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इस्लाम

Found 15 Posts

धर्म का वास्तविक स्वरुप
धर्म का वास्तविक स्वरुप
28 March 2020
Views: 86

“उसी ईश्वर ने दिन और रात को रचा। निमिष आदि से युक्त विश्व का वही अधिपति है। पूर्व के अनुसार ही उसने सूर्य, चद्र, स्वर्गलोक, पृथ्वी और अतरिक्ष को रचा।” “वह पूरब, पश्चिम, ऊपर और नीचे सब दिशाओं में है।” “वह एक है जो मनुष्यों का स्वामी होकर प्रकट हुआ है, और जो सब देखने वाला है, उसी का स्तवन (अर्थात् पूजा एवं प्रशांसा) करो।” “तुम किसी दूसरे देव की स्तुति मत करो। किसी दूसरे देव की स्तुति करके दुखी मत होओ।” “वह एक है, दयालु हविदाता (दानी) को धन देने में सामर्थ्य है। (अर्थात धर्म का देव वही है।)” -हिंदू शास्त्र में तौहीद और इस्लाम की शिक्छाएं

आदर्श समाज के निर्माण के लिए इस्लाम एकमात्र रास्ता
आदर्श समाज के निर्माण के लिए इस्लाम एकमात्र रास्ता
21 March 2020
Views: 84

समाज-निर्माण के बहुत से क्षेत्र हैं। वे अलग-थलग नहीं बल्कि एक-दूसरे से संलग्न और संबंधित हैं। उनमें आध्यात्मिक क्षेत्र, नैतिक क्षेत्र, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र के महत्व के अनूकूल इस आलेख में उस रास्ते की तलाश की जा रही है जो इन्सानों को उत्तम समाज के निर्माण की मंज़िल पर ले जाता है।

सत्य धर्म
सत्य धर्म
21 March 2020
Views: 85

मानव-जीवन एक सर्वस्व है जिसे विभागों में बांटा नहीं जा सकता। अतः मानव के सम्पूर्ण जीवन का एक ही धर्म होना चाहिए। दो-दो और तीन-तीन धर्मों का एक ही समय में अनुसरण इसके अतिरिक्त कुछ नहीं कि यह विश्वास के डांवाडोल और बौद्धिक-निर्णय के विचलित होने का प्रमाण है। जब वास्तव में किसी धर्म के ‘‘अद्-दीन'' होने का विश्वास आप प्राप्त कर लें और उस पर आप ईमान ले आएँ तो अनिवार्यतः उसको आपके जीवन के समस्त विभागों का धर्म होना चाहिए।

इस्लाम सबके लिए रहमत 
इस्लाम सबके लिए रहमत 
22 March 2020
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हमारे आम देशबंधुओं का सामान्य विचार है कि इस्लाम ‘सिर्फ़ मुसलमानों' का धर्म है और ईश्वर की सारी रहमतें सिर्फ़ उन्हीं के लिए हैं। इसके प्रवर्तक हज़रत मुहम्मद साहब हैं जो ‘सिर्फ़ मुसलमानों' के पैग़म्बर और महापुरुष हैं। क़ुरआन ‘सिर्फ़ मुसलमानों' का धर्मग्रन्थ है और जिसकी शिक्षाओं का सम्बंध भी सिर्फ़ मुसलमानों से है। और वह सिर्फ़ मुसलमानों को ही सफलता का मार्ग दिखाता है। लेकिन सच्चाई इसके भिन्न है। स्वयं मुसलमानों के रवैये और आचार-व्यवहार की वजह से यह भ्रम उत्पन्न हो गया है। वरना अस्ल बात तो यह है कि इस्लाम पूरी मानव जाति के लिए रहमत है, हज़रत मुहम्मद (ईश्वर की कृपा और शान्ति हो उन पर) सारे इंसानों के पैग़म्बर, शुभचिन्तक, उद्धारक और मार्गदर्शक हैं और क़ुरआन पूरी मानवजाति के लिए अवतरित ईशग्रन्थ और मार्गदर्शक है।

परलोक की तैयारी आज से
परलोक की तैयारी आज से
22 March 2020
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धार्मिक पक्ष का मूलाधार "ईश्वर में विश्वास" है। यहां, ईश्वर को स्रष्टा, स्वामी, प्रभु, पालक-पोषक, निरीक्षक, संरक्षक और इंसाफ़ करने वाला, पूज्य व उपास्य माना गया है। इस मान्यता का लाज़िमी तक़ाज़ा (Implication) है कि मनुष्य ईश्वर का आज्ञाकारी, आज्ञापालक और ईशपरायण दास हो जैसा कि किसी भी स्वामी के दास को होना चाहिए। इस मान्यता का तक़ाज़ा यह भी है कि ईश्वर के आज्ञाकारी-उपासक दासों (बन्दों) का जीवन-परिणाम, अवज्ञाकारी, उद्दण्ड, पापी, उपद्रवी, सरकश, ज़ालिम, व्यभिचारी, अत्याचारी बन्दों से भिन्न, अच्छा, सुन्दर व उत्तम हो।

इस्लाम की जीवन व्यवस्था
इस्लाम की जीवन व्यवस्था
22 March 2020
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मानव के अन्दर नैतिकता की भावना एक स्वाभाविक भावना है जो कुछ गुणों को पसन्द औरकुछ दूसरे गुणों को नापसन्द करती है। यह भावना व्यक्तिगत रूप से लोगो में भले ही थोड़ीया अधिक हो किन्तु सामूहिक रूप से सदैव मानव-चेतना ने नैतिकता के कुछ मूल्यों को समानरूप से अच्छाई और कुछ को बुराई की संज्ञा दी हैं। सत्य, न्याय, वचन पालन और अमानत को सदा ही मानवीयनैतिक सीमाओं में प्रशंसनीय माना गया हैं और कभी कोई ऐसा युग नही बीता जब झूठ, ज़ुल्म, वचन भंग और को पसन्द किया गया हो।हमदर्दी, दया भाव, दानशीलता और उदारता को सदैव सराहागया तथा स्वार्थपरता, क्रूरता, कंजूसी और संकीर्णता को कभी आदरयोग्य स्थान नहीं मिला। धैर्य, सहनशीलता, स्थैर्य, गंभीरता, दृढसंकल्पित व बहादुरी वे गुण हैंजो सदा से प्रशंसनीय रहे है।

इस्लाम मानवतापूर्ण ईश्वरीय धर्म
इस्लाम मानवतापूर्ण ईश्वरीय धर्म
22 March 2020
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लाला काशीराम चावला तुम अपने घरों के अतिरिक्त किसी अन्य मकान में उस समय तक न प्रवेश करो, जब तक अनुमति न ले लो और उनमें रहनेवालो को सलाम न कर लो। यही तुम्हारे लिए उचित है और तुम झट विचार कर लिया करो। यदि उन घरों में कोई आदमी मालूम न हो तो उन घरो में न जाओं, जब तक कि तुमको अनुमति न दी जाए और यदि तुम से कह दिया जाए कि लौट जाओं तो तुम लौट आया करो। यही बात तुम्हारे लिए उचित हैं और ईश्वर को तुम्हारे सारे कार्यो का पता है। (कुरआन, 24:27-28)

जीवन, मृत्यु के पश्चात्
जीवन, मृत्यु के पश्चात्
23 March 2020
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मौजूदा जगत्-व्यवस्था जो कि भौतिक क़ानूनों पर बनी है, एक वक़्त में तोड़ डाली जाएगी। उसके बाद एक दूसरी व्यवस्था का निर्माण होगा, जिसमें ज़मीन और आसमान और सारी चीज़ें एक दूसरे ढंग पर होंगी। फिर अल्लाह तआला तमाम इनसानों को जो शुरू दुनिया से क़ियामत तक पैदा हुए थे, दोबारा पैदा कर देगा और एक साथ उन सबको अपने सामने जमा करेगा। वहाँ एक-एक व्यक्ति का, एक-एक जाति का और पूरी इनसानियत का रिकार्ड किसी ग़लती और और कमी-बेशी के बग़ैर सुरक्षित होगा। हर व्यक्ति के एक-एक अमल का जितना असर दुनिया में हुआ है, उसकी पूरी तफ़सील मौजूद होगी। वे तमाम नस्लें गवाहों में खड़ी होंगी, जो उस असर से प्रभावित हुईं।

परलोक और उसके प्रमाण
परलोक और उसके प्रमाण
23 March 2020
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मौलाना सय्यद हामिद अली ईश्वर ने अपनी सर्वोत्तम कृति-मानव को कर्म की स्वतंत्रता प्रदान कर रखी है। इसी कर्म-स्वतंत्रता के आधार पर मानव सुकर्म और कुकर्म दोनों में से या तो दोनों कर्म कर सकता है या कोई एक कर्म। तत्वदर्शी ईश्वर ने इन दोनों प्रकार के कर्मों के अलग-अलग फल निर्धारित कर रखे है। मनुष्य को उनके कर्मों का पूरा-पूरा बदला परलोक में मिलेगा और मिलकर रहेगा। सुकर्मियों को उनके कर्म के बदले स्वर्ग की प्राप्ति होगी और कुकर्मियों को नरक में डाला जाएगा।

पवित्र क़ुरान एक नज़र में
पवित्र क़ुरान एक नज़र में
28 March 2020
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मनुष्य अपने-आप में पूर्ण नहीं है। वह वास्तव में सृष्टि के समस्त रहस्यों को हल करने में सक्षम नहीं है। वह स्वयं अपने व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन की सभी समस्याओं की पूरी जानकारी प्राप्त नहीं कर सकता जिससे वह अपने विचारों, कर्मों और दूसरों के साथ व्यवहारों में शांति, सामंजस्य एवं संतुलन स्थापित कर सकें। मनुष्य ने ज्ञान के क्षेत्र में जितनी भी प्रगति की है, वह सत्य और परम मूल्यों को पाने में पर्याप्त नहीं है। जबकि इसको पाए बिना शांति एवं सामंजस्य को प्राप्त नहीं कर सकता। यही कारण है कि मनुष्य अपने जीवन की समस्याओं को कुल मिलाकर हल करने में असफल है। ऐसे विश्वसनीय ज्ञान का स्रोत केवल ईश्वर ही है। वह सर्वज्ञ शक्ति जिसने मनुष्य एवं समस्त विश्व की रचना की। अतः वह इस रचना की जटिलताओं का ज्ञान रखता है। कृपाशील परमेश्वर ने मनुष्य को उसके अल्प सीमित ज्ञान एवं बुद्धि से जीवन का मार्ग निर्धारित करने और अंधकार में इधर-उधर भटकते रहने के लिए नहीं छोड़ा है। उसने मनुष्य को उसकी आवश्यकता अनुसार वास्तविकताओं का ज्ञान दे दिया एवं जीवन का मार्गदर्शन कर दिया है।

एकेश्वरवाद (तौहीद) मानव-प्रकृति के पूर्णतः अनुकूल है
एकेश्वरवाद (तौहीद) मानव-प्रकृति के पूर्णतः अनुकूल है
28 March 2020
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एकेश्वरवाद (तौहीद) दिल की दुनिया बदल देने वाली एक क्रांतिकारी, कल्याणकारी, सार्वभौमिक, सर्वाधिक महत्वपूर्ण और मानव-प्रकृति के बिल्कुल अनुकूल अवधारणा है जो आदमी को सिर्फ़ और सिर्फ़ एक अल्लाह या ईश्वर की बन्दगी और दासता की शिक्षा देती है। एक अल्लाह के आगे सजदा करने या झुकने वाला आदमी बाक़ी सारे बनावटी और नक़ली खुदाओं के सजदे और दासता से छुटकारा पा जाता है। और अल्लाह की नज़र में सारे इंसान एक समान हो जाते हैं। अल्लाह की नज़र में किसी के बड़ा या छोटा होने का मानदंड उसका कर्म है।

इस्लाम का ही अनुपालन क्यों ?
इस्लाम का ही अनुपालन क्यों ?
28 March 2020
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मुर्शफ अली इस्लाम की ओर आकर्षित करने वाला पहला कारण यह है कि इस्लामी आस्था एवं अवधारणा बिल्कुल स्पष्ट और आसानी से समझ में आने वाली है। इनमें किसी तरह की कोई पेचीदगी या उलझाव नहीं है। इन्हें समझने के लिए वह ज्ञान काफ़ी है जो प्रत्येक मनुष्य को स्वाभाविक रूप से प्राप्त है। इस्लामी सिद्धांत और नियम मानव स्वभाव के अनुकूल भी है और यह बौद्धिक स्तर पर भी खरे उतरे हैं। आइए हम निष्पक्ष होकर देखें कि इस्लाम में क्या-क्या आकर्षण है!

इस्लाम की सार्वभौमिक शिक्षाएं
इस्लाम की सार्वभौमिक शिक्षाएं
30 March 2020
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डॉ फरहत हुसैन धरती पर मनुष्य ही वह प्राणी है जिसे विचार तथा कर्म की स्वतंत्रता प्राप्त है, इसलिए उसे संसार में जीवन-यापन हेतु एक जीवन प्रणाली की आवश्यकता है। मनुष्य नदी नहीं है जिसका मार्ग पृथ्वी की ऊंचाई-नीचाई से स्वयं निश्चित हो जाता है। मनुष्य निरा पशु-पक्षी भी नहीं है कि पथ-प्रदर्शन के लिए प्राकृति ही प्रयाप्त हो। अपने जीवन के एक बड़े भाग में प्राकृतिक नियमों का दास होते हुए भी मनुष्य जीवन के ऐसे अनेक पहलू रखता है जहां कोई लगा-बंधा मार्ग नहीं मिलता, बल्कि उसे अपनी इच्छा से मार्ग का चयन करना पड़ता है।

इस्लाम का परिचय
इस्लाम का परिचय
30 March 2020
Views: 96

मौलाना वहीदुद्दीन खां आर्य समाज स्युहारा, ज़िला बिजनौर ने अपने चौंसठ वर्षीय समारोह के अवसर पर नवम्बर सन् 1951 के अन्त में एक सप्ताह मनाया। इस मौक़े पर 21 नवम्बर को एक आम धार्मिक सभा भी हुई जिसमें विभिन्न धर्मों के विद्वानों ने शामिल होकर अपने विचार व्यक्त किये। यह लेख इसी अंतिम सभा में पढ़ा गया।

इस्लाम में बलात् धर्म परिवर्तन नहीं
इस्लाम में बलात् धर्म परिवर्तन नहीं
30 March 2020
Views: 92

अबू मुहम्मद इमामुद्दीन रामनगरी यह पुस्तक बताएगी कि जिहाद और जिज़्या की वास्तविकता क्या है और विरोधी जो प्रचार करते हैं वह कितना भ्रष्ट और द्वेषपूर्ण तथा निराधार है। यह पुस्तक पहली बार 1945 ई0 में प्रकाशित हुई थी। स्वतंन्त्र भारत की मांग यह है कि इस्लाम के विरुद्ध जो द्वेषपूर्ण प्रचार हुआ है, उसका निवारण किया जाए। हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित हो और दोनों धर्मावलम्बी एक मत होकर नास्तिकता से धर्म की रक्षा करें जो इस देश की सबसे बड़ी विशेषता है और देश को समुन्नत बनाएँ।