एकेश्वरवाद एक स्पष्ट वास्तविकत
एकेश्वरवाद एक स्पष्ट और जानी-पहचानी सच्चाई है, इंसान की सद्बुद्धि और शुद्ध प्रकृति पर अगर अज्ञानता, पक्षपात, हठधर्मी और बाप-दादा के अन्धानुकरण के परदे पड़े हुए न हों तो एकेश्वरवाद उसकी जानी-पहचानी पूंजी है, बुद्धि एवं विवेक का तक़ाज़ा है। क़ुरआन एकेश्वरवाद का सबसे महान, प्रामाणिक और शक्तिमान आह्वाहक है; एकेश्वरवाद की जो व्यापक, पूर्ण और स्पष्ट धारणा क़ुरआन प्रस्तुत करता है, वह दुनिया के किसी दूसरे धर्मग्रन्थ में नहीं मिल सकती। क़ुरआन एकेश्वरवाद की सर्वाधिक सशक्त, बुद्धिसंमगत और तर्कसंगत अवधारणा प्रस्तुत करता है और ज्ञान और प्रमाण की रौशनी में साबित करता है कि मानव जाति का कल्याण और सफलता इस वास्तविकता से जुड़ी है कि दिल के पूरे इत्मिनान के साथ ख़ुदा के एकत्व को स्वीकार करे, हिम्मत और हौसले के साथ उसका प्रदर्शन करे और दिल-दिमाग़ को शिर्क की हर मिलावट से पाक कर के पूरी एकाग्रता के साथ ख़ुदा के एक और केवल एक होने की गवाही दे और एकेश्वरवाद ही की बुनियाद पर अपने विचार एवं व्यवहार का निर्माण करे।
एकेश्वरवाद पर ईमान का अर्थ
एकेश्वरवाद को मानने का अर्थ केवल इस हक़ीक़त को स्वीकार करना ही नहीं है कि ख़ुदा एक है। यह मात्र एक दार्शनिक धारणा नहीं है, जिसका संबंध केवल दिमाग़ से हो। यह दिल की दुनिया बदल देने वाली एक ऐसी क्रांतिकारी अवधारणा है जिसका व्यवहारिक जीवन से बड़ा गहरा संबंध है। ख़ुदा के एक होने (एकेश्वरवाद) पर ईमान लानेवाले की ज़िंदगी उस व्यक्ति से बिल्कुल भिन्न होगी जो एकेश्वरवाद का इनकारी है। एकेश्वरवाद एक ऐसी क्रांतिकारी अवधारणा है जो व्यक्ति और समाज के विचार-व्यवहार, चरित्र-आचरण और सभ्यता-संस्कृति में एक स्पष्ट और पूर्ण परिवर्तन कर देती है। और हर देखने वाली आंख महसूस कर लेती है कि यह वह व्यक्ति नहीं रहा है जो एकेश्वरवाद को स्वीकार कर लेने से पहले था।
दुनिया में एक पाक-साफ़, सम्माननीय और सफल जीवन एकेश्वरवाद की अवधारणा अपनाकर ही हो सकता है और मौत के बाद की दुनिया में भी सम्मान, बड़ाई, सफलता, ख़ुदा की प्रसन्नता और हमेशा की कामयाबी उसी का हिस्सा है जो इस दुनिया में निष्ठापूर्वक एकेश्वरवाद पर ईमान लाए और उसी के अनुसार जीवन व्यतीत करे। एकेश्वरवाद से वंचित इंसान, ज्ञान-विवेक, न्याय, तत्वदर्शिता, मान-सम्मान, मार्गदर्शन, क्षमा और कल्याण-सफलता और हर प्रकार की भलाई से वंचित है।
क़ुरआन में एकेश्वरवाद की अवधारणा
क़ुरआन में एकेश्वरवाद की अवधारणायह सम्पूर्ण सृष्टि और ख़ुद इंसान एक ईश्वर की रचना है। उसके सिवा न कोई दूसरा सृष्टा है और न इस रचना-कार्य में कोई दूसरी हस्ती उसके साथ सम्मिलित है। उसने किसी मिसाल के बिना मात्र अपने आदेश और इच्छा से उसको पैदा किया और उसी के आदेश और इच्छा से यह क़ायम है—
“अल्लाह हर चीज़ का स्रष्टा है और वही हर चीज़ का निगहबान है।” (क़ुरआन, सूरा-39 ज़ुमर, आयत-62)
“वह आकाशों और धरती का पैदा करने वाला है। जिस बात का वह निर्णय करता है, उसके लिए बस कह देता है कि ‘हो जा’ और वह हो जाती है।” (क़ुरआन, सूरा-2 बक़रा, आयत-117)
इसके सिवा यहां जो कुछ है, वह उसकी रचना है, केवल उसी की हस्ती सदैव से है और सदैव रहेगी। उसके सिवा कोई चीज़ अनादि और अनंत नहीं। हर चीज़ नश्वर है और सिर्फ़ उसी की हस्ती सदैव बाक़ी रहने वाली है। वह जीवंत सत्ता है, उसको कभी मौत न आएगी।
1.क़ुरआन के एकेश्वरवाद की अवधारणा में इस आस्था की कोई गुंजाइश नहीं है कि यहां जो कुछ है वह ख़ुदा ही है, ख़ुदा के अस्तित्व से अलग की चीज़ मौजूद नहीं है। वेदों में कायनात की रचना से संबंधित विभिन्न धारणाएं पाई जाती हैं, मगर उन सबसे मज़बूत और प्रभावी रुझान यही सामने आता है कि यहां सिर्फ़ ख़ुदा ही का अस्तित्व है। डॉक्टर ताराचंद उन विभिन्न वैदिक धारणाओं का ज़िक्र करने के बाद लिखते हैं—
“रचना के इन समस्त धारणाओं से ‘वहदतुल-वजूद’ (ब्रह्मवाद यानि यह सिद्धांत की संसार में केवल एक ईश्वर के सिवा और कुछ नहीं है) अवधारणा का साफ़ रुझान स्पष्ट होता है, क्योंकि रचना या तो इस तरह हुई कि इल्लतुल-इलल (First Cause, मूल कारण, ईश्वर) ख़ुद कायनात में परिवर्तित हो गया या जो हस्ती कल्पना से परे थी वह सब पर हावी हो गई।” (इस्लाम का भारतीय संस्कृति पर प्रभाव, पेज-25) सत्य को जानने की चाहत की सर्वप्रथम और प्रबल अपेक्षा है कि अध्ययन करने वाला इस तरह के मौलिक मतभेद को निगाह में रखे और सत्यानुकूल ढंग से अनुकूल या प्रतिकूल राय क़ायम करे। उदारता का अनुचित और भ्रमात्मक दिखावा और नुमाइश की ख़ातिर हर बात को ठीक कहना और अनुकूल तथा प्रतिकूल को एक बताना ख़तरनाक धोखा है। यह भ्रमात्मक सोच रखने वाला व्यक्ति कभी सच्चाई की तलाश में सफल नहीं हो सकता।
“कायनात की हर चीज़ विनष्ट होकर रहेगी। सिर्फ़ ख़ुदा की हस्ती हमेशा रहने वाली है।”
(क़ुरआन, सूरा-28 क़सस, आयत-88)
कायनात को उत्पन्न करने के बाद उस स्रष्टा ने उससे संबंध नहीं तोड़ दिया है बल्कि वह इस पर निरंतर शासन कर रहा है। वही कायनात का वास्तविक स्वामी है। धरती और आकाश में उसी का आदेश चल रहा है। वह सुस्ती, थकान, बेपरवाही, ऊंघ, नींद, कमजोरी, कोताही इत्यादि हर प्रकार की कमियों और ग़लतियों से पूर्णतः रहित और परे है।
“कोई पूज्य-प्रभु नहीं सिवाय अल्लाह के, जो अकेला है, सब पर क़ाबू रखने वाला। आकाशों और धरती का पालनहार-प्रभु है; उन सारी ही चीज़ों का जो इस ज़मीन और आसमानों के बीच है।
(क़ुरआन, सूरा-38 साद, आयत-65,66)
पैदा करना भी ख़ुदा ही काम है और आदेश देना भी उसी का अधिकार है; न पैदा करने में उसका कोई साझीदार और सहायक है और न आदेश देने में कोई दूसरा उसका साझीदार है—
“वास्तव में तुम्हारा पूज्य-प्रभु अल्लाह ही है; जिसने आकाशों और धरती को छह दिनों में पैदा किया। फिर वह अपने राजसिंहासन पर विराजमान हुआ। जो रात को दिन पर ढांक देता है और फिर दिन रात के पीछे दौड़ा चला जाता है, जिसने सूर्य, चंद्रमा और तारे पैदा किए, जो उसके हुक्म से अपने काम में लगे हुए हैं। सुन लो ! उसी का काम है पैदा करना और उसी का अधिकार है आदेश देना। अत्यंत बरकतवाला है अल्लाह, सारे संसार का स्वामी।”
(क़ुरआन, सूरा-7 आराफ़, आयत-54)
“अल्लाह ही पूज्य है, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह जीवंत सत्ता है, सबको संभालने वाला और क़ायम रखने वाला।”
(क़ुरआन, सूरा-3 आले-इमरान, आयत-2)
ईश्वर का ज्ञान हर चीज़ पर आच्छादित है, कोई चीज़ उससे छिपी हुई नहीं, वह हर खुली-छिपी चीज़ से अवगत है। वह सीनों के भेदों और दिल की नीयतों तक से अवगत है। मानव मन-मस्तिष्क का कोई विचार, कोई अहसास और कोई भावना उस सर्वज्ञ की नज़रों से छिपी हुई नहीं है, वह हर समय अपने बन्दों के साथ है—
“उसी के पास परोक्ष की कुंजियां हैं जिन्हें उसके सिवा कोई नहीं जानता। जल और थल में जो कुछ है, वह सबसे अवगत है। वृक्ष से गिरने वाला कोई पत्ता ऐसा नहीं जिसका उसे ज्ञान न हो। धरती के अंधकारमय परदों में कोई दाना ऐसा नहीं जिससे वह अवगत न हो। आर्द्र (गीली) और शुष्क (सूखी) सब कुछ एक स्पष्ट किताब में मौजूद है।”
(क़ुरआन, सूरा-6 अनआम, आयत-59)
“क्या तुमको ख़बर नहीं है कि धरती और आकाशों की हर चीज़ का अल्लाह को ज्ञान है ? कभी ऐसा नहीं होता है कि तीन आदमियों में कोई गुप्त बातचीत हो, वहां वह ज़रूर ही उनका चौथा होता है और पांच हो तो वह उनका छठा होता है। उससे कम या अधिक जितने भी हों ख़ुदा उनके साथ होता है, चाहे कहीं भी हो। फिर जो कुछ ये करते रहे हैं, ख़ुदा कियामत (पुनरुत्थान या महाप्रलय) के दिन उनको बता देगा। यह सच है कि अल्लाह को हर चीज़ का पूरा-पूरा ज्ञान है।” (क़ुरआन, सूरा-58 मुजादला, आयत-7)
“कोई चीज़ राई के दाने के बराबर भी हो और किसी चट्टान में या आकाशों या धरती में कहीं भी छुपी हुई हो, अल्लाह उसे निकाल लाएगा। निस्संदेह अल्लाह अत्यंत सूक्ष्मदर्शी, ख़बर रखने वाला है।” (क़ुरआन, सूरा-31 लुक़मान, आयत-16)
वह हर चीज़ पर सामर्थ्य रखता है, कोई चीज़ उसके सामर्थ्य और अधिकार से बाहर नहीं। लाभ-हानि, स्वास्थ्य, बीमारी, सम्मान, अपमान, धन-दौलत, सत्ता, अजीविका के साधन, संतान, जीवन, मृत्यु और भाग्य सब कुछ उसी के हाथ में है और सब कुछ उसी की ओर से है, हर चीज़ के ख़ज़ाने उसी के पास हैं—
“अल्लाह को कोई चीज़ विवश करने वाली नहीं है, न आकाशों में और न धरती में। वह सब कुछ जानता है और उसे हर चीज़ का सामर्थ्य प्राप्त है।” (क़ुरआन, सूरा-35 फ़ातिर, आयत-44)
“भलाई बस तेरे ही वश में है। निस्संदेह तुझे हर चीज़ का सामर्थ्य प्राप्त है।“ (क़ुरआन, सूरा-3 आले-इमरान, आयत-26)
“अल्लाह ही की है आकाशों और धरती की बादशाही। वह जो चाहता है, पैदा करता है। जिसे चाहता है, लड़कियां देता है और जिसे चाहता है लड़के देता है। जिसे चाहता है लड़के और लड़कियां मिला-जुला कर देता है और जिसे चाहता है बांझ कर देता है। वह सब कुछ जानता है और हर चीज़ का सामर्थ्य रखता है।” (क़ुरआन, सूरा-42 शूरा, आयत-49,50)
वह सारी सृष्टि का पालनहार और सभी को रोज़ी देने वाला है। रोज़ी की कुंजियां उसी के पास हैं। रोज़ी में तंगी और विस्तार उसी के हाथ में है—
“इनसे पूछो ! कौन तुमको आकाश और धऱती से रोज़ी देता है ? सुनने और देखने की शक्तियां किसके अधिकार में हैं ? कौन निर्जीव में से सजीव को और सजीव में से निर्जीव को निकालता है ? कौन इस जगत-व्यवस्था का उपाय कर रहा है ? वे अवश्य कहेंगे कि अल्लाह ! कहो : फिर तुम उससे डरते क्यों नहीं ? यही अल्लाह तुम्हारा वास्तविक पूज्य-प्रभु है।”
(क़ुरआन, सूरा-10 यूनुस, आयत-31)
वही ज़रूरतें पूरी करने वाला और मुश्किलों से निकालने वाला है। वही सब की फ़रियाद सुनता और दुआ क़बूल करता है। वही सबकी मुरादें पूरी करने वाला और सहायता और समर्थन करने वाला है। वही हिदायत देता है और वही क्षमादान देता है और वही तौबा क़बूल करने वाला है।
“उसी को पुकारना सत्य है और ये लोग उसको छोड़कर जिन हस्तियों को पुकारते हैं, वे उसकी प्रार्थनाओं का कोई उत्तर नहीं दे सकतीं। उन्हें पुकारना तो ऐसा है जैसे कोई व्यक्ति पानी की ओर हाथ फैलाकर उससे निवेदन कर रहा कि तू मेरे मुंह तक पहुंच जा, हालांकि पानी उस तक पहुंचने वाला नहीं।”
(क़ुरआन, सूरा-13 रअद, आयत-14)
इस उदाहरण का सारांश यह है कि इच्छाओं को पूरा करना और बिगड़े हुए कामों का बनाना केवल अल्लाह का काम है, किसी दूसरे के वश और अधिकार में कुछ भी नहीं है—
“कौन है जो मुसीबत में फंसे हुए इंसान की दुआ सुनता है, जबकि वह उसे पुकारे और कौन उसकी तकलीफ़ दूर करता है ? और कौन है जो तुम्हें धऱती का अधिकारी बनाता है ? क्या अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य-प्रभु भी (यह कार्य करनेवाला) है ? तुम लोग कम ही सोचते हो।”
(क़ुरआन, सूरा-27 नम्ल, आयत-62)
“और जब मेरे बन्दे आप से मेरे बारे में पूछे तो उन्हें बता दीजिएगा कि मैं उनसे निकट ही हूं। पुकारने वाला जब मुझे पुकारता है, मैं उसकी पुकार सुनता हूं और उत्तर देता हूं।”
(क़ुरआन, सूरा-2 बक़रा, आयत-186)
“और वही तो है जो अपने बन्दों की तौबा क़बूल करता है और उनकी ग़लतियों को माफ़ करता है और वह सब जानता है जो कुछ तुम करते हो।”
(क़ुरआन, सूरा-42 शूरा, आयत-25)
वह अपनी हस्ती और गुणों, अधिकारों और सत्ता में अकेला है, कोई उसका सहभागी और समकक्ष नहीं, वही उपास्य है। बन्दगी, उपासना, आज्ञापालन, दासता, सजदा, रुकूअ, नज़्र, क़ुर्बानी सिर्फ़ और सिर्फ़ उसी के लिए है; उसके सिवा कोई इबादत और उपासना के योग्य नहीं—
“अल्लाह ही उपास्य है, उसके सिवा कोई ईष्ट-पूज्य नहीं।”
(क़ुरआन, सूरा-4 निसा, आयत-87)
“आप के रब (पालनहार) का अंतिम फ़ैसला है कि केवल उसी की बन्दगी (उपासना) करो, उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो।”
(क़ुरआन, सूरा-17 बनी इसराईल, आयत-23)
“न सूरज को सजदा करो, न चांद को, अल्लाह को सजदा करो जिसने उन सब को पैदा किया है।”
(क़ुरआन, सूरा-41 सजदा, आयत-37)
हिदायत देना केवल उसी का अधिकार है, उसी का क़ानून जाइज़ और सही क़ानून है, केवल वही अपने बन्दों का शासक और बादशाह है, जिसके सिवा सब उसकी प्रजा है। प्रजा का काम क़ानून बनाना नहीं, बल्कि क़ानून की पैरवी करना है। क़ानून ख़ुदा ही बनाता है और अपने बन्दों में से किसी एक अच्छे और बुज़ुर्ग इंसान को चुन कर उस पर अपना क़ानून अवतरित करता है और उसको अपना रसूल नियुक्त करता है। ख़ुदा ने अपने रसूल, हर दौर और हर क़ौम में नियुक्त किए हैं। यह रसूल ख़ुद भी उसी क़ानून की पूरी पैरवी करते हैं और दूसरों को भी क़ानून की पैरवी पर उभारते हैं। यह रसूल ख़ुदा की निगरानी में इंसानी समाज का सुधार करते हैं। फ़ितना-फ़साद, बिगाड़ और बुराइयों को मिटाते हैं और ख़ुदा की मर्ज़ी और मार्गदर्शन के अनुसार एक अच्छे और स्वच्छ समाज का निर्माण करते हैं।
1.दुनिया से बिगाड़ और फ़ितना-फ़साद मिटाने के लिए ख़ुदा इंसानी रूप धारण नहीं करता। क़ुरआन की एकेश्वरवादी धारणा के अनुसार अवतारवाद की कल्पना ग़लत है। ईश्वर रचना नहीं, रचयिता होता है। पैदा होना, मरना, आत्महत्या करना, शरीर और रूप वाला होना, खाना-पीना, पेशाब-पख़ाना करना, इंसानी या हैवानी इच्छा या भावनाएं रखना, काम-वासना का इच्छुक होना, पत्नी और बाल-बच्चों वाला होना, सुख और कष्ट सहना, कठिनाइयों में फंसना, दूसरों की मदद का मुहताज होना—ये सारी बातें स्रष्टा की शान के ख़िलाफ़ है। ख़ुदा अपने आप हमेशा से ही है और हमेशा रहेगा। न वह शरीर वाला है और साकार है, न ही उसका कोई रूप-रंग है। वह तो निराकार है, अद्वितीय और अनुपम है, और हर तरह की कमियों और कमज़ोरियों से पाक है। मरियम के बेटे हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के बारे में ईसाईयों का विश्वास है कि वे ख़ुदा के बेटे हैं और उन्होंने इंसानी रूप धारण कर लिया था। इसी तरह हिंदु भाइय़ों की बहुत बड़ी संख्या रामचंद्र जी और कृष्ण जी के बारे में यह मानती है कि वे विष्णु के अवतार हैं।
क़ुरआन ख़ुदा की सर्वोच्च और सर्वोत्तम अवधारणा प्रस्तुत करता है और कहता है कि ख़ुदा एक ऐसी निस्पृह (बेनियाज़) हस्ती है, जिसको प्राणी समझना बिल्कुल ही ग़लत है और ऐसा समझना ख़ुदा की शान के सरासर ख़िलाफ़ है। हज़रत ईसा (अलैहिस्सलाम) के ख़ुदा होने के खंडन में क़ुरआन यह दलील पेश करता है कि वे इंसानी ज़रूरतें रखते थे—
“मरयम के बेटे ईसा मसीह एक रसूल ही थे, जैसे की उनसे पहले बहुत-से रसूल गुज़रे हैं और उनकी मां अत्यंत सत्यवती थीं। वे दोनो मां-बेटे खाना खाते थे।”
(क़ुरआन, सूरा-5 माइदा, आयत-75)
अर्थात खाने-पीने की ज़रूरत रखने वाला और खाने के बाद की अपेक्षाओं से विवश प्राणी या जड़ पदार्थ भला ख़ुदा या ईश्वर कैसे हो सकते हैं ? ख़ुदा तो वही है जो हर तरह की पराश्रयता और विवशता से रहित हो।
वह सब आवश्यकताएं पूरी करता है, सब उसके मुहताज हैं और वह किसी का मुहताज नहीं, वह निस्पृह (बेनियाज़) है—
“अल्लाह निस्पृह है (सब उसके मुहताज हैं और वह किसी का मुहताज नहीं)।”
(क़ुरआन, सूरा-112 इख़लास, आयत-2)
“वह सब को खिलाता है और उसको कोई नहीं खिलाता (वह खाने –पीने की इच्छाओं से बेनियाज़ है)।”
(क़ुरआन, सूरा-6 अनआम, आयत-14)
पूछ-गछ रखने वाला और अच्छे-बुरे कर्मों के अनुसार बदला (फल) देने वाला वही है। वह ज्ञान, तत्वदर्शिता और न्याय और इंसाफ़ के आधार पर निष्पक्ष फ़ैसला करेगा। उसका फ़ैसला अटल है। किसी की हिम्मत नहीं जो उसके फ़ैसले के ख़िलाफ़ सांस ले सके। वह सब पर हावी है। उसके समक्ष कोई ग़लत सिफ़ारिश नहीं कर सकता। उसके सामने केवल वही मुंह खोल सकता है जिसको बोलने की अनुमति दी जाए।
1.देवताओं के बारे में यह कल्पना कि वे सिफ़ारिश करके अपराधियों को ख़ुदा की पकड़ से छुड़ा लेंगे, क़ुरआन के एकेश्वरवादी अवधारणा के अनुसार बिल्कुल ग़लत कल्पना है। इसी तरह पैग़म्बरों या दूसरे बुज़ुर्गों के बारे में इसी तरह की आस्था रखना भी एकेश्वरवाद की अवधारणा के विरुद्ध है। ख़ुदा के समक्ष न इस तरह कि सिफ़ारिश की गुंजाइश है और न उसके यहां किसी का इतना ज़ोर और दबाव है कि वह उसका फ़ैसला बदलवा सके या उस पर प्रभाव डाल सके। उसके सामने सब मजबूर, बेबस और उसकी दया और कृपा के मुहताज हैं।
सिर्फ़ वही कह सकता है जिसको कहने की इजाज़त दी जाए और केवल उसी के हक़ में कह सकता है जिसके हक़ में कहने की इजाज़त दी जाए—
2.“उस दिन किसी की सिफ़ारिश कुछ फ़ायदा न देगी, सिवाय उसके जिसको ख़ुदा सिफ़ारिश की अनुज्ञा दे और उनका बोलना ख़ुदा को पसंद हो।”
(क़ुरआन, सूरा-20 ता.हा., आयत-109)
3.“और ख़दा के समक्ष किसी की सिफ़ारिश फ़ायदा न देगी, मगर उस व्यक्ति के लिए जिसके बारे में सिफ़ारिश की वह अनुमति दे।” (क़ुरआन, सूरा-34 सबा, आयत-23)
4.वह औलाद के सहारे और वैवाहिक आवश्यकताओं से परे है। वह ज़रूरतों से ऊपर है, न उसकी कोई पत्नी है, न पुत्र और न पुत्री और न उसका कोई ख़ानदान है, वह तन्हा और अद्वितीय है—
“हालांकि वह निर्पेक्ष और उच्च है उन बातों से जो ये लोग कहते हैं। वह तो आकाशों और धरती का आविष्कारक है। उनका कोई पुत्र कैसे हो सकता है, जबकि कोई उसकी जीवन-संगिनी ही नहीं है।”
(क़ुरआन, सूरा-6 अनआम, आयत-100,101)
“और कहो : ‘प्रशंसा है उस अल्लाह के लिए जिसने न तो अपना कोई बेटा अपनाया और न कोई शासन ही में उसका कोई साझीदार है और न वह बेबस है कि कोई उसका मददगार हो।’ और उसकी बड़ाई बयान करो, उच्च कोटि की (पूर्ण) बड़ाई।”
(क़ुरआन, सूरा-17 बनी इसराईल, आयत-111)
क़ुरआन की तर्क-विधि
क़ुरआन ने एकेश्वरवाद (तौहीद) के एक-एक बिन्दु पर अत्यंत स्पष्ट और विस्तार से चर्चा की है और अत्यंत स्वाभाविक रूप में कायनात की रचना, इंसान की रचना, जगत-व्यवस्था, प्रकृति के परिदृश्य और स्वयं मनुष्य के अस्तित्व से दिल में उतर जाने वाले और आंखें खोल देने वाले अनेक तर्क प्रस्तुत किए हैं कि अगर इंसान इंसाफ़ और सच्ची चाहत के साथ उन पर सोच-विचार करे तो वह क़ुरआन में प्रस्तुत की गई वास्तविकता में अपनी प्रकृति के अनुसार बिल्कुल ठीक-ठीक जवाब पाएगा और अपने दिल में यक़ीन और विश्वास की ठंडक और शांति महसूस करेगा।
ईश्वर का अस्तित्व और उसके प्रमाण
ईश्वर का अस्तित्व एक स्पष्ट और जानी-पहचानी वास्तविकता है, अगर कोई हठधर्म ख़ुदा का इनकार करने की मूर्खता करे भी तो यह सच्चाई है कि वह इस इनकार पर अपने दिल और आत्मा में शांति और संतोष कभी नहीं पा सकेगा। यह अत्यंत विशाल कायनात, यह सुन्दर आकाश और इसके नीले दामन पर सुव्यवस्थित रूप से बिखरे हुए अनगिनत चमकते मोती, यह ज़मीन को गर्मी पहुंचानें और ग़ल्लों और फलों का पकाने वाला प्रकाशमान सूरज, यह ठंडी और मस्त कर देने वाली चांदनी प्रदान करने वाला सुंदर चांद और यह सूरज और चांद का अत्यंत व्यवस्थित तरीक़े से उदय होना और डूब जाना, यह रात-दिन का आना-जाना, यह दिन की भाग-दौड़, यह रात की ख़ामोशी और शांति, यह पानी से लदी हुई हवाएं और उनके चलने की तत्वदर्शितापूर्ण व्यवस्था, यह हर प्रकार के ख़ज़ाने उगलने वाली ज़मीन, यह भांति-भांति के ग़ल्ले, यह मेवे और सब्ज़ियां, यह अथाह समंदर और इसके सीने को चीर कर चलने वाली नौकाएं और पहाड़ जैसे जहाज़ और जल-थल में रहने वाले समस्त प्राणियों को जीविका प्रदान करने वाली आश्चर्यजनक व्यवस्था, यह घने-घने जंगल, यह ऊंचे-ऊंचे पहाड़, यह हरे-भरे लहलहाते खेत और यह तुच्छ भ्रूण से मां के पेट में अंधकारमय परदों में पलने वाली और ग़ैर-मामूली योग्यता रखने वाली रचना और इसके पालन-पोषण की अनुपम व्यवस्था, तात्पर्य यह कि कायनात की एक-एक चीज़ पुकार-पुकार कर कह रही हैं कि ख़ुदा की हस्ती यक़ीनी है और वही हर चीज़ की बेहतरीन रचना करने वाला है—
“वह अल्लाह ही तो है जिसने तुम्हारे लिए धरती को ठहरने का स्थान बनाया और आकाश को छत बना दिया। जिसने तुम्हारा रूप बनाया और बड़ा ही अच्छा बनाया। जिसने तुम्हें अच्छी पाक चीज़ों की रोज़ी दी। वही अल्लाह तुम्हारा पालनहार है। बेहिसाब बरकतों वाला है अल्लाह, सारे संसार का पालनहार-प्रभु। वही जीवन का स्रोत है उसे मौत नहीं। उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। अतः उसी को तुम पुकारो। अपने धर्म (दीन) को उसी के लिए विशुद्ध कर के। सारी प्रशंसा अल्लाह, सारे संसार के पूज्य-प्रभु ही के लिए है।”
(क़ुरआन, सूरा-40 मोमिन, आयत-64,65)
“वह तुम्हारी मांओं के पेटों में तीन-तीन अंधकारमय परदों के भीतर तुम्हें एक के पश्चात एक सृजन रूप देता चला जाता है। यही अल्लाह तुम्हारा पूज्य-प्रभु है, राज्य उसी का है। उसके अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं। फिर तुम किधर फिरे जाते हो?”
(क़ुरआन, सूरा-39 अज़-ज़ुमर, आयत-6)
मां के पेट में तुच्छ बूंद भिन्न-भिन्न रूपों में बदलती रहती है। पहले उस बूंद को लोथड़े की शक्ल दी जाती है, फिर उस लोथड़े को गोश्त की एक बोटी बना दिया जाता है, फिर उस बोटी में हड्डियां प्रकट होती हैं, फिर हड्डियों पर गोश्त चढ़ाया जाता है। इस तरह यह तुच्छ बूंद रचना और विकास के विभिन्न मरहलों से गुज़रती है और मां के पेट में अंधकारमय परदों के अंदर विभिन्न रूपों में बदलते हुए जीवन की आत्मा पाती है, और फिर महान रूप योग्यताओं का रूप बन कर प्रकट होती है। तुच्छ बूंद से इंसान जैसी महान हस्ती की रचना किसका कारनामा है ? गोश्त के इस ढांचे में जान डालना और उसको समझ, चेतना, बुद्धि-विवेक, शोध एवं आविष्कारक की असाधारण योग्यताओं से सुशोभित करना किसका चमत्कार है ? यही ख़ुदा है।
एकेश्वरवाद के प्रमाण
संसार की व्यवस्था के अध्ययन, अवलोकन और कायनात के दृष्यों पर सोच-विचार करने से ख़ुदा के अस्तित्व पर विश्वास के साथ-साथ यह यक़ीन भी हासिल होता है कि वह अकेला है और किसी पहलू से भी कोई दूसरी हस्ती उसकी साझीदार या समकक्ष नहीं है—
“तुम्हारा ख़ुदा एक ही ख़ुदा है, उस करूणामय और दयावान के सिवा कोई और पूज्य-प्रभु नहीं है (इस कायनात की निशानियों पर सोच-विचार करो तो यह वास्तविकता तुम पर स्पष्ट हो जाएगी)। निस्संदेह आकाशों और धरती की संरचना में, रात और दिन के निरंतर एक-दूसरे के बाद आने में, उन नौकाओं और जहाज़ों में जो मनुष्यों के फ़ायदों की चीज़ें लेकर नदियों और समंदरों में चलते हैं, वर्षा के उस पानी में जिसे अल्लाह ऊपर से बरसाता है, फिर उसके द्वारा धरती को उसके निर्जीव हो जाने के बाद जीवित करता है, और अपनी इस व्यवस्था के कारण धरती में हर प्रकार के जीवधारियों को फैलाता है; हवाओं की गर्दिश में और उन बादलों में जो आकाश और धरती के बीच (काम पर) नियुक्त किए गए हैं, अनगिनत निशानियां हैं उन लोगों के लिए जो बुद्धि से काम लेते हैं और सोच-विचार करते हैं।”
(क़ुरआन, सूरा-2 बक़रा, आयत-163,164)
धरती और आकाश का यह विशाल साम्राज्य, असकी आश्चर्यजनक और उद्देश्यपूर्ण व्यवस्था और संतुलन, कायनात में अनगिनत ग्रहों का सुव्यवस्थित चक्र, हवा, पानी, बादल, सूरज, चांद और अनगिनत वस्तुओं में गहरा संबंध और सहयोग, कायनात की अनंत शक्तियों में अर्थपूर्वक संतुलन और व्यवस्था, रात-दिन का एक-दूसरे के बाद सोद्देश्य आन-जाना और सामूहिक रूप से कायनात में असाधारण सहयोग और संबंध और प्रबल प्राकृतिक नियमों की व्यवस्थित सीमाएं, इस सच्चाई के जीते-जागते उदाहरण हैं कि कायनात के इस विशाल कारख़ाने को चलाने वाला एक ही तत्वदर्शी, ज्ञानवान ख़ुदा है, इस प्रबल व्यवस्था में ने किसी दूसरे को कोई दख़ल है और न ही कुछ शक्तियां मिल-जुल कर इस व्यवस्था को चला रही हैं। अगर एक से अधिक खुदा होते तो यह सारी व्यवस्था अस्त-व्यस्त होकर रह जाती—
“यदि आकाश और धरती में एक अल्लाह के सिवा दूसरे ईष्ट-पूज्य भी होते, तो धरती और आकाश दोनों की व्यवस्था बिगड़ जाती। अतः महान और उच्च है अल्लाह, सिंहासन का स्वामी, उन बातों से जो ये लोग बना रहे हैं।”
(क़ुरआन, सूरा-21 अंबिया, आयत-22)
न केवल कायनात की व्यवस्था बल्कि ख़ुद मानव-प्रकृति भी इसी सच्चाई की गवाही देती है। समंदर की तेज़ और प्रचंड तूफ़ानी लहरों में जब नौकाएं किनारे से दूर हिचकोले खाने लगती हैं और इंसान ख़ुद को मौत की गोद में गिरता हुआ महसूस करने लगता है तो अचानक मानव-प्रकृति जाग उठती है और उस समय कट्टर से कट्टर बहुदेववादी भी सारे झूठे माबूदों (ईष्ट-पूज्यों) को भूल कर केवल एक ख़ुदा को पूर्ण विशुद्ध भाव के साथ पुकारने लगता है कि ऐ ख़ुदा ! तू ही इस संकट से छुटकारा दिला सकता है। तेरे सिवा किसी के पास कोई शक्ति नहीं है—
“वह अल्लाह ही है जो तुमको थल और जल में चलाता है। अतएव जब तुम नौकाओं में सवार होकर अनुकूल हवा पर प्रसन्न और हर्षित होकर यात्रा कर रहे होते हो और फिर अचानक प्रतिकूल प्रचंड हवा का ज़ोर होता है और हर ओर से लहरों के थपेड़े लगते हैं और यात्री समझ लेते हैं कि तूफ़ान में घिर गए, उस समय सब अपने दीन-धर्म को अल्लाह ही के लिए विशुद्ध करके उससे दुआएं मांगते हैं कि ‘अगर तूने हमको इस संकट और विपत्ति से बचा लिया तो हम अवश्य ही तेरे आभारी होंगे।”
(क़ुरआन, सूरा-10 यूनुस, आयत-22)
एकेश्वरवाद की व्यापक अवधारणा
पवित्र क़ुरआन में एकेश्वरवाद की व्यापक अवधारणा को इन शब्दों में स्पष्ट किया गया है—
“अल्लाह, वह जीवंत नित्य सत्ता, जो संपूर्ण जगत को संभाले हुए है, उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं है। वह न तो सोता है और न उसे ऊंघ लगती है। आकाशों और धरती में जो कुछ है, उसी का है। कौन है जो उसके यहां उसकी अनुमति के बिना सिफ़ारिश कर सके ? जो कुछ लोगों के सामने है उसे भी वह जानता है और जो कुछ तुमसे ओझल है उसे भी वह जानता है और उसके ज्ञान में से कोई चीज़ उनके पकड़ में नहीं आ सकती; यह और बात है कि किसी चीज़ का ज्ञान वह स्वयं ही उनको देना चाहे। उसका राज्य आकाशों और धरती पर छाया हुआ है और उनकी देख-रेख और सुरक्षा उसके लिए कोई थका देने वाला कार्य नहीं है। बस वही एक महान और सर्वोप्परि सत्ता है।”
(क़ुरआन, सूरा-2 बक़रा, आयत-255)
“भला वह कौन है जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया और तुम्हारे लिए आकाश से जल बरसाया। फिर उसके द्वारा वे शोभायमान बाग़ उगाए जिनके वृक्षों का उगाना तुम्हारे वश में न था ? क्या अल्लाह के साथ कोई अन्य पूज्य-प्रभु भी इन कार्यों में साझीदार है ? (नहीं बल्कि) यह लोग सन्मार्ग से हटकर चले जा रहे हैं। और वह कौन है जिसने धरती को ठहरने का स्थान बनाया और उसने नदियां बहाइं और उनमें मेख़ें गाड़ दीं और जल के दोनों भंडारों के बीच परदे डाल दिए ? क्या अल्लाह के साथ कोई और पूज्य-प्रभु भी (इन कार्यों में सहभागी) है ? नहीं, बल्कि इनमें से अधिकतर लोग ज्ञानहीन हैं।”
(क़ुरआन, सूरा-27 नम्ल, आयत-60-61)
“और वह कौन है जो मुसीबत में पड़े इंसान की प्रार्थना सुनता है, वह उसे पुकारे और कौन उसकी तकलीफ़ दूर करता है ? और (कौन है जो) तुम्हें धरती का अधिकारी बनाता है ? क्या अल्लाह के साथ कोई अन्य पूज्य-प्रभु भी (यह कार्य करने वाला) है ? तुम लोग कम ही सोचते हो।”
(क़ुरआन, सूरा-27 नम्ल, आयत-62)
“और वह कौन है जो थल और जल के अंधेरों में तुम्हें मार्ग दिखलाता है और कौन अपनी दयालुता के आगे हवाओं को मुख्य सूचना लेकर भेजता है ? क्या अल्लाह के साथ कोई अन्य पूज्य-प्रभु भी (यह कार्य करता) है ? बहुत उच्च है अल्लाह, उस बहुदेववादी कर्म (शिर्क) से, जो ये लोग करते हैं।”
(क़ुरआन, सूरा-27 नम्ल, आयत-63)
“वह कौन है जो प्रथम बार पैदा करता है और फिर उसकी पुनरावृत्ति करता है ? और कौन तुमको आकाश और धरती से रोज़ी देता है ? क्या अल्लाह के साथ कोई अन्य पूज्य-प्रभु भी (इन कार्यों में सहभागी) है ? कहो : ‘लाओ अपना प्रमाण, यदि तुम सच्चे हो।’ उनसे कहो : ‘अल्लाह के सिवा आकाशों और धरती में किसी को भी परोक्ष का ज्ञान नहीं है और वे तुम्हारे पूज्य तो यह भी नहीं जानते हैं कि कब वे उठाए जाएंगे।”
(क़ुरआन, सूरा-27 नम्ल, आयत-64-65)
एकेश्वरवाद की एकमात्र विशुद्ध अवधारणा
एकेश्वरवाद को मानने वाले और एकेश्वरवाद को अपनाने का दावा करने वाले यूं तो बहुत-से गिरोह हैं, लेकिन एकेश्वरवाद की एकमात्र सही अवधारणा क़ुरआन ही प्रस्तुत करता है। इसके अतिरिक्त जो भी अवधारणाएं प्रस्तुत की जाती हैं वे पूर्ण रूप से असत्य और अस्वीकार करने योग्य हैं। इस सबसे बड़े दावे का आधार पूर्वाग्रह और संकीर्ण दृष्टि नहीं है, बल्कि बुद्धि-विवेक और सत्यप्रियता की भावना है और इस दावे की सच्चाई थोड़े से सोच-विचार से आसानी से समझ में आ सकती है।
एकेश्वरवाद व पालनहार प्रभु की इबादत का प्रामाणिक ज्ञान
इस स्पष्ट वास्तविकता से कौन इंकार करने की हिम्मत कर सकता है कि ख़ुदा के जानने का सही और विश्वसनीय ज्ञान और उसकी इबादत (उपासना) का पसंदीदा और प्रामाणिक तरीक़े केवल वह हो सकता है, जो अल्लाह ने ख़ुद अपने बन्दों को बताया है और यह कि अल्लाह ने अपने बन्दों को अपनी हस्ती और गुणों का एक ही ज्ञान और अपनी बन्दगी और इबादत का एक ही तरीक़ा बताया है। यह बात बुद्धि के बिल्कुल विरुद्ध है कि वह अपनी बन्दगी और इबादत की परस्पर विरोधी अवधारणाएं और तौर-तरीके अपने बन्दों को बताए। जानने योग्य बात केवल यह है कि ख़ुदा की हस्ती और गुणों का सही ज्ञान और उसकी इबादत का वह प्रामाणिक और पसंदीदा तरीक़ा क्या है ? और यह हर सत्यप्रिय आदमी का परम कर्तव्य है कि वह उस सही ज्ञान और जीवन-व्यवस्था को मालूम करे। इससे बड़ी ना समझी और मूर्खता क्या होगी कि ज्ञान एवं बुद्दि से काम लिए बिना और किसी जीवन-व्यवस्था पर इस पहलू से संतुष्टि हासिल किए बिना आदमी आंखें बंद किए बाप-दादा की धार्मिक अवधारणाओं और रस्मों-रिवाजों से चिमटा रहे और बाप-दादा का अंधा अनुकरण करता रहे या ज़िंदगी की गाड़ी इच्छाओं के हवाले करके निश्चिंत हो जाए।
क़ुरआन का दावा और उनका संतोषजनक प्रमाण
क़ुरआन का दावा यह है कि एकेश्वरवाद का सही ज्ञान और इबादत (उपासना) का सही तरीक़ा केवल वही है जो क़ुरआन प्रस्तुत करता है। इसके विपरित एकेश्वरवाद और उपासना का जो भी तरीक़ा है वह पूर्ण रूप से ग़लत और असत्य है। इस लिए क़ुरआन ही वह प्रामाणिक और सुरक्षित ग्रन्थ है जो ख़ुदा ने अवतरित किया है। इस दावे का संतोषजनक प्रमाण ख़ुद क़ुरआन और उसकी शिक्षाएं हैं।
क़ुरआन एक व्यापक, पूर्ण और स्पष्ट ग्रन्थ है। यह हर तरह से मतभेदों और विरोधाभास से मुक्त है। इसकी शिक्षाएं बुद्धि-विवेक की कसौटी पर खरी उतरने वाली और व्यावहारिक है। यह ज्ञान और तत्वदर्शिता का स्रोत और सफलता एवं सुस्पष्टता का अनुपम नमूना है। इसका मार्गदर्शन, विस्तृत ज्ञान, सही दृष्टिकोण, पक्षपातहीनता, सच्चाई और यथार्थ का दर्पण है। इसके सिद्धांत अत्यंत व्यापक, लचकदार और हर दौर की आवश्यकताओं के लिए लाभकारी और उपयोगी हैं। इसका स्वीकार करने वाला न ज़िंदगी की किसी ज़रूरत में किसी दूसरे के मार्गदर्शन का मुहताज रहता है और न अपने दिल-दिमाग़ में संदेह और शक की कोई चुभन महसूस करता है। इतना अनुपम और महानतम ग्रन्थ वही ख़ुदा अवतरित कर सकता है, जिसका ज्ञान पूरी कायनात पर आच्छादित हो, जिसके लिए वर्तमान, भूत और भविष्य सब वर्तमान हों, जिसके दृष्टिकोण में संकीर्णता और ग़लती की कोई आशंका न हो, जो मनुष्य की प्रत्येक आवश्यकताओं और प्रकति की प्रत्येक अपेक्षा का पूर्ण और विश्वसनीय ज्ञान रखता हो और जो मनुष्य के मनोविज्ञान (Psychology) और उसके व्यवहार और जीवन-संघर्ष की शक्तियों से पूरी तरह अवगत हो और कोई छोटी से छोटी चीज़ भी उसकी नज़र से ओझल न हो। मनुष्य, जो ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अपने सारे विकास के बावजूद कायनात के बहुत थोड़े-से हिस्से के बारे में ही अत्यंत सीमित ज्ञान प्राप्त कर सका है, जिसको अपने इतिहास का भी पूर्ण ज्ञान नहीं है, जो अपने भविष्य और उसकी आवश्यकताओं से भी पूरी तरह अवगत नहीं है और इसके साथ ही उसका ज्ञान ग़लतियों और कमियों से सुरक्षित भी नहीं है, क़दम-क़दम पर उसके ज्ञान की कमी और ग़लती सामने आती रहती है। यह इंसान क़ुरआन जैसा पूर्ण और महान ग्रन्थ कैसे लिख सकता है; किताब लिखना तो दूर की बात यह तो क़ुरआन जैसी एक सूरा भी नहीं लिख सकता।
क़ुरआन जैसा उदाहरण प्रस्तुत करने में मानव असमर
क़ुरआन चौदह सौ साल से निरंतर चुनौती दे रहा है कि जो लोग भी क़ुरआन को ख़ुदा का उतारा हुआ मार्गदर्शक ग्रन्थ नहीं मानते, अगर वे सच्चे हैं तो अपने ज्ञान और विवेक का पूरा उपयोग करके अपनी पूरी शक्ति लगाकर इस जैसी एक ही सूरा लिखकर लाएं और क़ुरआन विश्वास की पूरी शक्ति से घोषणा करता है कि मनुष्य बिल्कुल भी ऐसा नहीं कर सकते—
“और अगर तुम्हें इस बात में संदेह है कि किताब जो हमने अपने बन्दे पर उतारी है, यह हमारी है या नहीं, तो इस जैसी एक ही सूरा बना लाओ। अपने मत के सारे ही लोगों को बुला लो; एक अल्लाह को छोड़कर बाक़ी जिस-जिसकी चाहो सहायता ले लो, मगर तुम सच्चे हो तो यह काम करके दिखाओ। लेकिन अगर तुमने ऐसा न किया और निश्चय ही कभी नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जिसका ईंधन बनेंगे मनुष्य और पत्थर, जो जुटाई गई है सत्य के इनकारियों के लिए।”
(क़ुरआन, सूरा-2 बक़रा, आयत-23,24)
सत्य को जाननेवाले की सोच और फ़ैसले का सही अंदाज़
क़ुरआन का यह दावा है कि ख़ुदा को जानने और उसकी इबादत (उपासना) का सही ज्ञान वही है जो क़ुरआन प्रस्तुत कर रहा है। मानव-जाति की सफलता उसी को स्वीकार करने में है; क्योंकि कि ख़ुदा का उतारा हुआ अंतिम, प्रामाणिक और सुरक्षित मार्गदर्शक ग्रन्थ पवित्र क़ुरआन ही है। यह एक ऐसा चौंका देने वाला दावा है जो हर समझदार और सत्य का ज्ञान रखने वाले को झिंझोड़ता है कि अगर वह वास्तव में अपना भला चाहते हैं तो अज्ञानता, पक्षपात, लापरवाही, बाप-दादा का अंधानुकरण और हठधर्मी का मार्ग छोड़कर साफ़ दिल-दिमाग़ के साथ गंभीरता से इस दावे पर सोच-विचार करे और ख़ुदा ने सोचने, समझने, देखने, सुनने और फ़ैसला करने की जो शक्तियां दे रखी हैं उनसे काम लेकर अपनी ज़िंदगी के बारे में कोई फ़ैसला कर ले; क्योंकि ज़िंदगी केवल एक ही बार मिलती है, बार-बार नहीं। अगर आदमी ने ग़लत विश्वास पर ज़िंदगी की नींव रखी तो वह सदैव के लिए असफल हो गया और अगर सही विश्वास पर जीवन का निर्माण किया तो दुनिया में भी सफल रहेगा और मरने के बाद भी सफलता और मुक्ति पाएगा—
“स्पष्ट रूप से कह दो कि यह सत्य है तुम्हारे प्रभु के ओर से, अब जिसका जी चाहे मान ले और जिसका जी चाहे न माने। हमने तो अत्याचारियों के लिए एक आग तैयार कर रखी है, जिसकी लपटें उन्हें घेरे में ले चुकी हैं। वहां अगर वे पानी मांगेंगे तो ऐसे पानी से उनका सत्कार किया जाएगा जो तेल की तलछट जैसा होगा और उनका मुंह भून डालेगा; अत्यंत बुरा है वह पेय और बहुत ही बुरा है वह विश्राम स्थल। रहे वे लोग जो ईमान लाएं और अच्छे कर्म करें, तो निश्चय ही हम सत्कर्मी लोगों का बदला अकारथ नहीं किया करते। उनके लिए सदाबहार बाग़ है, जिनके नीचें नहरें बह रही होंगी। वहां सोने के गहनों से आभूषित किए जाएंगे, बारीक और गाढ़े रेशमी हरित कपड़े पहनेंगे और ऊंची मसनदों पर तकिए लगा कर बैठेंगे। उत्तम प्रतिदान और उच्च श्रेणी का विश्राम स्थल!”
(क़ुरआन, सूरा-18 कहफ़, आयत-29-31)