह के दीन इस्लाम ने पाक-साफ़ पानी से गन्दगी साफ़ करने का हुक्म दिया और हर मुसलमान-मर्द व औरत के लिए दिन में कम-से-कम पांच बार नमाज़ के लिए वुज़ू और ज़रूरत के लिहाज़ से ग़ुस्ल का हुक्म दिया, बल्कि कुछ अवसरों पर इन्हें ज़रूरी ठहराया।
सफ़ाई और पाकी हासिल करने में पानी का इस्तेमाल किया जाता है। यहाँ इस्लाम की यह हिदायत भी सामने रहे कि वह ग़ैर-ज़रूरी तौर पर बेतहाशा पानी बहाने को मना करता है और इसे फ़ुज़ूलख़र्ची क़रार देता है। इसलिए ज़रूरत के लिहाज़ से ही पानी का इस्तेमाल करना चाहिए।
‘‘हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-अम्र-बिन-आस (रज़िअल्लाहु अन्हु) रिवायत करते है कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) हज़रत अहद (रज़िअल्लाहु अन्हु) के पास आए, वे वुज़ू कर रहे थे। नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया ऐ सअद! वुज़ू में यह फ़ुज़ूलख़र्ची क्यों? सअद ने कहा, क्या वुज़ू में भी (पानी की) फ़ुज़ूलख़र्ची होती है? नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया, हाँ, चाहे तुम बहती हुई नहर पर वुज़ू कर रहे हो।''
(हदीसः मुसनद अहमद-7065)
क़ुरआन में भी हर तरह की फ़ुज़ूलख़र्ची से रोका गया है -
‘‘फ़ुज़ूलख़र्ची न करो, क्योंकि फ़ुज़ूलख़र्ची करनेवाले शैतान के भाई हैं और शैतान अपने रब का नाफ़रमान है।''(क़ुरआन, सूरा-17 बनी-इस्राइल, आयत-26-27)
पानी ख़ुदा का अनमोल उपहार है जो उसने ईनसानों और दूसरे जीव-जन्तुओं की ज़रूरत के लिए प्रदान किया है, इसलिए उसको बरबाद करने से बचना चाहिए। इसी वजह से नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने रुके हुए पानी में पेशाब या अन्य गन्दगी करके उसे गन्दा करने से मना किया है। हदीस में है -
‘‘हज़रत जाबिर (ज़िअल्लाहु अन्हु) रिवायत करते हैं कि नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने रुके हुए पानी में पेशाब (या अन्य गन्दगी) करने से मना किया है।''
(हदीसः मुस्लिम-282)
रुके हुए पानी में पेशाब और गन्दगी करने से वह पानी किसी के इस्तेमाल के लायक़ नहीं रहता। इस तरह यह पानी की बरबादी ही है। अगर कोई अनजाने में इस गन्दे पानी को इस्तेमाल करले तो वह निभिन्न प्रकार की बीमारियों का शिकार हो सकता है।
तयम्मुम
आदमी अगर बीमार है और पानी उसके लिए नुक़सानदेह है, या आदमी ऐसी जगह पर है जहाँ दूर-दूर तक पानी मौजूद नहीं और आदमी पर वुज़ू या ग़ुस्ल ज़रूरी हो गया है तो मजबूरी की ऐसी हालत में अगर आदमी पानी से वुज़ू या ग़ुस्ल किए बिना नमाज़ वग़ैरा पढ़ता है तो अपने नापाक होने का एहसास उसके अन्दर बाक़ी रहता है। इसलिए मजबूरी की इन हालतों में मेहरबान ख़ुदा ने पाकी हासिल करने के लिए और मन से नापाकी के एहसास को ख़त्म करने के लिए तयम्मुम करने का तरीक़ा बताया है। तयम्मुम यह है कि आदमी पाक-साफ़ मिट्टी पर हाथ मारकर अपने चेहरे और हाथों पर फेर ले। इस तरीक़े से आदमी पाक हो जाएगा और उसके भीतर से नापाकी का एहसास ख़त्म हो जाएगा और पाकी की अहमियत, ज़रूरत और उसकी क़द्र उसके भीतर बनी रहेगी।
क़ुरआन मजीद में है -
‘‘अगर तुम जुनुबी (यानी नापाकी की हालत में) हो तो (नहा धोकर) अच्छी तरह पाक हो जाओ। लेकिन अगर तुम बीमार हो या सफ़र की हालत में हो या तुम में से कोई पाख़ाना-पेशाब करके आए या तुमने बीवियों से सहवास किया हो और (वुज़ू या ग़ुस्ल वग़ैरा के लिए) पानी न मिले, तो पाक-साफ़ मिट्टी से तयम्मुम कर लो, यानी मिट्टी पर हाथ मारकर अपने चेहरों और हाथों पर फेर लो।'' (क़ुरआन, सूरा-5 माइदा, आयत-6)
मजबूरी की इन हालतों में पाकी हासिल करने और मन से नापाकी का एहसास ख़त्म करने के लिए तयम्मुम करने का जो तरीक़ा बताया गया है उससे यह साबित होता है कि इस्लाम एक साइंटिफ़िक और व्यावहारिक (अमली) धर्म है, जिसमें इनसानों की नफ़्सियात (मनोस्थिति), फ़ितरी ज़रूरतों और मजबूरियों का पूरा लिहाज़ रखा गया है।
माहवारी का ख़ून
औरतों को माहवारी (मासिक धर्म) की हालत होती है, इसलिए क़ुरआन में इस हालत में उनके साथ सम्भोग (सोहबत) से बचने का हुक्म दिया गया है और बताया गया है कि जब माहवारी का ख़ून आना बन्द हो जाए तो उन्हें नहा-धोकर पाक-साफ़ हो जाना चाहिए।
कहा गया -
‘‘(ऐ पैग़म्बर) लोग आपसे पूछते हैं कि माहवारी की हालत का क्या हुक्म है? (यानी इस हालत में बीवियों के साथ सहवास के बारे में क्या हुक्म है?) कह दीजिए कि वह एक गन्दगी की हालत है। इसलिए माहवारी की हालत में बीवियों से (सम्भोग करने से) परहेज़ करो जब तक कि वे पाक-साफ़ न हो जाएं। फिर जब वे अच्छी तरह पाक-साफ़ हो जाएं तो उनके पास जा सकते हो उस तरीक़े से जैसे ख़ुदा ने तुम्हें आदेश दिया है। बेशक ख़ुदा ख़ूब तौबा करनेवालों को पसन्द करता है। और पसन्द करता है उन लोगों को जो ख़ूब पाक-साफ़ रहते हैं।'' (क़ुरआन, सूरा-2 बक़रा, आयत-222)
माहवारी का ख़ून नापाक है और जिस कपड़े वग़ैरा पर वह लग जाता है वह भी नापाक हो जाता है, इस लिए उसे अच्छी तरह साफ़ करना ज़रूरी है। हज़रत असमा बिन्ते-अबू-बक्र (रज़ियल्लाहु अन्हा) कहती हैं कि ‘‘एक औरत ने अल्लाह के पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से पूछा कि अगर हम में से किसी औरत के कपड़े पर माहवारी का ख़ून लगा हो तो आपका क्या हुक्म है? हम क्या करें?'' पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जवाब दिया कि ‘‘अगर तुम में से किसी औरत के कपड़े पर माहवारी का ख़ून लग जाए तो उसे रगड़े, फिर थोड़ा पानी डालकर उसे साफ़ कर दे, फिर उस कपड़े में नमाज़ पढ़ी जा सकती है।'' (हदीसः बुखारीः 307)
वीर्य और अन्य सभी प्रकार की गन्दगी से कपड़े और जिस्म को पाक करने का इस्लाम हुक्म देता है।
कुत्ते का जूठा नापाक है
हज़रत अबू-हुरैरा (रज़िअल्लाहु अन्हु) कहते है कि ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया -
‘‘अगर कुत्ता तुम्हारे बर्तन में मुँह डाल दे तो उस को पाक-साफ़ करने का तरीक़ा यह है कि उस बर्तन को सात बार धोओ और पहली बार मिट्टी से धोओ।'' (हदीसः मुस्लिम-279)
यूँ तो उन बहुत-से जानवरों का जूठा नापाक है जिनका गोश्त नापाक (यानी खाना हराम) है, जैसे सूअर वग़ैरा, लेकिन कुत्ते के मुँह में इस तरह के कीटाणु पाए जाते हैं जो इनसान की सेहत के लिए इतने ज़्यादा नुक़सानदेह हैं कि अगर ये कीटाणु इनसान के ख़ून में शामिल हो जाएं तो वह कुत्ते की तरह भोंक-भोंक कर मौत का शिकार हो जाता है। इसी लिए मेहरबान ख़ुदा ने अपने बन्दों को इस ख़तरे से बचाने के लिए अपने पैग़म्बर के ज़रिए से यह ख़ास हिदायत दी है कि कुत्ता अगर किसी बर्तन में मुँह डाल दे तो वह बर्तन नापाक (अपवित्र) हो जाता है और उसे तभी इस्तेमाल किया जा सकता है जब उसे सात बार धो लिया जाए। तथा धोने के लिए एक बार मिट्टी, राख या साफ़ करने वाली कोई दूसरी चीज़ इस्तेमाल की जाए।
अगर बर्तन में कोई चीज़ रखी हुई है तो वह भी कुत्ते के मुँह डालने से गन्दी हो जाती है और उसे भी इस्तेमाल करना मना है।
इस वजह से और कुछ दूसरी ख़राबियों की वजह से इस्लाम ने इस बात से भी मना किया है कि घरों में कुत्ता पाला जाए। बताया गया है कि जिस घर में कुत्ता पला हुआ हो उसमें ख़ुदा की रहमत के फ़रिश्ते नहीं आते। यानी ख़ुदा की रहमत से वह घर ख़ाली रहता है और ख़ुदा की नाराज़गी का सबब कनता है। जब घर में कुत्ता पला होगा तो उसे खाने-पीने की चीज़ों में मुँह डालने से रोक पाना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन होगा। हाँ खेत वग़ैरा की रखवाली के लिए कुत्ता पाला जा सकता है, मगर उसका आना-जाना घर में न हो।
हमें मेहरबान ख़ुदा का शुक्र गुज़ार होना चाहिए कि उसने हमें कितने बड़े ख़तरों से बचाने के लिए अपने पैग़म्बर के ज़रिए से हमारी रहनुमाई की। हमें चाहिए कि हम ख़ुदा की भेजी हुई शिक्षाओं पर अमल करें और उसकी भेजी हुई हिदायत की क़द्र करें।
सफ़ाई के बारे में कुछ दूसरी हिदायतें
दस फितरी बातें
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की बीवी हज़रत आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) कहती हैं कि पैग़म्बर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया -
‘‘दस चीज़ें प्राकृतिक और फ़ितरी हैं। (1) मूंछ काटना (2) दाढ़ी रखना (3) दातुन (मिसवाक) करना (4) नाक को पानी डालकर साफ़ करना (5) नाख़ून काटना (6) जोड़ों को धोना (7) बग़ल के बाल साफ़ करना (8) नाफ़ (नाभि) के नीचे के बाल साफ़ करना (9) पाख़ाना-पेशाब (शौच) के बाद पानी से पाकी हासिल करना। रिवायत करनेवाले कहते हैं कि मैं दसवीं चीज़ को भूल गया। शायद वह है (10) कुल्ली करना।'' (हदीसः मुस्लिम-26)
यूँ तो इस्लाम की सारी तालीमात इनसानी फ़ितरत के अनुकूल हैं, मगर इन दस बातों को ख़ास तौर से फ़ितरत के मुताबिक़ इसलिए कहा गया है कि इन्हें हर व्यक्ति तस्लीम करता है। इनका प्राकृतिक और फ़ितरी होना हर एक पर वाज़ेह है।
इस हदीस में यह बात बताई गई है कि इन दस बातों पर अमल होना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति इन बातों पर या इनमें से किसी एक पर भी अमल नहीं करता तो वह फ़ितरत के ख़िलाफ़ काम करता है।
शर्म व हया, ख़ुशबू और शादी
ख़ुदा के पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया कि चार चीज़ें ऐसी हैं जिनको ख़ुदा के हर पैग़म्बर ने अपनाया है -
तन और मन की सफ़ाई के लिए दुआएँ
पेशाब-पाख़ाने के लिए जाने से पहले की दुआ
"अल्हम्दु लिल्लाहिल-लज़ी अज़- ह-ब अनिल अज़ा व आफ़ानी। " (हदीसः इब्ने-माजा-301)
वुज़ू, ग़ुस्ल और तयम्मुम के बाद की दुआ
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